Mystery of Dwarka | Dwarka Underwater

Mystery of Dwarka | Dwarka Underwater Real Video | The Lost City

Mystery of Dwarka | Dwarka Underwater
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(51) Mystery of Dwarka | Dwarka Underwater Real Video | The Lost City
साल था 1983 समुद्र के बीचोंबीच एक नाव से कुछ समुद्री गोताखोरों अरेबियन सी में छलांग लगा रहे थे वह गहरे समुद्र में एक खास खोज के लिए उतरे थे सतह से कई मील नीचे उन्हें जो नजारा दिखा उसने पूरी दुनिया को चौका कर रख दिया एक विशाल नगरी मानो आज के किसी आधुनिक शहर की तरह समुद्र के भीतर बसी हुई हो ऊंची ऊंची दीवारें सड़कें मूर्तियां महल और एक पूरा सुव्यवस्थित शहर इस अद्भुत नगरी को देखकर सभी गोताखोर अवाक रह गए जब उन्होंने वहां से पत्थरों के नमूने इकट्ठा किए और उनकी जांच की तो एक रहस्य सामने आया यह पत्थर महाभारत के समय के थे यह वही नगरी थी
जिसके बारे में महाभारत में भी उल्लेख मिलता है यह है कहानी भगवान श्री कृष्ण की पवित्र नगरी द्वारका की  दोस्तों श्री कृष्ण का साम्राज्य सिर्फ इस धरती पर ही नहीं बल्कि हर मनुष्य के दिल में भी है लेकिन आज हम आपको एक अदृश्य साम्राज्य के दर्शन कराने जा रहे हैं जो धरती की सतह पर नहीं बल्कि समुद्र की गहराइयों में छिपा हुआ है यह वही स्थान है जहां कभी श्री कृष्ण ने अप अपनी सत्ता
की नीव रखी थी जहां का हर कण उनकी लीलाओं का साक्षी रहा है आज वहां केवल समुद्र की लहरों का शोर सुनाई देता है लेकिन यह नगर जो कभी नदी और अरब सागर के संगम पर बसा था आज भी श्रद्धालुओं के लिए एक देव भूमि के रूप में पूजनीय [संगीत] है विष्णु जी के चार धामों में से एक द्वारका गुजरात के जा नगर जिले में अरब सागर के किनारे बसा एक छोटा सा शहर है जहां लाखों कृष्ण भक्त दूर-दूर से भगवान की एक झलक पाने के लिए आते हैं भागवत पुराण के दसवें सत्र के अनुसार कंस का वध करने के बाद श्री कृष्ण यादव वंश के साथ मथुरा में बस गए लेकिन कंस की मृत्यु से
क्रोधित उसके ससुर जरासंध ने मथुरा पर 18 बार हमला किया इन लगातार हमलों से परेशान होकर श्री कृष्ण ने मथुरा छोड़कर एक नई नगरी बसाने का निर्णय लिया उन्होंने समुद्र के बीच एक विशाल शहर के निर्माण का आदेश दिया लेकिन इसके लिए समुद्र देवता की अनुमति आवश्यक थी तब श्री कृष्ण ने समुद्र देवता की आराधना की जिससे प्रसन्न होकर समुद्र देव ने उन्हें 12 योजन भूमि प्रदान की इसी धरती पर भगवान विश्वकर्मा ने द्वारका का निर्माण किया द्वारका एक अत्याधुनिक नगरी थी जिसकी योजना और वास्तुकला आज की शहरी संरचना नाओ को भी पीछे छोड़ देती है सड़कों से लेकर सोने के
महलों तक बड़े दरवाजों बगीचों और तालाबों को अत्यंत सुंदर ढंग से निर्मित किया गया था इस नगरी के केंद्र में श्री कृष्ण का महल था जो सबसे आकर्षक और भव्य इमारत थी जब द्वारका का निर्माण पूरा हो गया तब श्री कृष्ण ने अपनी योग माया से पूरे यादव वंश को मथुरा से द्वारका ले आए इसके बाद उन्होंने मथुरा जाकर जरासंध और कालयवन से युद्ध किया और विजय प्राप्त करने के बाद द्वारका लौटकर अपने परिवार के साथ सुख समृद्धि में जीवन व्यतीत करने [संगीत] लगे द्वारका नगरी के डूबने को लेकर कई कहानियां और मिथक प्रचलित हैं महाभारत के अनुसार श्री कृष्ण ने महाभारत के युद्ध
