साँसे का रहस्य” विज्ञान भैरव तंत्र का गुप्त योग

विज्ञान भैरव तंत्र में ध्यान की कुल 112 विधियां बताई गई हैं लेकिन 111 सांसों की एक ऐसी विधि है जो सबसे सरल सबसे प्रभावी और मेनिफेस्टेशन के लिए सबसे उत्तम है इतनी उत्तम कि सिर्फ स्वयं भी इस विधि का प्रयोग किया करते थे 111 सांसों की इस विधि का वर्णन करते हुए शिव कहते हैं स्वस स्वस योगे गति विरोध सु अंतर भैरवी स्थिति यानी श्वास और प्रस्वाविक के बीच में भैरवी की स्थिति का अनुभव होता है मतलब जब हम सांस लेते हैं यानी श्वास और जब छोड़ते हैं यानी प्रश् वास तो दोनों के बीच एक छोटा सा विराम होता है इस विराम में एक गहन और दिव्य स्थिति का अनुभव किया जा सकता है जिसे भैरवी स्थिति कहा जाता है आज मैं आपसे विज्ञान भैरव तंत्र में मौजूद थ्री स्टेप ब्रीदिंग की एक ऐसी गुप्त और मूल्यवान विद्या साझा करने वाला हूं jay maa kali


जो आपको देवतुल्य बना देगी हालांकि जीवन और स्वास को अक्सर एक ही माना जाता है क्योंकि यह जीवन के साथ आती है और मृत्यु के पश्चात चली जाती है क्योंकि यह सांसे ही हैं जो चेतना और जीवन के अलग-अलग रूपों को साकार करती है चाहे वह पशु हो मानव हो या देवता जब सांसों में बदलाव आता है तो उसके अनुसार व्यक्ति का जीवन और चेतना भी बदल जाता है जहां एक निम्न स्तर की सांस मानव को पशु बनाने में सक्षम है वहीं एक उ स्तर की सांस पुरुष में दिव्यता भी जगा सकती है |


जहां सांसें जितनी भारी और निम्न स्तर की होती है वहां जीवन उतना ही बुरा और निम्न स्तर का होता है वहीं जब सांसे हल्की और उच्च स्तर की होती है तो उसका जीवन भी उच्च स्तर का होता है मानव इन दोनों के मध्य में आता है यदि वह अपने सांसों को गिरा ले तो उसका जीवन नर्क हो जाता है वह अगले जन्म में निम्न गति को प्राप्त होता है वहीं अगर उठा ले तो फल स्वरूप उसकी चेतना देवतुल्य बन जाती है और यही वह बिंदु है जहां
मेनिफेस्टेशन यानी भौतिक जगत में अपने विचारों को साकार करना संभव है तो अब सवाल उठता है कि ऐसा कौन सा तरीका है ऐसी कौन सी विधि है जिससे हम भी उच्च गति को प्राप्त हो सकते हैं तो भैरवी विज्ञान तंत्र में शिव 111 सांसों की एक ऐसी विधि बताते हैं जिसका प्रयोग वो स्वयं भी किया करते थे जिसे सोहम विद्या कहा जाता है


यह सोहम विद्या सांसों की एक ऐसी विशेष लय सांसों की एक ऐसे तरंग पर केंद्रित है इसका अभ्यास यदि दिन में सिर्फ 111 बार भी किया जाए तो सिर्फ कुछ ही दिनों में यह मानव की चेतना को भयंकर रूप से बदल देती है जाहिर सी बात है कि इस बढ़ी हुई चेतना से कोई कुछ भी प्राप्त कर सकता है सोहम विद्या का प्राचीन इतिहास आज से लगभग 35 से 4000 साल पुराना है जिसका प्रमाण हिंदू पौराणिक ग्रंथों जैसे वेदों और उपनिषदों में उल्लेखित है जैसे अद्वैत वेदांत कहता है अहम ब्रह्मास्मि यानी व्यक्ति की आत्मा और सर्वव्यापी चेतना एक ही है इसे जानने की सबसे सरल प्रक्रिया का नाम सोहम विद्या है जातस्य हि ध्रुवो मृत्यु ध्रुवम जन्म मतस्य च तस्मा द परिहार थे नवम सोचत मर हसे भगवत गीता के इस श्लोक के अनुसार जो कोई जन्म लेता है उसके लिए मृत्यु निश्चित है और जो कोई मर जाता है उसके लिए जन्म निश्चित है लेकिन इसके बीच मानव में आत्मा नाम का एक ऐसा तत्व होता है


