श्रवण कुमार: आदर्श पुत्र की प्रेरक कहानी

श्रवण कुमार का नाम आज भी भारतीय संस्कृति में आदर्श पुत्र के रूप में लिया जाता है। उनकी कहानी त्याग, समर्पण, और माता-पिता के प्रति सेवा का ऐसा उदाहरण है, जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देता रहेगा। यह कथा त्रेता युग की है, जब श्रवण कुमार ने अपनी कर्तव्यपरायणता से पूरे समाज को चकित कर दिया।

श्रवण कुमार का बचपन और माता-पिता की सेवा

श्रवण कुमार एक साधारण परिवार से थे। उनके माता-पिता नेत्रहीन थे और उन्होंने अनेक कठिनाइयों का सामना करते हुए श्रवण का पालन-पोषण किया। श्रवण बचपन से ही अपने माता-पिता के प्रति अत्यधिक आदर और प्रेम रखते थे। वह उनकी हर छोटी-बड़ी आवश्यकता का ध्यान रखते।

श्रवण रोज सुबह तालाब से पानी भरकर लाते, जंगल से लकड़ियां बीनते, और चूल्हा जलाकर अपने माता-पिता के लिए खाना बनाते। माता-पिता ने कई बार उन्हें आराम करने को कहा, लेकिन श्रवण का उत्तर हमेशा एक जैसा रहता:

“मां-बाप की सेवा में थकान का कोई स्थान नहीं है। मुझे तो इसमें सच्चा आनंद मिलता है।”

तीर्थयात्रा की इच्छा

एक दिन श्रवण के माता-पिता ने अपनी अंतिम इच्छा व्यक्त की। उन्होंने कहा:

“हमारी मृत्यु से पहले हमें तीर्थयात्रा करनी है। भगवान की शरण में जाने से हमारी आत्मा को शांति मिलेगी।”

श्रवण कुमार ने उनकी इच्छा पूरी करने का वादा किया। लेकिन उनके पास यात्रा के लिए साधन नहीं थे। ऐसे में उन्होंने एक कांवड़ बनाई। इसमें अपने माता-पिता को बैठाकर, अपने कंधों पर लेकर, तीर्थयात्रा पर निकल पड़े।

कठिन यात्रा और श्रवण कुमार की प्रसिद्धि

श्रवण कुमार ने अपने माता-पिता को एक के बाद एक सभी प्रमुख तीर्थस्थलों पर ले गए। यह यात्रा अत्यंत कठिन थी, लेकिन श्रवण के लिए अपने माता-पिता की सेवा ही सबसे बड़ा धर्म था। उनकी इस कर्तव्यपरायणता की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई।

लोग उन्हें देखकर कहते:

“ऐसा पुत्र हर माता-पिता को मिले, जो अपने माता-पिता के लिए अपना सब कुछ समर्पित कर दे।”

दुर्भाग्यपूर्ण घटना

एक दिन, यात्रा के दौरान, श्रवण कुमार पानी भरने नदी पर गए। उसी समय, अयोध्या के राजा दशरथ शिकार पर थे। उन्होंने पानी में हलचल की आवाज सुनकर उसे जानवर समझ लिया और शब्दभेदी बाण चला दिया। तीर सीधे श्रवण की छाती में लगा।

तीर लगते ही श्रवण कुमार चिल्लाए और जमीन पर गिर पड़े। राजा दशरथ जब उनके पास पहुंचे, तो उन्होंने अपना अपराध समझा और क्षमा मांगी। श्रवण कुमार ने अपनी अंतिम सांसों में उनसे कहा:

“मेरे माता-पिता पास की कुटिया में हैं। वे पानी के लिए मेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं। कृपया यह पानी उन्हें दे दीजिए, लेकिन मेरी मृत्यु की बात मत बताइए।”

माता-पिता का वियोग और श्राप

राजा दशरथ ने पानी लेकर उनके माता-पिता को दिया। लेकिन जब उन्होंने श्रवण के बारे में पूछा, तो राजा सत्य छिपा नहीं सके। यह सुनकर माता-पिता का हृदय विदीर्ण हो गया। उन्होंने राजा दशरथ को श्राप दिया:

यह श्राप आगे चलकर राम के वनवास और दशरथ की मृत्यु का कारण बना।

श्रवण कुमार की सीख

श्रवण कुमार की कहानी हमें सिखाती है कि माता-पिता की सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं है। यह कहानी त्याग, कर्तव्य और आदर्शों की मिसाल है।


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