क्यों करते हैं हिंदू इतने सारे देवी-देवताओं की पूजा, क्या वाकई में ऐसा करने से लगता है पाप

हिंदू वो हैं जो एक पत्थर की मूरत में अपने भगवान को ढूंढ लेते हैं एक देवी के लिए नौ दिन का व्रत रख लेते हैं और नौवें दिन उनकी मूर्ति को ना चाहते हुए भी नदी में बहाते थे यह वही है जो एक आदमी द्वारा राक्षस को मारे जाने का जश्न मनाते हैं ये हिंदू अभी से उल्लास ये खत्म भी नहीं होता और सूर्य देव पर अपना सब कुछ न्योछावर कर देते हैं और उत्तरायण होने पर पतंगे उड़ाते हैं फिर कुछ महीने बाद एक योगी के त्यौहार की तैयारी में लग जाते हैं यह जानते हुए ही कि वो दुनिया का संघार उसके कुछ समय बाद यह हिंदू एक प्रेमी जोड़े के प्रेम में बड़ी ही खुशी के साथ उसके रंग में डूब जाते हैं अभी यह रंग खत्म भी नहीं होता कि यह सब एक छोटे बच्चे के जन्म पर घर-घर कथा करने लगते हैं कुछ दिनों बाद इसी बच्चे के भक्त दूत उसके लाल रंग में रंग जाते हैं वह तो दूसरे धर्म के धार्मिक स्थल को भी अपना बना लेते हैं लेकिन आखिर क्यों वो हर महीने अपने भगवान बदल देते क्या उनकी विष पूरी करने के लिए एक भगवान काफी नहीं है

क्यों करते हैं हिंदू इतने सारे देवी-देवताओं की पूजा


क्या एक परम ब्रह्म की परिकल्पना हमारे मन को शांत नहीं कर सकती और क्या होगा जब एक हिंदू केवल एक ही भगवान की पूजा करने लगेगा तो दूसरे उससे गुस्सा हो जाएंगे इतने सारे सवालों को सुनकर कहीं आप घबरा तो नहीं गए क्योंकि इसमें टेंशन लेने वाली कोई बात नहीं है हम आपको बताएंगे कि ऐसा क्यों किया जाता है बता दें कि सनातन धर्म एक डिसेंट्रलाइज धर्म है यानी यहां पर किसी एक को खास इंपॉर्टेंस नहीं दी जाती यहां पर सेंट्रल में रहकर कोई एक पूरी दुनिया को नहीं चला रहा होता जी हां बल्कि अलग-अलग वर्ग के लोग इस धर्म को चला रहे होते हैं लेकिन जब तक हमें या आपको यह नहीं पता चलेगा कि भाई हिंदू धर्म के सेंटर में कौन है इसकी कोर फिलॉसफी क्या है तब तक यह बात हमें या किसी और धर्म के में भरोसा रखने वालों को समझ में भी नहीं आएगी कि इतने भगवानों की क्या जरूरत है स्वामी विवेकानंद की माने तो धर्म के तीन पार्ट्स होते हैं पहला पार्ट है फिलॉसफी यानी कि दर्शन दूसरा है माइल जी मतलब कथाएं और तीसरा और आखिरी पार्ट है रिचुअल यानी कि कल्चर या आप इसे पूजा भी कह सकते हैं तो कोई भी धर्म हो वो इन्हीं तीन चीजों से मिलकर बना होता है इन तीन चीजों में जो सबसे ज्यादा वैसे इंपॉर्टेंट होता है वो है फिलॉसफी यानी कि दर्शन क्योंकि ये सेंटर में रहती है


और तो और इससे कोई छेड़छाड़ भी नहीं कर सकता किसी भी धर्म का जो स्वरूप होता है वो दर्शन पर ही टिका होता है आपको इसको एक एग्जांपल के तौर से समझाते हैं देखिए जैसे टाटा कंपनी है वह सेफ्टी से बिल्कुल भी  कॉम्प्रोमाइज नहीं करती एल अपने सिक्योरिटी फीचर से कंप्रोमाइज नहीं करती इसलिए जो फिलॉसफी है इससे कोई भी धर्म छेड़छाड़ नहीं करता और ना ही इसमें कोई बदलाव देखा जा सकता है अब धर्म का दूसरा पार्ट होता है माइथोलॉजी यह फिलॉसफी का इजी रूप होता है मान लीजिए कि आपका धर्म यह कहता है कि भाई आपको सत्य निष्ठ बनना है लेकिन सत्य निष्ठ कैसे बनना है यह बात सामने वाले आदमी को नहीं पता होती उस जगह पर उसे कहानियां कथाओं के जरिए ही सत्य निष्ठ बनने का तरीका बताया जाता है अब कथाएं और कहानियां आपके धर्म की फिलॉसफी का एक आईना होती है जी हां जैसे हिंदू धर्म में पुनर्जन्म की जो अवधारणाएं हैं वो बहुत मीनिंगफुल फिलोसोफी है वो कोर प्रिंसिपल है इसलिए आप देखेंगे या सुनेंगे कि पहले समय की अलग-अलग कहानियां और कथाओं में राजा ऋषि मुनियों के बहुत से जन्म की बातें बताई गई अब ये जो दर्शन यानी फिलॉसफी है कथा यह उन कहानियों को मेरे और आपके जैसे आदमियों के सामने बड़े अच्छे से पेश करती है जिससे कठिन से कठिन फिलॉसफी भी काफी अच्छे से समझाई जा सकती है


