
आध्यात्मिक शक्ति का भंडार: जानें 64 योगिनियों की उत्पत्ति, महत्व और शक्तियां
आध्यात्मिक शक्ति का भंडार: जानें 64 योगिनियों की उत्पत्ति, महत्व और शक्तियां –
योग माया के आगे सभी बुरी शक्तियां नतमस्तक हो जाती है इसीलिए योगिनी हों को महामाया भी कहा जाता है यह इतनी पावरफुल शक्तियां हैं कि अगर हम उनके आण में आ गए यानी उनके ओरा के प्रभाव में आ गए तो हम बीमार पड़ जाते हैं योगिनिस म्य होती है योगिनी यां तटस्थ होती है तो योगिनित्य गिनियो को किसी भी देवी देवता की अनुमति नहीं लेनी पड़ती वे पृथ्वी के किसी भी स्थान पर विराजित हो जाएगी आप सिर्फ योगिनी का आह्वान करें और एक दिया जलाए तो उस स्थान पर योग माया का सदा सदा के लिए निवास स्थान बन जाएगा तांत्रिकों को हमेशा से 64 योगिनी हों का आकर्षण रहा
है क्योंकि वे एक बार प्रसन्न हो गई तो तांत्रिक की शक्तियां अनेकों गुना बढ़ जाती है मित्रों आपने योग शब्द तो कई बार सुना होगा जैसे कि योग योगी योगिनी सहयोग संयोग वियोग इत्यादि यहां पर योग शब्द है जो संस्कृत के युज धातु पर से बना है जिसका अर्थ होता है जुड़ना और यह योग शब्द यूनिवर्स के निर्माण से लेकर जीवात्मा के मोक्ष तक एक
बहुत ही महत्त्वपूर्ण शब्द है बिना योग के इस यूनिवर्स का अस्तित्व संभव ही नहीं है पुरुष और प्रकृति के योग से ध्वनियां बनती है ध्वनियों के योग से छंद स्ट्रिंग बनते हैं छंदों के योग से क्वार्क बनते हैं क्वार्क के योग से परमाणु बनते हैं परमाणुओं के योग से अणु बनते हैं और अणु के योग से पदार्थ बनता है और पदार्थों के योग से ग्रह बनते हैं ग्रहों के योग से सौरमंडल बनता है सौरमंडल के योग से गैलेक्सिया बनती है गैलेक्सी हों के योग से ब्रह्मांड बनता है और ब्रह्मांड के योग से महा ब्रह्मांड बनता है और यह अनंत प्रक्रिया योग के माध्यम से निर्मित होती
है और इस योग प्रक्रिया के लिए ब्रह्म ने अपने आप को दो तत्त्वों में विभाजित किया एक पुरुष और दूसरा प्रकृति जिन्हें शिव और शक्ति भी कहा जाता है सृष्टि में सबसे पहले किसी ने योग किया तो वह थे शिव जिन्होंने प्रकृति के साथ योग किया और इसीलिए उन्हें आदियोगी या महायोगी कहा जाता है और इसी तरह प्रकृति ने भी पुरुष के साथ योग किया तो प्रकृति को योग माया और महामाया कहा जाता है और इन दोनों तत्त्वों के योग से 64 पुरुष प्रधान महा भयंकर ध्वनियां उत्पन्न हुई और दूसरी तरफ 64 प्रकृति प्रधान यानी शक्ति प्रधान ध्वनियां उत्पन्न हुई पुरुष प्रधान 64 महा भयंकर ध्वनियों को भैरव कहा गया भय उत्पन्न करने वाला रव यानी ध्वनि जिसे भैरव कहा जाता है पुरुष और प्रकृति का योग जिसे प्रतीकात्मक रूप से डमरू के रूप में दर्शाया जाता है इस कॉस्मिक डमरू में से 14 बार ध्वनियां उत्पन्न हुई जिसमें से सात बार पुरुष प्रधान महा भयंकर ध्वनि तत्व उत्पन्न हुए तो सात बार प्रकृति प्रधान यो योगिनी रूपी ध्वनि तत्त्व उत्पन्न हुए और इसीलिए कहा जाता है कि भगवान शिव ने 14 बार डमरू बजाया और इस सृष्टि की रचना हुई तो मित्रों सबसे पहले हम जानते हैं कि पुरुष प्रधान यानी
शिव प्रधान कौन से 64 ध्वनि तत्व उत्पन्न हुए
पुरुष प्रधान जो महा भयंकर ध्वनि तत्व उत्पन्न हुए उनके पहले समूह में आठ महा भयंकर ध्वनि तत्व थे पहले समूह का महा भयंकर ध्वनि तत्व यानी भैरव है असिता जिनका रंग सफेद है और उनकी चार पाहें हैं और इस समूह में अन्य सात भैरव है दूसरे समूह का भैरव है रूरू जिनका रंग हल्का नीला है इस समूह में भी अन्य सात भैरव है तीसरे समूह का भैरव है चं जिनका रंग गौर है और उनके चार पाहें हैं और उनके साथ भी अन्य सात भैरव है चौथे समूह के भैरव है क्रोध जिनका रंग गहरा नीला है इनकी भी चार बां हैं और उनके साथ भी अन्य सात भैरव है पांचवें समूह के भैरव है उन्मत जिनका रंग
