
खाटू श्याम बाबा की कहानी – जब भगवान कृष्ण ने तोडा पांडवो का घमंड
है मित्रों धर्मग्रंथ महाभारत में ऐसी बहुत सी कथाओं का वर्णन मिलता है जिसे अगर मनुष्य अपने जीवन में उतार लें तो उसे ना तो कभी खुद पर अहंकार हो सकता है और न ही कभी भी खुद को सबसे शक्तिशाली या फिर सर्वश्रेष्ठ समझने की भूल कर सकता है आज माध्यम से हम आपको महाभारत से जुड़ी एक ऐसी ही कथा के बारे में बताने जा रहे हैं इस कथा के माध्यम से हम जानेंगे कि जब महाभारत युद्ध में पांडवों को विजय मिली तो पांचों पांडव स्वयं को विजय का श्रेय देने लगे अर्थात युद्ध में विजय प्राप्त करने के कारण पांचों पांडवों को अपने बल पर अहंकार हो गया था तब श्री कृष्ण ने उन लोगों को कैसे दूर किया यह देखिए आज डिवाइस पर एक बार फिर पुराण के माहेश्वर खंड खंड के अनुसार यह कथा उस समय की है जब कौरव और पांडव-सेना धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में होने वाले भारत में एकत्रित हो चुके थे
दोनों ही शिविरों में इस बात की चर्चा हो रही थी कि कल से शुरू होने वाला यह कितने दिनों में समाप्त होगा और इस युद्ध में कौन विजई होगा उधर इस बात की जानकारी जब घटोत्कच के पुत्र और भीम के पात्र भरी को मिली तो वह अपनी मां से युद्ध में शामिल होने की आज्ञा लेकर कुरुक्षेत्र के मैदान में पांडवों के शिविर में पहुंच गया वहां पहुंचकर बर्बरीक ने सबसे पहले भगवान श्री कृष्ण को प्रणाम किया और फिर बारी बारी से पांचों पांडवों के चरण छुए उसी समय पांडवों के शिविर में एक गुप्तचर आया और उसने युधिष्ठिर को प्रदान करते हुए कहा महाराज अभी मैं कौरवों के शिविर गया था वह मैंने सुना कि राजकुमार दुर्योधन अपने पक्ष के महारथियों से पूछ रहे थे कि कौन सा युद्ध कितने दिनों में सेना सहित पांडु पुत्रों का वध कर सकता है जिसके बाद सर्वप्रथम आप लोगों के पितामह और सौरव सेना के प्रमुख सेनापति भीष्म ने कहा कि आप पांचों भाई हैं और आप अपनी सेना को एक माह में समाप्त कर सकते हैं फिर गुरु द्रोणाचार्य ने कहा कि मैं सेना सहित पांचों पांडवों को 15 दिन में समाप्त कर सकता हूं इसके बाद अश्वत्थामा ने कहा कि आपके पांचों भाइयों और आपकी सेना को 10 दिन में नष्ट कर सकते हैं
और अंगराज कर्ण की बातों पर विश्वास करें तो वह आप सभी को केवल छह दिनों में सेना सहित मार सकते हैं गुप्तचर की यह बातें सुनकर युधिष्ठिर चिंतित हो उठे और उन्होंने गुप्तचरों को शिविर से बाहर जाने को कहा फिर जब गुप्तचर चला गया तब युधिष्ठिर ने अपने चारों भाइयों से पूछा कि अनुज तुम लोग होने वाले इस युद्ध को कितने दिनों में समाप्त कर सकते हो अपने टेस्ट के मुंह से ऐसी बातें सुनकर चारों भाई एक दूसरे को देखने लगे उन लोगों को यह समझ नहीं आ रहा था कि इस प्रश्न का क्या जवाब दे तब अर्जुन बोले हे पितामह भीष्म और गुरु द्रोणाचार्य ने जो घोषणा की है वह सर्वथा असत्य क्योंकि जय और पराजय में पहले से किया हुआ मिश्रण झूठा होता है आपके अपने जो भी वीर योद्धा युद्ध के लिए रणभूमि में जाने वाले हैं इनमें से एक भी सारी कौरव सेना का इजहार कर सकता है
