सूर्यदेव ने अपने पुत्र शनिदेव का त्याग क्यों कर दिया ?

सूर्यदेव ने अपने पुत्र शनिदेव का त्याग क्यों

भगवान शंकर ने ही शनि देव को न्याय का देवता घोषित किया था और अपने पक्षपत्र रहित न्याय के चलते ही उन्हें न्याय के देवता के तोर पर पूजा जाने लगा ऐसा माना जाता है की उसके पाप और बुरे कर्म का डंडे देते ही है ऐसे में आई अब मिलकर यह जानते हैं की शनिदेव के पिता सूर्यदेव ने उन्हें अपना पुत्र माने से माना क्यों कर दिया सूर्यदेव की पत्नी संध्या की छाया के गर्भ से हुआ जानकारी के लिए बता दे की सूर्य देव स्वयं देवताओं की माता आदि थी और महर्षि कश्यप के पुत्र हैं माता छाया के कठोरताभ के बाद शनि देव अमावस्या को सौराष्ट्र के श्रंखौर में हुआ बता दें की देवी संध्या ने अपनी छाया की उत्पत्ति की और उसे सूर्योदय के साथ-साथ उनके पुत्रों की देखभाल करने को कहा क्योंकि देवी संध्या अपने पति सूर्य तो सहने नहीं कर का रही थी

सूर्यदेव ने अपने पुत्र शनिदेव का त्याग क्यों कर दिया ?
सूर्यदेव ने अपने पुत्र शनिदेव का त्याग क्यों कर दिया ?

इसी करण अपनी छाया की उत्पत्ति छाया को पता चला की वो गर्भवती है तभी उन्हें देवी संध्या ने वन में बुलाया की अब तुम्हारा समय पूर्व हुआ तुम यहां से चली जो तुम एक दासी हो और तुम मेरे प्रभु के करीब नहीं  ho ye शक्ति देवी संध्या की बातें सुनकर उनकी छाया जोर-जोर से Rone  लगी और उसने कहा दीदी मैं तो आपकी छोटी अवस्था में कहा जाऊंगी मेरे साथ ऐसा Anarth ना करें उधर पेड़ के पीछे खड़े होकर सुरूर देव ये सब देख रहे थे क्योंकि उन्होंने छाया का पीछा किया था देवी संध्या और छाया की यह बातें सुनकर वो सामने आए और अपनी पत्नी से खाने लगे संध्या मेरी प्रिया अगर आप यहां थी तो मेरे साथ कौन र रहा था और ये स्त्री कौन है अपने पति की बातें सुनकर देवी संध्या ने सूर्य देव को पुरी बात बताई जिसके बाद इस सूर्य देव भी छाया का तिरस्कार करने लगे और वो रोटी हुए वहां से चली गई गर्भावस्था में ही छाया देवों के देव महादेव की घर तपस्या में ली हो जाति है और फिर कुछ शब्द भगवान देते हैं


अब क्योंकि वो भोलेनाथ की भक्ति में ली थी इसीलिए वो अपने स्वास्थ्य का सही से ध्यान नहीं रख पे भीषण गर्मी और इस स्वास्थ्य की देखभाल इस सही से ना हो अपने के करण शनि देव का रंग नहीं बहुत कल पद गया फिर कुछ समय बाद जब शनि देव का जन्म हुआ तब उनकी माता छाया उन्हें देखकर चौक गए क्योंकि सूर्य देव का पुत्र होने के बावजूद भी शनि देव का रंग शनिदेव एक बालक अवस्था में बादल गए फिर छाया माता ने पूछा की पुत्र तुम इतनी जल्दी बड़े कैसे हो गए जी पर शनि देव बोलते हैं की मैंने गर्भावस्था में आपकी पीड़ा सनी थी और जिसकी बात ने अच्छे पलों में बुरे दूर से गुर्जर रही हो वो शिशु अपनी मां की पीड़ा हारने के लिए जल्दी ही बड़ा होगा शनि देव फिर आगे कहते हैं की चलिए पिताजी के पास चलते हैं मैं आपको आपका अधिकार दिलवाऊंगा फिर शनिदेव और माता छाया सूर्यलोक की और गए जहां भगवान ने सूर्य का आसन था मत ए छाया को देखकर देवी संध्या और इस सूर्य देव आश्चर्य चकित हो गए और उसे केन लगे की तुम यहां क्या करने आई हो जी पर शनि देव ने अपने पिता से कहा मैं आपके आया हूं शनि देव की बातें सुनकर सूर्योदय क्रोध में ए गए और उन्होंने कहा तुम जैसा कुर बालक मेरा पुत्र नहीं हो सकता


