
Milarepa Kailash Story | Kailash Parvat Ka Rahasya |

Milarepa Kailash Story | Kailash Parvat Ka Rahasya | Life of Milarepa –
तिब्बत का वह खतरनाक तांत्रिक जिसने एक ही रात में करीब 80 लोगों की हत्या करके पूरे गांव को नष्ट कर दिया था फिर भी वह हत्यारा कैसे कैलाश पर्वत की छोटी तक पहुंचने वाला इकलौता इंसान बना कैलाश की छोटी पर पहुंचकर जब वह नीचे आया तो उसने कैलाश पर्वत के रहस्य के बारे में ऐसा क्या बताया कि आज भी लोग तिब्बत में उसे भगवान का रूप मानते हैं और उसके जीवन में एक ऐसी घटना घटती है कि वो खूंखार तांत्रिक से एक पूजनीय संत बन जाता है यह वह खतरना
तांत्रिक की कहानी है
जो आपको सोचने पर मजबूर कर देगी क्योंकि यह कहानी है कैलाश पर्वत पर सफल चढ़ाई करने
वाले एकमात्र इंसान मिला रेपा की तिब्बत के रहस्यमय और खतरनाक पहाड़ों के बीच एक ऐसा नाम उभरा जिसने इतिहास के पन्नों में ना केवल अपने काले जादू की वजह से जगह बनाई बल्कि आत्मज्ञान की ऊंचाइयों को छूकर भगवान के रूप में पूजनीय भी बन गया तो आइए आपको एक ऐसे रहस्यमय जीवन की यात्रा पर ले चलते हैं जहां एक साधारण बालक ने त्रासदी से जन्मी बदले की आग में खुद को एक खतरनाक तांत्रिक के रूप में ढाल लिया लेकिन इस कहानी का अंत उतना साधारण नहीं है जितना आप सोच रहे हैं तिब्बत की ठंडी हवाओं में एक समय ऐसा भी था जब जीवन शांति और समृद्धि से भरा
हुआ था 11वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में तिब्बत के दक्षिणी भाग में स्थित एक गांव में थोप ग का जन्म हुआ था जिन्हें हम मिला रेपा के नाम से जानते हैं व एक सुखी संपन्न परिवार में पले बढ़े उनके पिता एक सफल जमींदार थे जिनकी संपत्ति भूमि और पशुधन गांव में प्रतिष्ठा का प्रतीक थे मिला रेपा का बचपन आराम और प्रेम में बीता अपने माता-पिता के इकलौते पुत्र होने के नाते उन्हें हर खुशी और सुविधा मिली उनके साथ उनकी छोटी बहन भी थी और परिवार का जीवन खुशहाल था लेकिन जीवन में कोई भी स्थिति स्थिर नहीं रहती सब कुछ बदल जाता है और ऐसा ही हुआ मिला
रेपा के साथ जब मिला रेपा केवल 7 साल के थे तब उनके पिता का अचानक देहांत हो गया इस मृत्यु ने परिवार को आर्थिक और भावनात्मक रूप से हिलाकर रख दिया अपने अंतिम समय में उनके पिता ने एक वसीयत बनाई जिसमें कहा गया था कि जब तक मिला रेपा बड़े नहीं हो जाते तब तक उनके चाचा और चाची परिवार की देखभाल करेंगे और संपत्ति का प्रबंधन करेंगे यह वसीयत इस उम्मीद के साथ की गई थी कि परिवार को कोई कठिनाई नहीं होगी लेकिन उनके पिता की मृत्यु के तुरंत बाद हालात पूरी तरह बदल गए चाचा और चाची जिन्होंने पहले अच्छे संबंधों का दिखावा किया था अब पूरी तरह से बदल चुके थे