सुनहरा है इनकी भी चार बाध हैं और उनके साथ भी अन्य सात भैरव है छठे समूह के भैरव है कपाल भैरव जिनका रंग चमकदार पीला है इनकी भी चार बाहें हैं और उनके साथ भी अन्य सात भैरव है सातवें समूह के भैरव है भीषण जिनका रंग लाल है इनकी भी चार बाहें हैं और उनके साथ भी अन्य सात भैरव है इस तरह सात समूह पूरे हुए और आठवें समूह के रूप में पुरुष खुद ध्वनि तत्व रूप में प्रकट हुए जिन्हें संहार भैरव कहा जाता है यह सहार भैरव सभी भैरव में प्रमुख भैरव है इन्हें काल भैरव भी कहा जाता है जिनका रंग बिजली जैसा पीला और नारंगी है जिनकी 10 भुजाएं हैं हाथ में त्रिशूल डमरू शंख चक्र
तलवार गदा कटोरा खोपड़ी वाली लाठी पाश और अंकुश है जो ईशान कोण के स्वामी है इस समूह में भी अन्य सात भैरव है इस तरह मुख्य आठ भैरव के साथ अन्य सात सात भैरव मिला कर कुल 64 भैरव यानी महा भयंकर ध्वनि तत्व उत्पन्न हुए जिनकी दैविक रूप में भैरव के रूप में पूजा की जाती है अब मित्रों आपको यह बात भी ज्ञात होनी चाहिए कि 64 भैरव रूपी ध्वनि तत्व और 64 योगिनी रूपी ध्वनि तत्व एक दूसरे के प्रतिरूप है जब यह 64 ध्वनि तत्व शिवत्व को प्रकट करते हैं तो वह भैरव है और जब यह शक्तिवर्धक की है आज हम उनके दैविक स्वरूप की बात करेंगे 64 भैरव की तरह इनके भी सात समूह
है और आठवें समूह के रूप में प्रकृति यानी योग माया खुद ध्वनि तत्व रूप में प्रकट होती है 64 योगिनी हों का पहला समूह है ब्रह्माणी इस समूह की अधिष्ठात्री योगिनी है देवी ब्रह्माणी और उनके साथ सरस्वती वायु वीणा अतिथ वाद्य रूपा अभया और सर्वमंगला नाम की सौम्य योगिनी होती है इस समूह की आठ सृष्टि के सर्जन कार्य में मूलभूत भूमिका निभाती है इनकी पूजा से हमारी सर्जनात्मक शक्ति विकसित होती है सौम्य और सात्विक प्रकृति के लोगों के लिए इनकी आराधना सोने में सुगंध मिलाने जैसा कार्य करेंगी इन योगिनित्य का रंग सफेद है योगिनित्य के
दूसरे समूह का नाम है महेश्वरी जिनमें प्रमुख योगिनी देवी माहेश्वरी है और उनके साथ कौरी उमा गंगा अजीता यमुना वायु लेगा और धूमावती नाम की योगियां होती है यह भी सौम्य और क कल्याणकारी योगिन है इनका रंग हल्का नीला है सात्विक लोग इनकी पूजा से शुभ फल और कल्याण प्राप्त करते हैं योगिनित्य के तीसरे समूह का नाम है कोमारी इस समूह की प्रमुख माता या योगिनी है देवी कोमारी ये मोर पर सवारी करती है इस योगिनी समूह में नर्मदा योज कामनी स्तुति समप ज्वालामुखी और आग्नेय योगिनिस से थोड़ी उग्र होती है लेकिन अधिकांश यह सात्विक प्रकृति में आती है
इनकी पूजा भी सात्विक लोग कर सकते हैं और उनकी पूजा से लोग विजय प्राप्त करते हैं इन योगिनी का रंग गोरा है योगिनिस का नाम है वैष्णवी जिनमें प्रमुख योगिनी वैष्णवी है जो भगवान विष्णु का प्रतिरूप है इनके साथ में लक्ष्मी वारुणी विंध्यवासिनी कबरी विरजा मोह लक्ष्मी और नारायणी नाम की योगिनित्य गिनियो का रंग गहरा नीला है इन योगिनी हों की प्रकृति राजसिक है राजसिक प्रकृति वाले लोगों के लिए इन योगिनित्य की पूजा फलदाई होती है यह योगिनी प्रसन्न होती है तो हमें धन धान्य समृद्धि देती है योगिनित्य के पांचवें समूह का नाम है वाराही इस समूह में मूर्ति विरूपा बेताली
जल कामिनी भालुका सरपा श और विनायकी जैसी योगिनी होती है और वारा ही इनमें प्रमुख योगिनी है इन योगिनित्य का रंग सुनहरा है और यह भी राजसिक प्रकृति वाली जोगिनिया है योगिनित्य के छठे समूह का नाम है इंद्राणी जिन्हें एंद्री भी कहते हैं इस समूह में विकट नैनी करकारी विद्या पालिनी बिरूपा गांधारी चंद्रकांति और सूर्यपुत्री जैसी योगिनी यां होती है इन योगिनित्य का रंग चमकदार पीला है यह योगिनिस और वैभव देती है इनका स्वभाव भी राजसिक है योगिनित्य के सातवें समूह का नाम है चामुंडा चामुंडा इस समूह की अधिष्ठात्री योगिनी है इस समूह में तारा
