वीर पाबूजी राठौड़ की अमर गाथा || The brave story Pabuji Rathore ||

वीर पाबूजी राठौड़ की अमर गाथा || The brave story Pabuji Rathore ||

पाबूजी राठौड़ जिन्होंने तीन फेरे धरती लोक पर लिए तो वही शेष चार फेरे स्वर्ग में लिए थे और आपके सामने वह सारी बातें बयान करूंगा कि क्यों पाबूजी महाराज ने अपने ही बहनोंइ से युद्ध करने के लिए गए थे


और कैसे गायों की रक्षा के लिए बीच फेरों में खड़े हो गए और गायों की रक्षा के लिए अपने प्राणों का न्योछावर कर दिया राठौड़ वंश के संस्थापक राव सिह जी इन्हीं की पीढ़ियों में राव धांधली जी हुए जो कोलम ठिकाने के जागीरदार थे इनका विवाह रानी कमला दे से हुआ जिनसे राव धांधली जी को पुत्र बूढ़ो जी और पुत्री पेमल संतानों की प्राप्ति हुई एक दिन राव धानलक्ष्मी वाना हो जाते हैं लेकिन गुजरात के नगर पाटण पहुंचते ही राव [संगीत] धालभूम नदी के पास स्वर्ग लोक से अप्सराओं का रथ पृथ्वी लोक पर घूमने के लिए आता है और रथ नदी के पास उतर जाता है अप्सराएं नदी में स्नान करने के लिए आती हैं और यह सारा दृश्य दूर से राव धानलक्ष्मी कर मग्न हो जाते हैं और परी जैसे ही नदी से स्नान करके बाहर आती है तो राव धालु और परी से निवेदन किया अगर आप मेरी बातों का बुरा नहीं मानो तो मैं आपसे मेरे मन की बात कहना चाहता हूं तभी परी ने राजन को बोलने का मौका दिया राजन ने परी से कहा कि आपके सुंदर ने मेरे मन को हर लिया है अगर आप बुरा नहीं मानो तो मैं आपसे विवाह के लिए निवेदन करता हूं तभी परी ने कहा कि राजन आपकी बातों से मुझे कोई बुरा नहीं लगा लेकिन आपका और मेरा कैसे संबंध हो सकता है कहां पृथ्वी लोक के वासी जहां जीवन मरण का चक्र चलता है

वीर पाबूजी राठौड़ की अमर गाथा || The brave story Pabuji Rathore ||
वीर पाबूजी राठौड़ की अमर गाथा || The brave story Pabuji Rathore ||

और कहां मैं स्वर्ग लोक की जहां सब पवित्र होता है परी ने यह कहकर राव धालु लोक से आया अप्सराओं का रथ भी वापस उड़ान भर देता है परी आसमान में जाते रथ को देख अंदर ही अंदर व्याकुल हो गई कि अब उसके लिए हमेशा के लिए स्वर्ग के दरवाजे बंद हो गए हैं क्योंकि स्वर्ग के कुछ नियम हैं और उन में से एक अगर कोई स्वर्गवासी एक रात भी पृथ्वी लोक पर ठहर जाता है तो वह अपवित्र हो जाएगा और उसके बाद उसे स्वर्ग लोक में प्रवेश रोक दिया जाएगा अब परी के पास पृथ्वीलोक पर राव धानलक्ष्मी जब भी मुझसे मिलने के लिए आओगे तब इसकी सूचना किसी को कानों खबर नहीं होनी चाहिए यानी कि आपके और हमारे बीच संबंधों का किसी को पता नहीं चलना चाहिए और अंतिम वचन रखते हुए परी ने कहा राजन आप जब भी मुझसे मिलने के लिए आओ तब आपको दरवाजे पर मुझे सूचना देनी होगी वचन देकर परी ने कहा कि राजन यदि आप इन वचनों को निभाते हैं