उन्होंने संपत्ति पर अधिकार कर लिया और मिला रेपा की मां और बच्चों को नौकरों की तरह काम करने के लिए मजबूर किया जो घर कभी उनका था अब वह उनके लिए जेल बन गया था उनका जीवन सम्मान से गिरकर अपमान और गरीबी में बदल चुका था मिला रेपा की मां जो कभी एक सम्मानित महिला थी अब अपमान और कष्ट सहने पर मजबूर थी उनका मन बदले की भावना से भर चुका था उन्होंने बार-बार अपनी संपत्ति वापस पाने की कोशिश की लेकिन हर बार नाकामी मिली गांव के लोग इस अन्याय को चुपचाप देख रहे थे लेकिन किसी ने मदद करने की हिम्मत नहीं की अंत में उनकी मां ने एक कठोर
निर्णय लिया उन्होंने मिला रेपा से कहा अगर हम अपनी संपत्ति वापस नहीं पा सकते तो हमें उन लोगों से बदला लेना चाहिए जिन्होंने हमें बर्बाद किया है यह शब्द यह भावना मिला रेपा के जीवन की दिशा बदलने वाली थी बदले की भावना उनके मन में गहराई तक समा चुकी थी अपनी मां की आज्ञा का पालन करते हुए मिला रेपा ने तांत्रिक विद्या सीखने का निर्णय लिया त्र मंत्र की दुनिया में प्रवेश करने के लिए वे अपने गांव से दूर चले गए उनका उद्देश्य अब केवल एक था अपने चाचा और चाची से बदला लेना मिला रेपा का यह सफर आसान नहीं था वे कई तांत्रिक गुरुओं के पास गए और कई कठिन साधना हों के
बाद उन्होंने तांत्रिक विद्या में महारत हासिल की यह सिर्फ एक तांत्रिक की कहानी नहीं है बल्कि एक ऐसी यात्रा है जो मिला रेपा को आत्मज्ञान प ताप और मुक्ति के मार्ग पर ले जाएगी मिलरेपा की असली यात्रा की शुरुआत करने जा रहे हैं इस मिला रेपा का जीवन तिब्बत की वादियों में एक साधारण लड़के के रूप में शुरू हुआ था
लेकिन किसे पता था कि वही बालक एक दिन तंत्र विद्या की गहरी रहस्यमय और अंधेरी दुनिया में कदम रखेगा पिता की असमय मृत्यु और परिवार की संपत्ति छिन जाने के बाद मिला रिपा के जीवन का हर सुख एक दुख में तब्दील हो गया उनके चाचा और चाची ने परिवार को गरीबी और अपमान की दलदल में धकेल दिया और तब उनकी मां ने बदले की आग को हवा दी मां के कड़वे शब्द अपमान और दुख से प्रेरित होकर मिला रेपा ने एक कठोर निर्णय लिया उन्होंने तांत्रिक विद्या सीखने का संकल्प लिया उनके गुरु थे युंग न एक भयानक तांत्रिक जिनकी शक्तियां अद्वितीय मानी जाती थी युटन के संरक्षण
में मिला रेपा ने तांत्रिक विद की गहन शिक्षा ली उनके जीवन का अब एक ही उद्देश्य था बदला और इस बदले की आग ने उन्हें मौत का मंत्र सीखने की राह पर धकेल दिया मौत का मंत्र वह मंत्र जिसे सीखने के बाद मिला रेपा अपने दुश्मनों को बिना सामने आए मार सकते थे उन्होंने प्राकृतिक शक्तियों को नियंत्रित करना भी सीख लिया विशेषक ओलावृष्टि का आह्वान करना और इसी विद्या का प्रयोग उन्होंने अपने चाचा और चाची के गांव में किया जहां भारी ओला वृष्टि ने पूरे गांव की फसलों को तबाह कर दिया गांव के लोग भयभीत हो गए और उन्हें समझ नहीं आया कि यह आपदा कहां से आई लेकिन
मिला रेपा की यह पहली विजय थी और अब वे रुके नहीं इसके बाद आया वह दिन जब मिला रेपा ने बदले का सबसे भयानक रूप धारण किया उनके चाचा के बेटे की शादी का दिन था पूरा गांव एकत्रित था और मिला रेपा ने इसी मौके का चयन किया उन्होंने मृत्यु का मंत्र इस्तेमाल किया अचानक सांप मकड़िया हों और अन्य जहरीले जीव विवाह समारोह में प्रकट होने लगे अफरातफरी मच गई और घर की छत गिर गई इसमें करीब 80 लोग मारे गए और मिला रेपा का बदला पूरा हुआ मिला रेपा की मां को गर्व हुआ उन्होंने गांव में घोषणा की कि उनका बेटा बदला ले चुका है लेकिन मिला रेपा के मन में कुछ और चलर रहा था बदले की
