
काली मां की उत्पत्ति कैसे और क्यों हुई ?
गले में नर मुंड की माला खून से लतपंचार को दर्शाता है स्वय देवों के देव महादेव उनके चरणों के नीचे हैं जो यह बताता है कि वह सर्वोच्च शक्ति है और एक बार क्रोधित होने पर स्वयं भगवान शिव के अलावा उन्हें दूसरा कोई शांत नहीं कर सकता लेकिन अपने उग्र रूप के बावजूद मां काली अपने भक्तों से एक प्यार भरा संबंध बनाए रखती है इस संबंध में भक्त बेटा या बेटी का रूप ले लेता है और मां काली एक देखभाल करने वाली मां के रूप में होती हैं आइए जानते हैं कि देवी काली की उत्पत्ति कैसे हुई और वह इतनी शक्तिशाली देवी क्यों मानी जाती हैं मां काली की उत्पत्ति कैसे और क्यों हुई
समस्त देवी देवताओं में काली एक अत्यंत उग्र रूप है काली शब्द काल से आया है और और काल का अर्थ समय है हिंदू धर्म के अनुसार देवी काली को बुराई पर अच्छाई की जीत के लिए जाना जाता है उन्हें भयंकर और शक्तिशाली देवी के रूप में पूजा जाता है देवी काली में शक्ति का समावेश है जो ऊर्जा रचनात्मकता और उर्वरता का प्रतीक है मान्यता है कि मां काली का जन्म धर्म की रक्षा हेतु पापियों और राक्षसों का नाश करने के लिए हुआ था साथियों वैसे तो मां काली के जन्म को लेकर अनेक कथाएं प्रचलित हैं लेकिन आज हम आपको मां काली से जुड़ी दो ऐसी अद्भुत कथा सुनाने जा रहे हैं जिसे
सुनकर आप अचंभित रह जाएंगे पौराणिक कथा अनुसार दारुक नाम का एक राक्षस था जिसने कठोर तप करर ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर लिया था प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उसे वरदान दिया कि तुम्हारी मृत्यु केवल महिला के हाथों से होगी अन्य कोई भी तुम्हें नहीं मार सकेगा यह सुनकर राक्षस को लगा स्त्री तो कोमल शांत और सौम्य होती हैं वह भला उसका क्या बिगाड़ सकती है लेकिन वह यह बात भूल गया था कि जब जब अत्याचार बढ़ता है तो वही स्त्री अपने क्रोधित रूप से दुष्टों का संहार करती है हिंदू धर्म में स्त्री शक्ति को प्रदर्शित करती है मां काली जो बहुत पूजनीय देवी हैं मां काली को
क्रोध की देवी भी कहा जाता है जो स्त्री शक्ति का प्रतिनिधित्व करते हुए दुष्टों का संहार करते है मां काली संदेश देती हैं कि स्त्री कमजोर नहीं है जरूरत पड़ने पर वह अपना उग्र रूप धारण कर पापियों का सर्वनाश कर सकती है और दारुक राक्षस के साथ भी ऐसा ही हुआ बता दें कि ब्रह्मा जी से वरदान पाकर राक्षस की खुशी का ठिकाना नहीं रहा और उसने इसका फायदा उठाना शुरू कर दिया राक्षस ने ब्राह्मणों और संतों समेत देवताओं का जीना मुश्किल कर दिया उसने अपनी शक्ति से सारे अनुष्ठान बंद करवा दिए और स्वर्ग पर अपना राज जमाकर बैठ गया सारे देवताओं ने मिलकर उससे युद्ध भी
किया लेकिन निराश होकर वापस लौट आए तब ब्रह्मा जी ने बताया यह राक्षस सिर्फ किसी स्त्री के हाथों ही मारा जाएगा तब सभी देवता गण मदद के लिए भगवान शिव के पास गए और उन्होंने दारुक के बारे में बताया इस समस्या के समाधान के लिए महादेव ने जगत जननी मां पार्वती की तरफ देखा और कहा हे कल्याणी जगत के हित के लिए और उस दारुक दैत्य के लिए मैं तुमसे प्रार्थना करता हूं यह सुनकर माता पार्वती मुस्कुराई और उन्होंने अपना एक अंश भगवान भोलेनाथ में प्रवेश करवा दिया मां भगवती का वह अंश भगवान शिव के गले से अवतरित हुआ भोलेनाथ ने तभी अपना तीसरा नेत्र खोला जिससे एक
