
देवी दुर्गा | Durga Puja | Durga Story in Hindi
देवी दुर्गा | Durga Puja | Durga Story in Hindi | #durgapuja #durga
आज से लगभग लाखों वर्ष पहले सत्य युग में जब पृथ्वी में पताल लोक के असुरों के राजा रंभ और क्रं नाम के दो भाई हुआ करते थे और वनी संतान होने के कारण निराशा के घोर अंधेरे में डूब चुके थे तब उन्होंने देवताओं की तपस्या करने का निश्चय कर लिया जिसके लिए रंभ ने अग्निदेव को खुश करने के लिए अग्नि के घेरे के बीचोबीच और क्रं ने एक झील में आधा डूबकर वरुण देव की तपस्या करने लगा फिर यूं ही तपस्या करते-करते कुछ वर्ष बीत गए और एक दिन यह बात इंद्रदेव को पता चली फिर उन्हें लगा कि जरूर य दोनों असुर भाई वरदान पाने के बाद देवताओं का ही कुछ अहित करेंगे जिसके बाद
एक दिन इंद्रदेव धरती पर प्रकट हुए और उस झील के पास जा खड़े हुए जहां करं झील में आधा डूबे हुए तपस्या कर रहा था फिर इंद्रदेव ने एक विशाल मगरमच्छ का रूप लेकर झील में प्रवेश किया और करं के ऊपर एक घातक हमला कर दिया जिससे करं की तड़प तड़प कर उसी झील में मौत हो गई और इस घटना का एहसास रंभ को तपस्या करते वक्त ही हो चुका था

और उसने अपने तपस्या के तेज से यह भी पता लगा लिया था कि वह विशाल मगरमच्छ कोई और नहीं बल्कि स्वयं इंद्रदेव हैं रंभ अपने भाई क्रं से बेहद प्रेम करता था और वह उसकी मौत का सदमा सह नहीं पाया इसीलिए उसने अपने तपस्या को वहीं भंग कर एक तलवार प्रकट कर खुद को मारने ही जा रहा था कि अचानक वहां अग्निदेव प्रकट हो गए और उसे ऐसा करने से रोक लिया और रंभ से अपना इच्छित वरदान मांगने को कहा जिसके बाद रंभ ने काफी सोचा और इंद्र देव के दुष्कर्म को ध्यान में रखते हुए अग्निदेव से एक ऐसी संतान मांगी जो इंद्र को परास्त कर सके इतना ही नहीं बल्कि तीनों लोकों में भी राज कर सके जिसके बाद अग्निदेव ना चाहते हुए भी रंभ को यह वरदान दे बैठे कि जो मादा रंभ से प्रेम कर बैठेगी वही उसके उस बलशाली संतान को जन्म देगी इतना कहकर अग्नि देव अंतर्धान हो गए इसके बाद समय यूं ही ब गया और आखिरकार वह समय आ ही गया जब एक महेश वर्ग की राक्षसी को रंभ से प्रेम हो गया फिर महिषी राक्षसी ने अपने वर्ग और परिवार से बगावत कर रंभ के साथ विवाह रचा लिया जबकि यह रिश्ता दोनों के परिवारों और वर्गों को बिल्कुल भी मंजूर ना था इसके कुछ वर्षों के बाद दोनों के बीच संभोग से महिष गर्भवती हुई और समय यूं ही बिता गया फिर एक दिन महिषी वर्ग के कुछ राक्षसों ने रंभ और महिषी को अकेला देख उन हमला बोल दिया जिसके फल स्वरूप रंभ की वही मृत्यु हो गई जिसके बाद महिष ने अपने होने वाले संतान को बचाने के लिए वहां से भाग खड़ी हुई पर उन महिष असुरों ने उसे भी मारने के लिए उसका पीछा किया जिसके बाद महिष भागते भागते यक्ष के अधिकार क्षेत्र में पहुंच गई जहां पहुंचकर महिष ने कुछ यक्ष को सारी बातें बताई जिसके बाद यक्ष महिष की रक्षा के लिए वहीं खड़े हो गए फिर कुछ देर बाद व महिषी राक्षस वहीं पहुंच गए जिसके बाद यक्ष और म राक्षसों के बीच युद्ध शुरू हो गया और इस युद्ध में यक्ष ने उन महिषी राक्षसों को मार गिराया साथ ही महिषी को सुरक्षा प्रदान करने का जिम्मा भी ले लिया महिषी अपने पति रंभ से अत्यंत प्रेम करती थी और वह उसके मौत का सदमा सहन नहीं कर पा रही थी फिर कुछ देर बाद यक्ष ने रंभ के मृत शरीर को अंतिम संस्कार के लिए तैयार किया और महिषी को
