
इन 16 कलाओं प्राप्त आत्मा इतनी सक्षम बन जाती है कि इसके लिए कुछ भी असंभव नहीं रह जाता
- भगवान श्री कृष्ण ने मानव रूप में जन्म लिया था और भगवान श्री कृष्ण ने अपने जीवन में कई प्रकार के चमत्कार किए हैं लेकिन भगवान श्री कृष्ण यह चमत्कार कैसे करते थे क्योंकि भगवान श्री कृष्ण ने चेतना के सर्वोच्च शिखर यानी 16वें स्तर को प्राप्त कर लिया था भगवान श्री कृष्ण ने 64 विद्या और 64 कलाओं में महारथ प्राप्त किया था और इसीलिए वे चमत्कार कर पाते थे हम भी चमत्कार कर सकते हैं यदि हमें इन कलाओं का ज्ञान प्राप्त हो जाए तो आइए जानते हैं कि यह 14 विद्या और 16 कलाएं कौन सी है तो मित्रों विद्या और कला में अंतर होता है
विद्या दो प्रकार की होती है - परा विद्या
- और अपरा विद्या
इसी के अंतर्गत कई प्रकार की विद्याओं होती हैं इसी तर
- ह कलाएं भी दो प्रकार की होती है
- पहली सांसारिक कलाएं
- और दूसरी आध्यात्मिक कलाएं
- सबसे पहले हम विद्याओं के बारे में जानते हैं विद्या
- हिंदू धर्म ग्रंथों में दो तरह की विद्याओं का उल्लेख किया गया है
- पहली है परा विद्या
- और दूसरी है अपरा विद्या इस परा विद्या को लौकिक और अपरा विद्या को पारलौकिक विद्या कहा जाता है दुनिया में ऐसे कई संत या तपस्वी हैं जो इन विद्याओं को किसी ना किसी रूप में जानते हैं वे इन विद्याओं के बल पर ही भूत भविष्य का वर्णन
कर देते हैं और इसके बल पर ही वे चमत्कार करने की शक्ति भी प्राप्त कर लेते हैं शिक्षा कल्प व्याकरण निरुक्त छंद नक्षत्र वास्तु आयुर्वेद वेद कर्मकांड ज्योतिष सामुद्रिक शास्त्र हस्तर रेखा धनुर्विद्या आदि यह सभी परा विद्या हैं लेकिन प्राण विद्या त्राटक सम्मोहन जादू टोना स्तंभन इंद्रजाल तंत्र मंत्र यंत्र चौकी बांधना गार गिराना सूक्ष्म शरीर से बाहर निकलना पूर्व जन्म का ज्ञान होना अंतर्ध्यान होना त्रिकालदर्शी बनना मृत संजीवनी विद्या पानी बताना अष्ट सिद्धियां नवनिधि आदि अपरा विद्या हैं लेकिन मूल रूप से 14 विद्या ही प्रमुख है
- अब हम कलाओं के बारे
में जानते हैं कलाए कलाएं दो प्रकार की होती है सांसारिक कलाएं और आध्यात्मिक कलाएं सांसारिक कलाओं में मार्शल आर्ट भाषा लेखन नाट्य गीत संगीत नौटंकी तमाशा वास्तुशास्त्र स्थापत्य कला चित्रकला मूर्ति कला पाक कला साहित्य बेल बूटे बनाना नृत्य कपड़े और गहने बनाना सुगंधित वस्तु इत्र तेल बनाना नगर निर्माण सुई का काम बड़ी की कारीगरी पीने और खाने के पदार्थ बनाना पाक कला सोने चांदी हीरे पन्ने आदि रत्नों की परीक्षा करना तोता मैना आदि की बोलियां बोलना इत्यादि सांसारिक कलाएं हैं शास्त्रों में 64 प्रकार की कलाएं बताई गई हैं आध्यात्मिक
