हिमालय की डरावनी गुफा में मिला 2500 साल पुराना एक रहस्यमय साधु ||

हिमालय की रहस्य में गलियों में एक आदमी को किसी की आवाज सुनाई देती वो आदमी उस आवाज का पीछा करने लग जिससे पूरा हिमालय गूंज रहा हो उस रोबदार आवाज का पीछा करते करते वो आदमी एक रहस्यमय गुफा में पहुंच जाता है जी जहां उसे एक चमत्कारी साधु दिखाई पड़ता है और वहां तुरंत व सामने आ जाता है एक रहस्य महल अब सभी के मन में कई सारे सवालों के भवर उठ रहे हो जैसे कौन था वो साधु उस साधु ने उस आदमी को अपने पास क्यों बुलाया आखिर उस आदमी का उस साधु के साथ भला क्या रिश्ता था कोई नहीं इसमें आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है हम आपको बताते हैं कि उस आदमी के बारे में जिसे दुनिया में लोग एक बाबा के तौर पर जानते तो चलिए शुरू करते हैं हिमालय के बर्फ से बनी श्याम चरण लाहिरी गुफा की कहानी देखिए सभी को पता है

श्याम चरण लाहिड़ी महाराज


कि उत्तराखंड को देवों की भूमि कहा जाता है यहां पर जमीन पर भगवान का वास माना जाता है जिस वजह से यहां के लोगों पर भगवान की कृपा बनी रह उत्तराखंड के कैलाश पर्वत को तो आप सभी जानते ही होंगे यहीं पर रानी खेत नाम की भी एक जगह है जो अपनी सुंदरता और मन को मोहने वाले पहाड़ों की तरफ ती यहां हर इंसान आकर नेचर की गोद में सोना चाहता है रानी खेत में ही एक आदमी के साथ एक ऐसी घटना हुई कि उससे उस आदमी की तो जिंदगी बदली ही साथ में दुनिया के लोगों ने भी उसे जान बता दें कि ये आदमी कोई और नहीं बल्कि श्याम चरण लाहिड़ी बाव वही श्याम चरण ला बाबा जिसे लोग आज विश्व गुरु के नाम से भी जानते हैं दरअसल 18वीं सदी के महान साधकों में बाबा श्याम चरण लाहिड़ी का भी नाम आता है जिन्होंने अपनी योग शक्ति और प्रवचन से लोगों को सांसारिक मोह से दूर रहने का उपदेश दिया कहते हैं


दोस्तों लाहिड़ी बाबा का जन्म पश्चिम बंगाल के कृष्ण नगर के घरनी गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ उनके घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी इसलिए बाबा को बड़े ही कम उम्र में नौकरी करनी पड़ी  श्याम चरण लाहिड़ी महाराज जी आज से करीब 1800 साल पहले आर्मी में अकाउंटेंट की पोस्ट पर थे काम करते हुए उनका समय गुजर रहा था तभी एक दिन अचानक से उनके पास ऑफिस से एक कॉल आता है कि उनका ट्रांसफर जो है उत्तराखंड के रानी खेत में कर दिया गया दरअसल उन्हें खबर मिली कि सेना का नया कैंप लगाया जा रहा है जिसके लिए लेहा बाबा का ट्रांसफर किया गया अब जैसा कि आप सभी को पता है


कि उस टाइम में पहाड़ पर आने जाने के लिए कोई ऐसी खास ट्रेन बस या ट्रक नहीं हुआ करती लोग पैदल या घोड़े पर सवार होकर ही कहीं पर आते जाते इसलिए लिहा महाराज भी अपने कुछ साथियों और घोड़े की बग्गी के साथ पहाड़ी के रास्ते से जा इस समय उन्हें नापुर से रानी खेत पहुंचने के लिए तकरीबन 30 दिनों का टाइम ल क्योंकि श्याम चरण लाहिड़ी जी रानी खेत पहली बार आए थे तो जब भी वह ऑफिस के कामों से फ्री होते पु रानी खेत की सुंदर वादियों में सैर करने निकल जाते हां लेकिन यहां आने से पहले उन्हें यह पता था कि यहां पर बड़े बड़े साधु संत दुनिया की जो चीजें हैं उनको त्याग कर इस जगह तपस्या करने आते थे और यहीं पर रहते भी थे यह सब जानने के बाद और रानी खेत आने के बाद श्याम चरण लाहिरी बाबा के मन में भी सभी की तरह जिज्ञासा हुई कि भाई उन्हें  भी किसी ना किसी साधु संत से जोड़ जरूर ना है


