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मैं ॐ से बना हूं? | Secret science of AUM | om ka rahasya

मैं ॐ से बना हूं? | Secret science of AUM | om ka rahasya
क्यों है ओम एक रहस्यमय ध्वनि हमें पता है कि ओम एक पावरफुल मंत्र शब्द और ध्वनि है जिसे नई ऊर्जा सकारात्मकता और मन की शांति के लिए उच्चारित किया जाता है लेकिन इस ओम मंत्र में इतनी ऊर्जा क्यों है कौन है इस ओम मंत्र को बनाने वाला क्या सभी ध्वनियां ओम मंत्र से ही निकली है क्या ओम स्वयं परमेश्वर है क्यों ओम को शब्द ब्रह्म नाद ब्रह्म और अक्षर कहा जाता है अगर हम ओम के रहस्य को समझ गए तो ब्रह्मांड की उत्पत्ति के रहस्य को भी समझ सकते हैं हम समझ सकते हैं कि यह भौतिक जगत कैसे अस्तित्व में आता है हम उस रहस्य को भी समझ सकते हैं कि
64 योगियों का ब्रह्मांड की उत्पत्ति के साथ क्या संबंध है और ब्रह्मांड से पहले योगिनिस में आप जान सकते हैं कि 64 योगिनी का तात्विक स्वरूप और दैविक स्वरूप कैसा है और इस ज्ञान को प्राप्त करने के लिए आपको वेद उपनिषद और पुराणों का अध्ययन कर उसका मनन और चिंतन करना होगा
ज्ञान पिपासु मित्रों सबसे पहले हम जानते हैं कि ओम मंत्र या ध्वनि की उत्पत्ति कैसे हुई तो ओम मंत्र की रचना किसी ऋषि मुनि देवता भगवान या यक्ष गंधर्व ने नहीं की है लेकिन इस यूनिवर्स ब्रह्मांड की उत्पत्ति से पहले जब कुछ भी नहीं था तब उस अव्यक्त ब्रह्म को सृष्टि रचना की इच्छा हुई और वह अव्यक्त ब्रह्म अपने आप को दो अव्यक्त तत्त्वों में विभाजित करता है पहला तत्व पुरुष और दूसरा तत्व है प्रकृति अब हम इन चीजों को थोड़ा विस्तार से समझेंगे तो कुछ लोग समझ नहीं पाते हैं कि ब्रह्म माने क्या ऋग्वेद में कहा गया है कि प्रज्ञान ब्रह्म यानी कि जो ज्ञान का
भी ज्ञान है और जिसमें से हर एक ज्ञान प्रकट होता है उस प्रज्ञान को यानी सुप्रीम इंटेलिजेंस को ब्रह्म कहा जाता है और उस सुप्रीम इंटेलिजेंस का एक छोटा सा अंश हमारा इंटेलिजेंस है और हम उस छोटे इंटेलिजेंस से उस सुप्रीम इंटेलिजेंस को पूरी तरह से नहीं समझ सकते हैं क्योंकि वह इंटेलिजेंस बहुत ही विशाल और अनंत है और इसीलिए वह हमारे लिए अव्यक्त हो जाता है और इस अव्यक्त अनंत और पूर्ण ब्रह्म को वृत्त के सिंबल से दर्शाया जाता है लेकिन हमें यहां प्रश्न होता है कि ब्रह्म के लिए वृत्त का सिंबल ही क्यों प्रयोग किया जाता है क्योंकि यह वृत्त का सिंबल
पूर्णता को दर्शाता है यह सिंबल शून्यता को भी प्रकट करता है क्योंकि ब्रह्म अव्यक्त है और यह सिंबल अनंतता इंफिनिटी को भी प्रकट करता है अब हम समझते हैं कि ब्रह्म ने अपने आप को जिस पुरुष तत्व में प्रकट किया वह पुरुष तत्व क्या है पुरुष यानी परम चेतना सुप्रीम कॉन्शसनेस परमात्मा हालांकि ब्रह्म खुद एक परम चेतना है परंतु ब्रह्म ने अपने इसी खास चेतन तत्व को पुरुष के रूप में प्रकट किया पुरुष तत्व शिव है तो ब्रह्म सदाशिव है पुरुष तत्व विष्णु है तो ब्रह्म महाविष्णु है पुरुष तत्व ब्रह्मा है तो ब्रह्म महा ब्रह्म है पुरुष ब्रह्मांड की आत्मा है जो
