माँ दुर्गा के 9 अवतारों का असली अर्थ| कैसे हुई हर रूप की उत्पत्ति

या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम देखिए भगवान विष्णु ने संसार का कल्याण करने के लिए हमेशा कोई ना कोई अवतार जरूर लिया है वैसे ही माता दुर्गा ने भी दुष्टों का संघार करने के लिए नौ अवतार माता के उन्हीं नौ रूपों की पूजा हम सभी नवरात्रि के नौ दिनों में करते हैं माता के सभी नौ रूप एक दूसरे से अलग अलग हैं और तो और उन नौ रूपों का मतलब भी बहुत अलग है तो क्या आपको माता के उन नौ रूपों की जानकारी है क्या आपको पता है उन्होंने यह नौ रूप क्यों लिए थे अगर नहीं तो ज्यादा दिमाग पर जोर डालने की जरूरत नहीं है हम आपको इस बारे में इजी वे में बताते हैं माता शैलपुत्री शुक्ल पक्ष के प्रतिपदा को पहला नवरात्रा होता है


Kali maa नवरात्र के सबसे पहले दिन देवी मां का पहला रूप यानी माता शैल पुत्री की पूजा की जाती है देवी ने पर्वतराज हिमालय की बेटे के रूप में जन्म लिया था जिस वजह से उनका नाम शैल रखा अब इस रूप में माता के एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में कमल मौजूद रहता है और वो वृषभ पर विराजमान रहती कहा जाता है कि मां शैलपुत्री को संपूर्ण हिमालय पर्वत समर्पित है इस दिन व्रत रखने के बाद देवी के चरणों में गाय का शुद्ध घी अर्पित किया जाता है जिससे भक्तों को आरोग्य का आशीर्वाद भी मिले और व्रत रखने वाले को किसी तरह की कोई बीमारी ना हो माता ब्रह्मचारिणी देखि नवरात्रि के दूसरे दिन माता के दूसरे रूप यानी कि देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है ब्रह्म का मतलब यहां पर है तपस्या और चारणी का मतलब है आचरण जी हा देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठिन तपस्या साधना की थी उसी रूप की वजह से उनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा देवी के दाए हाथ में जब के लिए माला और बाए हाथ में कमंडल होता है उन्हें साक्षात ब्रह्म का रूप माना जाता है इस दिन माता को खुश करने के लिए उनको शक्कर का प्र साथ चढ़ाया जाता है देवी की पूजा से तप त्याग संयम की प्राप्ति होती है और तो और उनके इस स्वरूप को अत्यंत ज्योतिर्मय और भव्य माना जाता है माता चंद्रघंटा देखिए देवी के तीसरे रूप में माता चंद्रघंटा की पूजा की जाती है उनके रूप की अगर बात करें तो उनके माथे पर चंद्र अर्ध स्वरूप में विजवान है नवरात्र के तीसरे दिन इनका पूजन अर्चन किया जाता है देवी की सवारी बाग है और उनके 10 हाथ में कमल धनुष बाण कमंडल गदा पुष्प जैसे अस्त्र होते हैं इनके कंठ में सफेद फूलों की माला और शीश पर मुकुट होता है मां चंद्रघंटा की पूजा नवरात्रि के तीसरे दिन करने से भक्तों को सांसारिक दुखों से मुक्ति मिल जाती है और उसे परम आनंद की प्राप्ति भी होती है माता की पूजा करते समय उनको दूध या फिर दूध से बनी मिठाई खीर का भोग लगाया जाता है चौथा माता कुशमांडा देखिए नवरात्रि के चौथे दिन देवी कुशमांडा की पूजा अर्चना की जाती है और और इन्हें दुर्गा माता का चौथा रूप माना जाता है जी हां देवी ने अपनी मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की थी इसलिए इन्हें सृष्टि की अध्य शक्ति के रूप में भी जाना जाता है इनका रूप बहुत ही शांत सौम्य और मोहक माना जाता है इनकी आठ भुजाएं होती हैं जिसकी वजह से इन्हें अष्टभुजा भी कहते हैं इनके सात हाथों में कमंडल धनुष बाण फूल पुष्प अमृत कलश चक्र गदा है आठवें हाथ में सभी सिद्धि को देने वाली जप की माला हो होती है और इनका वाहन शेर है अब देखिए चौथे नवरात्रि को जो जन पूण विधि विधान से व्रत करता है उसके सारे रोग नष्ट हो जाते हैं बुद्धि का विकास होता है और साथ ही साथ निर्णय करने की शक्ति भी प्रदान होती है आखिर में पूजा करने के बाद देवी को माल पुओं का भोग लगाया जाता है माता स्कंद माता देखिए अश्विनी के मास में देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है पांचवें दिन माता स्कंद माता की पूजा की जाती है बता दें कि स्कंद माता नाम दो शब्द से मिलकर बनता है स्कंद और माता स्कंद प्रभु कार्तिके का दूसरा नाम है और कार्तिके जी भोलेनाथ और माता पार्वती के पुत्र है इसलिए स्कंद माता का अर्थ है कार्तिके की माता उनकी चार भुजाएं हैं एक वह हाथ में कार्तिके को पकड़े हुए हैं तो दूसरे और तीसरे हाथ में कमल रखती है इसके अलावा वह अपने चौथे हाथ से भक्तों को आशीर्वाद भी देती है माता का वाहन शेर है और वो हमेशा कमल पर विराजमान रहती है