इसकी सूचना दी फिर कुछ देर बाद यक्ष द्वारा रंभ के चिता को आग लगाया गया और यह देख महिषी खुद को रोक ना पाई और उस जलती हुई चिता में कूद पड़ी जिसके बाद रंभ के साथ-साथ महिषी भी उस चिता की आग में समा गई और खुद का जीवन समाप्त कर लिया कुछ देर तक यूं ही चिता की आग जलती रही लेकिन कुछ देर बाद उस चिता की अग्नि ने एक भयंकर रूप ले लिया जिसके बाद उस चिता की अग्नि में से एक बेहद बलवान और पहाड़ जैसा दिखने वाला असुर बाहर निकला जिसे देख सभी यक्ष घबरा गए वह इस सृष्टि का पहला ऐसा असुर था जिसे खुद के और अपने लक्ष्य के बारे में सब कुछ पहले से ही पता था और वह असुर कोई और नहीं बल्कि बलशाली महिषासुर था फिर कुछ देर बाद उसी जलती हुई चिता से दोबारा एक भयंकर विस्फोट हुआ और उसी चिता में से एक दूसरा असुर भी बाहर आया और वह असुर कोई और नहीं बल्कि स्वयं रंभ था जो कि पुनर्जन्म लेकर दोबारा लौटा था और इस जन्म में वह रक्त बीज था और यह सब रंभ के द्वारा किए गए अग्नि देव के तपस्या का ही प्रभाव था इसके बाद रक्तबीज ने महिषासुर को पताल लोक चलने की बात कही जिसके बाद महिषासुर ने साफ-साफ मना कर दिया उसने तपस्या और सारी सिद्धियां हासिल करने के बाद ही पताल लोक में कदम रखने का प्रण लिया जिसके बाद महिष सुर निकल पड़ा ब्रह्मदेव की तपस्या करने फिर वह एक शांत वन में जाकर अग्निकुंड का निर्माण कर उसी में बैठ पड़ता है तपस्या करने और ब्रह्मदेव को प्रसन्न करने के लिए वह एक अति कठिन तपस में लीन हो जाता है तपस्या कुछ वर्षों तक यूं ही चलती रही और एक लंबे समय के बाद वह दिन आ ही गया जब ब्रह्मदेव महिषासुर से प्रसन्न होकर प्रकट हुए और फिर उन्होंने महिषासुर से अपना वरदान मांगने को कहा जिसके बाद महिषासुर ने ब्रह्मदेव से सीधा अमर होने का वरदान मांग लिया जिसके लिए ब्रह्मदेव ने साफ मना कर दिया और कोई दूसरा वरदान मांगने को कहा
जिसके बाद महिषासुर ने बड़े ही सोच विचार कर एक ऐसा वरदान मांगा जिसके दौरान कोई भी देवता या राक्षस उसका वध ना कर सके दरअसल महिषासुर स्त्रियों को बेहद कमजोर समझता था उसे हमेशा से यही लगता था कि यदि पुरुष उसका कुछ अहित नहीं कर सकते तो यह स्त्रियां आखिर उसका क्या ही अहित कर लेंगी और उसने खुशी-खुशी ब्रह्मदेव से यह वर मांग लिया फिर ब्रह्मदेव ने महिषासुर को वरदान में सिर्फ एक महाशक्तिशाली स्त्री के हाथों ही अहित होने का वरदान देकर अंतर्धान हो गए जिसके बाद महिषासुर जोड़ों से ठहाके लगाने लगा फिर वह निकल पड़ा और भी अधिक से अधिक वरदान और
सिद्धियां प्राप्त करने की ओर इसके बाद हर एक वरदान प्राप्ति के बाद उसकी शक्ति अर्जित करने की कामना बढ़ती ही जाती उसने तमाम अलग-अलग देवताओं से शक्तियां अर्जित की जिसके बाद उस समय महिषासुर पूरे ब्रह्मांड का एकमात्र महाशक्तिशाली असुर बन चुका था फिर महिषासुर पृथ्वी के कोने-कोने में जाकर भरपूर मारकाट मचाने लगा उसने अन्य असुरों को आसानी से युद्ध में हराकर अपना साम्राज्य स्थापित करना शुरू कर दिया और धी धीरे धीरे पूरी धरती उसके अधीन हो गई महिषासुर यही नहीं रुका उसने स्वर्ग पर भी कब्जा करने की ठान ली और उसने अपने एक दूत को स्वर्ग लोक भेजा
