
पौराणिक कल के 7 ऋषि जिनसे देवता भी डरते थे !
मित्रों हमेशा से भारत जैसे देश में ऋषि मुनियों का बहुत खास महत्व रहा है कहा जाता है कि ऋषि मुनि ज्ञान का आधार होते थे अपने आश्रमों में लोगों को पढ़ाना समाज का मार्ग दर्शन करने के लिए शास्त्रों और स्मृतियों का निर्माण करना जैसे कई काम ऋषि मुनियों के द्वारा ही किए जाते थे लेकिन आपको बता दें कि सभी ऋषि मुनियों में सबसे खास स्थान सप्त ऋषि का है और अब वह कौन थे और क्यों उनसे देवता भी डरते थे चलिए जानते हैं मित्रों बता दें कि सप्तऋषि की उत्पत्ति परमपिता ब्रह्मा जी से मानसिक संकल्प से हुई थी
यह सप्त ऋषि एक तरह से नक्षत्र लोक में सप्त ऋषि मंडल में रहते हैं वहीं दूसरे रूप में तीनों लोकों में खास तौर से धरती पर रहकर लोगों को धर्म के रास्ते और सदाचार की शिक्षा देते हैं जब चार युग गुजर जाएंगे तब वेदों का अपमान होगा तब उस समय सातों ऋषि धरती पर अवतरित होकर वेदों का उद्धार करेंगे वो सात ऋषि हैं कश्यप अत्री वशिष्ठ विश्वमित्र गौतम जमदग्नी और भारद्वाज आज आइए अब एक-एक करके जानते हैं इनके बारे में सबसे पहले कश्यप ऋषि मित्रों उन महान सप्त ऋषियों के नाम में सबसे पहला नाम आता है महर्षि कश्यप का जिनका खास योगदान रहा है उन्हें ही धरती का सरचन करने का श्रेय दिया जाता है
महर्षि कश्यप अपने गुणों तेज और तप के बल पर उच्च महा विभूतियों में गिने जाते हैं महर्षि कश्यप के पिता का नाम मरीच था जो ब्रह्मा जी के मानस पुत्र थे जिनका आश्रम मेरू पर्वत के शिखर पर था श्री नरसिंह पुराण और विष्णु पुराण के मुताबिक मित्रों महर्षि कश्यप ने दक्ष प्रजापति की 13 पुत्रियों से विवाह किया था उनकी 13 पत्नियों के नाम है अदिति दती धनु अरिष्ठा सुरसा खासा सुरभी बंता तामरा कोध वशा इरा कुद्र और मुनि देवी अदिति के गर्भ से 12 आदित्य कहलाए आदिति के गर्भ से 49 पुत्रों का जन्म हुआ इंद्रदेव ने इन्हें अपने ही तरह देवता बना लिया वहीं महर्षि के पुत्र विवस्वान हुए और विवस्वान से मनु का जन्म हुआ जिन्हें वैव सत मनु के नाम से जा ना जाता है महर्षि कश्यप की पत्नी दती के गर्भ से हिरण्याक्ष और हिरण कश्यप नाम के पुत्र और सिंहिका नाम की पुत्री का जन्म हुआ था देवी नु के गर्भ से अरिष्ट हयग्रीव विभाव शु अरुण धुम रकेश जैसे 61 महान पुत्रों की प्राप्ति हुई पत्नी अरिष्ठा से गंधर्व ने जन्म लिया वहीं मित्रों देवी सुरसा से कई विद्या दर्पण उत्पन्न हुए पत्नी खसा से यक्ष और राक्षस सुरभी से गौ भैंस और दो खुर वाले पशुओं का जन्म हुआ था बिनता से भगवान विष्णु के वाहन पक्षीराज करुण और भगवान सूर्य के सारथी अरुण देव हुए इतना ही नहीं मित्रों तामरा ने बाज गिद्ध और शिकारी पक्षियों को क्रोध वशा ने बाघ यानी हिंसक पशुओं को रानी वनस्पतियों को जन्म दिया तो देवी कतरों की कोक से शेषनाग आदि सर्पों की उत्पत्ति हुई है और मुनि नाम की पत्नी से अप्सराओं का जन्म हुआ था अब इस तरह से देखा जाए तो सभी मनुष्य पशु पक्षी वनस्पतियों और देवी देवता आदि कश्यप जी की संताने हैं