में पांडवों का साथ दिया जिससे कौरवों की हार हुई परंतु कौरवों की इस हार से दूह की गांध ने क्रोध में श्री कृष्ण को श्राप दे दिया कि जैसे कौरवों का वंश नष्ट हुआ वैसे ही यदुवंश भी समाप्त हो जाएगा इसके बाद द्वारका में हालात बिगड़ने लगे और धीरे-धीरे सभी यदुवंशी आपस में लड़ लड़क मारे गए जब सभी यदुवंशी समाप्त हो गए तो बलराम ने भी शरीर त्याग दिया बलराम के जाने के बाद श्री कृष्ण अत्यंत दुखी हो गए और वन में अकेले विचरण करने लगे एक दिन वे एक पेड़ की छाव में बैठकर धारी के श्राप के बारे में सोचने लगे उसी समय जरा नामक एक शिकारी ने दूर से श्री कृष्ण के पैर के
अंगूठे को हिरण का मुख समझकर तीर चला दिया जब वह शिकारी अपने शिकार के पास पहुंचा तो उसने श्री कृष्ण को पहचान लिया और उनसे क्षमा मांगने लगा श्री कृष्ण ने उसे अभय दान देकर शांत भाव से देह त्याग दी श्री कृष्ण की मृत्यु का समाचार जब अर्जुन तक पहुंचा तो वे अत्यंत शोकाकुल हो गए अर्जुन द्वारका पहुंचे और वासुदेव जी से नगर के शेष बचे लोगों को हस्तिनापुर चलने की तैयारी करने को कहा इसके बाद अर्जुन ने प्रभास क्षेत्र में जाकर सभी यदुवंशियों का अंतिम संस्कार किया अगले दिन वासुदेव जी ने भी प्राण त्याग दिए और उनका भी अंतिम संस्कार किया गया अर्जुन ने द्वारका
से शेष बचे स्त्रियों और बच्चों को लेकर नगर छोड़ दिया जैसे ही वे लोग द्वारका से निकले नगरी और उसका राजमहल समुद्र में समा गए प्रचलित कथाओं के अनुसार गांधारी के श्राप के अलावा श्री कृष्ण के पुत्र साम को भी ऋषियों से श्राप मिला था एक बार महर्षि विश्वामित्र ऋषि नारद कण्व और अन्य देव दवारका आए यादव वंश के कुछ शरारती लड़कों ने श्री कृष्ण के पुत्र शाम को स्त्री वेष में तैयार कर ऋषियों से मजाक करने की सोची उन्होंने ऋषियों से कहा कि यह स्त्री गर्भवती है और उनसे पूछा कि गर्भ में पल रहा शिशु कैसा होगा ऋषियों ने उनका उपहास
देखकर क्रोधित होकर श्राप दिया कि इस स्त्री के गर्भ से एक मुसल जन्म लेगा जिससे पूरे यदुवंश का विनाश होगा महाभारत के 23वें और 34 वें श्लोक के अनुसार जब श्री कृष्ण 125 वर्षों तक पृथ्वी पर रहकर आध्यात्मिक लोक में जाने के लिए देह त्याग कर गए उसी दिन द्वारका नगरी समुद्र में समा गई यही वह समय था जब कलयुग का आरंभ हुआ समुद्र के देवता ने एक बार फिर से उस भूमि को वापस ले लिया द्वारका को डुबो दिया परंतु भगवान श्री कृष्ण का महल बचा [संगीत] रहा दोस्तों द्वारका आज भी एक रहस्यमय नगरी बनी हुई है लेकिन वर्तमान में इसके समुद्र में छिपे अवशेषों की खोज की जा रही
है आइए जानते कि इस पर हमारे आर्कियोलॉजिस्ट क्या कहते हैं महाभारत के अनुसार प्राचीन द्वारका समुद्र में डूब गई थी और इस कारण यह आज एक महत्त्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल के रूप में उभर रही है सबसे पहले द्वारका के समुद्री अवशेषों पर ध्यान भारतीय वायुसेना के पायलटों का गया जब वे समुद्र के ऊपर से उड्ड भर रहे थे इसके बाद 1970 में जामनगर के गैजेटियर में इसका उल्लेख किया गया इससे पहले कई लोग लोगों का मानना था कि द्वारका एक काल्पनिक नगरी है और काल्पनिक कहानियों का कोई ऐतिहासिक आधार नहीं होता महाभारत के अनुसार श्री कृष्ण ने कहा था
कि द्वारका एक ऐसी भूमि पर बसी थी जो समुद्र से निकली थी जब पानी ने दोबारा अपनी पुरानी जगह पर वापसी की तो पूरा शहर डूब गया द्वारकाधीश मंदिर के पास शुरू हुई पानी के नीचे की खुदाई में कई प्राचीन मंदिरों के अवशेष मिले जिससे यह स्पष्ट हुआ कि जैसे जैसे समुद्र का जल स्तर बढ़ा मंदिरों को नई जगह पर स्थानांतरित किया गया था इसमें प्रसिद्ध भारतीय पुरातत्त्व विद डॉक एस आर राव को प्रेरित किया कि समुद्र के किनारे खुदाई की जाए जिससे पता लगाया जा सके कि इस डूबे हुए शहर के असली प्रमाण मिल सकते हैं या नहीं 1979 में डॉकर राव और उनकी टीम ने इस खोज की शुरुआत