और उस दूत ने इंद्र देव को स्वर्ग लोक खाली कर देने का संदेश सुना दिया जिसके बाद इंद्रदेव आग बबूला हो उठे और उन्होंने समय नष्ट ना करते हुए सभी देवताओं समेत महिषासुर के ऊपर हमला कर बैठे जिसके जवाब में महिषासुर ने देवताओं को मुंह तोड़ जवाब दिया और देवताओं को वापस स्वर्ग लोक भागने पर मजबूर कर दिया और देवता महिषासुर से आसानी से हारकर स्वर्ग वापस आ गए लेकिन देवताओं का पीछा महिषासुर से इतनी आसानी से छूटने वाला नहीं था क्योंकि महिषासुर ने भी बिना समय नष्ट किए देवताओं के पीछे पीछे स्वर्ग पहुंच चुका था और स्वर्ग पहुंचते ही वह अपने असुर सेना के साथ
देवताओं पर टूट पड़ा जिसके बाद स्वर्ग में देवताओं ने भी खूब दमखम के साथ महिषासुर और उसके असुरों के साथ युद्ध किया और अपना पराक्रम दिखाया लेकिन अंत में महिषासुर की क्षमता और शक्ति के सामने देवताओं को स्वर्ग से भी भागना पड़ा और अब महिषासुर का कब्जा स्वर्ग लोक पर भी हो चुका था जिससे कि महिषासुर की छाती और भी चौड़ी हो चुकी थी और यहां देवता स्वर्ग से पलायन कर सीधा ब्रह्मदेव के पास चले गए और ब्रह्मदेव से महिषासुर को दंडित करने की प्रार्थना करने लगे जिसके लिए ब्रह्मदेव ने साफ मना कर दिया जिसके बाद देवता निराश होकर सीधे वैकुंठ लोक यानी कि श्री विष्णु
के पास चल पड़े जिसके बाद इंद्रदेव समेत सभी देवता गण वैकुंठ धाम श्री विष्णु के पास चले आए और उनको सारी बात बताई जिसके बाद श्री विष्णु काफी रुष्ट हुए और देवताओं के बातों से सहमत भी फिर श्री विष्णु समेत सभी देवता चल पड़े पृथ्वी में स्थित कैलाश की ओर जहां त्रिदेव में से एक देवों के देव महादेव अपने ध्यान में लीन थे तभी कैलाश में श्री विष्णु समेत सभी देवताओं का आगमन हुआ फिर सभी देवों ने महादेव के समक्ष महिषासुर के तंक की चर्चा की जिसके बाद महादेव श्री विष्णु समेत सभी देवताओं ने महिषासुर से युद्ध करने की रणनीति बनाई पर युद्ध से पहले देवताओं ने
महिषासुर को स्वर्ग लोक से अपना अधिपत्य छोड़ देने की सूचना भिजवाई जिसे कि महिषासुर ने ठुकरा दी जिसके बाद महादेव श्री विष्णु समेत सभी देवता निकल पड़े स्वर्ग लोक की ओर जहां कि महिषासुर स्वर्ग के सिंघासन में स्वर्ग पति बनकर विराजमान था साथ ही महिषासुर ने भी होने वाले युद्ध का अनुमान लगा ही लिया था जिसके बाद उसने भी युद्ध की तैयारियां करनी शुरू कर दी और देखते-देखते स्वर्ग पर देवताओं का आगमन शुरू हो गया सभी देवताओं का नेतृत्व श्री विष्णु कर रहे थे यहां तक कि महादेव भी युद्ध में हिस्सा लेने देवताओं के साथ स्वर्ग पहुंच चुके थे जिसके बाद महिषासुर