इसलिए वो अपना ज्यादातर समय पहाड़ियों में बिताया गए अब एक बार क्या हुआ कि लाहिरी बाबा पहाड़ियों की खूबसूरत वादियों का मजा उठा रहे तभी अचानक ही उन्हें एक आदमी की आवाज सुन जो बड़ी रोबदार आवाज ी पहले तो अब बाबा ने उस आवाज पर ज्यादा ध्यान दिया नहीं और अनसुना करते हुए आगे की तरफ चल दिया लेकिन फिर से उन्हें वो आवाज सुनाई देने लगी आवाज सुनते ही वो एकदम शॉक्ड हो गई क्योंकि उन्हें लगा कि सुनसान शांत पहाड़ियों में उन्हें ही कोई बुला रहा जिसके बाद आवाज और अपने नाम सुनते ही वो द्रोणागिरी पर्वत की तरफ जाने लगे हालांकि उन्हें यह भी टेंशन हो रही थी कि उन्हें पैदल भी जाना है खैर चलते चलते वो आगे पहुंचे जहां दोनों तरफ गुफाएं बनी हुई थी व जैसे ही उस गुफा में पहुंचे वैसे ही उन्हें एक दिव्य चमत्कारी साधु दिखाई दि बाबा लिहा यह सब देखकर जो है


एकदम चौक जा तभी साधु ने उनसे कहा कि मैंने ही तुम्हें आवाज दी मैंने ही तुम्हें यहां पर बुलाया है और इतना कहने के बाद साधु ने बाबा लिहा को गुफा में आराम करने के लिए भी कहा लिहा महाशय यह सब देखकर तो बिल्कुल हैरान थे फिर उस चमत्कारी साधु ने कोने में पड़े एक कंपल की तरफ इशारा किया और बाबा ले ड़ी से पूछ क्या तुम्हें ये कंबल याद है उस वक्त इस पर बाबा लिहा ने जवाब दिया था नहीं महाराज ये कंबल मेरा तो नहीं है लेकिन रात होने वाली है और अंधेरे में यहां से जाने में परेशानी होगी सुबह-सुबह मुझे ऑफिस भी जाना है जहां मेरे लिए बहुत सारा काम पड़ा हुआ है अब यह सब सुनकर उस साधु ने कहा ऑफिस के लिए तुम नहीं आए हो यहां तुम्हें लाने के लिए ऑफिस लाया गया संत के मुह संत के मुंह से ऐसी बातें सुनकर वो चिंता में पड़ग कि भाई यहां रानी खेत में रहने वाला संत मेरे बारे में इतना सब कुछ कैसे जानता मेरा नाम मेरी नौकरी के बारे में अब आखिरकार उस संत के साथ उसका क्या संबंध क्या वो दोनों पहले कभी मिले या उनसे कोई गलती हो गई है ऐसे कई सवाल बाबा लिहा के मन में उठ तब उस दिव्य संत ने कहा तुम्हें यहां किसी कारण से बुलाया गया है यह मेरी ही इच्छा शक्ति है कि तुम यहां पर बैठे हुए हो और मैंने ही तुम्हारी सेना के अधिकारी के मन में यह बात डाली थी कि तुम्हारी पोस्टिंग यहीं पर करनी है


क्योंकि पहले रानी खेत में कोई कैंप नहीं हुआ करता था साधु के आगाह करने के बाद ही सेना अधिकारी ने यहां पर कैंप लगाया और तुम्हें बुलाया गया अब उस संत का बस एक ही मोटिव था कि बाबा लाहिड़ी को अपने पास बुलाने का इतना कहते ही उस चमत्कारी संत ने बाबा के माथे पर हाथ रखा और हाथ रखते ही लाहिरी महाराज को सब कुछ याद आने लगा तब उन्हें सब याद आ गया कि यह कोई आम बाबा या साधु नहीं है बल्कि यह तो पुराने जन्म में उन्हीं के गुरु महा अवतार बाबा जो बाबा लाहिड़ी को उनके पहले जन्म में शिक्षा दिया करते थे वो भी और उन्हें ये भी याद आया कि उन्होंने पहले जन्म में कई साल इसी गुफा में उस कंबल पर योग साधना करते हुए बहुत समय बिताया अब अपने पहले जन्म की उन यादों को याद करके बाबा लाहिरी बहुत खुश हुए और उसी रात उस महान संत ने लाहिड़ी महाराज को उनके पूर्व जन्म के बंधनों से मुक्ति दिलाने के लिए भी अपनी चमत्कारी और आलौकिक शक्तियों से वहां एक सुंदर रत्नों से जड़ा पहल बनवाया कहते हैं लाहिरी बाबा के पूर्व जन्म में उनकी इच्छा थी कि वो रत्नों से जुड़ा एक महल बन पाए लेकिन जैसे ही उनका मोह रत्नों से जुड़े महल से भंग हुआ वैसे ही वो महल वहां से गायम इसके बाद लाहिड़ी महाराज ने पुराने जन्म के सभी कर्मों से मुक्ति पाई और वहीं पर सात दिनों के लिए समाधि में ली यहां उन्हें उस दिव्य साधु से जो भी प्राप्त हुआ उसे क्रिया प्रयोग कहते हैं और ऐसा कहा जाता है कि क्रिया योग की पति केवल बड़े सिद्ध साधुओं को भी होती है यह क्रिया पूरी तरह शास्त्र पूर्ण और गीता इसकी पूंजी है