की उन्हें महाभारत की तिथि और इसके ऐतिहासिक प्रमाणों के संदर्भ में उभर रहे विवादों ने द्वारका के अनिश्चित उत्खनन के लिए प्रेरित किया खोज के दौरान समुद्र की गहराइयों में द्वारका के महत्त्वपूर्ण अवशेष मिले जिनमें 560 मीटर लंबी दीवार भी थी जो महाभारत में वर्णित द्वारका की दीवार से मेल खाती है पौराणिक ग्रंथों में उल्लेखित 50 खंभों में से करीब 30 खंभे इस खोज में पाए गए इसके साथ ही उन्हें वहां से कई प्राचीन बर्तन मिले जिनकी तिथि 1500 28 से लेकर 3000 ईसा पूर्व के बीच मानी जाती है खोज में करीब 500 से अधिक प्राचीन वस्तुएं प्राप्त हुई जिनमें पत्थर के
ब्लॉक खंभे और सिंचाई प्रणालियों के अवशेष शामिल थे हालांकि इन खोजों की वास्तविक तारीख को लेकर विवाद जारी है परंतु यह सबूत इस बात की पुष्टि करते हैं कि द्वारका कोई काल्पनिक नगरी नहीं थी बल्कि वास्तव में मौजूद थी भारतीय समुद्र वैज्ञानिकों का मानना है कि पश्चिमी तट पर मिले अवशेष 9000 साल से भी अधिक पुराने हो सकते हैं 2005 में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण द्वारा द्वारका नगरी की खोज फिर से शुरू की गई 2007 में कच्छ की खाड़ी के पास पुरातत्त्व विशेष सज्ज ने नौसेना के गोताखोरों की मदद से समुद्र के भीतर उत्खनन किया वहां से उन्होंने चूना
पत्थरों के खंडों को खोजा जो एक विशाल और समृद्ध नगरी के संकेत थे इसी खुदाई में सिक्के और कलाकृतियां भी मिली जिनकी तारीखें समुद्र में मिले अवशेषों से मेल खाती थी पुरातत्व विशेषज्ञों के अनुसार द्वारका के तटीय इलाकों में 9 किलोमीटर लंबी एक प्राचीन नदी भी खोजी गई जिसके किनारे प्राचीन सभ्यता के अवशेष और शिल्प पाए गए इन शिल्पं का कार्बन डेटिंग परीक्षण किया गया जिससे यह साबित हुआ कि यह अवशेष 9000 साल से भी अधिक पुराने थे समुद्र के भीतर मिले शिपों ने यह भी संकेत दिया कि द्वारका का एक प्राचीन बंदरगाह था जो 15वीं से 18वीं शताब्दी तक भारतीय और
अन्य क्षेत्रों के साथ व्यापारिक संपर्कों में सक्रिय भूमिका निभाता था जैसे-जैसे समुद्र का जल स्तर बढ़ता गया श्री कृष्ण की नगरी द्वारका धीरे-धीरे पानी में डूब गई लेकिन सवाल यह है कि समुद्र का स्तर तो धीरे-धीरे बढ़ता है फिर महाभारत के महा प्रस्था निका पर्व के अनुसार अर्जुन की आंखों के सामने कैसे एक ही पल में विशाल लहरें द्वारका को अपने बहाव में समेट ले गई आज भी कई लोग महाभारत रामायण भगवान विष्णु के अवतार और अन्य पौराणिक कहानियों को मिथक मानते हैं लेकिन द्वारका ही नहीं और भी कई खोजें इस बात का प्रमाण देती हैं कि मानव का अस्तित्व सिर्फ हड़प्पा और
मोहन जोदड़ो के समय तक सीमित नहीं है बल्कि उससे भी हजारों साल पहले का है श्री कृष्ण की नगरी द्वार का सिर्फ एक पुरातात्विक खोज नहीं बल्कि एक सांस तिक धरोहर भी है जो हमारी आस्था इतिहास और विज्ञान को एक साथ जोड़ती है जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते हैं हमें यह याद रखना चाहिए कि प्राचीन सभ्यताएं और उनके अवशेष हमें सिर्फ हमारी संस्कृति का अंश नहीं बल्कि उस समय की महानता और बौद्धिकता की झलक भी देते हैं


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