साधक गोरखनाथ की कथा || कोन थे गोरख नाथ ?
गोरखनाथ बहुत ही सिद्ध योगी थे भारतीय योगिक संस्कृति के इतिहास में वह एक सितारे की तरह जो कई मायनों में असाधारण है उनके गुरु थे मत्स्येंद्रनाथ मद्र नाथ को लोग खुद शिव के रूप में देखते हैं वह उनसे कम नहीं है बस वह थोड़ा बाद में आए मगर वह शिव जैसे ही हैं उन्हें इसी तरह देखा जाता है तो गोरखनाथ उनके शिष्य थे गोरखनाथ अपने गुरु के घोर भक्त थे मछेंद्रनाथ ने देखा यह युवक किसी सिपाही की तरह बनता जा रहा है वह बहुत उग्र हो रहा है अपने गुरु के लिए उसका प्यार इतना तीव्र है कि वह एक सिपाही की तरह बनता जा रहा है योगी की तरह नहीं तो उन्होंने उन्हें हिमालय चले जाने और वहां 14 साल साधना करने को कहा तो वह चले गए मगर वह इस तरह बने हैं
उनके लिए यह सारी साधना सब कुछ जो वह करते हैं वह बस इसलिए क्योंकि गुरु ऐसा कहते हैं उनके लिए उनके गुरु ही सब कुछ हैं गुरु के प्रति पूरे समर्पित तो जब वह हिमालय में बैठे 14 साल हर दिन हर पल वह बस पल गिन रहे थे कि कब 14 साल बीत और मैं अपने गुरु के पास वापस जाऊंगा साथ ही वह साधना भी करते रहे 14 साल की साधना के कारण उनके अंदर कई संभावनाएं आ गई उन्होंने उनका इस्तेमाल नहीं किया वो उन संभावनाओं के बारे में जानते थे देन ही केम बैक फिर वह लौट आए उस पहाड़ पर जो दक्कन के पठार के शुरू में है जहां से पश्चिमी घाट शुरू होते हैं बॉम्बे से बस 160 से 200 किलोमीटर दक्षिण में अब उस पहाड़ को गोरखनाथ पर्वत कहा जाता है उसका नाम उनके नाम पर पड़ा आज भी वहां लोग होते हैं मुझे थोड़ा समय उनके साथ बिताने का मौका मिला तो वह पूरा सफर करके वापस नीचे आए देखिए आपको यह सारी व्यवस्था समझनी होगी पैदल चलकर हिमालय तक जाना वहां 14 साल रहना और फिर पूरा सफर तय करके वापस नीचे आना बस एक तीव्र विचार और भावना के साथ कि वह अपने गुरु की मौजूदगी में होना चाहते हैं
यह कोई छोटी चीज नहीं है हिमालय चढ़ना 14 साल वहां इंतजार करना और वापस आना पूरा पैदल चलकर जब व आए जिस गुफा में मत्स्येंद्रनाथ रहते थे उसके ठीक बाहर एक साधु था एक दूसरा योगी था जो वहां पहरा दे रहा था तो वह वापस आए तो इस योगी ने उन्हें रोका और कहा तुम गुफा में नहीं घुस सकते गोरखनाथ बोले क्या मैं गुफा में नहीं घुस सकता मैं अपने गुरु से नहीं मिल सकता मैं 14 साल से इंतजार कर रहा हूं वह बोला नहीं आप नहीं घुस सकते गोरखनाथ ने अपना आप खो दिया उन्होंने उस योगी को पर धकेला और गुफा में घुस गए जब वह गुफा में गए तो वहां मछेंद्रनाथ नहीं थे गुरु वहां नहीं थे तो वह व्याकुल हो उठे कहां है
वोह तो वह बाहर आए और योगी से पूछा गुरु कहां है वह बोला मैं तुम्हें नहीं बताऊंगा मैंने तुम्हें गुफा में घुसने से मना किया था तुम मुझे धक्का देकर चले गए मैं तुम्हें नहीं बताऊंगा तो गोरखनाथ ने अपने तंत्र का इस्तेमाल किया और योगी के दिमाग में जो कुछ था उसे बाहर निकाल लिया और सीधा वहां पहुंचे जहां गुरु थे उन्होंने गुरु की छुपने की जगह को ढूंढ निकाला जैसे ही वह वहां पहुंचे वहां गुरु ने एक दूसरे योगी के पास उनके लिए आदेश छोड़ा हुआ था कि उन्हें फिर 14 साल के लिए हिमालय जाना होगा क्योंकि उसने
