इस रहस्यमयी मंदिर जा कर हो जाएगा तंत्र मंत्र पर यकीन, कांप जाएगी रूह

यहां के बीहड़ आपके मन में एक डर पैदा कर द यहां के रास्ते आपको आपको भूलभुलैया की याद दिलाएंगे यहां की जमीन पर आते ही आपको तंत्र मंत्र फील होने लगे छोटे-छोटे पहाड़ आपको अपनी तरफ आकर्षित करेंगे आप सोचेंगे आखिर यह कौन सी जगह है तो यह जगह कोई और नहीं बल्कि रहस्यमय 64 योगिनी मंदिर के आसपास का इलाका है जी हां वही 64 योगिनी मंदिर जिसे लोग तांत्रिक यूनिवर्सिटी के नाम से भी जानते हैं तांत्रिक यूनिवर्सिटी सुनने में बड़ा अजीब लग रहा है ना लेकिन यह सच कहते हैं इस अद्भुत मंदिर में बहुत से राज में जिन्हें जानने के लिए बहुत से लोग एक्साइटेड रहते हैं हर कोई इस मंदिर को देखकर मानो सम्मोहन का शिकार हो जाता है


मध्य प्रदेश राज्य का 64 योगिनी मंदिरआप सभी सोच रहे होंगे आखिर यह क्या राज है इस मंदिर का तो चलिए जानते हैं इस बारे में थोड़ा डिटेल जैसा कि सभी को पता है कि भारत को मंदिरों का देश कहा जाता है यहां पर कई पुराने और चमत्कारिक मंदिर है हां इनमें से मंदिर बहुत से ऐसे रहस्यमय भी हैं जिनमें मध्य प्रदेश राज्य का 64 योगिनी मंदिर भी आता है लोगों को नहीं पता लेकिन भारत में चार 64 योगिनी मंदिर हैं ओड़ीशा में दो मंदिर हैं और मध्य प्रदेश में दो लेकिन लोग सबसे ज्यादा मध्य प्रदेश  के मुरायिल मंदिर जो कि सबसे प्राचीन और रहस्यमय है इसे ही जानते हैं देश के सभी 64 योगिनी मंदिरों में यह एक ऐसा ही मंदिर है जो अभी तक सही है हमें बना यह मंदिर तंत्र मंत्र के लिए दुनिया में जाना जाता था इस रहस्यमय मंदिर को तांत्रिक यूनिवर्सिटी भी कहा जाता है यहां पर देश विदेश से लाखों करोड़ों लोग तांत्रिक तंत्र मंत्र की विद्या सीखने के लिए आते हैं मंदिर में तांत्रिक सिद्धियों सिखाने के लिए तांत्रिक का जमावड़ा लगा रहता है विदेश नागरिक भी यहां पर तंत्र मंत्र जैसी विद्या लेने आते थे आज भी कुछ तांत्रिक सिद्धियां प्राप्त करने के लिए यहां पर यज्ञ करते हैं और तो और इस मंदिर को इंतेवा महादेव मंदिर के नाम से भी जाना जाता है बता दें कि मध्य प्रदेश का प्राचीन 64 योगिनी मंदिर गोलाकार का है और इसमें 64 कमरे हैं इन सभी 64 कमरों में से बड़े-बड़े शिवलिंग स्थापित हैं यह मंदिर मरायला जिला मुख्यालय से करीब 30 किमी की दूरी पर है बितावल गांव में बना यह रहस्यमय और चमत्कारी मंदिर दुनिया भर में फे ये सभी 64 योगिनी देवी आदि शक्ति काली का अवतार है घोर नाम के दैत्य के साथ युद्ध करते हुए माता काली ने यह अवतार लिए इन देवियों में 10 महाविद्याओं और सिद्ध विद्याओं की भी गिनती की जाती है अब यह सभी योगिनी तंत्र और योग विद्या से दृष्टा रखती देखिए कहा जाता है कि इस मंदिर के हर कमरे में शिवलिंग और देवी योगिनी की मूर्ति स्थापित जिसकी वजह से इस मंदिर का नाम 64 योगिनी रखा गया हालांकि बहुत सी मूर्तियां चोरी हो चुकी हैं जिसकी वजह से आप बची कुछ मूर्ति को दिल्ली में बने म्यूजियम