तब तक आपका और हमारा संबंध रहेगा लेकिन जिस दिन एक वचन तोड़ दिया उसी दिन से मान लेना कि आपका और हमारा कोई संबंध नहीं परी को दिए वचनों को राव  धालु राजा ने नगर के बाहर एक मंजिला मकान बनवा दिया रात होते ही राजा भेष बदलकर परी से मिलने के लिए चले जाते जिसकी खबर किसी को कानों कान नहीं पड़ती और परी के कक्ष के पास जाते ही राजा दरवाजे को खड़का दे और परी की आज्ञा मिलने पर ही कक्ष में प्रवेश करते और परी को दिए वचनों को राज का राज ही रखा समय बीता गया और 12 महीने के बाद वह शुभ घड़ी आई जो विक्रम संवत 1405 में भादव महीने की पूर्णिमा के दिन पाबूजी महाराज ने धानलक्ष्मN अवतारी के रूप में जन्म लिया लेकिन इधर धालु जी परी से मिलने के लिए जाते हैं उसी रात संजोग से रानी कमला दे की नजर परी से मिलने जा रहे राव  धानलक्ष्मी से मिलने के लिए जाते हैं और उसी रात से रानी रात होते ही पलंग पर नींद का बहाना करके लेट जाती और राजा पर कड़ी नजर रखने लगी और इधर राव धालु क होने लगा कि परी ने ऐसा वचन क्यों दिया कि जाने से पहले उसे सूचना देनी होगी कोई तो बात जरूर है जो परी मुझसे छुपा रही है लेकिन एक दिन राजा ने मन बना लिया था कि आज रात कुछ भी हो जाए आज वह बिना दरवाजे को खड़का है परी के कक्ष में जाएंगे और उसी दिन संजोग ऐसा बैठा कि रानी ने भी ठान रखी थी कि आज राजा का पीछा करके ही रहेगी जैसे ही दिन ढलता है रानी बहाना करके अपने कक्ष में जाकर सो जाती है तभी राजा ने देखा रानी सो गई है और उसी समय राजा परी से मिलने के लिए चल देते हैं और रानी भी राजा का पीछा करते-करते साथ-साथ चलती रही लेकिन जैसे ही राजा ने परी को बिना सूचना दिए बगैर कक्ष में गए और कक्ष के अंदर देखा तो राव धांधलजी  कि परी सहनी के रूप में पाबजी महाराज को स्तनपान करा रही थी


और परी ने बिना इजाजत के राव धानलक्ष्मी दिया है और आज इस छोटी सी उम्र में मुझे छोड़कर कहां जा रहे हो इतना सुनते ही परी भी अंदर ही अंदर दुखी हो गई लेकिन परी क्या ही कर सकती थी क्योंकि परी स्वर्ग लोक से आई थी जहां हमेशा सत्य का नियम चलता है और जो नियम है व सभी को निभाने पड़ते हैं जाते-जाते परी ने पाबू जी को आशीर्वाद दिया पुत्र तुझे मां की ममता का सुख तो नहीं दे सकी लेकिन मैं तुम्हें अपनी पीठ पर जरूर सैर करवाऊंगी इतना कहते ही परि आसमान में उड़ गई और ये सारा वृतांत रानी कमला देख लेती है