आइए अब बात करते हैं तीसरे पार्ट की जिसे हम रिचुअल कहते हैं जिसे हम पूजा भी कह सकते हैं यह ज्यादातर सोशल और जियोग्राफिक चीजों पर  बहुत डिपेंड करती है जैसे कि आप पूजा में कैसे कपड़े पहनेंगे किस तरह से आप पूजा करेंगे कैसा प्रसाद भगवान को चढ़ाएंगे यह सभी चीज आप की भौगोलिक चीजों पर ज्यादा डिपेंड करती है इसलिए आप देखेंगे कि हिंदू धर्म होते हुए भी हर एक का पूजा करने का तरीका जो है वो अलग-अलग होता है कुछ अंतर होता ही है चाहे वह थोड़ा स ही क्यों ना हो तो यह था धर्म का तीसरा अंक अब आपने धर्म के तीन मेन पार्ट्स के बारे में तो जान लि लेकिन इन तीन चीजों में जो सबसे इंपॉर्टेंट है वो है फिलोसोफी जैसे दर्शन कहा जाता है तो चलिए अब सनातन धर्म की फिलोसोफी को आपको अच्छे से समझाते हैं देखिए आप सभी सी को पता होगा कि वेदों के हिसाब से हिंदू धर्म के छह दर्शन होते हैं राइट जिन्हें शर दर्शन भी कहा जाता है सांख्य योग न्याय वैशेषिक मीमांसा और वेदांत अब यह जो छह फिलोसोफी है ब्रह्मांड के छह तरीकों से समझने की कोशिश करते हैं


अब इन छह दर्शकों में से दो यानी कि सांख्य और वेदांत को देखा जाए तो इन्होंने सबसे ज्यादा हिंदू धर्म पर अपनी छाप छोड़ी है सांख्या तो हमें भगवत गीता में भी देखने को मिलता है और जो वेदांत है इसे तो जगतगुरु आदि शंकराचार्य जी मा आचार्य जी राम अनुज आचार्य जी वल्लभ आचार्य जी जैसे कई लोगों ने इस फिलॉसफी का बहुत प्रचार  प्रसार भी किया है खास तौर से देखा जाए तो हिंदू धर्म में सांख्य और वेदांत इन्होंने ज्यादा इन्फ्लुएंस किया इन दो प्रिंसिपल्स के अलावा भी वैसे दो और प्रिंसिपल्स है जो सनातन धर्म में खास रोल प्ले करते हैं एक है कर्म का सिद्धांत और दूसरा है पुनर्जन्म की धारणा ये चारों पिलर है सनातन धर्म के हम जो कुछ भी करते हैं वो सभी इन कोर या फिर फिलॉसफी से पैदा ही होते हैं अगर आपने इन चारों को समझ लिया है तो आपको आपके सारे क्वेश्चंस के आंसर मिल जाएंगे अब हिंदू धर्म के जो चार पिलर्स की बात हमने की है उनका नाम है सांख्य अब यह तो सांख्य है जो उसमें ब्रह्मांड के दर्शन को प्रकृति बोला गया है जिसमें तीन गुण होते हैं राज सात और ताम इनफैक्ट दुनिया की हर चीजों में तीन गुण पाए जाते हैं


और ये तीन गुण सनातन धर्म के मेन पार्ट्स है इन तीन गुणों का उल्लेख कृष्ण जी ने भगवत गीता में भी किया है जी हां अब दूसरा दरा वेदांत उसके बारे में आपको बताते हैं देखिए वेदांत में एक भगवान की इमेजिनेशन की गई है जैसे परम रूपी परम ब्रह्मा एक शुद्ध भगवान कहा जाता है और यह जो कांसेप्ट है ना एक भगवान का चाहे वो शैव वैष्णव शाक संप्रदायों सबने अपने कोर में रखा हुआ है अब सबने कैसे रखा हुआ है तीसरा है कर्म का सिद्धांत देखिए हिंदू धर्म में कर्म आपका भाग्य यानी कि किस्मत तय करता है जैसे आप कर्म करेंगे वैसा ही फल आपको मिलेगा कर्म के ऊपर श्री कृष्ण ने भगवत गीता पर अपना उदश दिया है वहां पर सकर्म और अकर्म के ऊपर बात की गई है तो जो कर्म है वो हिंदू धर्म में खास रोल प्ले करता है अब चौथा जो है वो है पुनर्जन्म हम सब आप जितने भी आदमी हैं वो सभी जन्म मरण की साइकिल में फंसे हुए हैं जब तक मोक्ष नहीं मिलेगा तब तक सभी यहां पर फंसे रहेंगे तो यह जो चार सिद्धांत है वो हिंदू धर्म का मेन आधार है आप इसे समझिए अब आप हिंदू धर्म के इन चार सिद्धांतों को देखेंगे तो पर्सपेक्टिव से देखेंगे तो आप को सब एक होता दिखाई पड़ेगा क्योंकि ये अलग-अलग संप्रदाय के धागों से बने जो अभी सारे हिंदू हैं वो परम ब्रह्मा के परिकल्पना से बंधे हुए हैं परम ब्रह्मा इनके कोर फिलॉसफी से बंधे हुए हैं


