
शनिदेव | Shani dev ki katha

Shani dev ki katha #shanidev #bhakti #bhaktisong
आज से लाखों वर्ष पहले त्रेता युग में जब सूर्यदेव ने विश्वकर्मा देव की पुत्री देवी संज्ञा के साथ विवाह रचाया पर विवाह के बाद सूर्यदेव जब भी देवी संज्ञा के समीप आते तो देवी संज्ञा सूर्यदेव के तेज को सहन नहीं कर पाती समय यूं ही बिता गया और फिर कुछ वर्षों के बाद देवी संज्ञा ने व्यवस्था और यमुना जैसे तेजस्वी संतानों को जन्म दिया पर अक्सर संज्ञा सूर्यदेव के तेज से परेशान ही रहती और एक दिन देवी संज्ञा ने फैसला किया कि व सूर्यलोक से काफी दूर जाकर तपस्या कर सूर्यदेव के तेज को झेलने योग्य बनेंगी तभी सूर्यलोक वापस लौटें पर उन्हें अपने नवजात संतानों की भी देखरेख करनी थी और साथ ही देवी संज्ञा चाहती थी कि उनके सूर्य लोक छोड़ने की बात सूर्य देव को पता ना चले फिर देवी संज्ञा ने अपने सिद्धि से अपने ही जैसी दिखने वाली खुद की छाया प्रकट की और उनका नाम सवर्ण रखा और उन्हें सारी जिम्मेदारी सौंपकर तपस्या करने किसी अज्ञात वास पर निकल पड़ी इसके बाद सूर्यदेव जब भी अपनी पत्नी के समीप आते तो उनके तेज से देवी संवरण यानी कि देवी छाया पर उनके तेज का कोई असर ना होता और दोनों खुशी-खुशी अपने मिलन का आनंद उठा लेते सूर्यदेव देवी छाया को ही अपनी पत्नी संज्ञा समझते रहे और समय यूं ही बीतता चला गया फिर धीरे-धीरे वैवस्वत मनु यमराज और यमुना भी बड़े हो गए जिन्हें कि सूर्यदेव ने उनके काबिलियत के अनुसार उनको अपना अपना कार्यभार सौंप दिया और खुद भी अपने कार्य में व्यस्त रहने लगे जिससे कि देवी छाया अकेली पड़ गई जिसके बाद देवी छाया ने महादेव की तपस्या करने का निश्चय किया और फिर महादेव की तपस्या में पूरी तरह से लिप्त हो गई फिर यूं ही तेज धूप में तपक भूखे रहकर तपस्या करते करते कई माह बीत गए और साथ ही देवी छाया ने तपस्या करते समय ही गर्भ धारण कर लिया था और इसी बीच जब महादेव देवी छाया के सम्मुख प्रकट हुए और उनसे अपना वरदान मांगने को कहा तब देवी छाया ने महादेव से अपने लिए एक असल जीवन का वरदान मांग लिया क्योंकि वह सिर्फ देवी संज्ञा की एक छाया मात्र थी
दरअसल देवी संज्ञा के एक अड़ से से सूर्यलोक वापस ना लौटने के कारण अब देवी छाया के अंदर एक असल जीवन पाने की इच्छा जागृत हो चुकी थी फिर महादेव तथास्तु कहकर अंतर्धान हो गए फिर कुछ महीनों बाद देवी छाया ने एक दिव्य शिशु को जन्म दिया पर वह दिव्य शिशु को पोषित और काले रंग का हुआ जिसे देख देवी छाया चिंता में डूब गई पर कुछ समय बाद उन्होंने खुद के मन को समझा लिया दरअसल देवी छाया के भूखे प्यासे और कड़ी धूप में तपस्या करने के कारण ही उनके शिशु का रंग काला हुआ साथ ही इसके पीछे उनके छाया होने का भी प्रभाव उनके शिशु पर ही पड़ा और यह दिव्य काले रंग का शिशु कोई और नहीं बल्कि स्वयं शनिदेव ही थे फिर देवी छाया शनिदेव का लालन पालन यूं ही करती रही