वीर पाबूजी राठौड़ की अमर गाथा || The brave story Pabuji Rathore ||


उस समय रानी कमला दे का भी 12 महीने का पुत्र था जिनका नाम राव बूढ़ो जीी था छोटे से बालक के रूप में पाबूजी को बिना मां के देख रानी कमला दी की आंखें भराई क्योंकि वो तो स्वयं मां थी जो पहले से ही जानती थी कि मां के वियोग में बच्चे की दशा क्या होती है पाबूजी राठौड़ को अपनी गोद में लेकर उसी दिन से पाबूजी का पालन पोषण किया और तभी से पाबूजी राठौड़ की मां के रूप में कमला देवी और पाबूजी  वे  बूढ़ो जी बड़े हो जाते हैं और सर से पिता धांधल जी  की बहन पेमल की उम्र भी विवाह योग्य हो जाती है और दोनों भाई अपनी बहन के लिए एक अच्छा परिवार और रिश्ता ढूंढना शुरू कर देते हैं एक दिन बूढ़ो जी ने अपने भाई पाबूजी से कहा कि अगर हो सके तो जायज ठिकाने के खींच हों के घर पेमल का लग्न कर दें और पीछे का बंधा बैर भी रिश्तों में बदल जाएगा पाबूजी राठौड़ इस निर्णय से बिल्कुल भी सहमत नहीं थे लेकिन अपने बड़े भाई की बात को ताल भी नहीं सकते थे और पेमल का रिश्ता जिंद्र खींची से कर दिया गया विवाह के कुछ दिनों बाद जिंद्र अपने ससुराल कोलुमण्ड में घूमने के लिए आता है यहीं पर घूमते घूमते यहां की ग्वालन देवल चारणी के घर बंधी घोड़ी को देख जिंद्र भाव विभोर हो जाता है देवल चारणी से घोड़ी देने का निवेदन करता है और देवल चारणी ने भी रियासत घरानों के जवाई होने के नाते जिंद्र को घोड़ी देने का वचन दे दिया कि कल ले जाना उसी रात को पाबूजी राठौड़ को सपने में की मां परी दिखाई देती है और उनसे कहती है


कि तुम्हें पीठ पर घुमाने का वचन दिया है तो कल सवेरे होते ही देवल चारणी के घर चले आना मैं केशर कालवी अवतार में तुम्हें घुमाते रहूंगी सपने के अनुसार पाबूजी सुबह होते ही देवल चारणी के घर घोड़ी केशर कालवी लेने के लिए पहुंच जाते हैं लेकिन देवल चारणी पहले ही जिंद्र को केशर कालवी देने का वचन दे चुकी थी देवल चारणी ने सोचा अगर इनमें से किसी एक को भी दे दी तो साले और बहनों में झगड़े की दरार पड़ जाएगी तभी देवल चारणी ने पाबूजी से कहा कि छोटे सरदार केशर कालवी तो आपको नहीं  दे सकते जब लुटेरे मेरी गाय को चुराने के लिए आते हैं तब यह मुझे साव चत करती है लेकिन पाबूजी राठौड़ ने देवल चारण को अंतिम सांसों तक उसकी गाय की रक्षा करने का वचन देकर घोड़ी केशर कालवी  को ले लिया थोड़ी देर बाद जींद राव भी कल के लिए वादे के अनुसार घोड़ी लेने आ जाता है तभी देवल चारणी ने जिंद्र से कहा कि घोड़ी तो आपके साले पाबूजी ले गए इतना सुनते ही जिंद राव के मन में नफरत की हग भर गई जाते समय जिंद्र ने चारणी को क्रोध से कहा तो चारण महान नाट गी ही मह घोड़ी लेवण जदा या खींची को करर खारा लाग राठौड़ तन एहड़ा बाया यानी कि खींची आपको बुरे कैसे लगे  लेकिन घोड़ी तो खींच के खूटे पर ही बंद कर रहेगी और जो आपने खींच के साथ जो विश्वास घात किया उसकी भी आपको सजा भुगतनी पड़ेगी इतना कहते जिंद्र जायल की ओर रुख कर देता है