महर्षि कश्यप कपने समाज को एक नया रास्ता दिखाने के लिए स्मृति ग्रंथ की रचना की थी उन्होंने कश्यप संहिता की रचना करके तीनों लोकों में अमरता प्राप्त की थी इतना ही नहीं मित्रों ऐतिहासिक दस्तावेजों की माने तो कैस्पियन सागर और भारत के कश्मीर का नाम भी महर्षि कश्यप के नाम पर रखा गया है जी हां ऋषि अत्री अब इस लिस्ट में मित्रों महर्षि अत्री का नाम भी आता है महर्षि अत्री भी भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्र थे और इनका जन्म ब्रह्मा जी के नेत्रों से हुआ था बता दें कि महर्षि यात्री का विवाह ऋषि कद्रम और देव भती की बेटी देवी अनुसुइया से हुआ था द्वापर युग में भगवान कृष्ण महर्षि त्री के ही वंशज थे मार्कंडेय पुराण श्रीमद् भागवत व महाभारत के सभा पर्व की माने तो त्रिदेव के वरदान के चलते ही महर्षि अत्री और देवी अनुसुइया को बेटे की प्राप्ति हुई थी त्रिदेव के वरदान के कारण ही ब्रह्मा जी के अंश से सोम यानी चंद्रदेव श्री हरि के अंश से दत्तात्रय और शिवजी के अंश से ऋषि दुर्वासा का जन्म हुआ था मित्रों महर्षि अत्री के बारे में सबसे ज्यादा जानकारी ऋग्वेद में मिलती है ऋग्वेद के पांचवें मंडल के दृष्टा महर्षि आत्री ही हैं इसलिए इस मंडल को आत्र मंडल के नाम से जाना जाता है इस मंडल में कुल 87 वेद मंत्र हैं
त्रेता युग में ऋषि अत्री चित्रकूट में निवास कर रहे थे तब राम जी माता सीता और लक्ष्मण जी के साथ अत्री जी के आश्रम में पधारे थे उस समय महर्षि अत्री ने प्रभु श्री राम को दिव्यास्त्र और कभी ना खत्म होने वाले बाण दिए थे उन्होंने आयुर्वेद में भी कई योगों का निर्माण किया था मित्रों उनके ऊपर देवताओं के चिकित्सक यानी अश्विनी कुमारों की खास कृपा थी महर्षि अत्री ज्योतिष से जुड़े 18 ऋषियों में से भी एक थे इनकी पत्नी अनुसुइया की गिनती 16 सदियों में की जाती है अनुसूया के कठोर तप से ही गंगा की एक धारा चित्रकूट में मंदाकिनी नदी के नाम से बहती है वशिष्ठ अब मित्रों भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्र महर्षि वशिष्ठ भी सप्त ऋषियों में से एक माने जाते हैं
इनकी उत्पत्ति ब्रह्मा जी के प्राण वायु से हुई थी यही आगे चलकर इवाक वंश के कुल गुरु और श्रीराम और उनके भाइयों के गुरु भी थे इन्हें ऋग्वेद के सातवें मंडल का लेखक और अधिपति माना जाता है ऋग्वेद के सातवें अध्याय के मुताबिक वशिष्ठ जी ने सबसे पहले अपना आश्रम सिंधु नदी के तट पर बसाया था उसके बाद में गंगा और फिर आखिर में सरयू नदी के किनारे आश्रम की स्थापना की थी महर्षि वशिष्ठ के पास मित्रों कामधेनु गाय की बेटी नंदिनी गाय थी यह दोनों गाय सभी इच्छाओं को पूरी करने वाली थी महर्षि वशिष्ठ योग वशिष्ठ वशिष्ठ धर्मसूत्र वशिष्ठ संहिता और वशिष्ठ पुराण के निर्माता हैं आदि शंकराचार्य जी ने ऋषि वशिष्ठ को प्रथम बताया है