जो ना तो जन्म लेता है और ना ही उसकी कभी मृत्यु होती है जब हम शांति से बैठते हैं आंखें बंद करते और श्वास पर ध्यान केंद्रित करते हैं तो हम मानसिक रूप से सोहम का जाप करते हैं जिसका अर्थ है कि सो और हम की ध्वनि पर ध्यान केंद्रित करते हुए सांस लेने की प्रक्रिया के दौरान सोहम की ध्वनि को सुनना इसका अभ्यास सांसों के एक विशेष लय पर केंद्रित है अगर हम ध्यान दें तो प्रत्येक स्वास के साथ सो की ध्वनि गूंजती है और प्रत्येक सांस छोड़ने के साथ हम की ध्वनि गूंजती है यह प्राचीन महामंत्र  स्वयं भगवान शंकर का भी गुरु मंत्र था प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु सदगुरु के अनुसार यदि आप अपने शरीर को जीवंतता और तीव्रता के एक निश्चित स्तर पर लाते हैं तो आप देखेंगे कि आपके जीवन का लगभग 15 से 20 प्र हिस्सा वैसा ही होगा जैसा आप चाहते हैं यदि आप अपने मन को एक स्तर की तीव्रता और जागरूकता प लाते हैं तो आप देखेंगे कि आपके जीवन का लगभग 50 से 60 प्र हिस्सा वैसा ही घटेगा जैसा आप चाहते हैं और वहीं यदि आप अपने ऊर्जांचल बना लेते हैं तो आप देखेंगे कि आपके जीवन का लगभग शत प्रतिशत हिस्सा वैसा ही घटेगा जैसा आप चाहते हैं हमारे सपनों और इच्छाओं को प्राप्त करने  की कोशिश में हम अक्सर उस एक सबसे शक्तिशाली उपकरण को अनदेखा कर देते हैं


जो हमारे पास है हमारी सांसें जब हम सही और गहरी सांसें लेते हैं तो हमें अपने मन में स्पष्टता प्राप्त होती है और हमारी ऊर्जा एं हमारी इच्छाओं के साथ एक हो जाती है योग और तंत्र के प्राचीन परंपराओं में नाड़ी के प्रमाण हमारे जीवन के शक्ति के प्रवाह को समझाने में एक महत्व पूर्ण भूमिका निभाते हैं इनमें से ईडा पिंगला और सुसुम सबसे महत्त्वपूर्ण है ईडा और पिंगला ऊर्जा के दो चैनल हैं जो हमारे शरीर में विभिन्न स्थानों पर दौड़ते हैं ड़ा हमारी ऊर्जा के श्री पक्ष को दिखाता है जैसे हमारा शरीर हमारा मन हमारी बुद्धि वहीं पिंगला हमारी ऊर्जा के पुरुष पक्ष को यानी हमारी चेतना को दिखाता है जैसे सुप्रीम कॉन्शसनेस या जिन्हें शिव भी कहते हैं और जब शिव और शक्ति एक हो जाती है यानी ईडा और पिंगला नाड़ी सुसुम में स्थित हो जाती है तो केवल तभी मुक्ति या जिसे मेनिफेस्टेशन कहते हैं वह संभव है ड़ा और पिंगला को सुसुम में स्थिर करने का एक उपाय है जिसे थ्री स्टेप ब्रीदिंग या फिर 111 सांसों का रहस्य कहा जाता है इसे हम एक उदाहरण से समझते हैं बजरंगबली की यह तस्वीर ड़ा और पिंगला नाड़ी के सुसुम में स्थिर होने का एक बहुत ही बढ़िया उदाहरण  है जैसे भगवान राम का इस तस्वीर के ठीक दाईं ओर हो होना पिंगला नाड़ी के पक्ष को दर्शाता है जो हमारे भीतर के चेतना और पुरुषार्थ को जगाती है वहीं सीता का बाईं ओर होना ड़ा नाड़ी को दर्शाता है जो मन बुद्धि और शरीर जैसे प्राकृतिक गुणों का प्रतीक है अब हनुमान जी एक ऐसे योगी थे जिन्होंने अपने ईडा और पिंगला नाड़ी को सिद्ध कर लिया था हनुमान चालीसा कहता है अष्ट सिद्धि नवनिधि के दाता अश्वर दिन जानकी माता अष्ट सिद्धि इसका अर्थ है


