Kumbh Mela | Naga Sadhus in Kumbh

Kumbh Mela | Naga Sadhus in Kumbh कुंभ का मेला ||

अजीब बात यह है कि यह नागा साधु जो कुंभ में भाग लेने के लिए लाखों की संख्या में वहां पहुंचते हैं किसी को यह नहीं पता होता कि वह कहां से आते हैं और मेला खत्म होने के बाद कहां चले जाते हैं क्या आपने कभी किसी नागा साधु को बस या ट्रेन में सफर करते देखा है नहीं ना लेकिन फिर भी वो  एक साथ इतनी बड़ी संख्या में वहां कैसे पहुंच जाते हैं यह अपने आप में एक मैजिकल मिस्ट्री है कहते हैं कि समुद्र मंथन के वक्त जब देवता और राक्षसों के बीच युद्ध हो रहा था तब अमृत की चार बूंदे पृथ्वी पर चार अलग-अलग जगहों पर गिर गई थी

Kumbh Mela | Naga Sadhus in Kumbh


इसी वजह से आज भी इन चार जगहों पर कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है

नमस्कार दोस्तों कुंभ मेला जो देश के अलग-अलग हिस्सों में होता है एक ऐसी परंपरा है जो हमें हजारों सालों से जोड़ती आई है दुनिया का सबसे बड़ा मेला जहां करोड़ों लोग इकट्ठा होते हैं सिर्फ एक पवित्र स्नान के लिए पूरी दुनिया से साधु संत तपस्वी तीर्थ यात्री और भक्त इस महाकुंभ में भाग लेते हैं जो लगभग 45 दिन तक चलता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस महा उत्सव के पीछे एक प्राचीन पौराणिक कथा छुपी है

 


 

और यह कुंभ मेला क्यों मनाया जाता है

किसने इस परंपरा की शुरुआत की आज ईश राज को खोलेंगे और आपको बताएंगे कुंभ मेले की कहानी जो शायद आपने पहले कभी नहीं सुनी होगी तो आप ईश कहानी को लास्ट तक जरूर पढ़े और अपने धर्म के महत्व और उसकी गरिमा को जाने क्या आप जानते हैं कि

भारत में चार तरह के कुंभ मेले होते हैं

पहला जो कुंभ मेला कहते हैं ये हर तीन साल में चार अलग-अलग जगहों पर होता है

दूसरा अर्ध कुंभ मेला जो हर 6 साल में सिर्फ हरिद्वार और प्रयागराज में होता है

तीसरा पूर्ण कुंभ मेला जो 12 साल में एक बार प्रयागराज हरिद्वार नासिक और उज्जैन में मनाया जाता है और

चौथा है महाकुंभ मेला जो 144 सालों में सिर्फ एक बार यानी 12 पूर्ण कुंभ मेले के बाद प्रयागराज में होता है लाखोंKumbh Mela | Naga Sadhus in Kumbh
श्रद्धालु इस महा उत्सव में भाग लेते हैं और पवित्र नदियों में स्नान करते हैं आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इस महाकुंभ का आयोजन हर 12 साल में होने के पीछे एक एस्ट्रोलॉजिकल रीजन भी है जी हां दोस्तों कुंभ मेले का टाइम बनता है ग्रहों के चक्कर लगाने पर देखो यह जो जुपिटर यानी गुरु ग्रह है ना इसे रिलीजियस एंगल से काफी स्पेशल माना गया है यह लगभग 12 सालों में राशि चक्र का एक पूरा चक्कर लगाता है अब होता यह है कि जब बृहस्पति कुंभ राशि में प्रवेश करता है और उसी वक्त सूर्य मेष राशि में होता है तो यह एक अलग ही सिलेस्ट यल मूवमेंट क्रिएट करता है जो महाकुंभ की
शुरुआत का सिग्नल होता है इसी वजह से महाकुंभ हर 12 साल में मनाया जाता है श्रद्ध कों का यह मानना है

 

 