पांचवें दिन माता के इस रूप की आराधना करने से व्रत रखने वाले को सभी सिद्धियां प्राप्त होती हैं और शरीर स्वस्थ रहता है इस पूरे दिन व्रत रखने के बाद माता को केले का भोग लगाया जाता है माता कात्यायनी अब बात आती है माता कात्यायनी की जो कि माता दुर्गा का छटा रूप अश्विनी मास की पष्ट तिथि को मां के इस रूप की पूजा की जाती है बता दें कि देवी कात्यायनी ऋषि कात्यान की पुत्री हैं मां को अपनी तपस्या से खुश करने के बाद उनके यहां देवी ने पुत्री रूप में जन्म लिया इसी कारण वो कात्यायनी कहना इस दिन उन्हें भोग में शहद दिया जाता है उनकी पूजा करने से भक्तों को अर्थ धर्म काम मोह श आदी फलों की प्राप्ति हो जाती है और उनके सभी रोग भय दूर हो जाते हैं माता काल रात्रि देखिए सप्तमी तिथि में देवी मां के काल रात्रि स्वरूप की अर्चना की जाती है


काल का अर्थ मृत्यु होता है और रात्रि का अर्थ अंधकार होता है जिसका मतलब अंधकार व अज्ञानता की मृत्यु होती है मां कालरात्रि दुर्गा का सबसे भयानक रूप है उनके गले में विद्युत की माला और बाल बिखरे हुए हैं मां के चार हाथ है जिसमें उनका एक हाथ वर मुद्रा में है जिसे वह भक्तों को आशीर्वाद देती है दूसरा हाथ अभय मुद्रा में है जिससे वोह भक्तों की रक्षा करती है तीसरे हाथ में उन्होंने वज्र पकड़ा हुआ है और चौथे में नुकीला कांटा उनका वाहन गधा है इस दिन उपवास करने के बाद देवी को गुड़ का भोग लगाया जाता है तो इस तरह मां की पूजा करने से व्यक्ति पर आने वाले शोक से मुक्ति मिलती है और और इसके अलावा वो अपने गुस्से पर नियंत्रण भी ला सकता है जी हां देवी महागौरी देखिए दुर्गा अष्टमी के दिन माता के आठवें रूप यानी कि महागौरी जी की पूजा की जाती है देवी ने महा तपस्या करके गौर वर्ण को प्राप्त किया है जिसकी वजह से इन्हें महा गौरी कहा जाता है इतना ही नहीं माता के चार हाथ हैं दाहिने तरफ के ऊपर वाले हाथ में त्रिशूल और नीचे वाला हाथ वरदायनी मुद्रा में वहीं बाएं तरफ के ऊपर वाले हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले हाथ में डमरू पकड़े हैं उनकी सवारी बैल है इस दिन उनको भोग में नारियल का भोग लगाया जाता है और ब्राह्मण को भी नारियल दान में देने की प्रथा भी यह देवी नह संतानों की इच्छा को पूरी भी करती है जी हां माता सिद्धि दात्री देखिए नवरात्रि के नौवे दिन माता सिद्धि दात्री की पूजा की जाती है सिद्धि का अर्थ यहां पर होगा अलौकिक शक्ति और दात्री का अर्थ दाता या प्रदान करने वाली होती है इन्हें सभी तरह की सिद्धियां देने वाली भी कहा गया है