हर जगह हर चीज और हर किसी में हर समय मौजूद है फिर चाहे वह सजीव हो या निर्जीव यह पुरुष ही है कि जिसके कारण ब्रह्मांड प्रकट होता है संचालित होता है और उसका लय होता है पुरुष को त्रिकोण के सिंबल से दर्शाया जाता है क्योंकि पुरुष तीन स्वरूपों को प्रकट करता है ब्रह्मांड का सृजन संचालन और लय अब इसी पुरुष के दूसरे पहलू को प्रकृति कहा जाता है प्रकृति यानी ब्रह्मांड की वह शक्ति वह यूनिवर्सल फोर्स जो ब्रह्मांड के बनने से पहले अव्यक्त रूप में मौजूद है प्रकृति सभी भौतिक पदार्थ का मूल अव्यक्त रूप है प्रकृति को उल्टे त्रिकोण के सिंबल से दर्शाया जाता है
क्योंकि प्रकृति पुरुष की परछाई है प्रकृति और पुरुष एक सिक्के के दो पहलू हैं पुरुष यदि सर्जक देवता ब्रह्मा है तो प्रकृति इस ब्रह्मा की ज्ञान शक्ति देवी सरस्वती है पुरुष यदि संचालक देव विष्णु है तो प्रकृति संचालक शक्ति लक्ष्मी है पुरुष यदि लय करता शिव है तो प्रकृति प्रलयंकारी शक्ति काली है प्रकृति को परा अपरा और परापलायम के दो तत्व पुरुष और प्रकृति मिलते हैं यानी के अंदर कॉन्शसनेस आती है तो एक अक्षर एक नाद एक ध्वनि उत्पन्न होती है सर्जक शक्ति पुरुष और प्रकृति से अधव संचालक शक्ति पुरुष और प्रकृति से उ ध्वनि और विनाशक शक्ति पुरुष और प्रकृति से म
ध्वनि उत्पन्न होती है और इन तीनों ध्वनियों के योग से ओम शब्द नाद या ध्वनि उत्पन्न होती है याद रहे कि अभी तक ब्रह्मांड उत्पन्न नहीं हुआ है अब कुछ लोगों के मन में यह प्रश्न उठेगा कि बिना ब्रह्मांड के और बिना आकाश तत्व के यह ध्वनि कैसे और कहां उत्पन्न हुई तो हमारे सनातन धर्म में ध्वनि के चार स्वरूप बताए गए हैं परा पसंती मध्यमा और वखरी ध्वनि जिनमें से भौतिक जगत में सुनाई देने वाली वखरी ध्वनि के लिए ही ब्रह्मांड और आकाश तत्व चाहिए परंतु परा पश्यंति और मध्यमा ध्वनि बिना ब्रह्मांड और भौतिक तत्त्वों के भी उत्पन्न हो सकती है और यह जो सबसे
) पहले ओम की की ध्वनि उत्पन्न हुई वह भौतिक जगत में हम जो ध्वनि सुन रहे हैं वैसे नहीं लेकिन अत्यंत सूक्ष्म और अव्यक्त थी ब्रह्म ने जो सृष्टि रचना का सोचा था इच्छा की थी वह पराध वनि है जिसे परावाकलाई नहीं कर सकते कि ब्रह्म ने कैसे सोचा और कैसे इच्छा की पुरुष और प्रकृति के मिलन से जो ध्वनि उत्पन्न हुई उसे पश्यंति ध्वनि या पश्यंति बाक कहते हैं जिसे हम मन के माध्यम से सोच सकते हैं लेकिन कभी भी उसकी जांच परख या उसे क्रिएट नहीं कर सकते अब आगे इस ओम जिससे बना है उस अधव उ ध्वनि और म ध्वनि के तरंगों के अलग-अलग जुड़ने से नई ध्वनियां उत्पन्न
(होने लगी और इस प्रकार कुल 64 प्राकृतिक ध्वनियां उत्पन्न हुई और यह ध्वनियां एक दूसरे के साथ जुड़ने से यानी एक दूसरे के योग से बनी इसलिए उन्हे योगिया कहा जाता है और यह 64 योगियों का ध्वनि रूप में तात्विक स्वरूप है उनका दैविक स्वरूप अलग होता है और इन्हीं 64 प्राकृतिक ध्वनियों से संस्कृत भाषा बनी है और इसीलिए संस्कृत देव भाषा है और इस प्रकार ब्रह्मांड बनने से पहले 64 योगिनी यां उत्पन्न होती है और इसका सबूत हमें कई प्राचीन भजनों में मिलता है जैसे कि पृथ्वी पहले तुम्हारा वास युग पहले प्रगति मा योगिनी धन्य मातु योगिनी धन्य मा भवानी तो अभी तक ब्रह्मांड
उत्पन्न नहीं हुआ है और यह सब अत्यंत सूक्ष्म और अव्यक्त रूप में है यह सब अव्यक्त ब्रह्मांड यानी हिरण्य गर्भ के अंदर यानी कॉस्मिक एक के अंदर हो रहा है अब इन 64 योगिनी रूपी 64 ध्वनियां पुरुष और प्रकृति के मिलन की प्रक्रिया से उत्पन्न हुई है और प्रकृति और पुरुष को जिस त्रिकोण के सिंबल से दर्शाया जाता है उसका आकार डमरू जैसा है और इस शिव और शक्ति पुरुष और प्रकृति के कॉस्मिक डमरू से यह सारी दुनिया उत्पन्न हुई और इसे महेश्वर सूत्र में बताया गया है चलिए हम आपको वखरी वाक में सुनाते हैं कि वह ध्वनियां डमरू से निकलने पर कैसे सुनाई
