कैसे हुई थी राजा जनक की मृत्यु ? राजा जनक के बाद मिथिला राज्य का क्या हुआ ?
मित्रों रामायण में जितने पात्र हैं उतनी ही उनकी कहानियां भी हैं उन्हीं पात्रों में से एक है राजा जनक जिन्हें आप सभी देवी सीता के पिता के रूप में जानते हैं लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि राजा जनक की मृत्यु कैसे हुई थी और राजा जनक की मृत्यु के बाद मिथिला राज्य का क्या हुआ नमस्कार दर्शकों स्वागत है आपका द डिवाइन टेल्स पर देखिए राजा जनक की मृत्यु के बारे में जानने से पहले हम आपको उनसे जुड़ी कुछ बातें बताते हैं कहते हैं कि मिथिला के राजा जनक के पिता नीमी थे नि ही मिथिला के सबसे बड़े राजा थे जो एक चावक के बेटे और मनु के पौत्र माने जाते हैं कहते हैं
राजा जनक की उत्पत्ति उनके पिता निमी के मृत्य शरीर से हुई थी जिस वजह से उन्हें जनक कहा जाता है लेकिन हां उनकी माता के बारे में कहीं जिक्र नहीं मिलता बता दें कि राजा जनक का असली नाम सिर ध्वज था और उनके भाई कुष ध्वज थे कई सालों तक महाराज जनक की कोई संतान नहीं थी फिर एक बार उन्होंने अपनी प्रजा को अकाल से बचाने के लिए खेतों में हल चलाया तब उन्हें धरती के अंदर संदूक में एक सुंदर कन्या मिली जो देवी लक्ष्मी का अवतार थी जिनका नाम सीता रखा गया वहीं कुछ सालों बाद महाराज जनक की पत्नी महारानी सुनैना ने एक पुत्री को जन्म दिया जिनका नाम उर्मिला था इसके साथ ही महाराज जनक के छोटे भाई कुश ध्वज की दो पुत्रियां हुई जिनका नाम मांडवी और श्रुत कीर्ति रखा था बता दें कि एक बार भगवान परशुराम ने उनसे खुश होकर देवों के देव महादेव का धनुष धरोहर के रूप में दिया था जिसे सीता माता के स्वयं भर में शर्त के तौर पर रखा गया था
उसी धनुष को उठाकर मित्रों प्रभु श्री राम ने माता जानकी यानी सीता जी से विवाह किया था अब आपको बताते हैं उनके मृत्यु के बारे में देखिए पद्म पुराण की एक कथा की माने तो पौराणिक काल की बात है राजा जनक ने जैसे ही योग बल से अपने शरीर का त्याग किया वैसे ही एक सुंदर सजा हुआ विमान आ गया और महाराज जनक दिव्य देह दारी सेवकों के साथ उस पर चढ़कर चले जा रहे थे वो विमान जनक महाराज को समनी पुरी के पास ले जा रहा था जैसे ही विमान वहां से आगे बढ़ने लगा वैसे ही तेज आवाज से राजा को हजारों मुखं से निकली हुई दर्द भरी गुहार सुनाई पड़ी पुण्य आत्मा राजन आप यहां से जाइए नहीं आपके शरीर को छूकर आने वाली हवा की छुअन पाकर हम परेशानियों से पीड़ित नर्क के प्राणियों को बड़ा ही सुख मिल रहा है
धर्म के रास्ते पर चलने वाले और दयालु राजा ने दुखी जीवों की पुकार सुनकर फैसला किया कि जब मेरे यहां रहने से इन्हें सुख मिलता है तो उन्होंने मृत्यु के देवता यमराज से कहा कि मैं ही रहूंगा मेरे लिए यही सुंदर स्वर्ग है जिसके बाद राजा वहीं पर ठहर गए तब मृत्यु के देवता यमराज ने उनसे कहा यह जगह तो हत्यारे पापियों के लिए है हिंसक दूसरों पर कलंक लगाने वाले लुटेरे पत्नी का त्याग करने वाले दोस्तों को धोखा देने वाले दम भी द्वेष और हंसी उड़ाने वाले मनवाणी शरीरों कभी भावना को याद ना करने वाले जीव यहां पर आते हैं और उन्हें नर्क में डालकर मैं भयंकर सजाएं देता हूं हे राजन आप तो पुण्य आत्मा हो यहां से दिव्य लोक यानी स्वर्ग में जाओ अब मित्रों धर्मराज की ये बातें सुनने के बाद राजा जनक ने कहा मेरे शरीर से छूके गई हुई हवा सभी को सुख पहुंचा रही है तब मैं कैसे जाऊं आप उन्हें इस दुख से आजाद कर दें तो मैं भी सुख पूर्वक स्वर्ग में चला जाऊंगा जिसके बाद यमराज ने पापियों की तरफ इशारा करते हुए कहा ये कैसे आजाद हो सकते हैं