की तरफ से युद्ध का बिगुल बच चुका था फिर देवताओं और असुरों के बीच एक भयंकर महायुद्ध शुरू हो गया जिसके बाद श्री विष्णु समेत सभी देवता मिलकर महिषासुर और उसके प्रमुख योद्धाओं के ऊपर टूट पड़े फिर Aसुर ने भी देवताओं के ऊपर बेहद शक्तिशाली प्रहार करना शुरू कर दिया महिषासुर इंद्रदेव समेत कई देवताओं पर अकेले ही भारी पड़ने लगा जिसके बाद श्री विष्णु सामने आए और अपने गदा प्रहार से महिषासुर को वहीं धूल चटाने लगे जिसके बाद महिषासुर एक भैंस का रूप लेकर चल रहे युद्ध के बीच ओझल हो गया और फिर अपने स्पष्ट रूप में आकर देवताओं पर दोबारा से टूट पड़ा जिससे
कि कई देवता जोखिम हो गए और यहां महादेव अपने त्र ल से महिषासुर के आसुरी सेनाओं को मिट्टी में मिलाते जा रहे थे अपने सेना को समाप्त होता देख महिषासुर ने अपने सिद्ध से अपने सेना को दोबारा से और भी ज्यादा संख्या में उत्पन्न करना शुरू कर दिया और जोरों से ठहाके लगाने लगा यहां महादेव श्री विष्णु और अन्य देव महिषासुर के सेनाओं को हर बार समाप्त करते जाते और महिषासुर हर बार अपने सेना को पहले से भी अधिक संख्या में उत्पन्न करता जाता काफी समय तक ऐसा ही चलता रहा जिसके बाद महाद देव और श्री विष्णु महिषासुर पे काफी ज्यादा क्रोधित हो उठे और अपने महा
अस्त्रों त्रिशूल और सुदर्शन चक्र को महिषासुर पर छोड़ दिया जिसके बाद महादेव के हाथ से निकला त्रिशूल और श्री विष्णु के हाथ से निकला सुदर्शन चक्र महिषासुर के शरीर से टकराकर वापस अपने स्वामी के ही पास लौट गए क्योंकि महिषासुर की रक्षा स्वयं ब्रह्मदेव की वह शक्तियां कर रही थी जो महिषासुर ने ब्रह्मदेव से वरदान के रूप में अर्जित की थी फिर यह देख सभी देवता अचंभे में पड़ चुके थे और वहां महिषासुर जोरों से ठहाके लगाए जा रहा था फिर अचानक महादेव और श्री विष्णु को ब्रह्मदेव का संकेत मिला और ब्रह्मदेव ने दोनों त्रिदेव को युद्ध क्षेत्र से वापस लौटने का संकेत
दिया जिसके बाद दोनों त्रिदेव युद्ध क्षेत्र से अंतर्धान हो गए फिर यह देख सभी देवता भी युद्ध क्षेत्र से दोनों त्रिदेव के पीछे-पीछे चले गए जिसके बाद महिषासुर और उसकी असुर सेना हर्ष उल्लास से इस महायुद्ध को जितने का जश्न मनाने लगे और यहां महादेव श्री विष्णु समेत सभी देवता कैलाश पहुंचे और इसके बाद वहां ब्रह्मदेव भी प्रकट हुए जिसके बाद महादेव ने ब्रह्मदेव से युद्ध क्षेत्र से वापस बुलाने का कारण पूछा जिसके बाद ब्रह्मदेव ने महिषासुर को वरदान में दिए गए शर्त के बारे में सभी देवों को दोबारा से याद दिलाया जिस पर देवताओं ने जवाब दिया कि यह
बात तो सभी देव पहले से ही जानते थे पर वे कर भी क्या सकते हैं सृष्टि में ऐसी कोई स्त्री है ही नहीं जो महिषासुर के समक्ष ठहर सके जिस पर ब्रह्मदेव ने कहा कि महिषासुर का अंत करने के लिए एक ऐसी स्त्री होनी चाहिए जिसके पास सभी देवताओं की कुछ-कुछ शक्तियां मौजूद हो और उस स्त्री के पास सभी देवताओं की शक्तियों को एक साथ संभाल पाने और उसका सही से इस्तेमाल कर पाने की क्षमता भी हो जिस पर देवों ने पूछा कि आखिर इस सृष्टि में ऐसी स्त्री है ही कौन जिसके बाद ब्रह्मदेव के मुंह से देवी पार्वती का नाम निकल पड़ा और उन्होंने कहा कि इस सृष्टि में एकमात्र
