
शिव भक्ति इन 3 चरणों में पूरी होगी
1. विश्वास और समर्पण
की परीक्षा भक्त को अपनी भक्ति में मजबूत करती है यह परीक्षाएं भक्त को अधिक सहनशील और समझदार बनाती हैं आपका दृष्टिकोण पहले से ज्यादा विशाल होने लगता है आपकी प्रतिभा आपके मूल्य को निखारने के लिए यह परीक्षाएं होती हैं क्योंकि आपके विश्वास आप के मनोबल को बार-बार तोड़ा जाता है उस पर चोट पहुंचाई जाती है आपको भक्ति मार्ग से विचलित करने के लिए आपको भक्ति मार्ग से भटकाने के लिए और यदि आप विचलित नहीं हुए आप यदि डरे नहीं भटके नहीं तो आपको जीवन में जो चाहिए फिर वह सब आपको आपके इष्ट देते हैं आइए जानते हैं कि परीक्षाओं का क्या स्वरूप होता है हमने पाया कि तीन स्वरूपों में भगवान अपने भक्तों की परीक्षा लेते हैं पहला है भक्ति की प्रारंभिक अवस्था जब बहुत परेशानियों से उलझा हुआ व्यक्ति भगवान शिव की शरण में आता है ताकि उसे उन परेशानियों से छुटकारा मिल जाए व्यक्ति अपने अतीत से दुखी होकर भगवान शिव की शरण में आता है यह वह समय होता है जब व्यक्ति बहुत उत्साह के साथ पूजा ध्यान पाठ और मंत्र जाप करता है ऐसे में व्यक्ति बहुत उम्मीद के साथ भगवान शिव की आराधना करता है ताकि उन्हें अपने कष्टों से मुक्ति मिल सके लेकिन कई बार इसके विपरीत भी हो जाता है हालांकि ऐसा भी नहीं है कि आप और दुखी हो जाएंगे पर इसकेसाथ-साथ यह भी होगा जो हम आपको बताने जा रहे हैं क्योंकि आप अब देवीय शक्ति की आराधना कर रहे हो उसका ध्यान कर रहे हो तो नेचुरली आपके जीवन में सकारात्मकता और आनंद की अनुभूति होगी कुछ संकेत भी आपको मिलेंगे

जैसे प्रारंभिक अवस्था में स्वप्न में शिवलिंग के दर्शन होना
होंगे उसे सुख की प्राप्ति होगी तो इस वजह से भक्ति भाव बहुत बढ़ने लग जाता है और व्यक्ति के अंदर एक आनंद की अनुभूति होती रहती है परंतु कहीं बार उसको भौतिक जीवन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि शिव भक्ति हर किसी को प्राप्त नहीं होती बड़े भाग्य से बड़े पुण्य से शिव भक्ति प्राप्त होती है भक्ति के प्रारंभिक अवस्था में कई बार कार्य सिद्धि में विलंब होने लगता है और अलग-अलग व्यक्तियों को उनकी भक्ति के हिसाब से उनकी ऊर्जा के हिसाब से उनके कर्म बंधनों के हिसाब से अलग-अलग चैलेंज फेस करने पड़ते हैं हर भक्त की अलग-अलग परीक्षाएं
होती हैं जैसे आपने देखा होगा कि कई बार भक्ति करने से घर में मनमुटाव जैसी स्थिति उत्पन्न होने लगती है भक्ति करते समय शरीर में दर्द होता है पूजा में बैठने पर ध्यान नहीं लगता या बहुत ही अनचाहे विचार मन में आने लगते हैं ऐसे में भक्ति नहीं हो पाती ऐसा लगता है कि अब कार्य पूर्ण होने वाला है लेकिन अंत में वह जो कार्य है वह पूर्ण नहीं होता जैसे आपको सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव होता है वही आपको कुछ अनचाही परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है लेकिन अगर ऐसा कुछ हो रहा है तो यकीन मानिए यह बहुत अच्छा संकेत है जिसका अर्थ है कि आपकी शिव भक्ति सफल हो रही है यह हर