में रख दिया गया है 101 खंबे वाले इस मंदिर को आर्कलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने एंट हिस्टोरिकल मॉन्यूमेंट घोषित किया हुआ है जी हां इस दिव्य मंदिर का निर्माण करीब 100 फीट की ऊंचाई पर किया गया है और पहाड़ी पर स्थित यह 64 योगिनी मंदिर किसी उड़न तश्तरी की तरह दिखाई पड़ता है अगर आप इस मंदिर के अंदर जाना चाहते हैं तो आपको यहां पहुंचने के लिए तकरीबन 200 सीढ़ियां चढ़ पड़ती है मंदिर के बीच में एक खुले मंडप को बनाया गया है है जिसमें एक बड़ा शिवलिंग स्थापित है कहते हैं कि यह मंदिर 700 साल पुराना है इस मंदिर को कच्छप राजा देव पाल ने 1332 ई यानी विक्रम सनव 1383 ई में बनवाया था इस मंदिर में सूरज के गोचा के आधार पर ज्योतिष और गणित की शिक्षा दी जाती थी जिसका यह मेन सेंटर था ब्रिटिश आर्किटेक्ट एडविन लुटियंस ने मरायला में बने 64 योगिनी मंदिर के आधार पर इंडियन पार्लियामेंट को बनवाया था लेकिन यह बात आज तक ना किसी से कही गई ना लिखी गई और ना ही संसद की वेबसाइट पर इस बात का कहीं कोई जिक्र मिलता है भारतीय संसद ना केवल इस मंदिर से मिलती है बल्कि इसके अंदर लगे खंबे भी मंदिर के खंभों की तरह ही दिखाई देते हैं जी हां आसपास के लोगों का मानना है कि आज भी यह मंदिर भगवान शिव की तंत्र साधना के कवच से बंधा हुआ है इस मंदिर में किसी को भी रात में रुकने की परमिशन नहीं ना तो इंसानों को और ना ही पशु पक्षियों को तंत्र साधना के लिए जाने जाने वाले इस 64 योगिनी मंदिर में भगवान शिव की योगिनित्य को जगाने का काम होता था मुरैना के अलावा मध्य प्रदेश में एक और 64 योगिनी मंदिर है जो कि जबलपुर में बना हुआ है इस मंदिर के बारे में बहुत ही कम लोगों को पता है इस मंदिर को लेकर एक हिस्टोरियन प्रोफेसर का यह कहना कि मध्यकाल में जबलपुर में तंत्र साधना का देश का सबसे बड़ा स्कूल हुआ करता था यहां तंत्र शास्त्र के हिसाब से तंत्र विद्या भी सिखाई जाती थी जिसे लोग गोलकी मठ के नाम से जानते थे लेकिन उस समय मुगलों के आक्रमण के बाद यह मठ धीरे-धीरे बंद हो गया आज कहीं भी जब तंत्र साधना की बात होती है ना तो गोलकी मठ को खास तौर पर याद किया जाता है यह आजकल भेड़ा घाट के 64 योगिनी मंदिर के नाम से बहुत प्रसिद्ध है यह एक
) ऐसा सेंटर बिंदु है जहां मारे मत देखने को मिलते हैं लेकिन कहते हैं कि शैव मत सबसे पुराना है क्योंकि महादेव की स्थापना के साथ ही यहां शैव मत की परंपरा शुरू हो गई हां लेकिन शैव मत दक्षिण भारत में ज्यादा प्रचलित है लेकिन यहां अन्य मत के लोग भी रहते जबलपुर के भेड़ा घाट की संगे मरमर चट्टानों के पास करीब 250 मीटर की ऊंचाई पर बने इस मंदिर में देवी दुर्गा की 64 अनुषंगिक योगिनित्य की मूर्तियां हैं जी हां इस मंदिर की खास बात यह है कि इनके बीच में भगवान शिव की प्रतिमा स्थापित है जो कि देवियों की मूर्तियों से घिरी हुई है भगवान शिव यहां अपने वाहन नंदी जी पर देवी पार्वती के साथ सवार है यह उनकी पूरे देश