गीता में कर्म ज्ञान सांख्य जैसे सभी योग वो भी इतने सहज तौर से जिसमें जाति और धर्म के बंद रुकावट नहीं वही सात दिनों की कठिन तपस्या के बाद बाबा लाहिड़ी ने अपने गुरु यानी कि उसी संत के साथ रहने की तपस्या जाहिर की कहा कि वो अपने पूरे जीवन भर उस संत के साथ ही रहना चाहते तब उस संत ने कहा नहीं तुम इस जन्म मेरे साथ नहीं रह सकते तुम्हें यहां इसलिए बुलाया गया है कि तुम आम जनता के बीच रहकर उन्हें भक्ति के रास्ते पर लाओ उनका बंधन सांसारिक मोह माया से दूर करवाओ तुम्हारे इस जन्म का उद्देश्य यही है कि तुम्हें सबको सही रास्ते पर ले जाना अब ग्रस्त जीवन जीते हुए आम लोगों को जीवन की सही बातें भी बतानी है संत ने आगे यह भी कहा कि एक साधु गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी क्रिया योग से ब्रह्मा को पा सकता है इसके साथ संत ने बाबा से यह भी कहा कि जब भी उन्हें उनकी जरूरत होगी उनके गुरु उनके साथ हो गए या उनके सामने प्रकट हो जाए उनका इस जन्म का उ देश आम लोगों के बीच रहकर ही अपनी भूमिका निभाना उन लोगों को यह बताना होगा कि गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी प्रिया योग से ब्रह्मा को पाया जा सकता है


अब अपने गुरु से शिक्षा लेने के बाद व गुफा से वापस आए और अपने आर्मी कैंप की तरफ जाने कैंप में उन्हें वापस आता देख सभी लोगों के चेहरे से खुशी नहीं हटाई क्योंकि उन सब ने यह मान लिया था कि लाहिड़ी महाराज कहीं इन पहाड़ियों में खो तो नहीं गए लेकिन कैंप में वापस आने के बाद ला महाराज के साथियों ने बताया कि उनका ट्रांसफर गलती से यहां पर हो गया है उनकी जगह किसी और का ट्रांसफर यहां पर हो जिसके बाद लाहिड़ी महाराज अपने साथियों की तरफ देखते हुए थोड़ा मुस्कुराते और फिर अपनी नौकरी से इस्तीफा देते उसके बाद सन 1880 में अपने परिवार और पेंशन को लेकर बाबा भोलेनाथ की नगरी को काशी आ काशी आने के बाद उन्होंने अपने परिवार और आम लोगों को पिया योग सिखाना शुरू कर दिया इनकी गीता की आध्यात्मिकता व्याख्या ऊंचे स्थान पर है इन्होंने वेदांत सांख्य योग दर्शन और अनेक सघनता की व्याख्या भी प्रकाशित इनकी प्रणाली की सबसे बड़ी खास बात तो यह थी कि गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी क्रिया योग से ब्रह्मा को पा सकता है और तो और सांसारिक जीवन में रहते हुए मोह माया से दूर रह जा सकता है


लोगों का कहना है कि शरद साईं बाबा के गुरु की लाहिरी बाबा की लाहिरी बाबा से संबंधित एक किताब पुराण पुरुष योगीराज श्याम चरण लाही में इसका जिक्र मिलता है इस किताब को बाबा लाहिड़ी के पर पोते सत्य चरण लाहिड़ी ने अपने दादाजी की हस्त लिखित डायरियो के हिसाब से डॉक्टर अशोक कुमार टोपा से बंगाल भाषा में लिख पाए और फिर बंगाल से मूल अनुवाद छविनाथ मिश्र ने किया था दोस्तों साईं बाबा ने अपने गुरु की निशानियां को संभाल कर रखा था बाबा के गुरु की खंडव उनके चिलम और माला को बाबा की समाधि लेने के बाद आज भी संभाल कर रखा गया है उनके पास एक ईट भी थी जिसका रिश्ता उनके गुरु से ही था उनके गुरु सेलू के वैकुंठ बाबा थे और तो और लाहिड़ी महाशय से भी उन्होंने शक्तियां हासिल की


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