जी हां बस इसका जो सगुण स्वरूप है वो एक दूसरे से अलग है यानी कि वो इन संप्रदायों में अलग-अलग है जैसे आप वैष्णव में देखेंगे तो विष्णु जी को परम ब्रह्म माना गया है यानी परम ब्रह्मा का जो सगुण स्वरूप है वो भगवान विष्णु की तरह ही है व वहीं जब शैव संप्रदाय में सगुण स्वरूप लेता है तो वो भगवान शिव बन जाते हैं और शाक्त संप्रदाय में जब सगुण स्वरूप लेता है तो भगवान आदि शक्ति बन जाते हैं तो वेदांत का जो कांसेप्ट है उसे आप हर संप्रदाय में देख सकते हैं इसके साथ ही आप तीनों संप्रदायों यानी कि वो सात राज और ताप जैसी चीजें देख सकते हैं ये आपको हर संप्रदायों में मिलेंगी जी हां वैष्णव में ये सारी शक्तियां विष्णु जी से निकलती हैं तो शैव संप्रदाय में ये सारी शक्तियां महादेव से निकलती है तो शैव संप्रदाय में ये सारी शक्तियां महादेव से निकलती है और शाक्त संप्रदाय में यह सारी शक्तियां आदि शक्ति से निकलती है इन तीनों से ब्रह्मा विष्णु महेश की शक्तियां निकलती है ऐसे ही इन तीनों संप्रदायों में परम ब्रह्मा की शक्ति मानी जाती है जो एक होने के बाद भी एक दूसरे से अलग है वहीं उनका सगुण स्वरूप अलग-अलग माना जाता है


और ये जो सांख्य है यानी कि सात राज और तम गुण है यह भी उन सब में पाए जाते हैं बता दें कि तीनों संप्रदायों में कर्म और पुन जन्म का सिद्धांत माना जाता है इसके साथ ही आपको अवतारवाद भी देखने को तीनों संप्रदायों में मिल जाता है खासकर वैष्णव और शैव संप्रदाय में देखा जाए तो हर संप्रदायों की जो बेसिक फिलोसोफी और प्रिंसिपल्स लगभग एक ही बस उसमें रंग अलग-अलग भर दिए गए हैं तो जो पूरी दुनिया को लगता है ना कि हिंदू पॉलिपी है यानी बहुत से भगवानों में भरोसा रखने वाले हैं तो वो यह नहीं बल्कि पॉलीमोर्फस को सपोर्ट करते हैं यानी भगवान के एक ही रूप को अलग-अलग तरह से पूछते हैं भगवान के चाहे जितने रूप हो जैसे दुर्गा माता काल भैरव हनुमान जी ये सभी उसी पर ब्रह्मा की तरफ ले जाते हैं ये सारे रूप उसी पर ब्रह्मा के हैं जो अपने भक्त के हिसाब से उस रूप में उन्हें दिखते हैं और तो और भक्त में अध्यात्मा को भी जगाते हैं जी हां अगर कोई भी हिंदू एक महीने में दो अलग-अलग भगवानों की पूजा कर रहे होते हैं तो वास्तव में वो उसी एक पर ब्रह्मा की पूजा कर रहे होते हैं


तो ऐसे में ये गलत बात हो जाएगी कि एक की पूजा करने से दूसरे भग गुस्सा हो जाएंगे शिव विष्णु से बेहतर है या विष्णु शिव से यह सारी बेकार की बातें क्योंकि पूजा ही उस समय पर ब्रह्मा की हम कर रहे हैं जिसके सब अलग-अलग स्वरूप है इनमें कोई डिफरेंस नहीं है इसलिए हम किसी का कंपैरिजन भी नहीं कर सकते अब आप देखेंगे कि ईश्वर शब्द का इस्तेमाल सिर्फ परम ब्रह्म के लिए ही किया जाता है कभी भी भगवान राम को हम लोग ईश्वर राम नहीं कहते या फिर श्री कृष्ण को ईश्वर कृष्ण नहीं कह इसलिए आप जिसकी चाहे उसकी पूजा कर सकते हैं और ये सारे भगवान उस ईश्वर में जाकर कभी ना कभी मिल ही जाती अब बिना टेंशन लिए अपने ईष्ट भगवान की आप पूजा करें इससे आपका कुछ गलत नहीं होने वाला और ना होगा ईश्वर आपके श्रद्धा भाव को देखकर वो रूप अपना लेंगे तो आपने जाना कि हिंदू क्यों करते हैं इतने सारे देवताओं की पूजा अगर आपको इससे जुड़ी कोई भी इंटरेस्टिंग कहानी या किस्से पता है


 

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