मित्रों पुराने समय में राजा गांधी के एक पुत्र हुआ करते थे जिनका नाम कौशिक था जो आगे चलकर विश्वमित्र के नाम से ही जाने गए एक बार राजा कौशिक अपनी सेना के साथ महर्षि वशिष्ठ के आश्रम में उनका आशीर्वाद लेने गए थे तब वशिष्ट जी ने ही उनसे कुछ दिनों के लिए वहां पर रुकने के लिए कहा राजा कौशिक ने उनका अतिथ स्वीकार किया तब राजा कौशिक को यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि नंदनी गाय किसी भी तरह की सामग्री पल भर में उपस्थित कर देती तब उन्हें नंदिनी को प्राप्त करने की लालसा होने लगी उन्होंने वशिष्ठ जी से नंदिनी गाय को देने की विनती की जब महर्षि वशिष्ठ ने मना कर दिया तब राजा कौशिक जबरदस्ती नंदिनी को ले जाने लगी महर्षि वशिष्ठ ने राजा कौशिक की पूरी सेना को खत्म कर दिया राजा कौशिक एक ब्राह्मण से हार चुके थे इसलिए बदला लेने के लिए अपना राज पाठ त्याग कर घोर तपस्या करने चले गए उन्होंने कठिन तपस्या करके ब्रह्मास्त्र के साथ-साथ कई दिव्यास्त्र प्राप्त किए उसके बाद वह ऋषि वशिष्ठ के आश्रम में पहुंचे और उनसे युद्ध करने लगे उन्होंने एक-एक करके सभी दिव्यास्त्र का इस्तेमाल किया फिर भी महर्षि वशिष्ठ को हरा नहीं पाए मित्रों कौशिक को बार-बार हराने के बाद भी वशिष्ठ जी ने उनका वध नहीं किया था तब राजा कौशिक के मन में छुपकर वार करने की सोच आई जब वह छिपकर महर्षि वशिष्ठ के आश्रम पहुंचे तब वशिष्ठ जी अपनी पत्नी से बातें कर रहे थे महर्षि वशिष्ठ ने राजा कौशिक की तारीफ की अपने लिए इतने उच्च विचार सुनकर वह तृप्त हो गए और दोबारा तपस्या में लीन हो गए विश्वामित्र मित्रों बता दें कि विश्वामित्र के बारे में रामायण में मिलता है एक बार विश्वामित्र जी राजा दशरथ के दरबार में पहुंचे और उनसे कहा कि राजन मेरे आश्रम पर असुर आक्रमण करते हैं और उन्हें कोई भी काम नहीं करने देते इसलिए आप हमारी उनसे रक्षा करें तब श्री राम और लक्ष्मण जी उनके साथ जाते हैं वहीं श्रीराम पहुंचकर उनके आश्रम की रक्षा करते हुए कई राक्षसों का वध कर देते हैं
मित्रों महर्षि का जन्म राजा गाधी के पुत्र कौशिक के रूप में हुआ था राजा कौशिक जब वशिष्ठ जी से हार गए तब उन्हें यह महसूस हुआ कि क्षत्रिय बल से ज्यादा शक्तिशाली ब्रह्म तेज है इसलिए वह इस तेज को पाने के लिए कठिन तपस्या करने चले जाते हैं उसके बाद उन्होंने हजारों सालों की कठिन तपस्या करके ब्रह्मर्शी का पद हासिल किया जब भगवान ब्रह्मा ने सभी देवताओं के साथ-साथ विश्वमित्र जी के पास आकर उनसे कहा कि तुमने ब्रह्मर्षि का पद प्राप्त कर लिया है तब ऋषि विश्वामित्र ने कहा कि खुद वशिष्ठ जी मेरे पास आकर यह बात कहे तभी महर्षि वशिष्ठ ने विश्वामित्र जी के पास आकर यह कहा कि अब आप ब्रह्मर्शी हो गए हैं तो मित्रों इस तरह विश्वामित्र जी जन्म से ब्राह्मण तो नहीं थे लेकिन कठिन तपस्या करके उन्होंने ब्रह्म शि का पद प्राप्त कर लिया था महर्षि गौतम मित्रों महर्षि गौतम ब्रह्मा जी के मानस पुत्र अंगिरा के वंशज हैं
पुराणों में कथा मिलती है कि गौतम जन्मांध ते उन पर कामधेनु गाय खुश हुई और य ने उनका तम यानी अंधत्व हर लिया था तब से उन्हें गौतम कहा जाने लगा गौतम ऋषि का विवाह देवी अहिल्या से हुआ था शादी के बाद इनके घर एक पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम महर्षि सतानंद था जो राजा जनक के राज पुरोहित बने थे सतानंद जी ने ही श्रीराम और देवी सीता का विवाह संपन्न करवाया था मित्रों देवराज इद्र ने जब देवी अहिल्या के साथ ल किया था तब ऋषि गौतम ने इंद्रदेव को श्राप दिया और अपनी पत्नी को भी पत्थर का पंचाने का