उन्होंने बड़े-बड़े पाप किए हैं इस पापी ने अपने पर भरोसा करने वाले मित्र पत्नी का बलात्कार कर दिया इसलिए इसको मैंने लोह शंकु नाम के एक नर्क में डालकर 10000 सालों तक पकाया है अब इसे पहले सूअर की और फिर मनुष्य की योनि मिलेगी और वहां यह नपुंसक होगा यह दूसरा जो आप देख रहे हैं यह जबरदस्ती व्यभिचार में प्रवत था इसलिए यह 100 सालों तक ररव नर्क में पीड़ा भोके का इस तीसरे ने दूसरे का धन चुराकर भोगा था इसलिए दोनों हाथ काटकर इसे पु शोणित नामक के नर्क में डाला जाएगा इस तरह ये सभी पापी नर्क के भोगी हैं आप अगर इन्हें छुड़ाना चाहते हैं तो आप अपना पुण्य अर्पण कर दें एक दिन सुबह-सुबह अपने साफ मन से मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रघुनाथ जी का ध्यान किया था और राम नाम का उच्चारण किया था बस वही पुण्य इन्हें दे दो उससे ही इन सबका उद्धार हो जाएगा अब मित्रों धर्मराज की बातें सुनने के बाद राजा जनक ने बिना देरी किए अपने जीवन भर के सारे पुण्य दे दिए और इसके असर से वो सारे प्राणी नर्क यातना से तुरंत छूट गए और दया के समुद्र महाराज जनक का गुण गाते हुए दिव्यलोक को चले गए तब महाराज जनक ने यमराज से पूछा हे धर्मराज जब धार्मिक पुरुषों का यहां आना ही नहीं होता तब फिर मुझे यहां क्यों लाया गया है
इस पर यमराज ने कहा राजन आपका जीवन तो पुण्य से भरा हुआ है लेकिन एक दिन तुमने छोटा सा पाप किया था आपने एक दिन चढती हुई गौ माता को रोक दिया था उसी पाप की वजह से आपको नर्क का मुख देखना पड़ा अब आप उस पाप से मुक्त हो गए हैं और इस पुण्य दान से आपका पुण्य और ज्यादा पड़ गया यदि आप इस रास्ते से ना आते तो इन बेचार का नर्क से कैसे उद्धार होता आप जैसे दूसरों के दुख से दुखी होने वाले दया धाम महात्मा दुखी प्राणियों का दुख हरने में ही लगे रहते हैं ईश्वर कृपा सागर है
पाप का का फल भुगतान के बहाने इन दुखी जीवों का दुख दूर करने के लिए ही इस संयम के रास्ते से उन्होंने आपको यहां भेज दिया है अब ये सारी बातें हो जाने के बाद राजा जनक धर्मराज को प्रणाम करके परमधाम की यात्रा पर चले गए इसी के साथ दोस्तों अब आपको बताते हैं कि अपने पिताजी की तरह ही देवी सीता के साथ भी एक घोर पाप हुआ था अब आप सोच रहे होंगे आखिर माता के साथ कौन सा पाप हुआ था तो चलिए जानते हैं मित्रों एक बार देवी सीता अपने बचपन में अपनी सखियों के साथ बगीचे में खेल रही थी उसी बगीचे में एक तोते का सुंदर जोड़ा पेड़ पर बैठा था वो तोते का जोड़ा प्रभु राम और माता सीता के बारे में बातें कर रहा था वही माता जानकी अपने भविष्य के बारे में और जानने के लिए उत्सुक थी जिसके बाद उन्होंने अपनी सहेलियों से कहकर दोनों पंछियों को पकड़वा लिया जब वो तोते का जोड़ा उनके समक्ष आया तो उन्होंने कहा वो सीता कोई और नहीं बल्कि मैं ही हूं जब तक मेरी शादी नहीं हो जाती तुम दोनों मेरे साथ इसी राजमहल में रहोगे और तुम्हें सारी सुख सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी जिसके बाद नर तोत ने कहा हे देवी हम आकाश के पक्षी हैं इसलिए पिंजरे में बंद रहकर हम अपना जीवन नहीं गुजार पाएंगे हम पर दया करें और हमें मुक्त कर दें उस नर तोते ने आगे कहा हे जनक पुत्री मेरी पत्नी गर्भवती है
