ऋषि मार्कंडेय का सबसे शक्तिशाली ग्रंथ जो बदल देगा आपका जीवन ||

यह कहानी है ऐसे बच्चे की जिसके सामने मृत्यु के देवता यमराज ने भी घुटने टेक दिए क्योंकि उस बच्चे के साथ स्वयं देवों के देव महादेव खड़े थे उस बालक की उम्र केवल 16 साल होने वाली थी लेकिन महाकाल ने उसे हमेशा हमेशा के लिए अमर कर दिया जो आगे चलकर महान बुद्धिजीवी ऋषि बन गया वो इतना शक्तिशाली बना कि उसकी शक्तियों से देवराज इंद्र और कामदेव थरथर कांपते थे व चाहता तो स्वर्ग लोक भी चुटकियों में अपने नाम कर सकता था एक ऐसा दिव्य ऋषि जिसे भगवान श्री हरिनारायण ने अपने अंदर संभा लिया और उसे संसार के सृजन से लेकर दुनिया के अंत का भी दृश्य दिखा दिया यह कहानी है


SHIV
ऋषि मारकंडी पुत्र ऋषि मारकंडे जिनके लिए समय भी रुक गया था [संगीत] मांगो क्या वरदान चाहते हो एक ऐसा पुत्र जो 100 साल जिएगा और दिमाग से मन बुद्धि होगा जिसे सही गलत में कोई फर्क नहीं पता होगा या ऐसा महान कुशाग्र बुद्धि तेजस्वी धर्म ज्ञान में निपुण पुत्र जिसकी उम्र केवल 16 साल की होगी कई सालों से संतान की कामना में महादेव की तपस्या में लीन ऋषि मार्कट के सामने जब शिवजी प्रकट हुए तो उन्होंने ऐसे ऑप्शन रख दिए जिससे सुनने के बाद ऋषि मार्क बिल्कुल असमंजस में पड़ गए थ अब एक पिता तो अपनी संतान के लिए हमेशा से ही लंबी उम्र चाहता है लेकिन ऐसी संतान
किस काम की जिससे कोई समझ ना हो बल्कि वो तो यह चाहता है कि उसकी संतान हर मामले में निपुण हो अब पहला ऑप्शन तो यह था और दूसरा ऑप्शन ये था कि भाई वह अपने संतान की मृत्यु पहले से ही तय कर द ऋषि मार्कड़ ने काफी समय लिया और सोच विचार करके दूसरा ऑप्शन चूज कर लिया लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि उनके बेटे के भविष्य में तो कुछ और ही लिखा है उनके इस फैसले के कुछ समय बाद उनकी पत्नी गर्भवती हुई और आखिरकार उन्होंने एक दिव्य पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम मार्कंडेय गया जन्म से ही वह बालक बहुत समझदार था छोटी सी उम्र में वो वेदों ग्रंथों को करीब से समझने लगा था यह
सब देखने के बाद उसे जंगल में तपस्या कर रहे ऋषि मुनियों के पास भेज दिया गया अपने जीवन के 15 साल उन ऋषियों के साथ तपस्या करने के बाद ऋषि मारकंडे भी एक बड़े तपस्वी बन गए सालों की तपस्या करने के बाद जब ऋषिवर अपने घर लौटे तो उनके माता पिता खुश होने के बजाय आंखों में आंसू लिए बैठे थे जैसे ही कुछ बुरा घटने वाला हो वैसे वह हमेशा मासूम भरी आंखों से उन्हें सलाया करते थे कई बार पूछने के बाद अब एक दिन उनके पिता ने बता दिया कि महादेव ने तुम्हारी मृत्यु तय कर दी यह सब सुनने के बाद परेशानी या दुख की बजाय उनके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आई अपने मां बाप से
उन्होंने बिना कुछ बोले अलविदा कह दिया और घर से निकल ओम त्रबकम यजामहे सुगंधिम पुष्टि वर्धनम उरवा रुक में बंधना मृत्यु और मुखी मामृतात् किया उसे आज हम महामृत्युंजय मंत्र के नाम से जानते हैं अगले एक साल तक उन्होंने इस मंत्र का ही जाप किया लेकिन अब उनके मौत की घड़ी बहुत करीब थी यमलोक से दो विशालकाय यमदूत बड़ी-बड़ी आंखों में खून भरे काले सियाही की तरह रंग चेहरे पर दाड़े मारने वाली हंसी के साथ उनके सामने खड़े हो जाते हैं बड़ी सी जी हाथों में कोड़े लिए ऋषि मार्कंडेय मलोक ले जाने के लिए तैयार थे लेकिन इधर मार्कंडेय ने तो एक पलक तक नहीं झपका ईवहीं जैसे ही यमदू तों ने अपने कदम ऋषि की तरफ बढ़ाए वैसे ही खुद बखुदा ना जाने कितनी कोशिशों के बाद भी यमदूत हार गए और उनसे वो सुरक्षा कवच टूट ही नहीं पाए अंत में ऋषि मारकंडे के प्राण ले जाने के लिए स्वयं यमराज को आना पड़ा यमराज अपना डंडा लिए अपनी सवारी भैंसे पर सवार होकर ऋषि को लेने पहुंच गए और उन्होंने एक हाथ में अपनी रस्सी को ऋषि मारकंडे को जकड़ के लिए फेंका लेकिन वहां मौजूद शिवलिंग ने उस रस्सी को जकड़ में ले लिया ऐसा होते ही आसमान में जोर-जोर से गर्जना होने लगी हर तरफ को तो हाल होने लगा हवाएं तेज चलने लगी जिसके बाद वहां महादेव अपने विकराल रूप में प्रकट होते हैं उनकी आंखें ज्वाला जैसी लग रही थी तभी उन्होंने अपना त्रिशूर उठाया और पलक झपकते ही यमराज का सिर धर से अलग कर दिया सभी देवी देवता यह देखकर चौक गए कि भाई एक साधारण से बच्चे के लिए महादेव ने यमराज को मौत की घाट उतार दिया है


