
मां कामाख्या ने क्यों दिया था अपने सबसे बड़े भक्त को ये भयानक श्राप
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क्या आप जानते हैं कि मां कामख्या ने अपने ही पुजारी का सिर धर से अलग कर दिया था इतना ही नहीं सदियों पहले उन्होंने एक राज परिवार को ऐसा श्राप दिया जिसके चलते उस राज परिवार से ताल्लुक रखने वाले लोग आज भी देवी कामाख्या के दर्शन नहीं कर पाते पर सोचने वाली बात है आखिर इन सबके पीछे की वजह क्या रही होगी दरअसल माता कामख्या के एक नहीं बल्कि कई अनसुलझे रहस्य हैं मंदिर में प्रसाद के रूप में बटने वाले अंबू वाची वस्त्र से लेकर पास में बहने वाली ब्रह्मपुत्र नदी तक अपने अंदर कई ऐसे रहस्यों को छिपाए हुए हैं जो विज्ञान को
खुली चुनौती देते हैं मां कामख्या के साथ कई महान तांत्रिक साधु और अघोरियों की कहानी जुड़ी हुई है
और उन्हीं में से एक कथा है मां कामाख्या के सबसे बड़े पुजारी केंदु कलाई जी के साथ जुड़ी हुई जो गर्भ ग्रह में देवी की पूजा अर्चना करते थे और उनके बहुत बड़े उपासक भी थे उसी समय कूछ बिहार डायनेस्टी के राजा राजा नर नारायण भी मां कामख्या के बड़े भक्त हुआ करते थे जो कि मां के दर्शन करने रोज नीलांचल क्षेत्र आया करते थे बता दें इस राज परिवार को कूच बिहार पंच के नाम से भी जाना जाता है नीलांचल क्षेत्र वो जगह थ जहां पर नीलांचल पर्वत स्थित है और यहां
पर देवी कामख्या निवास करती है इसलिए उन्हें नील पर्वत वासनी भी कहा जाता है राजा नर नारायण जब माता के दर्शन करने के लिए आते थे तब उनकी मुलाकात जो है भाई केंदु कलाई जी के साथ भी होती थी वो उन्हीं के जरिए मां कामख्या की पूजा अर्चना करते थे वहीं केंदु कलाई जी मां के इतने बड़े उपासक थे कि उनकी कृपा से वो वहां आने वाले भक्तों की समस्या को भी सुलझाया करते थे और यह बात आसपास के लोगों को बहुत अच्छे से पता था अब एक दिन क्या हुआ कि केंदु कलाई जी के पास एक दुखियारी मां गोद में अपनी मरी हुई बच्ची को लेकर आई वो उनके सामने आते ही बिलक बिलक कर
रोने लगी और बोली आप मेरी एक आखिरी उम्मीद हो इसलिए मैं आपसे विनती करती हूं कि मां की कृपा और आशीर्वाद से आपके जो शक्ति है उसकी मदद से आप मेरी बेटी को पुनर्जीवित करती हो केंदु कलाई जी ने उनसे कहा माता यह तो संभव नहीं है क्योंकि एक बार जो मृत्यु को प्राप्त हो जाता है वह वापस जीवित हो ही नहीं सकता और यह प्रकृति का नियम है यह सुनकर उस मां ने केंदु कलाई जी से कहा कि मुझे इतना तो भरोसा है कि अगर आप देवी मां से एक बार प्रार्थना करेंगे ना तो वह आपकी बात को मना नहीं करें बस इसके बाद केंदु कलाई जी ने कहा कि आपकी आस्था को मैं नमन करता हूं अगर आप इतना कह
रही हैं तो मैं एक बार आपके लिए मां से प्रार्थना जरूर करूंगा बाकी सब फिर उनके हाथों में उन्हें जो उचित लगेगा वो वही करेंगी अब इतना कहकर केंदु कलाई जी ने उस मृत बच्ची को अपनी गोद में उठाया और उसे ले जाकर मां कामाख्या के पाषाण शिला पर रख दिया और तभी ऐसा चमत्कार हुआ जिसके बारे में पहले किसी ने कहीं नहीं सुना था जैसे ही केंदु कलाई जी ने मां से विनती की कि हे मां अगर आपको ठीक लगे और आप इसे योग्य समझे तो इस बच्ची को पुनर्जीवित कर दीजिए आपकी महान कृपा होगी मेरी आपसे यही विनती है कि आप इस बच्ची को जीवन दान दे केंदु कलाई जी की इस प्रार्थना को मां कामख्या