आग में जलने वाले मिला रेपा को अब यह एहसास हो रहा था कि उन्होंने क्या खो दिया वे अपराध बोध से घिर गए थे कई निर्दोष लोग मारे गए थे और बदले से जो संतोष मिलना चाहिए था वह अब एक भयानक पश्चाताप में बदल चुका था यहीं से शुरू हुआ मिलरेपा का आत्मिक सफर उन्हें एहसास हुआ कि काले जादू और तांत्रिक शक्तियां उन्हें शांति नहीं दे सकती अब वे आत्मिक मुक्ति की ओर बढ़ना चाहते थे इसी दौरान उनकी मुलाकात एक बौद्ध लामा से हुई जिन्होंने उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान की ओर मार्गदर्शन दिया इस लामा ने उन्हें बौद्ध धर्म के महान गुरु मारपा के पास भेजने का सुझाव दिया और यहीं से शुरू
होती है मिला रेपा की प्रायश्चित और आत्मज्ञान की यात्रा [संगीत] मिला रेपा की जीवन यात्रा में एक बड़ा मोड़ तब आया जब उन्होंने तंत्र विद्या और काले जादू के माध्यम से अपने दुश्मनों से बदला लेने के बाद गहरे पश्चाताप का अनुभव किया उन्हें एहसास हुआ कि इन विधाओं ने उन्हें सिर्फ विनाश और दुख की ओर धकेला है अब उनके मन में आत्मिक मुक्ति और शांति की चाह जागृत हुई इसी समय उनकी मुलाकात एक बौद्ध लामा से हुई जि उने उन्हें गुरु मारपा लट सावा के पास जाने की सलाह दी मारपा एक महान बौद्ध गुरु थे जिन्होंने भारत से बौद्ध धर्म की गहरी शिक्षाएं प्राप्त की थी
तिब्बत में उन्हें एक अनुवादक के रूप में भी जाना जाता था क्योंकि उन्होंने बौद्ध धर्म के महत्त्वपूर्ण ग्रंथों का अनुवाद किया था जब मिला रेपा गुरु मारपा के गांव पहुंचे तो वहां बच्चों से उनकी मुलाकात हुई उन्होंने बच्चों से पूछा मारपा वादक कहां है एक बच्चे ने जवाब दिया मेरे साथ आओ मैं तुम्हें उनसे मिलवा हूं बच्चा उन्हें एक खेत में ले गया जहां एक साधारण किसान जमीन जोत रहा था मिला रेपा को यह समझ नहीं आया कि वही किसान दरअसल गुरु मारपा थे गुरु ने मिला रेपा को देसी शराब दी और कहा इसे पी लो और फिर खेत जोतने का काम करो बिना सवाल किए मिला रेपा ने गुरु
की बात मानी काम पूरा पूरा करने के बाद जब बच्चे ने बताया कि यह व्यक्ति ही गुरु मारपा थे तो मिला रेपा को भारी आश्चर्य हुआ उन्होंने गुरु के चरणों में गिरकर अपने पाप पछतावा और आत्मिक मुक्ति की इच्छा व्यक्त की लेकिन गुरु मारपा ने उन्हें तुरंत कोई शिक्षा देने के बजाय कठिन परीक्षाओं से गुजारा मिला रेपा ने झुककर मारपा से कहा मैं आपसे धर्म की दीक्षा चाहता हूं मैं एक ऐसी प्रणाली ऐसी क्रिया की तलाश में हूं जो मुझे इसी जन्म में ज्ञान दे दे और मेरे बंधन को तोड़ दे मैं अगले जन्म के फेर में नहीं पढ़ना चाहता हूं मैं आपको अपना शरीर