अनिमाड़ोस और अंत में आता है कामा वसाय यह आठों की आठ सिद्धियां बजरंगबली के पास थी जिसमें अणिमा का अर्थ होता है अपने शरीर को एक अनु के जितना छोटा कर लेना महिमा मतलब अपने शरीर को विशाल कर लेना गरिमा भारी होने की शक्ति है लघिमा हल्का होने की प्रा काम में किसी भी चीज को प्राप्त करने की शक्ति है इसित्व सज करने की शक्ति व सित्व सभी चीजों को अपने बस में करने की शक्ति है और आखिर में आता है कामा वसाय यानी किसी भी इच्छा को पूरी करने की शक्ति अगर आप ध्यान से देखें तो यह सारी की सारी सिद्धियां मेनिफेस्टेशन से जुड़ी हुई है इन आठों सिद्धियों में से कुछ सिद्धियां जैसे अपनी इच्छा को पूरी करने की शक्ति या फिर सभी को अपने बस में करने की शक्ति और पिंगला नाड़ी को सुसुम नाड़ी में व्यवस्थित करने से मिल सकती है लेकिन सबसे पहले हमें ड़ा पिंगला और सुसुम नाड़ी को गहराई से समझना होगा ड़ा नाड़ी ड़ा नाड़ी बाय नथुने से जुड़ी होती है इसे चंद्र नाड़ी भी कहा जाता है यह नाड़ी ठंडक और शीतलता से संबंधित होती है और मानसिक शांति प्रदान करने में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका है पिंगला नाड़ी पिंगला नाड़ी दाए नथनल्लूर और यह दोनों नाड़ियों को संतुलित करने और उच्च चेतना के लिए महत्त्वपूर्ण है यह नाड़ी कुंडलिनी जागरण में प्रमुख भूमिका निभाती है


सुसुम नाड़ी को सक्रिय करने का सबसे सरल तरीका है नाभि तक सांस भरना ऐसी सांसें जो नाभि तक जाती है वो मूल धार स्वाधिष्ठान मणिपुर अनाहत विशुद्धि आज्ञा और सहस्त्रार इन सभी सात चक्रों में से एक ऐसी ऊर्जा का रिशाब करती है जो एक के बाद एक इन सातों चक्रों को सक्रिय कर देती है इस ऊर्जा को प्राण ऊर्जा कहा जाता है जो हमारे सांसों में मौजूद होती है जब सांसें नाभि तक नहीं जाती है जब सांसें हल्की होती है तब सांसों में उतनी ऊर्जा ही नहीं बन पाती जो हमारे सातों चक्रों को सक्रिय करे इसीलिए 111 सांसों का रहस्य वह तरीका है जो हमारी सांसों को गहरा करने और इन सभी सात चक्रों को सक्रिय करने में सहायक है इसके लिए हमें अपनी पीठ के बल लेट जाना है अपनी नाभि पर एक भारी किताब रख लेनी हैक्या है तो तंत्र ||


और अपना हाथ सिर के पीछे रख लेना है हर सांस के के साथ किताब को ऊपर उठाएं बिना अपने छाती को हिलाए सुनिश्चित करें कि किताब का ऊपर उठना और गिरना स्पष्ट हो प्रतिदिन 10 मिनट अभ्यास करें धीरे-धीरे अवधि बढ़ाते हुए आधे घंटे तक अभ्यास करें एक बार इस तकनीक में निपुण होने के बाद इस क्रिया के दूसरे और तीसरे चरण में बैठने खड़े होने और चलने में भी इसका अभ्यास करें इसे अपने प्राकृतिक स्वास का तरीका बनाने का लक्ष्य रखें दूसरा चरण उद्देश्य पेट की श्वास के साथ छाती की श्वास को शामिल करना विधि अपनी पीठ दीवार को ना लगने दें और अब पहले चरण की तरह सांस लें अब अपने हाथों को सिर के ऊपर उठाएं जब तक कि आपके हाथ की पीठ दीवार को ना छूले सांस छोड़ते समय अपने हाथों को नीचे करें यह अभ्यास तब तक करें जब तक यह स्वाभाविक और अवचेतन ना हो जाए अब वक्त है तीसरे चरण का इस चरण को तभी शुरू करें जब पहले और दूसरे चरण में निपुणता हासिल हो तीसरा चरण लय यानी रिदम जो कि सांस विधि का सबसे महत्त्वपूर्ण चरण है उद्देश्य स्वांसों में एक लयबद्ध पैटर्न स्थापित करना पहले और दूसरे चरण के तकनीकों को मिलाएं एक प्राकृतिक लय  स्थापित करने का लक्ष्य रखें


जिससे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होगा


Permalink: https://aghorijirajasthan.com/साँसे-का-रहस्य-विज्ञान-भै/

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