भयंकर विकराल रूपी काले रंग की देवी का जन्म हुआ जिन्हें काली माता कहा गया मां के इस रौद्र रूप को देखकर देवता व राक्षस वहां से भागने लगे मां का यह रूप इतना भयंकर था कि कोई भी उनके सामने टिक ना पाया और इस तरह मां काली ने राक्षसों का अंत किया महिषासुर धूम्र विलो शुंभ निशुंभ आदि यह सभी दैत्य थे जिनके वध के लिए मां दुर्गा ने अलग-अलग अवतार लिए लेकिन इन सभी दैत्यों में रक्त बीज सबसे बलशाली दैत्य था जिसका वध करना देव के लिए भी आसान नहीं था आपको बता दें कि रक्त का अर्थ लाल या खून से है और बीज का अर्थ जीव से है इस तरह रक्तबीज का अर्थ है खून से उत्पन्न काली मां की उत्पत्ति कैसे और क्यों हुई ? https://aghorijirajasthan.com/काली-मां-की-उत्पत्ति-कैसे
होने वाला एक नया जीव रक्त बीज के बारे में यह कथा प्रचलित है कि उसने अपने कठोर तप से शिवजी को प्रसन्न कर उनसे वरदान प्राप्त किया था कि जहां जहां उसके रक्त की बूंदे गिरें उससे उसी की तरह एक नया रक्त बीज पैदा हो जाएगा रक्त बीज को अपने इस गुण पर बहुत अभिमान था इसलिए उसने अपनी शक्तियों का गलत इस्तेमाल करना शुरू कर दिया फिर एक दिन घमंड में चूर रक्त बीज ने देवताओं को युद्ध के लिए ललकारा समस्त देवता रक्त बीज से लड़ी डचने के लिए आ तो गए लेकिन जहां भी रक्त बीज का रक्त गिरता वहां से एक और रक्त बीज पैदा हो जाता इसका परिणाम यह हुआ कि बहुत सारे रक्त बीज पैदा
हो गए जिन्हें हराने का कोई रास्ता देवताओं को नजर नहीं आ रहा था तब घबराकर सभी देवता मां दुर्गा के पास पहुंचे और अपने प्राणों की भीख मांगने लगे मां दुर्गा ने रक्त बीज के वध के लिए काली का रूप धारण कर लिया जब महाकाली देवताओं की मदद के लिए युद्ध भूमि पहुंची तो उन्होंने वहां अपनी जीभ को लंबा कर लिया अब जहां भी रक्त बीज का रक्त गिरता मां काली उसे जाती मां काली ने रक्त बीज के खून की एक भी बूंद को धरती पर नहीं गिरने दिया इस तरह काली माता ने उसके शरीर का सारा रक्त पी लिया इस तरह रक्त बीज का अंत तो हो गया लेकिन रक्त बीज को समाप्त करते हुए मां
इतनी क्रोधित हो गई कि उनको शांत करना मुश्किल हो गया था काली मां का यह रूप विनाशकारी हो सकता था इसलिए सभी देवता एक बार फिर भगवान शिव के पास गए और उनसे निवेदन किया कि हे महादेव आप ही मां का क्रोध शांत कर सकते हैं लेकिन मां काली के क्रोध को शांत करना भगवान शिव के लिए भी आसान नहीं था तब भगवान शिव काली मां के मार्ग में लेट गए क्रोधित मां काली ने जैसे ही भगवान शिव के ऊपर पांव रखा तो वह झिझक कर ठहर गई और उनका गुस्सा शांत हो गया इस तरह भगवान शिव ने देवताओं की मदद की और मां काली के गुस्से को भी शांत किया जो सृष्टि के लिए Permalink: https://aghorijirajasthan.com/काली-मां-की-उत्पत्ति-कैसे/