अपना दिमाग और अपनी बोली सब कुछ अर्पण करता हूं कृपया इसके बदले में मुझे खाना कपड़े और ज्ञान दे यह वाकई एक खूबसूरत बात थी अक्सर लोग गुरु के पास जाकर कहते हैं कि वे अपनी आत्मा समर्पित करते हैं लेकिन असल में यह एक है जो चीज आपकी है ही नहीं उसे देना बहुत ही आसान है उसे कह देना कि मैं आपको आत्मा देता हूं कितना सरल है लेकिन जो आपके पास सच में है आपका शरीर आपका दिमाग और आपकी बोली उसे समर्पित करना यह एक बहुत बड़ा कदम है मारपा ने ध्यान से मिला रेपा की बात सुनी फिर बोले तुम अपना शरीर दिमाग और बोली मुझे दे रहे हो इसके बदले में मैं
तुम्हें खाना और रहने की जगह दे सकता हूं लेकिन ज्ञान इसके लिए तुम्हें किसी और को देखना होगा या फिर मैं तुम्हें ज्ञान दे सकता हूं पर तुम्हें अपना खाने और रहने का इंतजाम कहीं और से करना होगा मिला रेपा ने तुरंत कहा ठीक है मुझे ज्ञान चाहिए मैं अपना खाने और रहने का इंतजाम कर लूंगा इसके बाद मिला रेपा भिक्षा न के लिए निकल पड़े ताकि पूरे साल के लिए भोजन का इंतजाम कर सके वे दूर दूर तक भिक्षा मांगते रहे और एक बोर भर गेहूं इकट्ठा कर लिया साथ ही उन्होंने एक पारंपरिक तांबे का बर्तन भी खरीदा जब वह भारी बोरा लेकर मारपा के घर लौटे तो गलती से बोरा गिर गया
और तेज आवाज हुई जिससे मारपा नाराज हो गए मारपा बोले तुम्हारे इस व्यवहार से तो ऐसा लगता है कि तुम इस घर को भी अपने चाचा के घर की तरह बर्बाद कर दोगे अब यहां से चले जाओ मिला रेपा ने गिड़गिड़ा ते हुए कहा मैंने आपसे कहा था कि मैं भोजन लाऊंगा और मैंने अपना वादा निभाया बोरा भारी था इसलिए मुझसे संभल नहीं पाया मारपा ने गंभीरता से कहा तुम्हारे बोरे को रखने के तरीके से ही तुम्हारे व्यवहार का आकलन होता है मिला रेपा की कठिन यात्रा में एक बड़ा मोड़ तब आया जब उन्होंने अपने गुरु मारपा की पत्नी दग मेमा से मदद की गुहार लगाई दग
मेमा ने उनके प्रति सहानुभूति दिखाई और मारपा से कहा आप मिला रेपा को क्यों नहीं सिखाते वह अच्छी तरह से हमारी सेवा कर रहा है मारपा ने जवाब दिया अगर यह मेरे बेटे के लिए तीन कोनों वाला घर बना देगा तो मैं इसे सिखाऊंगा लेकिन शर्त यह है कि इसे अकेले बनाना होगा किसी की भी मदद नहीं लेनी होगी मारपा ने मिलरेपा को पहला कार्य दिया एक गोलाकार टावर का निर्माण करना यह काम उन्होंने ने अकेले करना था बिना किसी की मदद के मिला रेपा ने अपनी पूरी निष्ठा के साथ इस कार्य को शुरू किया उन्होंने लकड़ियां काटी पत्थर इकट्ठे किए और बिना सहायता के टावर बनाने
लगे कई महीनों की मेहनत के बाद जब टावर लगभग पूरा हो गया तो मारपा ने अचानक कहा इस टावर को गिरा दो और सारे पत्थर और लकड़ियां वहीं वापस रख दो जहां से उन्हें लाया था पहली परीक्षा के बाद मारपा ने उन्हें दूसरा कार्य दिया अर्ध चंद्राकार टावर बनाने का मिला रेपा ने फिर से इस कार्य को स्वीकार किया और पूरी मेहनत से निर्माण किया लेकिन जब यह टावर भी तैयार हो गया तो मारपा ने फिर से कहा इसे भी गिरा दो और सारे पत्थर वापस वहीं रख दो तीसरी परीक्षा में मिला रेपा को त्रिकोणीय भवन बनाने का आदेश मिला इस बार भी उन्होंने बिना किसी शिकायत के यह काम