कलाएं आध्यात्मिक कलाएं मूल रूप से 16 है उपनिषदों के अनुसार 16 कलाओं से युक्त व्यक्ति ईश्वर तुल्य होता है या कहे कि स्वयं ईश्वर ही होता है 16 कलाएं दरअसल बोध प्राप्त आत्मा की भिन्न-भिन्न स्थितियां है बोध अर्थात चेतना आत्मज्ञान या जागरण की अवस्था या होश का स्तर जैसे प्राणी के अंतर में जो चेतन शक्ति है या प्रभु का तेजांशु व्यक्त हो रही है उतनी ही उसकी कलाएं मानी जाती हैं इसी से जड़ चेतन का भेद होता है जिस प्रकार से प्रतिपदा के दिन चंद्र की कला में कम प्रकाश होता है और जैसे-जैसे चंद्र की कला बढ़ती जाती है वैसे-वैसे
उसका प्रकाश भी बढ़ता जाता है और पूर्णिमा के दिन चंद्र पूर्ण रूप से चमक उठता है इसी प्रकार से आत्मा दिव्य और अलौकिक बनती जाती है आत्मा की कम जागृति को पहली कला और जब आत्मा अपनी जागृति के चरम पर होती है तो उसे सोवी कला माना जाता है और सवी कला प्राप्त व्यक्ति ईश्वर तुल्य बन जाता है अब यह 16 कलाएं कौन सी है इसकी जानकारी प्राप्त करते हैं प्रश्न उपनिषद में महर्षि पीपलाद हमें इन 16 कलाओं की जानकारी देते हैं सबसे - पहली कला है नाम जब आत्मा ने अपने आप को अभिव्यक्त किया और इस जगत और ब्रह्मांड की रचना हुई तो सभी तत्वों और पदार्थों को एक नाम मिला और नाम
के साथ रूप और गुण भी जुड़े हुए होते हैं हम किसी भी व्यक्ति वस्तु या पदार्थ को नाम रूप या गुण से जान और पहचानते हैं यह आत्मा की सबसे पहली जागृति है जब व्यक्ति इस जगत में आता है तो उसे विविध रूप दिखाई देते हैं विविध गुणों की अनुभूति होती है जैसे कि ठंडी गर्मी पीड़ा आनंद इत्यादि और उसको विविध नाम सुनाई देते हैं पत्थर पेड़ पौधे रमेश सुरेश बस यही आत्मा की पहली जागृति या पहली कला है इसके अंतर्गत सभी नामधारी गुणधार और रूप भारी जड़ और चेतन पदार्थ का समावेश होता है - दूसरी कला है लोक अब जब व्यक्ति जन्म लेकर इस दुनिया में आता है और थोड़ा बड़ा होता है तो वह
अपने मोहल्ले गांव शहर राज्य देश और दुनिया की जानकारी प्राप्त करता है एक प्राणी भी बड़ा होता है तो अपने इलाके की जानकारी प्राप्त करता है आत्मा की जागृति का स्तर अब नाम रूप और गुण से बढ़कर लोक तक विस्तृत हुआ यानी कि वह दुनिया की जानकारी प्राप्त करने लगा अब तक उसे यह ज्ञान नहीं हुआ है कि वह कौन है और कहां से आया है और क्यों आया है आत्मा की इतनी जागृति को दूसरी कला कहते हैं जिसके अंतर्गत छोटे बच्चे मनुष्य प्राणी पक्षी इत्यादि का समावेश होता है - तीसरी कला है कर्म अब व्यक्ति संसार में आने के बाद अपना कर्म शुरू कर देता है खाना पीना सो