पद्मावती चर्चिका ककराली अघोरा घटवारी और भद्रकाली नाम की योगिन हो होती हैं चामुंडा योगिनी का स्वरूप बहुत ही विकराल और भय उत्पन्न करने वाला है उनकी बड़ी-बड़ी लाल आंखें और हड्डियां दिखाई दे रही हो ऐसा दुबला पतला शरीर आग की ज्वाला जैसे केश और उनका भयावह रूप देखकर कोई भी डर सकता है यह योगिनी समूह तामसिक प्रकृति का है और इसीलिए तांत्रिक लोग इन योगिनित्य की विशेषकर साधना और पूजा करते हैं विनाशक कार्यों में इन योगिनित्य की मदद ली जाती है यह की साधना और पूजा में भी विशेष ज्ञान की आवश्यकता होती है आठवें समूह के रूप में
प्रकृति यानी कि महामाया खुद चंडी रूप में प्रकट होती है और इसीलिए आठवें समूह का नाम चंडी है जिन्हें योग माया महामाया दुर्गा महादेवी आदि शक्ति जगत जन्नी जैसे विविध नाम से भी पुकारा जाता है यह योगिनी 64 योगिनी हों में सबसे प्रमुख योगिनी है ऊपर की सारी योगिनिस यह महामाया 10 भुजाओं वाली योगिनी है 64 योगिनी हों के मंदिर में भी इस योगिनी का स्थान सबके मध्य में होता है योगिनित्य के इस आठवें समूह में छिन्नमस्तिका नर सिंही कामाक्षी महाकाली महामाया टवारा और बहुरूपा नाम की योगिनी यां होती है यह तामसिक स्वरूप की होती है और बहुत ही उग्र स्वभाव की होती है कितनी
भी बड़ी शक्ति क्यों ना हो यह योगिनी उसका विनाश कर सकती है और इसीलिए तांत्रिक लोग इन योगिनी हों को प्रसन्न करने के लिए सदा ही लालायित रहते हैं इन योगिनित्य का प्रभाव या कहे कि उनका औरा मंडल इतना तीव्र होता है कि यदि हम उनके औरा मंडल के प्रभाव में आ गए तो हम बीमार पड़ सकते हैं उनकी एनर्जी को हमारा शरीर सहन नहीं कर सकता जिसे क्षेत्रीय भाषा में योगिनी की आण में आ गए यानी कि योगिनिस कहा जाता है अब दूसरी बात यह भी है कि यह योगिनिस शक्ति है कि उन्हें किसी भी अन्य देवी देवता की अनुमति नहीं चाहिए होती है यह किसी भी देवता के स्थान स्थान
में जा सकती है और कोई भी व्यक्ति ब्रह्मांड के किसी भी स्थान पर इन योगिनित्य की स्थापना कर सकता है लेकिन ध्यान रखने वाली बात यह होती है कि इन 64 योगिनित्य की स्थापना हमारे रहने वाले घर के अंदर नहीं की जाती इन योगिनित्य का मंदिर हमारे घर से दूर विशेषकर मुख्य द्वार के पास होना चाहिए क्योंकि घर के अंदर हम इन 64 योगिनित्य की शक्ति को सहन नहीं कर सकते और इसके विपरीत परिणाम हमें प्राप्त हो सकते हैं अब कुछ लोग ऐसे भी होंगे जिनके यहां योगिनित्य की पूजा नहीं की जाती होगी लेकिन कुलदेवी की पूजा जरूर की जाती होगी तो आपकी कुलदेवी भी एक
योगिनी ही है क्योंकि सभी योगिनी यां और सभी कुल देवियां और सभी देवी और देवता आदि शक्ति महामाया प्रकृति में से ही प्रकट हुई है और इसीलिए कोई भी देवी शक्ति किसी अन्य देवी शक्ति से कम नहीं है हां उनकी प्रकृति अलग हो सकती है कोई सात्विक होगी कोई राजसिक होगी तो कोई तामसिक होगी इन अष्ट योगिनी समूह को अष्ट मात्र का भी कहा जाता है यानी कि आठ माताओं के समूह जिन्होंने इस ब्रह्मांड को जन्म दिया और इसीलिए यह जगत जननी अष्ट योगिनी समूह अष्ट मात्र का की हम पूजा करते हैं जो ध्वनि तत्व रूप में भी होती है और दैविक रूप में भी होती है आप अपने कुलदेवी की समर्पित
भाव से और अत्यंत भाव पूर्वक जैसे अपनी जन्म देने वाली माता की सेवा और पूजा करते हो वैसे ही अपनी कुलदेवी की भी सेवा और पूजा करें तो आपको अत्यंत ही श्रेष्ठ फलों की प्राप्ति होगी योगिनी के के तात्विक स्वरूप he
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