देवी पार्वती ही है जो सभी देव देवताओं की शक्तियों को एक साथ संभाल सकती हैं और उसका सही से उपयोग भी कर सकती हैं फिर महादेव और श्री विष्णु समेत सभी देव काफी प्रसन्न और उत्साहित हुए जिसके बाद देवी पार्वती स्वयं का नाम सुनकर सभी देवों के समक्ष आ खड़ी हुई और सभी देवों ने देवी पार्वती को अभिवादन किया जिसके बाद देवी पार्वती ने भी सभी देवों को अपना अभिवादन दिया साथ ही सृष्टि के कल्याण के लिए स्वयं को चुने जाने के लिए ब्रह्मदेव का आभार और खुद को अति भाग्यशाली भी बताया जिसके बाद महिषासुर से एक महाप्रलयंकारी युद्ध करने के लिए महादेव ने देवी पार्वती
को अपना त्रिशूल प्रदान किया इसके बाद श्री विष्णु ने भी देवी पार्वती को अपना सुदर्शन चक्र प्रदान किया इंद्र देव ने अपना वज्र प्रदान किया इसके बाद सूर्यदेव ने अपने रोम कूपों और किरणों का तेज भरकर एक ढाल इसके अलावा दिव्य तलवार और दिव्य सिंह देवी के सवारी के लिए प्रदान किया इसके बाद विश्वकर्मा देव ने देवी को एक अभेद कवच प्रदान किया साथ ही अनेकों अस्त्र भी भी प्रदान किए और अंत में सभी त्रिदेव समेत समस्त देवों ने अपने अपने शक्तियों का कुछ अंश देवी को प्रदान किया फिर देवी पार्वती ने अपना वास्तविक रूप लिया महाशक्ति देवी दुर्गा का और यहां
महिषासुर स्वर्ग लोक से उबक अब पृथ्वी में ही रहते हुए तीनों लोकों का स्वामी बन बैठा था पूरे ब्रह्मांड में महिषासुर की ख्याति चल पड़ी थी वह पृथ्वी समेत पूरे ब्रह्मांड में ज्यादातर राज्यों को जीतकर उनका स्वामी बन बैठा था और एक दिन जब वह अपने सिंहासन में बैठे अपने असुर सैनिकों को कहीं आक्रमण करने की आज्ञा दे ही रहा था तभी अचानक उसके राज्य की जमीन थ्रने लगी जैसे कि कहीं भूचाल आया हो पर जब वह अपने महल के बाहर निकला तो उसने देखा कि उसके असुर सैनिकों में भगदड़ मची हुई है इसके बाद उसका ध्यान दूर से आ रहे विशाल सिंह पर सवार एक विशाल काय स्त्री पर गया
जिसके अनेकों भुजाएं थी बेहद लंबे बाल हवा में लहरा रहे थे और पूरा जमीन उस स्त्री के आगमन से ही थर्रा उठा था उस सिंह पर सवार स्त्री को देख महिषासुर अचंभे में पड़ चुका था और वह समझ चुका था कि वह स्त्री अब सीधे उसके राज्य पर ही हमला करने वाली है फिर महिषासुर ने उस विशाल काय स्त्री को रोकने के लिए अपने सेनापति त्रिनेत्र को लगभग 5 लाख असुर सेना के साथ भेज दिया फिर त्रिनेत्र और उसके असुर सैनिक उस विशाल काय स्त्री के समीप पहुंच तो गए पर देवी दुर्गा के समक्ष क्षण भर भी टिक ना पाएं देवी दुर्गा ने मात्र अपने कुछ कुछ प्रहार से ही त्रिनेत्र समेत उसके
लाखों असुर सैनिकों को वहीं मौत के घाट उतार दिया और महिषासुर दूर अपने महल में खड़े-खड़े यह सब होता हुआ देख रहा था पर उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था फिर कुछ देर बाद जब देवी दुर्गा उसके महल के पास आई और महिषासुर को युद्ध के लिए ललकार लगी तब महिषासुर देवी दुर्गा के बेहद सुंदर रूप को सामने देख काम वासना से भर उठा फिर वह देवी दुर्गा के समीप गया और उनके सामने सीधा विवाह का प्रस्ताव रख दिया जिसके बाद देवी दुर्गा महिषासुर पर काफी क्रोधित हो उठी और दोबारा से उसे युद्ध करने को कहने लगी जिसके बाद महिषासुर जोरों से ठाके लगाने लगा जिस पर