इसलिए ऐसे समय पर उसे जाने दें हम दोनों एक दूसरे से अलग होकर रह नहीं पाएंगे लेकिन अपने स्वार्थ की भावना के कारण देवी जानकी ने उसकी एकना सुनी जिसके बाद मादा तोता को बहुत क्रोध आ गया और उसने देवी सीता को श्राप दे दिया साथ ही उसके पति नर तोते ने भी श्राप दिया कि आप भी अपनी गर्भावस्था के समय अपने पति से दूर रहेगी और उसने कुछ समय बाद ही अपने प्राण त्याग दिए थे बता दें मित्रों यह वही नर तोता था जो अपने अगले जन्म में धोबी के रूप में जन्म लेता है और देवी सीता के चरित्र पर सवाल खड़ा करता है जिस कारण जनक पुत्री को प्रभु राम त्याग देते हैं और उन्हें अपने गर्भावस्था के समय अपने पति से दूर रहना ही पड़ता है उन तोते के जोड़े की तरह माता को भी अपने पति भगवान राम जी से वियोग सहना पड़ा इसी के साथ आइए अब जानते हैं
कि माता सीता ने क्यों लक्ष्मण जी के सामने खींची थ रेखा था मित्रों बता दें कि लक्ष्मण जी भगवान श्री राम के छोटे भाई तथा शेष ना के अवतार थे लक्ष्मण जी प्रभु राम व सीता माता को अपने माता-पिता के समान मानते थे किंतु एक पल उनके जीवन में ऐसा आया जब उन्होंने स्वयं को एकदम कमजोर महसूस किया था यह वो पल था जब माता सीता ने उनके सामने सीता रेखा खींच दी थी और उन्हें सीमाओं में बांध दिया था लंका युद्ध खत्म होने के बाद भगवान श्री राम के राज्य अभिषेक होने के कुछ दिनों के उपरांत अयोध्या की प्रजा द्वारा माता सीता की पवित्रता पर कई प्रश्न उठाए जाने लगे और जब इस बात का पता मां जानकी को चला तो उन्होंने स्वयं ही प्रभु श्रीराम के द्वारा अपना त्याग करने तथा वन में जाने का फैसला लिया भगवान राम ने उन्हें रोकने का बहुत प्रयत्न किया लेकिन माता सीता उन्हें अपने वचनों में बांधकर वन की तरफ प्रस्थान कर जाती हैं इस बात की जानकारी किसी को नहीं दी गई थी केवल लक्ष्मण जी को मां सीता को वन में छोड़ आने का आदेश मिला था वहीं जब माता सीता भगवान लक्ष्मण के साथ रथ में बैठकर वन में पहुंच गई तब उन्होंने लक्ष्मण जी को रथ रोकने और उन्हें वहां से वापस लौट जाने को कहा इस पर शेषनाग अवतरित लक्ष्मण विलाप करने लगे तथा वापस जाने से मना कर देते हैं
उन्होंने जानकी मां से कहा कि वे उन्हें अकेले वन में नहीं जाने देंगे और वे भी उनके साथ चलेंगे तथा एक पुत्र की तरह उनकी सेवा करेंगे मित्रों लक्ष्मण जी की ये बात सुनकर माता सीता ने उन्हें समझाने का बहुत प्रयत्न किया तथा वापस लौटकर भगवान श्री राम की सेवा करने को कहा लेकिन भगवान लक्ष्मण वहां से जाने को तैयार नहीं थे वो अपनी बा पर अड़क थे कि वे यहां से नहीं जाएंगे तथा मां सीता की सेवा करेंगे अब जब जानकी मां ने देखा कि लक्ष्मण जी ऐसे नहीं मानेंगे तब उन्होंने श्रीराम के अनुज के सामने एक पेड़ की डाली रखी और कहा कि जिस प्रकार एक दिन उन्होंने माता सीता के लिए रेखा खींची थी और उसे पार करने से मना किया था उसी तरह माता ने भी लक्ष्मण जी के सामने रेखा खींची तथा मां के नाते उन्हें आदेश तथा अपनी शपथ देती हैं
कि वे इसे लांग कर उनके पीछे नहीं आएंगे इतना कहकर भगवती माता उस डाली को पार कर के वन की तरफ चली जाती हैं लक्ष्मण जी को अपनी माता के समान मां सीता से आदेश मिला था जिसके चलते वे बिल्कुल निरूपा है थे यह वोह समय था मित्रों जब वे चाहकर भी उस रेखा को पार नहीं कर सकते थे इसलिए उन्हें ना चाहते हुए भी पुनः अयोध्या लौटना पड़ा तो मित्रों आज फिलहाल बस इतना ही अगर आपको इसके बारे में और डिटेल्स में जानना है तो हमें कमेंट सेक्शन में जरूर बताएं कैसी लगी कमेंट करके बताएं तब तक के लिए BAS
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कैसे हुई थी राजा जनक की मृत्यु ?
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