में अनोखी शिव प्रतिमा है इसे देखने के लिए लोग प्रदेश विदेश से जबलपुर आते हैं कहते हैं कि इस मंदिर को सन 1000 के आसपास कली चूरी वंश ने बनवाया था मंदिर के सैनिटेरियस की यात्रा से संबंधित एक शिलालेख भी दिखाई पड़ती है मान्यता है कि यहां पर एक सुरंग भी है जो 64 योगिनी मंदिर को गोंड रानी दुर्गावती के महल तक ले जाती है यह मंदिर एक बड़े से परिसर में फैला हुआ है और इसके हर एक कोने में सुंदरता झलकती है यह 64 योगिनी मंदिर भी गोलाकार का है इसके बीच में एक अद्भुत नकासी दार मंदिर है इस मंदिर के गर्भ ग्रह में महादेव देवी उमा की प्रतिमा है हिस्टोरियन प्रोफेसर बताते हैं कि यह मूर्ति बड़ी दुर्लभ है नंदी पर सवार श्रृंगार युक्त ऐसी मूर्ति देश में और किसी भी जगह पर नहीं यह मंदिर 10वीं शताब्दी का है मंदिर त्रिभुजाकार 81 कोणों पर बना हुआ है जिसके हर एक कोण पर योगिनी की स्थापना की गई 12वीं शताब्दी में गुजरात की रानी कौशल देवी ने यहां पर गौरी शंकर मंदिर बनवाया था और बताया जाता है कि चालुक्य राजकुमारी नहला देवी जब यहां पर आई तो उन्होंने युवराज देव प्रथम के साथ मिलकर यहां पर गोल की मठ की स्थापना की कहते हैं यहां पर एक कॉलेज था जिसकी शाखाएं दक्षिण भारत में मद्रास के कुरनूल सुंदर कड़ तक नोहले शवर बिलहरी बंगेल खंड से लेकर केरल में भी इनका रिसर्च सेंटर था शहर के त्रिपुरी बटुक भैरो भी रिसर्च सेंटर थे दरअसल गोलकी मठ एक कॉलेज था जिसमें 64 योगिनिस की गई थी आदिकाल से ही राजा युद्ध सुख समृद्धि के साथ-साथ बाकी इच्छाओं के लिए 54 योगिनी की स्थापना कराते थे औरंगजेब के हमले के बाद आज के समय में गोलकी मठ में टूटी फूटी 64 योगिनी बची कुची है लोगों का मानना है कि ऋषि दुर्वासा ने यहां पर साधना की शुरुआत की थी करीब 1000 साल पहले कलचुरी राजवंश में जब नहला देवी शादी के बाद यहां पर आई तो उन्होंने युवराज देव के साथ शैव मत के लिए खास तौर पर कोलकी मट का निर्माण करवाया इनके शासन काल में शैव के साथ ही वैष्णव बौद्ध और जैन परंपरा की प्रतिमाओं का भी निर्माण कराया गया अब देखा जाए तो कलचुरी शासक एक तरह से धर्म निरपेक्ष भी थे जो सभी मतों की इज्जत करते थे राजकुमारी नोहोला दक्षिण भारत से आई थी तो उन्होंने शैव मत का खास ध्यान दिया और उसे बढ़ावा भी दिया यहां आने के बाद उन्होंने बहुत से शिव मंदिरों को भी बनवाया उन्होंने अपने शासनकाल में जबलपुर के निकट भेड़ा घाट में एक पहाड़ी पर देश के सबसे बड़े कॉलेज का निर्माण कराया जो तंत्र साधना के लिए जाना जाता था इसके रिसर्च सेंटर देश भर में थे बाद में मुगल आक्रांता औरंगजेब ने कोलकी मठ में 64 योगिनी की मूर्तियों को तुड़वाने की बहुत कोशिश की जिसके बाद यह सेंटर जो है बंद हो ग हालांकि इस मंदिर को लेकर बहुत सी मान्यताएं और कहानियां भी कहते हैं कि जब एक बार भगवान भोलेनाथ और माता ओम भ्रमण के लिए निकले तो उन्होंने भेड़ा घाट के पास एक ऊंची पहाड़ी पर आराम करने का मन बनाया इस जगह पर सुवर्ण