किया लेकिन जब भवन तैयार होने के करीब था मारपा ने फिर से नाराजगी जताई और कहा इसे भी गिरा दो और सारे पत्थर वहीं रख दो इन परीक्षाओं के दौरान मिला रेपा का शरीर पूरी तरह थक गया था उनके हाथों और पीठ पर घाव हो गए थे लेकिन उनके धैर्य और समर्पण में कोई कमी नहीं आई मारपा की पत्नी दग मेमा ने मिलरेपा की कड़ी मेहनत देखी उन्हें सहानुभूति हुई और उन्होंने मारपा से कहा अब समय आ गया है कि आप मिलरेपा को सिखाए वह बहुत समय से हमारी सेवा कर रहा है मारपा ने अंततः यह स्वीकार किया कि मिलरेपा अब पूरी तरह शुद्ध हो चुके हैं उन्होंने मिला रेपा को आध्यात्मिक शिक्षा
देना शुरू किया मारपा ने उन्हें महामुद्रा ध्यान सिखाया जो आत्मा की गहराइयों में उतरने का मार्ग प्रदान करता है जब मिला रेपा की साधना उच्चतम स्तर पर पहुंच गई तब मारपा ने उन्हें डाकिनी साधना करने का आदेश दिया यह साधना साधारण नहीं थी और इसके लिए उच्च आत्मिक शक्ति और धैर्य की आवश्यकता थी मारपा ने मिला रेपा को एक अंधेरे कमरे में बंद कर दिया और एक विशेष मंत्र दिया जिसे उन्हें लगातार तीन दिन तक झप था अंततः तीसरे दिन डाकिनी प्रकट हुई और उन्होंने मिला रेपा से कहा तुम्हारी साधना अब लगभग पूरी हो चुकी है लेकिन तुम्हारे गुरु के पास एक अंतिम शिक्षा अ भी बाकी है
यह सुनकर मिला रेपा ने गुरु मारपा से बात की मारपा ने उत्तर दिया मैंने तुम्हें जितनी भी शिक्षाएं प्राप्त की है वह सब दे दी हैं लेकिन अब तुम्हें हमारे गुरु नरोपा के पास जाना होगा मारपा और मिलरेपा ने भारत की यात्रा की और गुरु नरोपा के पास पहुंचे नरोपा ने मिला रेपा को अंतिम शिक्षा प्रदान की जिसे आत्मज्ञान का अंतिम स्तर माना जाता है नरोपा ने आशीर्वाद देते हुए कहा तुम्हारी साधना अब पूरी हो चुकी है इस प्रकार मिला रेपा की यात्रा उन्हें आत्मज्ञान की उच्चतम अवस्था में ले गई अब वह केवल एक साधारण योगी नहीं बल्कि एक महान संत और कवि के रूप में प्रकट
हुए अगले दो चैप्टर्स में हम देखेंगे कैसे मिला रेपा ने कैलाश पर्वत पर सफल चढ़ाई की और उस पवित्र पर्वत के रहस्यों के बारे में उन्होंने क्या बताया और आखिरकार मिला रेपा की मृत्यु किस कारण से हुई इन अनसुलझे सवालों का जवाब जानने के लिए हमारे साथ बने [संगीत] रहिए मिला रेपा का जीवन कई रहस्यों और अद्भुत घटनाओं से भरा हुआ है लेकिन इनमें से सबसे रहस्य और अनूठी घटना थी कैलाश पर्वत की चढ़ाई कैलाश पर्वत एक ऐसा स्थान जिसे तिब्बत के साथ-साथ हिंदू बौद्ध जैन और बोन धर्मों में भी अत्यधिक पवित्र माना जाता है भगवान शिव का निवास ब्रह्मांड का
केंद्र और आध्यात्मिक रहस्यों का अद्भुत प्रतीक इस पवित्र पर्वत पर चढ़ना हमेशा से एक असंभव कार्य माना जाता रहा है हजारों लोग आए लेकिन कोई इस अद्भुत पर्वत की छोटी तक नहीं पहुंच सका सिवाय एक मिला रेपा 1093 ईसवी यही वह समय था जब मिला रेपा ने कैलाश पर्वत की चढ़ाई शुरू की लेकिन यह कोई साधारण चढ़ाई नहीं थी यह शारीरिक विजय नहीं बल्कि आत्मिक और दिव्य अनुभव की खोज थी मिला रेपा की यह यात्रा आध्यात्मिक रूप से इतनी महत्त्वपूर्ण थी कि हर कदम एक नई साधना और ब्रह्मांड के रहस्यों को समझने का प्रयास था कैलाश की इस यात्रा में उनकी मुलाकात