भक्त के साथ प्रारंभिक अवस्था में होता है लेकिन आपको घबराना नहीं देखिए इसका कारण है कि जब आप कष्टों से मुक्ति पाने के लिए शिव भक्ति करते हैं तो जो आपके पुराने कार्मिक बंधन है वह क्षीण होने लगते हैं और इस प्रक्रिया में असफलता हाथ लगती है यह ठीक वैसे ही जैसे यदि आपने एक गिलास में पानी डाला है तो उस गिलास से पानी ही बाहर निकलेगा यानी जो आपने बोया है वही आपको मिलेगा यदि आपने पहले कुछ बुरे कर्म किए हैं तो भक्ति के द्वारा पहले उन बुरे कर्मों को काटा जाता है जिससे हमारा आगे आने वाला सारा जीवन सुखमय हो सके हम तो ऐसे ही डोल जाते हैं
आप सुखी नहीं है तो समझ लीजिए
शुरू हो जाते हैं आपको सफलता मिलने लगती है या जो भी आपने मनोकामना मांगी थी या जो भी आपने सोचा था वह पूर्ण होने लगता है आपका दिव्य शक्तियों के साथ संपर्क स्थापित हो जाता है और आपके इष्ट भगवान शिव आपको दिव्य अनुभव कराते हैं स्वप्न के माध्यम से ध्यान में या जागृत अवस्था में भी आपको दिव्य शक्तियों की मद मिलनी शुरू हो जाती है ऐसा इसलिए होता है क्योंकि आपके इष्ट भगवान शिव आपको किसी न किसी माध्यम से आप तक मदद पहुंचाते हैं आइए अब जानते हैं दूसरे चरण में परीक्षाएं कैसी होती हैं दूसरे चरण में आपके मन की परीक्षा होती है माया का माया जाल मन को
चंचल बना देता है संसार का आकर्षण मन को भक्ति से हटाने लगता है मन में लालच विकार आदि बढ़ जाते हैं इस प्रकार की वृतिया मनुष्य को घेर लेती है जब आप पूजा पाठ करते हैं तब आपका मन आपको पूजा में ज्यादा समय बैठने नहीं देता शरीर आकर्षण आपको घेरने लगता है इस दूसरे चरण में साधक को बहुत संभल कर रहने की आवश्यकता होती है इस माया जाल से साधक को बचकर चलना चाहिए अगर इसमें फंस गए तो जो आपने इतनी मेहनत से पुण्य अर्जित किए हैं उनका क्षय हो जाता है फिर वह इस स्थिति में आ जाता है जिस स्थिति में वह पहले था अब बात करते हैं तीसरे चरण की देखिए यह जो परीक्षा की मैं बात कर रहा हूं यह तब होती है जब मनुष्य शिव भक्ति या आध्यात्मिक के क्षेत्र में बहुत ऊंचा उठ जाता है वह बहुत आगे निकल चुका होता है सोचिए इतने सालों का अनुभव इतने पुण्य इतनी भक्ति उसकी प्रबल हो जाती है तो इस समय की जो परीक्षा है उसमें उसको क्या अनुभव होता है पहली बात तो संसार उसके लिए बहुत आसान हो जाता है क्योंकि उसका सोचा हुआ बहुत जल्दी पूरा हो जाता है बहुत सी सिद्धियां उसे प्राप्त हो जाती हैं देवताओं की दिव्य शक्तियां उसके साथ चलने लगती हैं वह मनुष्य साक्षात इन शक्तियों का अनुभव करता है सिद्धियां शक्तियां मिलने पर कई बार साधक के अंदर
अहंकार का भाव भी आ जाता है मोक्ष जो कि अंतिम लक्ष्य होना चाहिए मानव जीवन का उससे वह भटक जाता है लेकिन जो गुरु शरणागत है वह ही इस चरण को पार कर पाता है कई बार ऐसा साधक सिद्धियां शक्तियों के चमत्कार दिखाकर प्रशंसा अर्जित करने में लग जाता है जो कि आगे चलकर मोक्ष प्राप्ति में बाधा बनती है जब साधक को सिद्धियां मिल जाती हैं तो वह अपना अपना अतीत भूल जाता है कि कैसे उसने भक्ति शुरू की और आज वह इस भक्ति के सहारे कहां से कहां आ गया लेकिन शक्तियां प्राप्त होने पर साधक भूल जाता है कि उसे मोक्ष की प्राप्ति भी करनी है पर वह लोग प्रशंसा के लालच में उलझ
इसी बंधन में दोबारा बंध जाता है लेकिन जो साधक गुरु शरणागत होते हैं वह इन सबसे ऊपर उठकर अंत में शिवलोक को प्राप्त होते हैं इसी के साथ हम अपनी वाणी को विराम देते हैं हर हर महादेव