महादेव के ऐसे कदम से मृत्यु और जीवन का सारा संतुलन बिगड़ सकता था यह सब सोचते हुए देवताओं ने भगवान शिव से यमराज की भूल के लिए बहुत माफी मांगी खैर माफ करते हुए भोलेनाथ ने यह शर्त रखी थी कि ऋषि मारकंडे के प्राण बख दिए जाए और यमराज उनका कोई भी दूध कभी भी उनके आसपास नजर ना आए जीवन दान मिलने के बाद ऋषि मारकंडे शिवजी की नगरी काशी चले गए और उन्होंने वहां जाकर एक भिक्षु की तरह महादेव की आराधना शुरू कर दी इसी तरह ना जाने कितने साल गुजर गए और इतनी शक्तियां अर्जित करने के बाद देवराज इंद्र को उनसे डर लगने लगा था कि भाई कहीं वो उनसे उनका स्वर्ग ना मांग ले जिसके बाद इंद्रदेव ने कामदेव और मेनका को ऋषि मारकंडे की तपस्या भंग करने के लिए भेजा देवराज ने अपनी शक्तियों से ऋषि के आश्रम के आसपास एक मनमोहक ऋतु का महल बना दिया हर तरफ फूलों की सुगंध पंछियों की मीठी आवाज मन को भाने वाली हवा नाचते हुए मोन इन सब माहौल के बीच अप्सरा मेनका अपने सबसे सुंदर वस्त्र आकर्षक आभूषण पहन के ऋषि के सामने चलने लगी लेकिन इन सबके बाद भी ऋषि मारकंडे के ऊपर इसका कोई असर नहीं हुआ फिर हार करर कामदेव देव को ही अपना सबसे शक्तिशाली अस्त्र उन पर चलाना पड़ा जैसे ही वो तीर ऋषि के करीब पहुंचा तो व कई टुकड़ों में टूटकर बिखर गया पंछियों की आवाजें सुंदर माहौल सब एक झटके में गायब हो जाता है और आसपास के पेड़ पौधों में आग लगने लगी आग की लपट इतनी ऊंची ऊंची जा रही थी कि सब कुछ जलकर खाक हो गया था


आग इतनी तेज थी कि अप्सरा मेनका और कामदेव जलकर भी भस्म हो सकते थे लेकिन फिर भी ऋषि मारकंडे की आंखें खुली ही नहीं यह सब देखकर देवराज इंद्र और कामदेव ऋषि के सामने नतम तक हो जाते हैं और उनके सामने स्वर्ग का अधिपति बनने को कह देते हैं लेकिन ऋषि ने स्वर्ग लेने से मना कर दिया और फिर से अपनी तपस्या में लीन हो गए माना जाता है कि उन्होंने अपनी तपस्या की शक्ति से इस संसार का अंत भी देख लिया [संगीत] था मारकंडे ऋषि एक दिन तपस्या कर रहे थे तभी तेज हवाए चलने लगी और चारों तरफ बिजली कड़ की आवाज आने लगी आसमान से ऐसे बारिश हो रही थी कि मान जल प्रलय आ जाएगी महासागरों के जीव जमीन पर आने लगे देखते देखते सारी पृथ्वी पानी से ढह चुकी थी एक-एक करके सभी जीव जंतु मारे जा रहे थे ऋषि मारकंडे को यह एहसास हुआ कि भाई अब उस धरती पर सिर्फ यही बचे हैं इन सारी बातों को जानने के लिए वह कई युगों युगों तक पानी में तैरते रहे फिर एक दिन उन्हें बरगद के पेड़ से तेज रोशनी निकलती दिखाई दी जब वो उस पेड़ के पास पहुंचे तो उन्होंने एक बच्चे को देखा जिसकी चमक से संसार की रोशनी दिखाई दे रही थी जब वो उस बच्चे के करीब पहुंचे तो उस बच्चे ने उन्हें अपने अंदर संभाल लिया जिसके बाद ऋषि समझ गए कि भई ये कोई आम बच्चा तो है


