इस तरह आप भी अपने पाप को पुण्य में बदल सकते हैं
मित्रों हम अपनी जरूरतों और इच्छाओं को पूरा करने के लिए जीवन भर कई तरह के पाप करते हैं लेकिन जब हमारा अंतिम समय नजदीक आ जाता है तो हम उन्हीं पापों के परिणाम से डरने लगते हैं ऐसे में हम सोचने लगते हैं कि काश किसी तरह हम इन पापों को पुण्य में बदल पाते आपने भी कई ऐसे बुद्धिजीवियों को कहते हुए सुना होगा कि बुरे कर्मों के फल को अच्छे कर्मों से काटा जा सकता है अर्थात पाप को पुण्य में बदला जा सकता है आखिर क्या ऐसा किया जा सकता है क्या वाकई पाप करने के बाद भी उसकी सजाओ से खुद को बचाया जा सकता है
पाप और पुण्य के बारे में जानने से पहले आपको एक कहानी सुनाता हूं बहुत सालों पहले एक राज्य पर बहुत ही क्रूर और पापी राजा राज किया करता था वह अपनी प्रजा को सताने और उनसे धन लूटने का कोई भी मौका हाथ से जाने नहीं देता था लेकिन एक दिन अचानक उसने अपनी प्रजा को सताना बंद कर दिया और फिर सारा ध्यान सत्कर्म करने में लगा दिया वोह जरूरतमंदों की मदद करने लगा भूखों को भोजन और गरीबों को धन बांटने लगा फिर वह समय भी आया जब राजा अचानक बीमार पड़ गया एक तरफ राजा मृत्यु शैया पर लेटा था तो दूसरी तरफ उसके जवान पुत्र की मृत्यु हो गई यही नहीं पुत्र के निधन का दुख रानी सह नहीं सकी और उसने भी देह त्याग दी राजा यह सब देखकर बहुत दुखी हुआ उसका परिवार उसके सामने बिखर चुका था पर वह कुछ नहीं कर पा रहा था ऐसे में उदास होकर उसने अपने महामंत्री से पूछा कि मैंने तो पापों से सालों पहले ही मुंह मोड़ लिया था मैं तो लोगों की सहायता भी कर रहा था दान धर्म और पूजा पाठ में भी लगा था तो भला मुझे भगवान ने किस बात की सजा दी है
मैंने तो सुना था कि पुण्य करने से पाप का बोझ कम हो जाता है तो फिर मेरे साथ ही ऐसा क्यों हुआ इस पर राजा का महामंत्री बोला महाराज पाप को पुण्य से नहीं बल्कि पछतावे से ही काटा जा सकता है मनुष्य जीवन भर पाप करता है लेकिन फिर भी भगवान से यह अपेक्षा करता है कि उसके द्वारा किए गए पापों का फल ना मिले भला क्या यह संभव है आपने जो कर्म किए हैं वह भले ही अच्छे हो या फिर बुरे हमें हर किसी का फल भोगना ही पड़ता है ऐसा तो हमारे शास्त्रों में भी लिखा है मनुष्य अपने दुखों और कष्टों के लिए भगवान और भाग्य को दोष देता है लेकिन वो यह भूल जाता है कि जो उसके साथ हो रहा है वह उसके कर्मों का ही परिणाम है और महाराज जो आप यह दुख झेल रहे हैं वह आपकी ही गलतियों और बुरे कर्मों का फल है महामंत्री की यह बातें सुनकर राजा को बहुत क्रोध आया और वह बोला कि अगर ऐसा है तो क्या मैंने व्यर्थ में ही अच्छे कर्म किए अगर मुझे यह दिन देखना ही था तो फिर मैंने पाप का रास्ता क्यों त्यागा था राजा के इन्हीं प्रश्नों का उत्तर देते हुए महामंत्री ने कहा कि महाराज आपने जो भी कर्म किए हैं
उनका फल आपको मिलेगा ही आपने जो पाप किए हैं अभी आपको उनका फल मिल रहा है लेकिन आपने जो पुण्य किए हैं उनका फल भी आपको जरूर मिलेगा इस पर राजा बोले तो क्या पाप के बोझ को कम करने का कोई तरीका नहीं इस पर महामंत्री ने कहा कि महाराज एक तरीका है पछतावे का किसी भी पाप को पुण्य में बदला नहीं जा सकता अगर आप पुण्य का फल चाहते हैं तो आपको उसके लिए सत्कर्म करने ही पड़ेंगे वहीं दूसरी तरफ अगर आप पाप के फल से बचना चाहते हैं तो उसके लिए पछतावा करना ही पड़ेगा वह भी सच्चे मन से मित्रों महाभारत में भी कहा गया है कि जो व्यक्ति पश्चाताप करता है
वह उस पाप से मुक्त हो जाता है लेकिन याद रहे पश्चाताप सच्चे मन से होना चाहिए मन में यह दृढ़ निश्चय होना चाहिए कि अब मैं यह दोबारा पाप भूलकर भी नहीं करूंगा चाहे मेरी जान ही क्यों ना चली जाए हमेशा याद रखें कि भगवान कभी हमारा बुरा नहीं चाहते वह तो हमें बस अच्छाई के मार्ग पर लाना चाहते हैं और इसके लिए ही व हमें हमारे पापों का फल देते हैं ताकि हम अज्ञानी हों को सद्बुद्धि आ सके वैसे महाभारत के अलावा शिव पुराण में भी पाप से मुक्ति का उपाय पश्चाताप को ही बताया गया है बशर्ते पछतावा दिखावटी नहीं होना चाहिए राजा कहने को पाप की जगह पुण्य करने लगा था लेकिन उसने कभी सच्चे मन से भगवान को याद नहीं किया कभी अपने किए पर पछतावा नहीं किया अगर उसने ऐसा किया होता तो अवश्य ही उसके पाप कम हो जाते मित्रों उम्मीद करता हूं कि अब आप समझ गए होंगे कि पाप को कभी भी पुण्य में नहीं बदला जा सकता और अगर आप भी पाप के बोझ तले दबे हैं तो सच्चे मन से भगवान को याद करें अपने किए पर पश्चाताप करें क्योंकि पाप के परिणाम से खुद को बचाने का सिर्फ यही एक रास्ता है
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