जाना मैथुन करना बच्चे पैदा करना लड़ना झगड़ना प्यार करना अब आत्मा की जागृति बढ़कर तीसरे स्टेज पर पहुंच चुकी है और इसे आत्मा की तीसरी कला कहते हैं इस संसार में जन्म लिए हुए व्यक्ति को बस इतना ही ज्ञान है या जागृति है कि मेरा जन्म खाने पीने सोने और बच्चे पैदा करने के लिए हुआ है चौथी कला का नाम है मंत्र अब व्यक्ति कर्म तो करता है लेकिन उसे यह ज्ञान भी होने लगा है कि कौन सा कर्म सही है और कौन सा कर्म गलत है उसे दूसरों को दुख नहीं पहुंचाना चाहिए उसे दूसरों के हक का खाना नहीं खा जाना चाहिए मैं सबके साथ मिलजुलकर रहूंगा मैं दुखी लोगों की मदद करूंगा जब
व्यक्ति के ऐसे आदर्श बनने लगते हैं तब उसे मंत्र कह कते हैं आपने कई लोगों को कहते सुना होगा कि यह मेरा जीवन मंत्र है अब व्यक्ति की चेतना प्राणियों से ऊपर उठ चुकी है इसके अंतर्गत सिर्फ मनुष्य और कुछ बुद्धिशाली प्राणी ही आते हैं यह आत्मा का चौथा स्टेज या - चौथी कला है जहां उसे ज्ञान या जागृति होने लगती है कि क्या अच्छा है क्या बुरा है क्या सही है क्या गलत है और इसी सोच को निर्देशित करने वाली दृष्टि को आदर्श वाक्य को मंत्र कला कहा जाता है इस जगत के अधिकतर लोग इस चौथी कला में ही जीते हैं और पूरी जिंदगी उससे ऊपर अपनी
चेतना को नहीं ले जा पाते अब - पांचवी कला है तप अब जब व्यक्ति कहता है कि मैं दूसरे के हक का खाना नहीं खाऊंगा तो उसे भोजन का त्याग करना होगा और कुछ दिन भूखे भी रहना हो सकता है जब व्यक्ति कहता है कि मैं दूसरों को सुख पहुंचा ंगा तो उसे अपने सुख का त्याग करना होगा जब व्यक्ति कहता है कि मैं सबसे मिलजुलकर रहूंगा तो उसे अपने क्रोध और हिंसा का त्याग करना होगा और इसी त्याग को तप कहा गया है अब व्यक्ति की आत्मा इतनी जागृत हो गई है कि वह जगत के दूसरे पदार्थ वस्तुओं और व्यक्तियों के लिए तप कर सके अब वह किसी को दुखी नहीं देख सकता अब वह किसी के साथ हो रहे अन्याय
को नहीं देख सकता और इसीलिए दूसरों को सुख पहुंचाने के लिए अपनी बाह्य और आंतरिक चीजों का त्याग करता है उसी को पांचवी कला तप कला कहा गया है - छठी कला का नाम है वीर्य यानी ऊर्जा या शक्ति अब व्यक्ति को लौकिक और अलौकिक शक्ति यों का ज्ञान होने लगता है जैसे कि वह मिलजुलकर रहने लगा तो उसे सामूहिक शक्ति का ज्ञान हुआ उसने कानून तोड़े तो कानून की शक्ति का ज्ञान हुआ इस राजा से लेकर देश और दुनिया की शक्ति का ज्ञान हुआ उसे शारीरिक और मानसिक शक्तियों का ज्ञान होने लगा इस त्याग तपस्या और साधना की शक्तियों का ज्ञान होने लगा और उसे आध्यात्मिक शक्तियों का
ज्ञान होने लगा और इस शक्तियों का ज्ञान होने से वह चेतना के छठे स्तर यानी छह कलाओं वाला बन जाता है \ - सातवी कला है अनम जगत का कोई भी प्राणी प्रमुख तीन कार्य करता है पहला है खाना खाना दूसरा है मैथुन करना और तीसरा है सो जाना सरवाइव करने के लिए अन्न और जल उसकी सबसे पहली प्राथमिकता है और उसी को प्राप्त करने के लिए वह सारी जिंदगी संघर्ष करता रहता है और खाने के कई विकल्प पैदा करता है जो आत्मा जागृत नहीं है वह सिर्फ खाने के लिए ही जीवन जीती है और कई लोग तो सिर्फ स्वाद के लिए ही खाना खाते हैं उनके लिए खाना जीवन टिकाए रखने