नहीं यह पक्का भगवान श्री नारायण विष्णु ही है अंदर पहुंचते ही उन्होंने देखा कि कैसे इस संसार का सृजन हुआ विष्णु जी की नाभि से ब्रह्मा जी प्रकट हुए हैं और उन्होंने पूरे संसार को बनाया ऋषि ने संसार की हर वो चीज देख ली जिसे वोह देखना चाहते थे अंत में उन्होंने खुद को देखा जो उस बच्चे के सामने खड़ा था जिसके बाद उन्होंने भगवान विष्णु को हाथ जोड़कर प्रणाम किया और जब अपनी आंखें खोली तो सारा वातावरण वैसे का वैसा ही यानी भगवान हरि उनकी परीक्षा ले रहे थे अब सोचिए सिर्फ कुछ ही पलों में भगवान विष्णु ने ऋषि मार्कंडेय दिखा [संगीत] दिया महान सप्त ऋषियों के नाम में सबसे पहला नाम आता है महर्षि कश्यप का जिनका खास योगदान रहा है उन्हें ही धरती के सुरजन करने का श्रेय दिया जाता है महर्षि कश्यप अपने गुणों तेज और तप के बल पर उच्च महा विभूतियों में गिने जाते इस लिस्ट में महर्षि अत्री का नाम भी शामिल है महर्षि अत्री भी भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्र थे और इनका जन्म भगवान ब्रह्मा के नेत्रों से हुआ था बता दें महर्षि अत्री का विवाह ऋषि कर्दम और देव होती की बेटी देवी अनुसुइया से ही हुआ था भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्र महर्षि वशिष्ठ भी सप्त ऋषियों में से एक माने जाते हैं इनकी उत्पत्ति ब्रह्मा जी के प्राण वायु से हुई थी और यही आगे चलकर इवाक वंश के कुल गुरु और श्रीराम और उनके भाइयों के भी गुरु थे इन्ह ऋग्वेद के सातव मंडल का लेखक और अधिपति माना जाता है

 


बता दें कि महर्षि विश्वमित्र के बारे में रामायण में जानने को मिलती कहते हैं विश्वमित्र जी जन्म से ब्राह्मण नहीं थे जी हां लेकिन कठिन तपस्या करके उन्होंने ब्रह्मर्षि का पद प्राप्त किया था महर्षि गौतम ब्रह्मा जी के मानस पुत्र अंगिरा के वंशज पुराणों में कथा मिलती है कि गौतम जन्मांध थे उन पर कामधेनु गाय खुश हुई थी और इस गाय ने उनका तम यानी कि अंधत्व हर लिया तब से उन्हें गौतम कहा जाने गौतम ऋषि का विवाह देवी से हुआ था श्री हरि विष्णु के अवतार भगवान परशुराम के पिता महर्षि जमदग्नी का नाम भी इस सप्त ऋषियों की सूची में शामिल है महर्षि जमदग्नी ब्रह्मा जी के मानस पुत्र भगु के वंशज थे उनका विवाह राजा प्रसेनजित की पुत्री रेणुका से हुआ था रेणुका ने विवाह के बाद पांच पुत्रों को जन्म भी दिया सप्त ऋषियों में महर्षि भारद्वाज का उच्च स्थान माना जाता है ऋषि भारद्वाज देव गुरु बृहस्पति और ममता के बेटे थे महर्षि भारद्वाज मंत्र अर्थशास्त्र शास्त्र विद्या आयुर्वेद जैसे विषयों के विशेषज्ञ और वैज्ञानिक थे ऋग्वेद के छठे मंडल के दृष्टा भारद्वाज जी ही रहे हैं और इस मंडल में भारद्वाज के 765 मंत्र है इतना ही नहीं अथर्ववेद में भी भारद्वाज के 23 मंत्र हैं shiv


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