चेस्ट हमारे पक्ष के योद्धाओं के डर से कौरव और उनकी सेना इस प्रकार बाद जाएंगे जैसे सेल के डर से Bigg Boss जाता है बूढ़े पितामह भीष्म वृद्धि गुरु और कृपा तथा अश्वत्थामा से हमें क्या बाय फिर भी यदि आपकी चित्र को शांति नहीं मिल रही तो मैं आपको बता दूं कि मैं अकेला ही युद्ध में सेना सहित समस्त कर्मों को एक ही दिन में नष्ट कर सकता हूं उधर अर्जुन के मुंह से ऐसी बातें सुनकर शिविर में मौजूद घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक से रहा नहीं गया उसने अर्जुन से कहा पितामह अभी आपने आपने जो कहा है वह सही नहीं है क्योंकि मैं आपके शत्रु अर्थात सेना सहित समस्त कर्मों को कुछ ही पलों में नष्ट कर सकता हूं पर भरी के मुंह से ऐसी बातें सुनकर शिविर में मौजूद सभी योद्धा आश्चर्यचकित हो गए और उनकी आंखें लज्जा से झुक गए तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि कि पार्थ बर्बरीक ने अपनी शक्ति के अनुरूप ही बात कही है क्योंकि इसके पास ऐसी शक्ति मौजूद है
जो कुछ पल में ही होने वाले इस युद्ध को समाप्त कर सकती है फिर भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक से कहा कि बस भीष्म द्रोण और कर्ण जैसे महारथियों से सुसज्जित कौरवों की सेना को तुम इतना शीघ्र पर आज तक कैसे कर सकते हो तुम्हारे पास ऐसा कौन सा इस तरह कृपया करके हमें भी बताओ तब बर्बरीक ने भगवान कृष्ण से दोनों हाथ जोड़ते हुए कहा प्रभु आप जो मेरे तरकश में यह तीन बार देख रहे हैं इन बालों की सहायता से मैं पल भर में अपने शत्रुओं को नष्ट कर सकता हूं तब श्रीकृष्ण बोले कि पुत्र भरी मैं पथवी पर विश्वास नहीं करता मुझे प्रमाण चाहिए तब बर्बरीक ने कहा प्रभु आप ही बताइए कि मैं आपके सामने खुद को किस प्रकार प्रभावित करो इसके बाद प्रशिक्षण शिविर में मौजूद पांचो पांडव भीम पुत्र घटोत्कच और बरबरी को एक ऐसे स्थान पर ले गए जहां पीपल का एक विशाल पेड था वहां पहुंचकर श्री कृष्ण ने बर्बरीक से ए बर्बरीक यह पीपल का पेड़ देख रहे हो इस पेड़ में जितने भी सूखे पत्ते लगे वही तुम्हारा लक्ष्य है अगर तुम्हें इन तीन बालों से इस लक्ष्य को भेद दिया तो मुझे तुम्हारी वीरता पर कोई संदेश है
नहीं रह जाएगा भगवान श्री कृष्ण की बातें सुनकर बर्बरीक ने कहा आपकी जैसी आज्ञा प्रभु फिर उसने अपने तरीके से लक्ष्यों को चयनित करने के लिए एक कप पानी निकाला और धनुष की प्रत्यंचा पर चढ़ाकर उसे पीपल के पेड़ पर छोड़ दिया पल भर में ही व्यापार उसे पीपल के पेड़ में मौजूद सभी सूखे पत्तों को चिन्हित कर तरकश में लौट आया उस बांधकर वापिस आते ही बर्बरीक ने जैसे ही उन पत्रों को काटने के लिए अपना दूसरा बाहर तरकस से निकाला उसी समय एक चिंतित हुआ सूखा पत्ता धरती पर आकर गिर गया जिसे भगवान श्री कृष्ण ने अपने पांव के नीचे छिपा लिया उधर पहले की ही भांति बर्बरीक ने दूसरे बाण को धनुष की प्रत्यंचा पर चढ़ाकर पीपल के पेड़ पर छोड़ दिया देखते ही देखते भरी के इस बांध पल भर में ही उन सभी पर में काट दिया जिन्हें पहले बांधा चयनित किया था परंतु बराबरी का यह दूसरा बुध तरकश में वापस लौटने की वजह श्री कृष्ण के पांव के पास जाकर रुक गया यह देख बर्बरीक ने श्री कृष्ण से कहा कि प्रभु आपने मेरे द्वारा चिन्ह इस पत्ते को अपने पांव के नीचे छिपा रखा है