के लिए नहीं लेकिन स्वाद प्राप्त करने के लिए है लेकिन जब आप आत्मा की सातवीं कला प्राप्त करते हैं तो आपको स्वयं ही पता चलने लगता है कि कौन सा खाना आपके लिए उचित है और कौन सा खाना आपको नहीं खाना चाहिए आपको ज्ञान होने लगता है कि आप खाना क्यों खा रहे हैं आपको किसी से पूछने नहीं जाना पड़ता कि आप उपवास में क्या खाए और क्या ना खाए इसका आपको स्वयं ही ज्ञान होने लगता है आपको मांसाहार करना चाहिए या नहीं करना चाहिए आपको फलाहार करना चाहिए अन्ना हार करना चाहिए या उपवास करना चाहिए इस बात को आप स्वयं ही जान लेते हैं अब खाना आप सिर्फ स्वाद के लिए ही नहीं खा
रहे होते हैं यदि आपको पांच पकवान मिले हैं तो भी आप ज्यादा खुश नहीं हो जाते और यदि आपको सुखी रोटी भी खाने को मिली है तो भी आप दुखी नहीं हो जाते क्योंकि आप चेतना के आत्मा के छठे स्तर पर पहुंच चुके हैं आत्मा की सातवी कला का नाम है मन कई सा साधक और तपस्वी इस सातवी कला तक पहुंच जाते हैं यहां पर पहुंचकर आपको मन का ज्ञान होने लगता है आपको मन और आत्मा में क्या अंतर है यह दिखाई देने लगता है आपको आत्मा के मनोमय कोष का ज्ञान होने लगता है आपको मन के क्रियाकलापों चंचलता और मन किस प्रकार से शांत और स्थिर हो सकता है इसका ज्ञान होने लगता है आप जान जाते हो कि मन
किस प्रकार से मुक्ति और बंधन का कारण है आपका जो मन परिस्थितियों से घटनाओं से वस्तु व्यक्ति और पदार्थ से दुखी द्रवित और खुश हो जाता था अब उसका पूरा कंट्रोल आपके हाथ में आ जाता है जब व्यक्ति मन पर विजय प्राप्त कर लेता है तो वह सात कलाओं वाला बन जाता है आत्मा की आठवी कला है इंद्रियां अब आपने मन पर तो नियंत्रण प्राप्त किया है लेकिन मन को चलाने वाला और मन को खींच के ले जाने वाली इंद्रियां है इंद्रिया जहां जाएगी आपका मन भी वहां चला जाएगा इसीलिए इंद्रियों पर नियंत्रण प्राप्त करना भी अत्यंत जरूरी है पहली है स्वाद इंद्रिय जो आपको विविध प्रकार के
स्वाद की ओर आसक्त करेगी आपको खींच कर ले जाएगी लेकिन इस - आठवें स्तर पर आ जाने पर आपके लिए स्वाद महत्त्वपूर्ण नहीं है नेत्र इंद्रिय आपको बहुत सुंदर बीभत्स भयानक हिंसात्मक इरोटिक्स दृश्य के प्रति आसक्त करेगी लेकिन इस कला के प्राप्त करने पर आपके लिए वैसे दृश्य कोई मायने नहीं रखेंगे श्रवण इंद्रिय आपको मधुर संगीत मीठी बातें निंद गालियां जैसी आवाजों की तरफ खींच कर ले जाएगी लेकिन ऐसी आवाजें आप पर कोई अच्छा या बुरा प्रभाव नहीं डाल सकती जनन इंद्रिया आपको मैथुन के प्रति आसक्त करेगी लेकिन आप मैथुन करें या ना करें आप पर आपका उस पर पूर्ण नियंत्रण है