ने तुरंत स्वीकार किया है और उस बच्ची को पुनर्जीवित कर दिया सभी मां कामख्या के साथ-साथ केंदु कलाई जी की भी जय जयकार करने लगी और धीरे-धीरे बात पूरे नगर में फैल गई और आखिर में यह बात राजा नर नारायण तक भी जा पहुंच गई उन्हें जब ये पता चला कि भाई केंदु कलाई जी मां के इतने बड़े उपासक हैं कि उनकी विनती करने पर मां कामख्या ने एक मृत बच्ची को जीवित कर दिया तो उसी वक्त उनके मन में भी मां के दर्शन करने की इच्छा पैदा हुई वहीं स्थानीय लोग यह बात बहुत अच्छे से जानते थे कि रात को मंदिर बंद होने के बाद केंदु कलाई जी अपनी आंखों पर पट्टी बांधकर मां कामाख्या की
) पूजा अर्चना करते हैं और उस दौरान माता रानी उन्हें साक्षात दर्शन देने के लिए उनके सामने प्रकट होती है हालांकि देवी के प्रकट हो जाने के बाद भी केंदु कलाई जी की स्तुति रुकती नहीं है वो लगातार भाव विभोर होकर मां के भजन गाते थे उनके मंत्र बोलते थे और उनकी स्तुति में डूबे रहे तब मां कामख्या बिना कुछ धारण किए उनके सामने नृत्य करती थी बता दें मां कामख्या उस जगह के साथ जुड़ी हुई है जहां से सारे ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई है यानी कि वो अंग जहां से हर जीव जन्म लेता है ऐसा इसलिए क्योंकि मां का मखिया शक्ति पीठ उस स्थान पर स्थित है जहां देवी सती के शरीर
के वो अंग गिरे थे अर्थात नीलांचल क्षेत्र राजा नर नारायण तुरंत केंदु कला जी के पास गए और उनसे विनती करने लगे कि भाई मां के दर्शन प्राप्त करना चाहता हूं मैं इसलिए आपसे प्रार्थना करता हूं कि एक बार आप मुझे गर्भ ग्रह में उपस्थित रहने की अनुमति दे दें अब इसके बाद केंदु कलई जी ने राजा से कहा कि इसकी अनुमति मैं कैसे दे दूं क्योंकि रात में कपाट बंद होने के बाद जब मैं देवी मां की पूजा करता हूं तो खुद मैं अपनी आंखों पर पट्टी बांध लेता हूं फिर मैं आपको इसकी अनुमति कैसे दे सकता हूं मां कामाख्या की आज्ञा के बिना यह सब करना सही नहीं होगा लेकिन राजा
नरनारायण को यह बात बिल्कुल समझ नहीं आ उन्होंने तय कर लिया था कि भाई व मां के दर्शन करके रहेंगे कुछ हो जाए इसलिए उन्होंने साम दाम दंड भेद सभी का इस्तेमाल करके केंदु कलई जी को इतना मजबूर कर दिया कि उन्हें इसके लिए हां ही कहना पड़ा अब इसके बाद केंदु कल जी ने राजा से कहा कि चलिए मैं आपका गर्भ ग्रह में उपस्थित रहने की अनुमति आपको दे सकता हूं लेकिन गर्भ ग्रह में जो एक छेद है आप उसमें मां कामकी के नृत्य करते हुए दर्शन कर सकते हैं मैं जैसे ही स्तुति गाना शुरू करूंगा आप उस छिद्र के पास अपनी नजरें ले आना वहां से आप मां की उपस्थिति को साक्षात देख पाएंगे
अब रात में जैसे ही मंदिर के कपाट बंद हुए केंदु कलाई जी अपनी आंखों पर पट्टी बांधकर स्तुति गाने लगे और उनके ऐसा करते ही मां साक्षात उनके सामने प्रकट हो गई लेकिन इससे पहले कि वोह नृत्य करना शुरू करती मां को एहसास हो गया कि उनके साथ धोखा हुआ है जिसके चलते उन्होंने पहले केंदु कलाई का सिर धर से अलग कर दिया और फिर छेद से देख रहे राजा नर नारायण को यह श्राप दिया था कि आगे से उनके राजवंश का राज परिवार का कोई भी सदस्य इस क्षेत्र में भटकने की कोशिश भी करेगा तो मैं उसका सर्वनाश कर दूंगी इतना ही नहीं मैं उसके पूरे वंश को