देवी दुर्गा का क्रोध और भी उग्र हो उठा फिर महिषासुर ने देवी दुर्गा से यह बात कह दी कि वह स्त्रियों को युद्ध करने योग्य तो समझता ही नहीं बल्कि स्त्रियां तो सिर्फ पुरुषों के काम वासना की पूर्ति के लिए ही होती हैं जिस पर देवी दुर्गा के अंदर क्रोध की ज्वाला जलनी शुरू हो गई पर फिर देवी दुर्गा ने अपने क्रोध को शांत करते हुए बेहद चतुराई से काम लिया उन्होंने महिषासुर के समक्ष एक प्रस्ताव रखा कि यदि महिषासुर उन्हें युद्ध में हरा देता है तो वह स्वयं खुशी-खुशी उससे विवाह कर लेंगी फिर यह सुनकर महिषासुर जोरों से ठाके लगाने लगता है और बेहद उत्सुकता के
साथ युद्ध के लिए सहमत भी हो जाता है जिसके बाद महिषासुर भी खुद का आकार देवी दुर्गा के इतना ही विशाल काय बना लेता है पर उसकी ऊंचाई देवी दुर्गा के समान नहीं बन पाती और महिषासुर र कद में देवी दुर्गा से छोटा ही रह जाता है जिस पर देवी दुर्गा मुस्कुरा पड़ती हैं और महिषासुर दांत पीसते रह जाता है फिर महिषासुर अपनी तरफ से पहला वार देवी दुर्गा पर कर ही देता है वह देवी दुर्गा पर अपनी आंखों से बेहद घातक रोशनी से लगातार वार करता जाता है जिसे देवी दुर्गा अपने ढाल से रोकने लगती हैं फिर देवी दुर्गा अपने ढाल से महिषासुर के वार को रोकती हुई उसके ऊपर दिव्य अग्नि
का प्रयोग करती हैं पर दिव्य अग्नि से महिषासुर को कुछ खास नुकसान नहीं पहुंचा पाती जिसके बाद देवी दुर्गा अपने तलवार से महिषासुर पर एक तेज दार वार करती हैं जिससे कि उसका कंधा घायल हो जाता है फिर महिषासुर देवी दुर्गा का ध्यान भटकाने के लिए अपने सिद्धि से लाखों असुरों को उत्पन्न कर देवी दुर्गा को युद्ध में व्यस्त कर देता है इतनी बड़ी संख्या में असुर सेना को हथियारों सहित एक साथ में सामने आता देख देवी दुर्गा ने एक जोरदार गर्जना भरते हुए अपने सिंह में सवार होकर उन लाखों असुरों पर टूट पड़ी और यह महायुद्ध होता हुआ पूरा ब्रह्मांड बड़ी
उत्सुकता के साथ देख रहा था देवी दुर्गा ने तेज गति में दौड़ते हुए सिंह में बैठे-बैठे ही अपने तलवार और सुदर्शन चक्र से असुरों का संहार करने लगी इतनी विशालकाय महा वीरांगना को देख पूरी असुर सेना कांपते हुए पीठ दिखाकर तेजी से भागने लगी पर देवी दुर्गा ने किसी को भी भागने नहीं दिया बल्कि सभी का संहार कर अशांत युद्ध भूमि को पूरी पूरी तरह से शांत बना दिया जिसके बाद पूरे शांत युद्ध भूमि में हर जगह सिर्फ धूल ही धूल उड़ने लगे थे फिर देवी दुर्गा उस धुंधले पड़े युद्ध भूमि में महिषासुर को ढूंढने लगी पर महिषासुर कहीं भी नजर नहीं आ रहा था पर अचानक
महिषासुर ने देवी दुर्गा के पीछे से आकर एक तेजधार दिव्य तलवार से उनकी भुजाओं पर वार कर दिया जिससे कि देवी दुर्गा कुछ हद तक घायल भी हो गई और देवी दुर्गा ने क्रोध में आकर उसके पीछे सुदर्शन चक्र को लगा दिया फिर महिषासुर ने सुदर्शन चक्र को चकमा देने के लिए भैंसा का रूप ले लिया जिसके बाद सुदर्शन चक्र महिषासुर को कहीं भी ना पाकर वापस देवी दुर्गा के पास लौट आया इसके बाद देवी दुर्गा महिषासुर को फिर से उस धूल से धुंधले हो चुके युद्ध के मैदान में ढूंढने लगी लेकिन महिषासुर उन्हें कहीं भी नजर नहीं आ रहा था फिर देवी दुर्गा ने अपने सिंह को महिषासुर को