आपको पूर्ण जागृति होती है कि आपको मैथुन कब करना है और क्यों करना है और कब नहीं करना है और ब्रह्मचर्य का पालन करना है इसी प्रकार सभी इंद्रियों पर आप नियंत्रण प्राप्त कर लेते हैं तो आप आठ कलाओं के स्वामी बन जाते हैं और यहां तक कुछ सिद्ध योगी ही पहुंच सकते हैं जिन्होंने अपने मन और इंद्रियों पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त कर लिया है - नौवी कला का नाम है पृथ्वी मैं बड़ा हूं मैं सुंदर हूं मैं सबसे योग्य हूं मैं सबसे ईमानदार हूं सभी लोग मेरा बहुत आदर करते हैं सभी मुझसे डरते हैं सभी मुझे पसंद करते हैं मेरी योग्यता के कारण
लोग मुझसे ईर्ष्या करते हैं ऐसे भावों से जब आप ऊपर उठ जाते हो आपके अंदर से अहंकार नष्ट हो जाता है तब आप पृथ्वी तत्व पर नियंत्रण प्राप्त कर देना शुरू करते हैं आप जान जाते हो कि ना तो आप किसी से बेहतर हो और ना ही किसी से अलग हो और ना ही किसी से श्रेष्ठ हो क्योंकि आपका निर्माण इस पृथ्वी तत्व के अणुओं से हुआ है जिससे सारे ब्रह्मांड का भी निर्माण हुआ है पृथ्वी तत्व के सक्रिय होने से अब आप में ठहराव आने लगता है आपके विचारों में और आपके कार्यों में भी और अब आपका मूल आधार चक्र सक्रिय होना शुरू हो जाता है और जब पृथ्वी तत्व पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त हो
जा जाता है तो आपको कई सिद्धियां मिलना शुरू हो जाती हैं आपको अणिमा और लगमा नाम की सिद्धियां प्राप्त होती है यानी आप अपने शरीर को बड़ा या छोटा कर सकते हो आप किसी भी पदार्थ को किसी अन्य पदार्थ में रूपांतरण कर सकते हो आप शरीर पर पड़े जख्मों को ठीक कर सकते हो आप किसी भी बीमारी को ठीक कर सकते हो आप में हीलिंग पावर आ जाती है और इस प्रकार से आप - 10 कलाओं के मालिक बन जाते हैं दसवीं कला का नाम है जल अब आपकी चेतना का स्तर इतना ऊपर उठ चुका है कि आप जल तत्व यानी कि जो विविध फोर्स यानी कि बल है जैसे कि गुरुत्वाकर्षण बल विद्युत चुंबकीय बल
पेशीय बल यांत्रिक बल घर्षण बल इसका ज्ञान प्राप्त होने लगता है और इसके लिए आपको कोई वैज्ञानिक होने की जरूरत नहीं है आप इन बलों पर नियंत्रण प्राप्त कर सकते हैं और आपको कई सारी सिद्धियां प्राप्त हो जाएंगी जैसे कि गरिमा और लगमा यानी कि आप अपने शरीर को या किसी भी वस्तु को बहुत ज्यादा भारी या हल्का बना सकते हैं जिस प्रकार से नीम करोली बाबा ने ट्रेन को इतना भारी बना दिया कि वह एक इंच भी आगे ना बढ़ सकी और भगवान श्री कृष्ण ने अपनी एक उंगली पर पूरे गोवर्धन पर्वत को उठा लिया और भगवान हनुमान पूरे पर्वत को उठाकर लंका ले गए आप में काबिलियत आ जाती है कि