मिट्टी में मिला दूंगी जिस पल राजा नर नारायण को यह श्राप मिला उसके अगले ही पल उन्होंने इस क्षेत्र को छोड़ दिया और तब से लेकर आज तक भी राजा नरनारायण के वंशज यानी कि कूच बिहार डायनेस्टी के वंशज मां कामख्या के उस क्षेत्र से गुजरते हैं तो चाहे पैदल ट्रेन बस या फिर कार से तो वो हमेशा अपने पास एक छतरी रखते हैं और छतरी को खोल लेते हैं ताकि गलती से भी उनकी दृष्टि मां का काख की तरफ ना जाए वहीं इस कहानी से जुड़ी अब एक बात और भी सुनने को मिलती है कि मां कामख्या ने केंदु कलाई जी का सिर धर से अलग नहीं किया था बल्कि उन्हें पत्थर की मूरत में परिवर्तित कर
दिया था वैसे राजा नर नारायण के वंशजों और पूज बिहार डायनेस्टी के बारे में और भी कुछ सुनने को मिलता है दरअसल इस क्षेत्र में ब्रह्मपुत्र रिवर हेरिटेज सेंटर है जहां पर एक सुंदर सा म्यूजियम बनाया गया है इस म्यूजियम में कई ऐतिहासिक चीजों को संजो कर रखा गया है और कुछ ऐसे भी एंटीक पीस है जो बहुत बहुत अद्भुत है इसके अलावा यहां कामख्या क्षेत्र के इतिहास के बारे में भी बहुत कुछ देखने और पढ़ने को मिलता है जिसके अनुसार राजा नर नारायण से जुड़ी यह कथा पहले किसी को नहीं पता थी यानी कि पहले ऐसी कोई कथा थी ही नहीं दरअसल कूच बिहार डायनेस्टी वैष्णव संप्रदाय में
परिवर्तित हो चुकी थी यानी कि उस डायनेस्टी के सभी लोग भगवान विष्णु के उपासक बन चुके थे लेकिन मां कामख्या क्षेत्र में रहने की वजह से उनके पास कोई विकल्प नहीं बचा था इसलिए उन्होंने यह एक काल्पनिक कथा बनाई और उसे प्रजा में फैला जिससे लोगों तक यह संदेश पहुंच जाए कि वो लोग मां कामाख्या के दर्शन नहीं कर सकते इससे उनकी प्रजा के मन में उनके लिए किसी भी तरह का कोई बैर नहीं रहेगा और वह विष्णु जी के उपासक बनकर आसानी से रह सके असल में वास्तविकता यह थी कि विष्णु जी की उपासना करने के कारण पूच बिहार राज परिवार ने हमेशा के लिए माता की उपासना ही छोड़
दी थी और समय रहते श्राप की ये अफवा फैला दी ताकि वैष्णव संप्रदाय का अनुसरण करने में उन्हें कोई आपत्ति ना हो अी सारी बातें ब्रह्मपुत्र हेरिटेज सेंटर में एक फ्रेम पर लिखी हुई है अगर आप मां कामाख्या के दर्शन करने जाते हैं तो इस म्यूजियम को जरूर एक्सप्लोर करने जाना बाकी आपको बता दें कल्की पुराण और योगिनी तंत्र के अनुसार मां कामाख्या का मंदिर मांत्र कों तांत्रिकों और शक्ति स्थान के उपास कों के लिए बहुत खास है क्योंकि ये अद्भुत मंदिर तंत्र साधना का गण माना जाता है कहा जाता है कि इस शक्तिशाली मंदिर में ऐसे सिद्ध साधु तांत्रिक और अघोरी रहते हैं जो अपनी
साधना के बल पर किसी भी व्यक्ति की किस्मत पलक झपकते ही बदल सकते इतना ही नहीं यहां के तांत्रिक भूत प्रेत और आत्मा जैसी कोई बुरी शक्तियों पर दूर भगाने की विद्या बहुत अच्छे से जानते हैं लेकिन वो अपनी इन खतरनाक शक्तियों का इस्तेमाल बहुत ही सोच समझकर करते हैं शायद यही वजह है कि भक्त यहां पर शादी बच्चे धन और भी ना जाने कई तरह की समस्या लेकर कामख्या मंदिर में दर्शन करने के लिए आते हैं यहां आपको तंत्र मंत्र से जुड़ी बहुत सारी चीजें देखने को मिलेंगे इसलिए बाहर से तांत्रिक भी ज्यादातर तंत्र मंत्र की वस्तुओं से लेकर यहां पर जाते हैं अब
देखिए मान्यताओं के अनुसार कामख्या देवी मंदिर में हर किसी की कामना सिद्ध होती है इसी वजह से इसे कामख्या देवी मंदिर कहा जाता है मां कामाख्या की सवारी सर्प है वहीं इस मंदिर से कुछ ही दूरी पर उमानंद भैरव का मंदिर भी है यह मंदिर ब्रह्मपुत्र नदी के बीच में एक टापू पर स्थित है उमानंद भैरव ही इस शक्तिपीठ के भैरव हैं इनके दर्शन के बिना कामख्या देवी की यात्रा पूरी भी नहीं मानी जाती hg
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