देती [प्रशंसा] है देखा कितना आश्चर्यजनक है कि यह सारा ब्रह्मांड कैसे डमरू की ध्वनि से उत्पन हुआ होगा और वह कॉस्मिक डमरू क्या है अब हम आगे बात करें 64 ध्वनि रूपी योगिनी हों की तो यह 64 योगिन यां एक निश्चित क्रम में एक दूसरे के साथ जुड़ने लगी तो एक लय एक फ्रीक्वेंसी बनने लगी जिसे छंद कहा जाता है जिसे अंग्रेजी में स्ट्रिंग कह सकते हैं और यह छंद यह स्ट्रिंग में जो वाइब्रेशंस और फ्रीक्वेंसी से ध्वनियां उत्पन्न हो रही थी उन्हें मध्यमा वाक कहा जाता है और जब यह छंद यानी स्ट्रिंग एक दूसरे से जुड़ने लगी एक दूसरे के साथ योग
किया तो सबसे पहले एक परमाणु बना और वह अत्यंत सूक्ष्म परमाणु था आकाश तत्व का और इस परमाणु के बनते ही वायु तेज जल और पृथ्वी के भी परमाणु एक साथ बनने लगे और एक प्रचंड विस्फोट हुआ जिसे विज्ञान की भाषा में बिग बैंग कहा जाता है और इसी के साथ समय की भी उत्पत्ति हुई और सभी तरह के फोर्सेस और भौतिक तत्व बनने लगे और यह सारी प्रक्रिया आकाश तत्व के एक परमाणु बनने के एक साथ हुआ और वह कॉस्मिक एग हिरण्य गर्भ किसी पॉपकॉर्न की भांति फट पड़ा और यह भौतिक जगत अस्तित्व में आया और इस प्रकार उस निराकार और अव्यक्त ब्रह्म ने व्यक्त और साकार रूप धारण किया अब आप
कह सकते हैं कि क्या सबूत है कि ब्रह्मांड ध्वनि से ही उत्पन्न हुआ है क्या इसका प्रमाण हमारे धर्म ग्रंथों में मिलता है तो जी हां हमारे शास्त्रों ने तो शुरू से ही बता दिया है कि यह ब्रह्मांड ध्वनि से ही बना है और इसका प्रमाण हमें ऋग्वेद के इस मंत्र में मिलता है यानी कि वाणी के चार स्तर होते हैं केवल अच्छी तरह से प्रशिक्षित जो बुद्धिमान हैं बुद्धि और समझ से संपन्न हैं वे सब कुछ जानते हैं बाकी के लिए ध्वनि के तीन स्तर गुप्त और गति न रहते हैं सामान्य मनुष्य केवल चौथे को जानता है वेदों के इस दूसरे मंत्र में भी कहा गया है कि वागे विश्वा भुवना नि जग
इति सूक्ष्मा वागे विश्वा काण परिमिति विवर्त तीर्थ अर्थात ध्वनि ने ही संसार की रचना की है इसका अर्थ है कि ध्वनि का सूक्ष्म रूप ही संसार के रूप में परिवर्तित होता है आगे बताया है कि वाच विश्वम बहु रूपम निबद्ध तद दे कम प्रविजा कि अनेक रूपों वाला यह संसार केवल ध्वनि से ही बना है और इसका विभाजन होने पर एक भाग का अनुभव होता है महान दार्शनिक और व्याकरण विद भरत हरी भी अपने ग्रंथ में कहते हैं कि वागे विश्व भुवना नि जन्म अर्थात यह वाक ही है जिसने सभी संसार का निर्माण किया है इसी प्रकार तंत्र में यह कहा जाता है कि अर्थ सृष्ट पुरम शब्द
सृष्टि ही यानी कि ब्रह्मांड आदिम स्पंदन द्वारा गति में स्थापित किया गया था और ब्रह्मांड की सभी वस्तुएं ध्वनि द्वारा बनाई गई हैं तो ऐसे कई सारे मंत्र और है जो बताते हैं कि ब्रह्मांड का निर्माण ओम रूपी मंत्र ध्वनि से हुआ है और इसीलिए ब्रह्म को नाद ब्रह्म शब्द ब्रह्म और अक्षर ब्रह्म कहा जाता है अब हमें आगे यह भी समझना होगा कि परा पसंती मध्यमा और वखरी ध्वनि कैसी होती है


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