कुछ दिनों बाद अमरकोट नरेश सोढा ने अपनी पुत्री फुलमदे का रिश्ता पाबूजी के घर भेजा और विवाह तय कर दिया गया अब बारात कोलम से अमरकोट की ओर चल देती है नफरत इतनी बढ़ गई कि खींच के घर पाबूजी के विवाह का न्योता तक भी नहीं भेजा औरतों और जीन्दराव ने पेमल को अपने पिहर जाने पर भी पाबंदी लगा दी और इधर जिंदराव बदले की आग को पूरा करने के लिए अपने भाइयों के साथ बदला लेने की रणनीति बना रहा था तभी एक भाई ने जंदरा से कहा कि यही मौका है उसी दिन रात होते ही जंदरा अपने भाइयों के साथ साथ कोलुमण्ड पर आक्रमण करने के लिए अपनी शाही सेना के साथ चल देता है कोलुमण्ड पहुंचते उसने देवल चारणी की गौशाला में अपने भाइयों के साथ धावा बोल दिया गौशाला में देवल चारणी के पति भीम दन भी थे और उनके 23 भाइयों को तलवार से मौत के घाट उतार दिया पूरी गौशाला में आग लगा दी गई और गाय को खूटे से खोलकर जायल की ओर चलता कर दिया लेकिन यह सब करते वक्त इस नरभक्षी जिंद राव के मन में जरा सी दया नहीं आई कि सिर्फ एक घोड़ी के लिए इतनी क्रूरता क्यों कर रहा है