कि महाकुंभ के दौरान इस पवित्र नदी में स्नान करने से इंसान अपने पुराने पापों का प्रायश्चित कर सकता है कुंभ का उत्सव तो काफी पुरानी और इंटरेस्टिंग कहानियों से जुड़ा है लेकिन सबसे पॉपुलर और माने जाने वाली कहानी है समुद्र मंथन से जुड़ी हुई इस कहानी के मुताबिक महा ऋषि दूरवा जो अपने ने गुस्से को कंट्रोल करना मुश्किल समझते थे एक बार देवराज इंद्र और बाकी देवताओं को श्राप दे बैठे अब उस श्राप का असर ऐसा था कि सभी देवता कमजोर पड़ गए और तब दैत्य यानी असुर ने देवताओं पर अटैक करना शुरू कर दिया इस दैत्य के अत्याचार से परेशान होकर सभी देवता मिलकर भगवान विष्णु के पास गए और उनसे दैत्यों से छुटकारा दिलाने की प्रार्थना करने लगे देवताओं की मुश्किलें देखते हुए भगवान विष्णु ने उन्हें एक प्लान दिया और कहा कि वह दैत्यों के साथ सा मिलकर एक काम करें तो यह जो काम था वह था शीर सागर का मंथन करके अमृत निकालने का भगवान विष्णु के कहने पर सभी देवता दैत्यों के साथ मिलकर इस अमृत को निकालने की कोशिश में लग गए देवताओं के इशारे पर इंद्र के पुत्र जयंत उस अमृत कलश को लेकर आसमान में उड़ गए क्योंकि अगर यह कलश  दैत्यों के हाथ लग जाता तो वह देवताओं से भी ज्यादा शक्तिशाली हो जाते लेकिन आसमान में उड़ते जयंत पर दैत्यों की नजर पड़ गई और दैत्य गुरु शुक्राचार्य के कहने पर सब दैत्य अमृत वापस लेने के लिए जयंत का पीछा करने लगे जयंत भी इजली हार मानने वालों में से नहीं थे आसमान में लंबे समय तक पीछा करने के बाद दैत्यों ने बीच रास्ते में जयंत को पकड़ ही लिया पर जयंत उन्हें इतनी आसानी से कलज देने वाले नहीं थे फिर क्या दोनों साइड में घमासान युद्ध हुआ और कहते हैं


यह युद्ध पूरे 12 दिन तक चला युद्ध के दौरान गलती से अमृत के कलश से चार बूंदे धरती पर गिर गई पहली बूंद प्रयागराज में दूसरी श्री शिव की नगरी हरिद्वार में तीसरी बूंद उज्जैन में और चौथी नासिक में जा लगी इसी वजह से आज भी कुंभ के मेले इन्हीं चार जगहों पर मनाए जाते हैं कहते हैं उस वक्त चंद्रमा ने घड़े में से अमृत को बहने से रोका सूर्य ने घड़े को टूटने से बचाया और गुरु ने दैत्यों के चोरी करने से और शनि ने इंद्र के डर से उस कलश की रक्षा की थी इस संघर्ष को शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने अपना मोहिनी रूप धारण किया और सबको उनके योग्य अनुसार अमृत बाट दिया इस तरह से देव दैत्य युद्ध का अंत किया गया कहानी के मुताबिक अमृत प्राप्ति के लिए देव दैत्यों में  पूरे 12 दिन तक युद्ध चला था लेकिन धरती के हिसाब से स्वर्ग लोक का एक दिन एक साल के बराबर माना जाता है इसलिए कुंभ भी 12 ही होते हैं इनमें से चार कुंभ तो धरती पर होते हैं और बाकी के आठ देवलोक में मनुष्य जाति को उन आठ कुंभ में शामिल होने का अधिकार नहीं है यह वही मना सकता है जो देवताओं के समान शक्ति और य प्राप्त करें इसी वजह से उन बाकी के कुंभ सिर्फ देवलोक में ही मनाए जाते हैं कुंभ मेले में सूर्य और बृहस्पति का खास योगदान माना जाता है इसीलिए जब यह दोनों ग्रह एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं तब कुंभ का समय  निर्धारित किया जाता है मान्यताओं के अनुसार जब सूर्य मेष राशि में और बृहस्पति कुंभ राशि में होता है तो यह मेला हरिद्वार में माना जाता है जब बृहस्पति वृषिक राशि में और सूर्य मकर राशि में होते हैं तो कुंभ प्रयाग में होता है और जब बृहस्पति और सूर्य दोनों ही वृषिक राशि में प्रवेश करें तो यह मेला उज्जैन में होता है लेकिन जब बृहस्पति और सूर्य सिंह राशि में होते हैं तब यह महाकुंभ मेला महाराष्ट्र के नासिक में माना जाता है यह सिर्फ चार जगहों पर ही मनाया जाता है और इन स्थलों पर आकर कुछ विशेष काम करने की भी कई मान्यताएं हैं कहते हैं कुंभ के दौरान श्रद्धा भाव काफी महत्व रखता है जो जितनी श्रद्धा से यहां आता है उसकी उतनी ही मनोकामनाएं पूरी होती हैं तो दोस्तों आप समझ रहे हैं कि यह सिर्फ एक उत्सव नहीं बल्कि एक ऐसी परंपरा है जो हमें अमृत और अस्तित्व के साथ जोड़ती है अब 12 सालों के बाद 2025 में कुंभ मेला होने वाला है क्या आप इस उत्सव में शामिल होंगे क्या आपको लगता है कुंभ मेले में स्नान करने से आपके भी सभी पाप धुल सकते हैं

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