इस रूप में मां कमल पर विराजमान है और उनके चार हाथ है वो अपने चारों हाथों में कमल गदा चक्र और शंख धारण रखती हैं और उनका वाहन सिंह है नवमी तिथि का व्रत कर उन्हें तिल का भोग लगाना चाहिए जिससे आपका यह दिन कल्याणकारी रहता है  उनका यह स्वरूप सभी दिव्य आकांक्षाओं को पूर्ण करने वाला भी होता है बता दें कि पुराणों के अनुसार मां के इस रूप की पूजा करने से अणिमा महिमा करीमा लघिमा प्राप्ति प्राक्या में ईशित्व और वर्षव जैसी आठ सिद्धियां प्राप्त होती हैं और असंतोष आलस्य ईर्ष्या द्वेष आदि से छुटकारा भी मिलता है आइए अब जान लेते हैं आखिर शेर कैसे बना दुर्गा माता की सवारी जैसा कि सभी को पता है कि भगवान शंकर को अपने पति के रूप में पाने के लिए देवी पार्वती ने हजारों सालों तक तपस्या की थी इस तपस्या का तेज इतना ज्यादा था कि देवी पार्वती का सफेद गोरा रंग सामला पड़ गया था लेकिन तपस्या सफल हुई और मां पार्वती को भगवान शिव पति के रूप में मिल गई अब शादी के कुछ समय बाद एक बार शाम के समय माता पार्वती और भगवान भोलेनाथ जो हैं साथ में कैलाश पर्वत पर बैठे हुए थे महादेव ने हंसी हंसी में देवी पार्वती के रंग को देखकर उन्हें काली कहकर पुकारा यह सुनते ही माता को बिल्कुल अच्छा नहीं लगा और वह तुरंत कैलाश छोड़कर जंगल में अपने गोरे रंग को फिर से पाने के लिए कठिन तपस्या करने बैठ जाती अब जब वो जंगल में तपस्या कर रही थी तभी एक भूका शेर मां को खाने के फिराग से वहां पर पहुंचा लेकिन वो शेर चुपचाप वहां पर बैठकर तपस्या कर रही थी देवी को देखता रहा माता की तपस्या में सालों गुजर गए लेकिन वो शेर मां पार्वती के साथ वहीं पर बैठा रहा अब जब देवी पार्वती की इस तपस्या को खत्म करने वहां पर शिवजी प्रकट हुए और उन्हें फिर गोरा होने का वरदान भी दिया तब माता पार्वती गंगा स्नान के लिए चली गई अब स्नान के लिए गई देवी पार्वती के शरीर से एक और काले रंग की देवी वहां पर प्रकट हो जाती है