और एक दिन सूर्यदेव सूर्यलोक में स्थित अपने महल अपनी पत्नी से मिलने के लिए आए जहां उनकी पत्नी ने उन्हें पुत्र शनि से मिलवाया और पुत्र शेण को सीधे सूर्यदेव के गोद में रख दिया पर जैसे ही सूर्यदेव की नजर पुत्र शनि पर गई व पूरी तरह से हैरान हो गई और क्रोधित भी फिर पुत्र शनि को देवी छाया के गोद में वापस रखते हुए सूर्यदेव ने देवी छाया को बहुत ही धुत कारा सूर्यदेव ने कहा कि इस शिशु में उनके कोई भी गुण मौजूद नहीं ही उनकी तरह तेज ही स्वस्थ और ना ही रंग रूप किसी भी प्रकार से यह उनका पुत्र हो ही नहीं सकता सूर्यदेव ने पुत्र को अपना पुत्र Kने से साफ मना कर दिया और गुस्से में वहां से चले गए जिसके बाद देवी छाया अत्यंत ही निराश हो गई
और यही वह दिन था जब शनिदेव और सूर्यदेव के बीच शत्रुता की एक बड़ी शुरुआत हो चुकी थी सूर्यदेव ने अब अपनी पत्नी छाया से दुरी बना लिया था फिर समय बीतने के अनुसार शनिदेव अब थोड़े बड़े हो चुके थे और अकेली पड़ चुकी छाया का एकमात्र सहारा भी बन चुके थे शनिदेव पैदासी ताकतवर थे और इसका एकमात्र कारण उनके गर्भ में होने के समय देवी छाया का महादेव के लिए तपस्या करना था तपस्या के प्रभाव के कारण ही शनिदेव पैदा इसी ताकतवर थे ताकतवर होने के साथ-साथ वे थोड़े गुस्सैल और शरारती भी थे बेहद कम उम्र होने के बावजूद भी उन्होंने कई गंधर्व को युद्ध में अकेले ही परास्त कर दिया था यहां तक कि देवताओं को भी टक्कर देने लगे थे देव अपने घस्स का प्रयोग अपनी ताकत के साथ मिलाकर किया करते और इसीलिए व बड़े से बड़े बड़े गंधर्व और देवताओं को अपनी ताकत का लोहा मनवा चुके थे शनिदेव के बचपन से ही इतने कठोर बन जाने के पीछे उनके पिता सूर्यदेव के प्रति उनके मन में पल रहा क्रोध ही था और उस समय शनिदेव का एकमात्र लक्ष्य सूर्यदेव से भी ज्यादा शक्तिशाली बनकर उनके घमंड को चकनाचूर करना था फिर समय जैसे-जैसे बीतता जाता ण देव के अंदर सूर्यदेव के प्रति क्रोध और घृणा की भावना उतनी ही बढ़ती जाती और इसी प्रकार शनिदेव अब युवा भी हो चुके थे फिर देवी छाया ने शनिदेव के दिन पर दिन बरते गुस्से को शांत करने के लिए उनका विवाह चित्ररथ नाम की कन्या से करवा दिया जो कि परम तेजस्विनी और साधवी थी विवाह के बाद शनिदेव सचमुच काफी शांत रहने लगे थे और एक बार जब शनिदेव अपने ध्यान मुद्रा में बैठे हुए थे तब उनकी पत्नी चित्ररथ ने शनिदेव के सम्मुख पुत्र प्राप्ति की इच्छा व्यक्त की जिसका शनिदेव ने कोई उत्तर नहीं दिया तमाम बा अपनी इच्छा व्यक्त करने के बावजूद भी देवी चित्ररथ को शनिदेव की तरफ से कोई जवाब ना मिला फिर देवी चित्ररथ को शनिदेव का यह व्यवहार अपमानजनक लगा और फिर देवी चित्ररथ क्रोध में आकर शनि देव को श्राप दे बैठी देवी चित्ररथ के श्राप के दौरान शनिदेव यदि किसी को मात्र सिर्फ देख भी ले तो उसकी तबाई निश्चित थी यानी कि देवी चित्ररथ ने उन्हें किसी को नजर उठाकर ना देखने