श्राप दे दिया था लेकिन जब गौतम जी का गुस्सा शांत हुआ तो उन्होंने देवी को वरदान भी दिया कि वह प्रभु राम के चरणों को छूकर ही इस श्राप से आजाद हो पाएंगी उसके बाद ऋषिवर हिबान पर्वत पर तपस्या करने चले गए वहीं जब मित्रों राम जी की चरण धूल से अहिलिया फिर से पवित्र हो गई तब ऋषिवर ने उन्हें दोबारा स्वीकार कर लिया उन्होंने न्याय शस्त्र की रचना की थी और तो और अपने तप से शिवजी को प्रसन्न करके उनसे त्रिंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग और गोदावरी की उत्पत्ति का वरदान मांगा था महर्षि चमक मित्रों श्री हरि विष्णु के अवतार भगवान परशुराम के पिता महर्षि जमदग्नी का नाम भी इस सप्त ऋषियों की सूची में आता है महर्षि जमदग्नी ब्रह्मा जी के मानस पुत्र रगु के वंशज हैं उनका विवाह राजा प्रसेनजित की पुत्री रेणुका से हुआ था रेणुका ने विवाह के बाद पांच पुत्रों को जन्म दिया था उनके नाम थे रुक्म वान सुखे वसु विश्वान और परशुराम ऋषि जमदग्नी की पुत्री रेणुका पवित्रता और आज्ञाकारी महिला थी एक बार रेणुका पानी लेने के लिए नदी पर जाती हैं वहां पर गंधर्व चित्ररथ और अप्सराओं को देखकर भूल जाते हैं कि उन्हें पानी लेकर घर जाना था इधर घर के बाहर उनके पति यज्ञ कर रहे होते हैं पानी के बिना वो यज्ञ अधूरा रह जाता है जब वो घर पहुंचती हैं
तो ऋषि जमदग्नी अपनी योग शक्ति से सारी बातें पता कर लेते हैं और गुस्से में आकर अपने पुत्रों को उनकी माता का गला काटने को कहते हैं माता के मुंह को देखते हुए चारों पुत्र मना कर देते हैं लेकिन परशुराम जी पितृ आज्ञा मानकर माता का वध कर देते हैं उनकी पितृ भक्ति को देखकर पिता उनसे वरदान मांगने को कहते हैं तब वह अपनी माता को दोबारा जीवित करने की प्रार्थना करते हैं महर्षि भारद्वाज मित्रों सप्त ऋषियों में महर्षि भारद्वाज का उच्च स्थान है महर्षि भारद्वाज देवगुरु बृहस्पति और ममता के बेटे थे महर्षि भारद्वाज मंत्र अर्थशास्त्र शस्त्र विद्या आयुर्वेद जैसे विषयों के विशेषज्ञ और वैज्ञानिक थे ऋग्वेद के छठे मंडल के दृष्टा भारद्वाज जी ही कह गए हैं इस मंडल में भारद्वाज के 765 मंत्र है इतना ही नहीं अथर्ववेद में भी भारद्वाज के 23 मंत्र हैं बता दें कि महर्षि भारद्वाज को व्याकरण का ज्ञान देवराज इंद्र से प्राप्त हुआ था वहीं महर्षि भगु ने उन्हें धर्मशास्त्र के बारे में बताया था वाल्मीकि रामायण के अनुसार मित्रों ऋषि भारद्वाज वाल्मी के शिष्य थे इसके साथ ही चरक संहिता के अनुसार भारद्वाज ने इंद्रदेव से आयुर्वेद का ज्ञान प्राप्त किया था महर्षि ने आयुर्वेद संहिता भारद्वाज स्मृति भारद्वाज संहिता राज शस्त्र विमान शास्त्र जैसे ग्रंथों की रचना की थी इनके इसे योगदान को देखते हुए सप्त ऋषियों के नाम में उच्च स्थान इनको मिला है पहली बार महर्षि भारद्वाज ने ही विमान शास्त्र पर एक शास्त्र लिखा था इस शास्त्र में आठ अध्याय और 3000 श्लोक हैं इसमें यात्री विमान के साथ लड़ाकू विमान अंतरिक्ष यान के बारे में भी जानकारी मिलती है तो मित्रों आपने जाना कि सात शक्तिशाली ऋषि जिनसे सभी देवता कांपते थे
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