और उस काली देवी के निकलते ही देवी पार्वती एक बार फिर से गोरी हो गई और इस काले रंग की माता का नाम कौशिकी पड़ा अब जब मां पार्वती का गोरा रंग हुआ तो देवी पार्वती को एक और नाम जिसे उनके भक्त गौरी नाम से जानते हैं जी हा जब माता पार्वती वापस अपनी जगह पर पहुंची तो शेर को वहीं पर बैठा पाया अब इस बात से खुश होकर माता गौरी ने उस शेर को अपना वाहन बना लिया था और वह शेर पर सवार ई यही वजह है कि मां दुर्गा को शेर वाली मां भी कहा जाने लगा था लेकिन क्या आपको यह पता है कि देवी दुर्गा की उत्पत्ति आखिर कैसे हुई थी आइए बताते हैं इसी के साथ आपको यह भी बताएंगे कि देवी दुर्गा ने असुरों का वध करने के लिए बहुत से अवतार लिए देखिए देवी के इस अवतार का दुर्गा सप्त शति में उल्लेख भी मिलता है जिसके अनुसार एक बार जब महिषासुर नाम के दानवों असुरों के राजा ने अपनी शक्ति और पराक्रम से सभी देवताओं से स्वर्ग छीन लिया था तब सारे देवता महादेव और भगवान श्री हरि विष्णु के पास सहायता के लिए पहुंचते हैं दोनों यानी कि शिवजी और विषणु जी ने जब पूरी बात जानी तो उन्हें जानकर बहुत क्रोध आया तब उन और दूसरे देवताओं के मुख से एक तेज प्रकट हुआ जो नारी स्वरूप में बदल जाता है अब शिवजी के तेज ने माता को मुख यमराज के तेज ने केश विष्णु जी के तेज ने भुजाएं चंद्रमा जी के तेज ने वक्ष स्थल सूर्य के तेज ने पैरों की अंगुलियां यक्ष कुबेर के तेज ने नाक प्रजापति के तेज ने दांत अग्नि देव के तेज ने तीनों नेत्र देवी संध्या के तेज ने भृकुटी और वायु देव के तेज ने कान दिए जिसके बाद माता को शास्त्रों से सुशोभित किया गया वहीं देवी दुर्गा को देवताओं ने अपने-अपने अस्त्र शस्त्र और हथियार सौंपे थे ताकि असुरों के साथ होने वाले युद्धों में जीत हासिल हो सके तथा धर्म हमेशा स्थापित रहे अधर्म का खात्मा हो देवी के 18 हाथ उनके महालक्ष्मी स्वरूप में दिखाई देते हैं इस स्वरूप का वर्णन करते हुए कहा गया है कि मैं कमल के आसन पर बैठी हुई प्रसन्न मुख वाली महिषा सुर मर्तनी भगवती महालक्ष्मी का भजन करता हूं


जो अपने हाथों में अक्षमाला फरसा गदा बाण व पद्म धनुष कुंका दंड शक्ति खड़क ढाल शंख  घंटा मधु पात्र शूल पाश और चक्र धारण करती है बता दें कि इनमें से बहुत से दिव्यास्त्र कई देवताओं द्वारा देवी को अर्पण किए गए माता दुर्गा ने दाए हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है जिसके बारे में बताया गया है कि यह त्रिशूल शिवजी ने अपने शूल में से निकालकर उन्हें सौंपा था वहीं अग्निदेव ने देवी को शक्ति दिव्यास्त्र भेंट किया था जब युद्ध भूमि में महिषासुर के साथ-साथ कई द्वैत रथ हाथी घोड़ों की सेना के साथ-साथ चतुर अंगणी सेना से लेकर युद्ध के लिए आए तब तब देवी माता अपनी इसी शक्ति से उन्हें रत डालती थी और इन सभी का देवी माता ने अपने इसी बल से वद भी किया था और तो और रक्त बीज और दूसरे दैत्यों को मारने के लिए देवी ने चक्र का इस्तेमाल किया था जी हां देखिए अपने भक्तों की रक्षा के लिए देवी को यह चक्र भगवान नारायण ने अपने चक्र से उत्पन्न करके दिया था इतना ही नहीं पृथ्वी आकाश और पाताल सभी लोगों को अपनी ध्वनि से कं बायमान कर देने वाली शंख जब ऊंचे स्वर में युद्ध भूमि में पूंजी तब दैत्य असुर राक्षसों की सेना रणभूमि छोड़कर भाग ड़ी होती थी वो भय से कांपने लगते थे यह चमत्कारी शंख देवी को वरुण देव ने खुद भेंट किया था वहीं तीनों लोगों के क्षोभ ग्रस्त हो जाने पर जब राक्षस माता दुर्गा की ओर हथियार लेकर दौड़े थे तब देवी ने ही धनुष बाणों के प्रहार से पूरी सेना का सर्वनाश किया था आपको बता की माता को यह धनुष और बाणों के भरे हुए दो तरकश पवन देव ने दिए थे


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