उस साधना का दुरुपयोग किया जो मैंने उसे दी थी मैंने उसे साधना आध्यात्मिक विकास के दी थी मगर उसने किसी और के मन में घुसने के लिए उसका इस्तेमाल किया जो किसी योगी को कभी नहीं करना चाहिए फिर से 14 साल तो गोरखनाथ ने पूछा क्या इस समय को कम करने का कोई उपाय है
अगर तुम एक असंभव रूप से कठिन आसन में बैठो तो हम उस समय को आधा कर देंगे सात साल यह असंभव रूप से कठिन सन है वह इस तरह अपने बाएं पैर की उंगलियों पर बैठे एड़ी मल द्वार पर मूलाधार में और दाहिना पैर पालथी में इसे आज भी गोरखनाथ आसन कहा जाता है तो वह बस अपने पैर की उंगलियों पर मूलाधार के ऊपर थे बाई एड़ी के सहारे और दाहिना पैर यहां वह सात साल तक इस तरह बैठे या तो या तो 14 साल या कठोर सात साल फिर वह वापस लौटे इस बारे में ढेर सारी कहानियां है कि मत्स द्र नाथ ने किस तरह अपने लिए गोरखनाथ के प्यार को संतुलित किया ऐसे बहुत से किस्से हैं शानदार किस्से कैसे इस आदमी के प्यार की तीव्रता ने उन्हें कई बार हर अनुशासन के परे जाने दिया और कैसे मत्स्येंद्रनाथ ने लगातार कई अलग-अलग तरीकों से उसे नियंत्रित किया क्योंकि वो उस आदमी की क्षमता को जानते हैं
यह आदमी दुनिया को बदल सकता हैटी उनमें इस तरह की काबिलियत है उनमें बहुत आग है लेकिन स्थिरता और दिशा की कमी है गोरखनाथ ने बाद में अपने गुरु के निधन के बाद भारत के सबसे व्यापक आध्यात्मिक आंदोलनों में से एक को स्थापित किया अगर आप किसी को देखते हैं जिस जिके कान में एक बड़ी बाली हो एक बड़ी बाली आमतौर पर हड्डी की बाली मतलब वह एक गोरख नाथी है आमतौर पर आज भी गोरख नाथी हमेशा एक छड़ी और एक कुत्ता अपने साथ लेकर चलते हैं वह कुत्तों से प्यार करते हैं वह अपने कुत्तों को अपने कंधे पर लेकर चलते हैं वह उन्हें चलने नहीं देते ठीक है हर समय उनके पास कुत्ते होते हैं जिनका रंग गहरा काला होता है वह कोई दूसरा कुत्ता नहीं रखते बस
काले कुत्ते और वह अपने कुत्तों से बहुत प्यार करते हैं
उनके कुत्तों को अच्छा खिलाए पिलाया जाता है वह मोटे ताजे और अच्छे होते हैं और वह उन्हें चलने नहीं देते वह उन्हें उठाकर सैकड़ों मील चलते हैं तो गोरख नाथियो को आमतौर पर इन दिनों नाथी या कंफर्ट कहा जाता है क्योंकि उनके कान में एक छेद होता है तो उन्हें कंफर्ट कहा जाता है वह आज भी लोगों का बहुत उग्र समूह होता है उसे काफी बुरे समय से गुजरना पड़ा मगर अब भी यह उन सम में से एक है जिसमें सच्चे साधक हैं जो हजारों साल बाद भी सक्रिय हैं नाथियो का एक आश्रम है सिद्धि प्राप्त करने वाले नाथियो की ढेर सारी समाधिया हैं जिन लोगों को सिद्धि प्राप्त हुई उनकी पत्थर की समाधिया हैं बाकियों को पेड़ों के नीचे दफना दिया गया तो आपको बड़ी संख्या में वह देखने को मिलेंगे जो उस प्रणाली की समृद्धि को दिखाता है कि इतने सारे लोगों ने सिद्धि प्राप्त की आपके मन को शांत और जीवन को सकारात्मक ऊर्जा से भर देने वाले सर्टिफाइड प्राकृतिक रुद्राक्ष से लेकर ऐसी और भी कई चीजें अब आपको मिलेंगी हमारी वेबसाइट मा aghorijirajasthan.com पर
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