भयानक हो सकता था मां काली का स्वरूप कैसा है आपने कई तस्वीरों में देखा होगा जहां मां काली भगवान शिव की छाती पर एक पैर के साथ युद्ध के मैदान में खड़ी हैं उनकी जीभ भगवान शिव की छाती पर पैर रखने के लिए अचरज में पड़ गई उनका रंग काला व नीला है और उनके चेहरे के भाव क्रूर है आप को बता दें कि मां काली का रूप सभी देवियों में से सबसे कट्टर माना जाता है मां के चार हाथ हैं एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में राक्षस का सिर है यह सिर एक बहुत बड़े युद्ध का प्रतिनिधित्व है जिसमें मां ने रक्त बीजा नाम के दानव का वध किया था बाकी
के दो हाथ भक्तों को आशीर्वाद देने के लिए हैं मां काली कहती है कि डरो मत मैं हमेशा अपने भक्तों की रक्षा करूंगी मां काली के पास कान की बाली के लिए दो मृत सिर है और गले में 50 खोपड़ी का एक हार साथ ही दानव के हाथों से बना एक वस्त्र है जिसे मां ने धारण कर रखा है उनकी जीभ उनके मुंह से बाहर रहती है और रक्त से सनी रहती है मां काली की आंखें गुस्से से लाल रहती हैं और उनके चेहरे समेत शरीर पर खून लगा रहता है देवी का मुख मंडल तीन बड़ी-बड़ी भयंकर नेत्रों से युक्त है जो सूर्य चंद्रमा व अग्नि का प्रतीक है इनके ललाट पर अमृत के
समान चंद्रमा स्थापित है काले घनघोर बादलों के समान बिखरे केशों के कारण देवी अत्यंत भयंकर प्रतीत होती हैं इस तरह देवी काली शक्ति का दिव्य रूप है देवी काली को भयानक देवी माना जाता है जो सर्वोच्च दैवीय शक्ति से अवतरित हुई है काली मां हिंदू धर्म की एक प्रमुख देवी हैं मां काली की महता भगवती दुर्गा की 10 महाविद्या में से एक है महाकाली मां का यह रौद्र रूप जो नाश करने वाला है यह रूप सिर्फ उनके लिए है जो दानवी प्रकृति के हैं जिनमें कोई दया भाव नहीं है यह रूप बुराई से अच्छाई को जीत दिलवाने वाला है अर्थात मां काली अच्छे मनुष्यों को शुभ फल
देती हैं और बुरे लोगों को दंड देकर सच्चाई की जीत का प्रतिनिधित्व करती है देवी काली अपनी मजबूत विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए महिला गतिशीलता का प्रतीक है इन्हें अक्सर इंसान के अहंकार को मारने वाली मां का स्वरूप समझा जाता है देवी काली मृत्यु की भी देवी मानी जाती है यह एकमात्र ऐसी शक्ति है जिनसे स्वयं काल भी भय खाता है उनका क्रोध इतना विकराल रूप ले लेता है कि संपूर्ण संसार की शक्तियां मिलकर भी उनके गुस्से पर काबू नहीं पा सकती केवल महादेव ही उन्हें शांत कर सकते हैं शास्त्रों में वर्णित है कि कलयुग में हनुमान जी काल भैरव और मां काली की
शक्तियां जागृत रूप में अपने भक्तों का उद्धार करेंगी मेरे प्रिय साथियों यूं तो मां काली की पूजा समस्त भारतवर्ष में की जाती है किंतु मां कालिका को खास तौर पर बंगाल और असम में पूजा जाता है काली मां के नाम से कई प्राचीन मंदिर विख्यात है जैसे उज्जैन का गढ़कालिका मंदिर कोलकाता का काली मंदिर पावागढ़ शक्तिपीठ दक्षिणेश्वर काली मंदिर आदि यहां मां काली भक्तों को दर्शन देकर उनका कल्याण करती हैं साथियों आज के लिए केवल इतना ही तब तक के लिए जय महाकाली