जैसे ही सुबह के 4:00 बजते हैं तब देवल चारणी गायों का दूध निकालने के लिए गौशाला की ओर चल देती है गौशाला में पहुंच करर देखा तो सब तहस नहस है और अपना सब कुछ उजड़ देख देवल चारण की आत्मा मानो उस नरभक्षी जी दाव को बददुआ दे रही हो इधर जिंद राव अपने भाइयों के साथ इसका जश्न मना रहा था लेकिन पाबूजी का दिया वचन के अनुसार महल में जाकर सहाता की पुकार लगाई लेकिन महल से जवाब मिला कि पाबू जी की तो शादी है और बारात लेकर अमरकोट गए हुए हैं तभी देवल चारणी ने शक्ति अवतार सोनचिड़ी का रूप धारण कर अमरकोट महल के छज्ज पर जाकर ककने लगती है मानो जो पाबूजी महाराज को सहायता के लिए पुकार रही हो चिड़ी के रूप में अपने स्वामीनी चारणी को देख केशर कालवी घोड़ी भी नोनो ताल कूदने लगती है लेकिन घोड़ी को देख पाबूजी के साले ने चांदो जी से घोड़ी की लगाम कसके पकड़ने को कहा तभी चांदो जीी ने कहा इसमें हमारी घोड़ी का दोष नहीं शायद देवल चारणी ही कोई घोर विपदा में है उस समय मंडप में पाबूजी फलमे के साथ तीन फेरे ले चुके थे तभी संदेशा आ जाता है कि देवल चारणी की गाय को खींच चुराकर जायल ले गया तभी पाबूजी बीच फेर में से खड़े हो गए लेकिन यह सब देख अमरकोट राजा सोड़ा भी बहभी हो गया कि कहीं बारात की मान मनवार में तो कोई कसर नहीं रह गई पूछने पर पाबूजी ने बताया कि मैंने देवल चारणी को मेरे अंतिम सांसों तक उसकी रक्षा करने का वचन दिया है आज उसकी रक्षा के लिए नहीं गया तो मेरा राठौड़ को लज्जित हो जाएगा जो हमेशा से ही अपने वचनों पर अड़क रहा है तो जा आते जाते पाबूजी ने अपने वधू फुलम दे  से कहा हमारा इंतजार करना अगर इस जन्म में मिलन होगा या फिर अगले जन्म में तो जरूर होगा इतना कहते ही पाबूजी कोल मुंड की ओर अपने साथ चांदो जीी और डामोजी के साथ चल देते हैं कोल मुंड पहुंचते ही देवल चारणी ने पाबूजी राठौड़ को सारा वृतांत कह सुनाया पूरी बात सुनते ही पाबूजी राठौड़ ने ठान लिया कि आज बहन का सुहाग जाए तो जाए लेकिन जिंद राव खींचने जो क्रूर काम किया है उसकी सजा उसे मिलकर रहेगी और राज महल में जाकर म्यान से तलवार निकाली और जायल ठिकाने की ओर चल देते हैं उसी वक्त माता कमला दे भी रास्ता रोक के खड़ी हो गई और पाबूजी राठौड़ से कहा कि बेटा पाबू जीी मेरे को पता है कि तुम बड़े ही सत्यवादी न्यायप्रिय हो लेकिन एक बार सामने तो देख लो कि कौन है वो कोई और नहीं अपनी बहन पेमल का सुहाग है क्रोध में ऐसा कोई काम मत करना जिससे आपकी बहन को जीवन भर विधवा होने की कीमत चुकानी पड़े तभी पाबूजी राठौड़ ने माता कमला दे को ऐसा ना करने का वचन दे दिया लेकिन उसके की की सजा देने के लिए चल देते हैं जायल पहुं ते ही पाबूजी राठोड़ ने जिंद राव खींची को युद्ध के लिए ललकार लगाई और रणभूमि में ऐसा घमासान मचा की खींच हों की एक के बाद एक लाशें गिरने लगी जायल की रणभूमि रक्त से लाल हो गई और अंत में जंदरा और खींची भी पाबूजी राठौड़ के चरणों में आ गिरा सभी कीची भाई पाबूजी सिद्धाया की भीख मांगने लगे कि कुंवर सार राठौड़ आज के बाद कोलम की ओर आंख उठाकर भी नहीं देखेंगे हमारे प्राण बक्श दो उसी समय पाबूजी ने मन से तलवार निकाली और जिंद्र को उसके कुकर्म के कारण खींची का सर धड़ से अलग करने की सोच ली लेकिन माता कमला देवीर पाबूजी राठौड़ की अमर गाथा || The brave story Pabuji Rathore ||
को दिया वचन याद आ गया और जान बक्श दी लेकिन जिंद्र को सजा देने के लिए पाबूजी ने खींची को रस्सी से बांधकर 100 कोसों तक घसीटा और देवल चारणी की काया को छुड़वा कोल मुंडा की ओर भेज दिया अंत में जिंद राव पाबूजी के समक्ष जाकर शरण मांगने लगा और पाबूजी राठौड़ ने भी क्षत्रिय धर्म के अनुसार खींची को क्षमा कर दिया क्योंकि क्षत्रियो का कुल धर्म होता है कि शरण में आए शरणागत को शरण देना लेकिन क्षमा करने के बाद भी जिंद्र के मन में बदले की आग बुझी नहीं जैसे ही पाबूजी राठौड़ ने जिंद्र खिची को शमा करके कोल मुंडा की ओर पलटने की कोशिश की तभी जमीन पर घायल पड़ा जिंद्र व खीची पास में पड़ी तलवार को उठाता है और पीछे से पाबूजी राठौड़ के सर पर वार कर देता है और रण स्थली में ही पाबूजी राठौड़ वीर गति को प्राप्त हो जाते हैं तभी से माना जाने लगा कि पाबूजी ने शेष चार फेरे स्वर्ग में लिए थे जानकारी के लिए आपको बता दूं इन्हीं के भतीजे झर ढो जीी ने जिंद्र व खीची को मारकर अपने पिता बूढ़ो जी और उनके भाई पाबू जीी की मा का बदला लिया था वर्तमान में पाबूजी राजस्थान के लोक देवता के रूप में पूजनीय हैं आपको बता दूं कि राजस्थान के फलौदी जिले के कलमंडा में मंदिर बना है जब भी राजस्थान में घूमने के लिए आओ तब दर्शन के  लिए अवश्य आना इसी के साथ आज के लिए आपसे आज्ञा लेता हूं फिर मिलते हैं एक और ऐतिहासिक कहानी के साथ तब तक के लिए नमस्कार जय हिंद जय भारत


Permalink: https://aghorijirajasthan.com/पाबूजी-राठौड़/

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