का श्राप दे दिया ध्यान मुद्रा से उठ उठने के बाद शनिदेव को अपने भूल का आभास हुआ और उन्होंने अपनी पत्नी को मनाने की बेहद कोशिश की जिसके बाद देवी चित्ररथ को भी अपनी गलती का एहसास हुआ पर श्राप को निष्फल करने की शक्ति देवी चित्ररथ के पास ना थी और फिर इस घटना के बाद से शनिदेव अपना सिर नीचे करके चलने लगे फिर यह बात पूरे ब्रह्मांड में तेजी से फैल गई और यह बात असुरों के गुरु शुक्राचार्य को भी पता चली जिसके बाद व असुरों के सेनापति राहु के साथ शनिदेव के सम्मुख प्रकट हुए और शनिदेव के इस श्राप को अपनी शक्ति बनाकर देवताओं के खिलाफ इस्तेमाल करने की सलाह दी जिसके बाद शनिदेव ने शुक्राचार्य को खुद के स्वार्थ के लिए दूसरों का इस्तेमाल ना करने की सलाह देते हुए साफ मना कर दिया और शुक्राचार्य समेत राहु को वापस जाने की सलाह दे दी इसी बीच देवी संज्ञा पृथ्वी से सूर्य देव के तेज को झेलने योग्य बनकर सूर्यलोक वापस लौटाए और फिर उन्हें अपने पीठ पीछे हुए सभी करतूतों का पता चल गया जिसके बाद वे देवी छाया पर अत्यंत ही क्रोधित हुई और सूर्यदेव को सब कुछ सच सच बता दिया जिसके बाद सूर्यदेव ने तो देवी संज्ञा के ऊपर अपना क्रोध व्यक्त किया ही साथ ही उन्होंने देवी छाया और शनि देव को सूर्य लोक से निष्कासित और अपमान कर बाहर निकाल दिया जिसके बाद शनि देव और माता छाया पृथ्वी की ओर चल पड़े और एक घने वह सुंदर से वन में निवास करने लगे वन में रहते-रहते शनिदेव की मित्रता काक राज से हुई और इस बेहद खूबसूरत वन में शनिदेव माता छाया के संग खुशी-खुशी रहने लगे थे
फिर समय बीत ता गया और कुछ वर्षों के बाद सूर्यदेव को शनिदेव के इस निवास स्थान का पता चला जिसके बाद वे शनिदेव के जान के दुश्मन बन बैठे और शनिदेव के निवास स्थान वाले वन में सूर्यदेव ने अपने मायावी तेज से आग लगा दी जिसके बाद देवी छाया तो एक परछाई होने के कारण उस आG से बचकर बाहर निकल आई लेकिन शनिदेव उस मायावी आग के चपेट में पूरी तरह से फंस चुके थे और फिर देवी छाया मदद की गुहार लगाने लगी फिर अचानक काकरा ने वन के ऊपर से आकर शनिदेव को अपने पंजों में जकड़ कर काफी दूर अपने काक लोक ले गए और फिर काक लोक में आने के बाद काकरा ने शनिदेव को अपनी माता से मिलवाया और काक राज की माता ने शनिदेव को काक लोक में ही रहने की विनती की जिस परे शनिदेव ने भी सहमति जताई काकरा की माता ने शनिदेव को अपने पुत्र की तरह लाड़ प्यार से रखा फिर यूं ही समय बिता गया और एक दिन यह बात इंद्रदेव को पता चली जिसके बाद शनिदेव और काक राज की अनुपस्थिति में इंद्रदेव ने काक लोक पर हमला कर दिया जिसके फल स्वरूप तमाम काक समेत काकरा की माता की मृत्यु हो गई और फिर जब यह बात शनिदेव और काकरा को पता चली तो वे अत्यंत ही क्रोधित हो उठे और शनिदेव आग बबूला होते हुए अपनी ताकत को जगाते हुए उस ताकत का कुछ हिसा काक राज पर समाहित कर उन पर सवार होकर स्वर्ग लोक की तरफ प्रस्थान कर बैठे और यहां स्वर्ग लोक पर इंद्रदेव समेत सभी देवता नृत्य और सोमरस का आनंद उठा ही रहे थे कि तभी उन्हें दूर से बेहद जोरदार गर्जना भरता हुआ तीव्र गति से सामने आता हुआ