कृपा कर अपना पांव हटा लीजिए क्योंकि मेरे यह बात अपने लक्ष्य से कभी नहीं चूकते भरी की यह बातें सुनकर भगवान श्रीकृष्ण मुस्कराए और फिर उन्हों ने बर्बरीक शिकायत उत्तर भरी यह प्रमाणित हो गया कि तुम पल भर में ही इस युद्ध को समाप्त कर सकते हो किंतु अब तुम्हारा जीवित रहना धर्म के अनुकूल नहीं है यह संगठित कर सहित पांचों पांडव हैरान रह गए फिर विदेशी सहित सभी पांडव व श्रीकृष्ण के समीप आए और उनसे बोले हे वासुदेव आप यह क्या कह रहे हैं यह तो हमारे लिए अच्छी बात है कि भरी हमारी पक्ष के युद्ध में भाग लेगा तब श्रीकृष्ण बोले आप लोगों को जैसा दिख रहा है वह सत्य नहीं है अर्जुन मूवी है तो फिर सत्य क्या है बासुदेव तब भगवान ने जवाब दिया आप लोगों को सारी सच्चाई बराबरी की बताएगा फिर श्रीकृष्ण के कहे अनुसार भरी ने सच बताते हुए हुआ था प्रभु श्री कृष्ण सही कह रहे हैं क्योंकि मैंने अपनी माता को प्रसन्न दे रखा है कि जो भी पक्ष इस युद्ध में निर्भर होगा मैं उस पक्षी से युद्ध करूंगा विश्व भीम ने कहा कि वासुदेव शक्ति की गणना के अनुसार तो इस युद्ध में हमारा ही पक्ष निर्बल है फिर आप ऐसा क्यों कह रहे हैं तब श्रीकृष्ण भी हमसे बोले कि मझले भैया शुरुआत में आपका पुत्र बर्बरीक तो आपके पक्ष में होगा लेकिन अगले ही पल जब कौरवों का नाश हो जाएगा तो यह आपके विरुद्ध खड़ा हो जाएगा और कौरवों की तरह आप सभी का भी विनाश कर देगा भगवान श्रीकृष्ण के मुख से ऐसी बातें सुनकर फरवरी से उसे शक उनके चरण पकड़ लिए और कहा कि प्रभु अब आप ही बताइए मैं क्या करूं तब श्री कृष्ण ने बर्बरीक को अपना शीश सात अर्थात प्राण दान देने को कहा है
कि विश्व भर के अपने दोनों हाथ जोड़ते हुए कहा भगवान मेरी एक इच्छा है कि मैं भी इस युद्ध में शामिल हो सकूं और अपनी आंखों से इस युद्ध को देख सकें ऐसे में अब आप ही बताइए कि मेरी इच्छा का क्या होगा तब भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक को अपने दोनों हाथों से उठाते हुए कहा वीर बर्बरीक मैं तुम्हें वचन देता हूं कि तुम्हारी युद्ध देखने की इच्छा अवश्य पूरी होगी लेकिन इसके लिए तुम्हें अपना अंशदान करना होगा बर्बरीक ने जवाब दिया प्रभु आपकी जैसी आ गया फिर उसने अपने तरकस से एक बाण निकाला और उसे संतान करते हुए ऊपर की ओर छोड़ दिया देखते ही देखते पल भर में ही उस बांधने भरी का सिर धड़ से अलग कर दिया जो श्रीकृष्ण के चरणों में जाकर गिर गया उधर बर्बरीक के शीश को कटा हुआ देखकर पांचो पांडव और घटोत्कच्छ सों कुल हो गए फिर भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक के शीश को अपने हाथों से उठाया उसी समय आकाश में देवी जगदंबा का प्रकट हुई और उन्होंने वासुदेव को प्रणाम करते हुए बोला कि वासुदेव अच्छा आ गया है
तब श्री कृष्ण ने कहा हे देवी बबली के शरीर को अमृत सी चने की कृपा कीजिए ताकि वीर बर्बरीक का यह शरीर अजर-अमर हो जाए भगवान का आदेश पाते ही बीवी ने उसे कटे हुए शीश को अमृत से पीसकर अजर अमर कर दिया और स्वयं अंतर्ध्यान हो गये फिर बर्बरीक का कटा हुआ शिष्ट भगवान कृष्ण से कहने लगा प्रभु आप र आपकी कृपा से मैं इस युद्ध को अपनी आंखों से देख पाऊंगा अब ऐसा लगता है कि मेरा जीवन सफल हो गया इसके बाद भगवान कृष्ण ने बर्बरीक के उसके कटे हुए सिर को कुरुक्षेत्र मैदान के बगल में स्थित एक पर्वत की चोटी पर अपनी दिव्य शक्ति से स्थापित कर दिया उसके बाद भगवान कृष्ण ने बर्बरीक के कटे हुए सर से कहा यह शैतानी फिर भरी तुम पर्वत इस चोटी से कल से शुरू होने वाले धर्म युद्ध को देखोगे और तुम ही एक मात्र इस युद्ध के साक्षी रहोगे तुमसे ही आने वाली पीढ़ी इस धर्म युद्ध की कथा जानता आएगी ही शैतानी आज से तुम्हें मैं अपना नाम और