ना जान तुम्हारी माता ने किसके साथ है रिश्ता बनाया जिसका अपना पुत्र नहीं मानता छाया सूर्यदेव की बटन पर रन लगती है अरे कहती है मैंने आपसे पूरे मां से प्रेम की जिसका यह परिणाम है मेरे चरित्र को यूं तार तारीन ना करें यह सब देखने के बाद इस शनि देव ने अपना प्रकोप दिखाना शुरू किया जिससे सूर्यदेव के साथ-साथ पूरा सूर्य लोक अंधकार में डब गया उनका क्रोध इतना बाढ़ चुका था की उनके फिर माता छाया ने उनका क्रोध शांत करवाया और कहा की पुत्र ऐसा मत करो पुरी धरती पर आकर मैच गया अपनी माता की बातें सुनकर शनिदेव ने अपने क्रोध को काबू में किया जिसके बाद यह धरती पर पुलिस सूर्यदेव की करने पढ़ने लगी ये देखिए बात भगवान ने सूर्य देव समझ गए की उनका ये पुत्र कितना शक्तिशाली है फिर उन्होंने अपनी प्रियसी छाया से कहा फिर देवी मैं आपको अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करता हूं मैंने आपसे जो भी कहा उसके लिए संध्या रचाया से माफी मांगी उन्होंने कहा मेरे कटु शब्दों ने तुम्हारा हृदय चल ने किया होगा इसीलिए मैं अपनी भूल से बेकार करती हूं इसके बाद इस सूर्यदेव शनि को हृदय से लगाते हैं सबसे बड़ा दुष्ट तुम्हारा हो मैंने अपने ही पुत्र के बड़े में बुरी बातें कहीं अपने पिता की भूल को माफ कर दो जी पर शनि देव अति प्रश्न होते हैं और कहते हैं की अब मैं यहां से जा रहा हूं मुझे अपनी शक्तियों का आभास्वा है लेकिन मैं उन पर नियंत्रण करना नहीं जानता इसीलिए मैं भगवान ने भोलेनाथ की कटोरा तपस्या करूंगा और इतना कहकर वो वहां से चले जाते हैं मित्रों फिर एक वन में जाकर उर्वशी और उनकी पूजा तपस्या से प्रश्न होकर भगवान ने उन्हें दर्शन दिए और वरदान में उन्हें सौर मंडल में जगह दी साथ ही साथ उन्हें न्याय का देवता भी घोषित किया और इतना ही नहीं महादेव ने ये भी कहा तुम्हारे नाम से मनुष्य दानव और देवता सभी कपेंगे अपनी तपस्या को पूर्ण करने के बाद शनिदेव पुलिस सूर्यलोक चले गए जहां उन्होंने देखा किस हसन पर विरार यही लोहे का सिंहासन बनाया गया है ये देखो उन्हें बहुत दुख हुआ और इसके बाद अपने पिता के प्रति शनि देव की सता का भाव बाढ़ गया वो वहां से चले गए और फिर वह दामिनी नाम की कन्या से हुआ जिसकी साक्षी केवल उनकी माता छाया बनी थी तो मित्रों कुछ इस तरह शनि देव अपने पिता के सामने बने और अपनी माता को उनका अधिकार दिलवाया वैसे बता दें की सूर्यदेव ने उनके साथ ऐसा दुर्व्यवहार इसलिए किया क्योंकि ये सब आदिदेव शंकर जी की इच्छा थी उन्होंने ही ये लीला रची ताकि सनी देओल साड़ी मो माया और बंदरों से स्वतंत्र रहे और किसी भी प्राणी के प्रति उचित ढंग से ही कम उठा तो मित्रों आज हमने मिलकर जाना किस सूर्यदेव ने क्यों नहीं अपनाया था ||


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