काल के समान काख और उस पर सवार नजर आया जिन्हें देख स्वर्ग लोक में भगदड़ मच गई और देवता युद्ध के लिए अस्त्र शस्त्र लिए तैयार हो गए लेकिन देव स्वर्ग पर कदम रखते ही अपने तिरछी नजर से देवताओं को तो पहले शक्तिहीन बना दिया फिर अपने आंखों की तेज रोशनी से उन पर प्रहार कर उन्हें फर्श पर पटक दिया इंद्रदेव समेत सभी देवता शनि देव के सामने इतने कमजोर हो चुके थे कि वे अपने अस्त्र शस्त्र को भी उठा पाने में असमर्थ थे फिर शनिदेव ने देवताओं के ही अस्त्र शस्त्र से उन्हीं को बुरी तरह से घायल करना शुरू कर दिया जिसके बाद सभी देवताओं को स्वर्ग से किसी भी तरह अंतर्धान होकर भागना पड़ा इंद्रदेव समेत सभी देवताओं ने शनिदेव के भय से कहीं दूर जाकर सूर्यदेव को याद किया और सभी सूर्यदेव से शनिदेव को जलाकर भस्म कर देने की विनती करने लगे जिसके बाद स्वर्ग लोक में सूर्यदेव का आगमन हुआ और सूर्यदेव ने शनिदेव को यह सब रोकने का आदेश दिया जिस पर शनिदेव ने साफ इंकार कर दिया फिर सूर्यदेव ने शनिदेव के ऊपर अपने मायावी घातक किरणों से प्रहार कर दिया जिसे कि शनिदेव देव ने बीच में ही अपने आंखों की भयंकर ऊर्जा से तबाह कर दिया और साथ ही सूर्यदेव के ऊपर अपनी कुदृष्टि भी डाल दी जिससे कि सूर्यदेव बिल्कुल ठंडे और काले पड़ गए जिसके फल स्वरूप पूरे आकाश गंगा की रोशनी विलुप्त हो
गई और हर जगह सिर्फ अंधेरा ही अंधेरा छा गया जिसके बाद सूर्यदेव को भी स्वर्ग छोड़कर भागना पड़ा फिर सभी देवता अपने बचे खुची शक्तियों का इस्तेमाल कर किसी भी प्रकार पृथ्वी में स्थित कैलाश पहुंचे और महादेव के सम्मुख सारी बात बताकर रो पड़े जिसके बाद महादेव ने तो सबसे पहले सभी देवताओं को उनके करतूतों के लिए फटकार लगाई और फिर स्वर्ग समेत देवताओं की शक्तियों को वापस दिलाने का भी भरोसा दिलाया फिर महादेव ने अपने कुछ शिव गणों की टुकड़ियों को देवताओं के साथ स्वर्ग लोक रवाना किया जिसके बाद स्वर्ग लोक पहुंचते ही देवताओं ने शनिदेव को युद्ध के लिए ललकारा जिसके बाद शनिदेव युद्ध के लिए देवताओं और शिव गणों के आगे उपस्थित हुए और और फिर शिवगणेश देव के ऊपर टूट पड़े जिसके बाद शनिदेव शिवगणेश का प्रयोग करके उन्होंने सबसे पहले तो शिव गणों को शक्तिहीन और सुस्त बना दिया जिससे कि वे जमीन पर गिर पड़े फिर शनिदेव ने अपने कुदृष्टि से इंद्रदेव और सूर्यदेव को वहीं मूर्छित कर दिया और यह देख बाकी देवता स्वर्ग लोक से अंतर्धान हो गए फिर ण देव ने इंद्रदेव से देवराज का राज मुकुट छीनकर अपने पास रख लिया और फिर इंद्रदेव समेत सूर्यदेव को स्वर्ग में ही अपना बंदी बनाकर बंदी गृह में डाल दिया और यहां अग्निदेव और वरुण देव समेत बाकी देवता स्वर्ग लोग से दोबारा से भागते हुए कैलाश महादेव के पास आ पहुंचे और महादेव को सारी बात बताते हुए उन्हें स्वयं स्वर्ग लोग चलकर देव को समाप्त करने की विनती करने लगे इतना सुनते ही महादेव कैलाS अंतर्धान हो गए