अपनी शक्ति देता हूं जिसे बात तुम खाटू श्याम के नाम से जाने जाओगे और कलियुग में जो भी तुम्हारी पूजा श्रद्धा और भक्ति के साथ करेगा उसके सभी कष्ट दूर हो जाएंगे फिर श्री कृष्ण के ऐसा कहने के बाद पांडवों ने बर्बरीक के शीश को प्रणाम किया और फिर वह सभी श्री कृष्ण सहित अपने शिविर को लौटाई अगले दिन कुरुक्षेत्र के मैदान में कौरवों और पांडवों के बीच महाभारत का धर्म युद्ध शुरू हो गया जो 18 दिनों तक चला इस युद्ध में कौरव पक्ष के सभी महारथी मारे गए और पांडवों को जीत मिली लेकिन मित्रों अगर आप यह जानना चाहते हैं
कि इन अठारह दिनों में किस दिन क्या हुआ तो इसके लिए आप हमारी एक दूसरी वीडियो देख सकते हैं जिसमें हमने विस्तार से महाभारत के युद्ध के घटनाक्रमों का वर्णन किया है महाभारत युद्ध के अट्ठारहवें दिन भीम के हाथों जब दुर्योधन का वध हो गया तब पांचों पांडव व श्रीकृष्ण के साथ अपने शिविर में लौट आए हैं अपने कुछ भी हो बात पांचो पांडव युद्ध में मिली जीत का श्रेय स्वयं को देने लगे एक ने कहा कि इसने युद्ध का संचालन धर्मपूर्वक किया इसीलिए उन सभी को युद्ध में जीत मिली तो किसी ने कहा कि अगर मैं पितामह भीष्म को बाणों की शैया पर नहीं लेता था तो उन्हें महाभारत के युद्ध में जीत मिलना असंभव था अभी पांचों भाइयों के बीच यह बहस चल रही थी कि श्री कृष्ण उस कक्ष में जा पहुंचे और उन्हें सभी से बोले कि इस बात को लेकर आप लोगों में बहस छिड़ी हुई है इसके बाद फिर सभी ने वही बात दोहराई है जिसे संत श्री कृष्ण ने मुस्कुराने लगे तब युधिष्ठिर ने पूछा ही वासुदेव आप ही बताइए कि इस युद्ध ने जीत का श्रेय किसे जाता है तब श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से बोले भैया इसका जवाब तो वही दे सकता है जिसने इस युद्ध की सभी घटनाओं को अपनी आंखों से देखा है और वही इस युद्ध का एक मात्र साक्षी भी है श्रीकृष्ण के इतना कहते हैं पांचों पांडव समझ गए कि वासुदेव बराबरी की ही बात कर रहे हैं
फिर पांचों पांडव तो भगवान कृष्ण के साथ उस पर्वत पर पहुंचे जिसकी चोटी से भरी के संपूर्ण महाभारत युद्ध को देखा था वहां पहुंचने पर जब रितेश विप्रेषण और पांचों पांडवों को सादर प्रणाम किया और फिर श्रीकृष्ण से पूछा भगवन् आप यहां किस उद्देश्य तय हैं तब श्री कृष्ण ने कहा वीर भरी तुम्हारे पांचों पितामाह स्वयं को इस युद्ध में जीत का श्रेय दे रहे थे लेकिन वास्तविकता क्या है यह केवल तुम ही इन्हें बता सकते हो तब बर्बरीक ने कहा पितामह आप लोग किस आधार पर खुद को इस युद्ध में मिली विजय का श्रेय दे रहे हैं जबकि सत्य तो यह है कि आप सभी किसी से लड़े ही नहीं वास्तव में तो युद्ध मेरे प्रभु श्री कृष्ण कर रहे थे उन्होंने ही यह युद्ध लड़ा जिसमें यह खुली जीतेगी और खुद ही हावी बराबरी की बातें सुनकर पांचों पांडवों का सिर लज्जा से झुक गए फिर युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से बोले वासुदेव हमेशा कर दे हम सभी को अपने अपने बल का अभिमान हो गया था अब हम जान गए हैं कि इस युद्ध में जो भी हुआ वह आपकी मर्ज़ी से हुआ इसके बाद वे सभी अपने महल को लौट आए थे इसीलिए कहा जाता है मित्रों कि मनुष्य को कभी भी किसी भी चीज का अभिमान नहीं करना चाहिए क्योंकि हम तो सिर्फ एक कठपुतली है उस परम परमेश्वर परमात्मा के हाथों
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