ढूंढने के लिए लगा दिया समय यूं ही बीतता गया और फिर सिंह ने अचानक भ का रूप लिए महिषासुर को ढूंढ ही लिया और उस परे हमला बोल दिया पर भैंसा का रूप लिए महिषासुर के समक्ष सिंह ज्यादा समय तक टिक नहीं पाया और उसने सिंह को अपने जोरदार टक्कर से घायल कर दिया सिंह की पीड़ा गर्जना सुनकर देवी दुर्गा फुर्ती के साथ वहां चली आई और सिंह को सहलाने लगी पर सिंह ने देवी दुर्गा पर ही हमला कर दिया क्योंकि दरअसल वह सिंह कोई और नहीं बल्कि सिंह का रूप लिए महिषासुर ही था जिसके बाद देवी दुर्गा अति क्रोधित हो उठे थी और महिषासुर पर त्रिशूल लेकर कूद पड़ी पर महिषासुर अपने
माया से अचानक वहां से गायब हो गया यूं ही युद्ध होते-होते लगभग 9 दिन बीत चुके थे और अब देवी दुर्गा महिषासुर के साथ-साथ अपने सिंह को भी ढूंढने लगी महिषासुर के छल कपट से देवी दुर्गा अति क्रोधित अवस्था में पहुंच चुकी थी उनका क्रोध चरम सीमा में था और इसी बीच देवी दुर्गा ने अपने सिंह को मूर्छित अवस्था में देखा उसे देखते ही देवी दुर्गा समझ गई कि यह उनका अपना सिंह ही है फिर देवी दुर्गा सिंह की तरफ आगे बढ़ ही रही थी कि दूसरी तरफ से महिषासुर भैंसा का रूप लिए तेजी से देवी दुर्गा की तरफ दौड़ता चला आया और महिषासुर ने अपनी पूरी ताकत लगाकर देवी दुर्गा को
बड़ी तेजी से पीछे की तरफ धकेल हुआ काफी दूर लेकर जाने लगा यहां तक कि एक विशाल काय चट्टान को भी ध्वस्त करते हुए महिषासुर देवी दुर्गा को काफी पीछे की तरफ धकेल ही गया ऐसे ही धकेल हुए वह देवी दुर्गा को लिए काफी दूर पहुंच गया पर फिर अचानक देवी दुर्गा ने अपना संतुलन बनाते हुए महिषासुर को वहीं रोक दिया इसके बाद महिषासुर ने काफी जोर लगा लिया पर देवी दुर्गा को तनिक भी हिलाना पाया फिर देवी दुर्गा ने अपने जोरदार मुखं से महिषासुर के पीठ में वार किया जिससे महिषासुर जमीन में गिर पड़ा और कराने लगा फिर देवी दुर्गा ने अपने पैरों से उसे पलटकर उसके
छाती में त्रिशूल से वार कर दिया इसके बाद महिषासुर जोरों से कराने लगा फिर वह रोने भी लगा और देवी दुर्गा से क्षमा भी मांगने लगा और उसने यह भी मान लिया कि एक स्त्री को कमजोर समझना उसकी सबसे बड़ी भूल थी और अपने सभी करतूतों के लिए देवी दुर्गा से क्षमा की उम्मीद करने लगा जिसके बाद देवी दुर्गा करुणा से भर गई और महिषासुर को एक आशीर्वाद दे दिया कि भविष्य में देवी दुर्गा यानी स्वयं के साथ-साथ महिषासुर को भी पूजा जाएगा जिसके बाद महिषासुर तड़प तड़प कर देवी दुर्गा के हाथों उद्धार पाने की कामना करने लगा जिसके बाद देवी दुर्गा
ने उसके कामना को पूरा करते हुए अपने तलवार के एक ही वार से महिषासुर का सिर धड़ से अलग कर दिया फिर तमाम देवी देवताओं ने देवी दुर्गा के ऊपर फूलों की वर्षा कर दी क्योंकि पूरा ब्रह्मांड महिषासुर के आतंक से मुक्त हो चुका था और साथ ही सभी देवी देवताओं ने देवी दुर्गा को एक और नया नाम दे दिया जो कि कहलाया महिषासुर मर्दिनी इसके बाद देवी दुर्गा खुशी खुशी अपने सिंह के पास जाकर उसके सिर पर हाथ रखकर उसे अचेत कर उसे पहले जैसा ताकतवर बना दिया और फिर उस पर बैठ चल पड़ी कैलाश की ओर
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