और देवता देखते ही रह गए और यहां स्वर्ग लोक पर शनिदेव पूरी तरह से अपना अधिपत्य जमाकर बैठ चुके थे एवं इंद्रदेव समेत सूर्यदेव को एक बड़ा दंड देने की तैयारी में जुट चुके थे कि अचानक स्वर्ग लोक में एक सैलाब सा आ गया पूरा स्वर्ग थर्रा उठा फिर आगमन हुआ देवों के देव महादेव का जिसके बाद महादेव ने शनिदेव को यह सब रोकने का आदेश दिया पर शनिदेव ने अपना सिर झुकाए हुए ही इंकार कर दिया फिर महादेव ने शनिदेव को युद्ध करने को कहा जिसके बाद शनिदेव अपने सम्मुख इतनी बड़ी शक्ति देख घबरा गए और जल्दबाजी कर बैठे शनिदेव ने सीधा अपनी कुदृष्टि महादेव पर ही डाल दी जिसके जवाब में महादेव ने अपने तीसरे नेत्र को शनिदेव की तरफ थोड़ी सी खोल दी जिसके फल स्वरूप महादेव के तीसरे नेत्र से निकले थोड़े से ही ऊर्जा से ण देव का शरीर बीच से फट गया और व बुरी तरह से घायल हो गए फिर व काफी ज्यादा तेज झटके से पृथ्वी की तरफ गिर फिरते चले गए शनिदेव के मूर्छित होते ही देवताओं की शक्ति वापस आ गई और यहां महादेव के त्रिनेत्र से निकले थोड़े से ही ऊर्जा में इतनी ताकत थी कि शनिदेव स्वर्ग से नीचे की तरफ गिरते हुए पृथ्वी काफी तीव्र गति से पहुंच गए और तमाम पेड़ पौधों को ध्वस्त करते हुए एक पीपल के पेड़ में जा अटके शनिदेव पूरी तरह से अधमरा हो चुके थे ऐसा लगता था जैसे कि व अब नहीं रहे पर कुछ देर बाद उन्हें होश आया और फिर उन्हें महादेव के शक्ति का एहसास हुआ जिसके बाद शनिदेव महादेव से काफी ज्यादा प्रभावित हुए और उन्हें अपना गुरु मानते हुए पीपल के पेड़ में वैसे ही पड़े पड़े महादेव की तपस्या में लीन हो गए शनिदेव में इतनी भी ताकत नहीं बची थी कि व
थोड़ा हील भी सके फिर काफी वर्षों तक पीपल के पेड़ में ऐसे ही पड़े पड़े घोर तपस्या करने के बाद महादेव शनिदेव से काफी प्रसन्न हुए और महादेव शनिदेव के क्षमता और साहस से तो पहले से ही काफी प्रभावित थे इसलिए उन्होंने शनिदेव को पीपल के पेड़ से अंतर्धान कर सीधे अंतरिक्ष में ला खड़ा कर दिया और पहले जैसे स्वस्थ भी बना दिया साथ ही महादेव ने शनिदेव को एक दिव्य त्रिशूल भी भेंट किया जिसके बाद महादेव ने शनिदेव को एक लोक भी भेंट किया जिसको महादेव नेण लोक नाम दिया और आखिर में महादेव ने समस्त ब्रह्मांड के देवी देवताओं की मौजूदगी में शनिदेव को पूरे ब्रह्मांड का न्यायाधीश घोषित किया यानी कि के देवता और यह देख सूर्यदेव समेत सभी देवताओं को शनि देव के साथ किए गए क्रूरता को लेकर अपनी गलती का एहसास हुआ फिर अपनी गलती का पश्चाताप करने के लिए सूर्यदेव पृथ्वी जाकर देवी छाया को सूर्य लोक वापस लेकर आए और खुशी खुशी रहने लगे
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