आप किसी भी चीज को आकर्षित कर सकते हैं उसे अपने पास ला सकते हैं या दूर भेज सकते हैं आप अपनी बुद्धि का निरीक्षण करने में और उसका सही उपयोग करने में सक्षम बन जाते हैं - 11वीं कला का नाम है अग्नि अब आपकी तीसरी आंख यानी कि ज्ञान चक्षु खुल जाते हैं आप किसी भी वस्तु में आग पैदा कर सकते हैं आप ठंडी या गर्मी यानी कि तापमान पर नियंत्रण रख सकते हैं आपका आभा मंडल यानी कि ओरा मंडल बहुत ज्यादा बड़ा होने लगेगा अब आपको प्राप्ति नाम की सिद्धि प्राप्त हो जाती है जिसके अंतर्गत आप किसी भी पशु पक्षी और जीव जंतु की भाषा को समझ सकते
हैं - 12वीं कला का नाम है वायु अब आपकी आत्मा इतनी ऊपर उठ चुकी है कि आप वायु तत्व पर नियंत्रण प्राप्त कर आकाश में उड़ सकते हैं और जमीन के अंदर भी जा सकते हैं पानी के अंदर भी कई दिनों तक रह सकते हैं इसी को प्रा काम्य सिद्धि कहते हैं जो वायु तत्व पर नियंत्रण प्राप्त करने से मिलती है
- 13वीं कला का नाम है आकाश आकाश तत्व में पूर्ण नियंत्रण हो जाता है कहा हुआ प्रत्येक शब्द सत्य होता है समस्त पंचभूत से एकरूपता हो जाती है और सब पर नियंत्रण हो जा जाता है जड़ चेतन इच्छा अनुसार कार्य करते हैं इन 13 कलाओं पर नियंत्रण प्राप्त करने के बाद मनुष्य
- भगवान बन जाता है अब उसकी आत्म दृष्टि इतनी विकसित हो चुकी होती है कि वह कोई गलत कार्य कर ही नहीं सकता उसका एक मात्र लक्ष्य ही बच जाता है और वह है जगत का कल्याण सारे संकल्प विकल्प का अंत हो जाता है 14 कला का नाम है श्रद्धा अब व्यक्ति को उसे परम तत्व में अपार श्रद्धा या कहे कि विश्वास बन जाता है या कहे कि वही वह परम सत्य बन जाता है उसका समय पर नियंत्रण हो जाता है देह वृद्धि रुक जाती है अथवा अपनी इच्छा से होती है व्यक्ति सर्वव्यापी हो जाता है एक साथ अनेक रूपों में प्रकट हो सकता है वह पूर्णता अनुभव करता है वह मृत्यु पर नियंत्रण प्राप्त कर लेता है और
उसे इच्छा मृत्यु प्राप्त होती है व्यक्ति हजारों वर्षों तक जीवित रह सकता है - 15वीं कला का नाम है प्राण इस कला से युक्त पुरुष में व्यक्त अव्यक्त की सभी कलाएं होती हैं यही दिव्यता है व्यक्ति दिव्य प्रकाश रूप बन जाता है ऐसा कुछ भी नहीं है जो व्यक्ति रूपी भगवान ना कर सके यह बहुत ही उच्च कोटि की आत्मा की जागृति है
- 16वीं कला का नाम है त्व इस कला को प्राप्त आत्मा कारण का भी कारण हो जाता है यह अव्यक्त अवस्था है अब व्यक्ति अपना स्वयं का लोक बना सकता है ब्रह्मांड बना सकता है वह व्यक्त भी हो सकता है और अव्यक्त भी बन सकता है अब उसमें और परम तत्व में कोई
अंतर नहीं रह जाता तो मित्रों आपने इस प्रस्तुति में आत्मा की 16 कलाओं के बारे में जाना जिसे महर्षि पीपलाद ने हमें प्रश्न उपनिषद में बताया है जो आत्मा की जागृति के अलग-अलग स्तर है -
इन 16 कलाओं प्राप्त आत्मा इतनी सक्षम बन जाती है
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