नाम का ऋषि तपस्या कर रहा था जो भगवान शिव को देखकर खुश हो गए और उनसे विनती की कि जब तक वह नर्मदा पूजा करके वापस ना लौटे तब तक भगवान शिव उसी पहाड़ी पर रहे नर्मदा पूजा करते समय ऋषि सुवर्ण ने विचार किया कि अगर भगवान महादेव हमेशा के लिए यहां पर विराजमान हो जाए तो इस जगह का कल्याण हो सके जिस वजह से ऋषि सुवर्ण ने नर्मदा नदी में ही जल समाधि लेली तभी से कहा जाता है कि आज भी उस पहाड़ी पर भगवान शिव और देवी पार्वती की कृपा भक्तों को मिलती है माना जाता है कि नर्मदा नदी को भगवान शिव ने अपना रास्ता बदलने का आदेश दिया था ताकि मंदिर पहुंचने के लिए उनके भक्तों को कोई परेशानी का सामना ना करना पड़े इसके बाद संगे मरमर की कठोर चट्टाने मक्खन की तरह मुलायम हो गई जिससे नर्मदा नदी को अपना रास्ता बदलने में किसी भी तरह की परेशानी नहीं हुई अब जैसा कि हमने आपको पहले ही बताया था कि मध्य प्रदेश के अलावा भी उड़ीसा राज्य में दो और 64 योगिनी मंदिर हैं यह दोनों मंदिर एक दूसरे से बिल्कुल अलग दिखते हैं एक मंदिर एक बड़े से तालाब के पास थ और दूसरा भुवनेश्वर के भारी इलाके में धान के खेतों के बीच जी हां धान के खेतों से घिरी यह जगह इतिहास का हिस्सा लगती है जिससे अपनी जगह अपने समय और अपने अंदाज में जिंदा रहने का फैसला किया है मंदिर को लेकर रिसर्चस उनका यह कहना है कि मंदिर का निर्माण आठवीं शताब्दी के आसपास हुआ है गांव वाले इस मंदिर में पूजा अर्चना करते रहे हैं हालांकि इसकी आधिकारिक खोज 1953 में ओड़ीशा के म्यूजियम के श्री केदारनाथ महापात्रा ने की तब से यह मंदिर आर्कलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के अंदर ही आता है अब ऐसा माना जाता है कि मंदिर को भोमा वंश की महारानी हीरा देवी ने बनवाया भोमा वंश में अलग-अलग समय में कई साम्राज्य ने शासन किया महारानी हीरा देवी के नाम पर ही इस गांव को हीरापुर के नाम से जाना जाता है मंदिर के बीच में बने देवी के नाम पर इस मंदिर को महामाया मंदिर भी कहा जाता है यह अंदाजा लगाना कठिन है कि रानी खुद योगिनी संप्रदाय की अनुयाई थी या उन्होंने योगिनी संप्रदाय के बा बा अनुयायियों के लिए यह मंदिर बनवाया था वहीं 16वीं सदी के शुरुआत में एक मुस्लिम सेनापति काला पहाड़ ने भी इस मंदिर पर हमला किया और यहां की मूर्तियों को तोड़फोड़ दिया था काला पहाड़ पुरी और कोणा के मंदिरों को बर्बाद करने वाले के रूप में जाना जाता है कहते हैं दोस्तों मंदिर को बलुआ पत्थर का इस्तेमाल करके बनाया गया है जबकि मूर्तियों के निर्माण में काले ग्रेनाइट चट्टान का इस्तेमाल हुआ है योगिनी मंदिर की वास्तुकला में बाकी मंदिरों से कोई समानता नहीं है ये छोटे समाहित और पूरी तरह से केंद्रित मंदिर हैं जिनका मोटिव कम संख्या में उनके अनुयाई है इसलिए ओड़ीशा में स्थित होने के बाद भी हम इसे कलिंग वास्तुकला नहीं कह सकते यह अपने आप में एक खास वास्तुकला है


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