हुई बोन धर्म के एक प्रसिद्ध प्रचारक नरोवा जी से नरोवा जी ने मिला रेपा को एक चुनौती दी जो पहले कैलाश पर्वत की चोटी पर पहुंचेगा उसका कैलाश पर वर्चस्व होगा यह एक आध्यात्मिक और शारीरिक दौड़ थी और मिला रेपा ने इस चुनौती को स्वीकार कर लिया नरवान जी ने तेजी से चढ़ाई शुरू की लगातार आगे बढ़ते रहे लेकिन मिला रेपा थोड़ी देर ध्यान मुद्रा में बैठ गए कुछ समय बाद नरोवा जी जब छोटी के बहुत पास पहुंचे तो सूरज की पहली किरण उनके चेहरे पर पड़ी वह किरण इतनी तीव्र और शक्तिशाली थी कि उन्हें पीछे हटना पड़ा और इस बीच मिलरेपा ने बिना किसी रुकावट के अपनी
चढ़ाई जारी रखी और अंततः वे नरवान जी से पहले छोटी तक पहुंच गए यह केवल शारीरिक विजय नहीं थी यह थी मिला रेपा की आध्यात्मिक शक्ति और दिव्य शक्तियों का दर्शन एक ऐसी चढ़ाई जो आज भी एक रहस्य बनी हुई है कैलाश पर्वत की चोटी पर पहुंचकर मिला रेपा ने कुछ अद्भुत और अनजाने रहस्यों का अनुभव किया उन्होंने कहा कि यह पर्वत साधारण लोगों के लिए नहीं है और कोई साधारण व्यक्ति यहां चढ़ने का प्रयास ना करें क्योंकि यह भगवान शिव का पवित्र निवास है यहां चढ़ करना उनके ध्यान में विघ्न डालने जैसा है जैसे हम मंदिर की छत पर नहीं चढ़ते वैसे ही कैलाश पर चढ़ाई
करना भगवान शिव के सम्मान का उल्लंघन होगा मिला रेपा के इस उपदेश ने यह संदेश दिया कि कैलाश पर्वत पर चढ़ाई केवल उन्हीं के लिए संभव है जिन्होंने अपनी आत्मा की गहराइयों में उच्च साधना प्राप्त हो
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एक दिन मिला रेपा को एक शादी में आमंत्रित किया गया उनके स्वागत के लिए एक सुंदर आसन तैयार किया गया था उसी शादी में एक धनवान पंडित भी था जो मिला रेपा के लिए हो रही तैयारियों को देखकर हैरान रह गया जैसे ही मिला रेपा उस आसन पर बैठे पंडित ने तिरस्कार भरे स्वर में कहा इस भिखारी के लिए इत तैयारियां क्या यह मुझसे बड़ा पंडित है मैं इसे देखता हूं पंडित मिला रेपा के पास जाकर बोला मैंने सुना है आप बहुत ज्ञानी हैं मैं चाहता हूं कि आप इन किताबों को पढ़कर अपना
ज्ञान साबित करें मिला रेपा ने शांत स्वर में उत्तर दिया इन सांसारिक किताबों को पढ़कर सच्चा ज्ञान नहीं मिलता इसलिए मैं ऐसा नहीं करूंगा यह सुनकर पंडित हंसा और बोला मुझे पता था कि तुम ऐसा ही कहोगे मैं तुम्हें बेनकाब करने ही आया था उसने बदतमीजी से बातें जारी रखी जिसे देखकर आसपास के लोग उसे रोकने लगे लेकिन पंडित और गुस्से में भर गया और वहां से चला गया अपने मन में बदले की भावना रखते हुए पंडित ने योजना बनाई कि वह किसी भी तरह मिला रेपा को मार देगा उसने एक महिला को लालच देकर विष मिला हुआ दही दिया और कहा कि अगर वह मिला को यह खिला सके तो उसे एक
हीरे का हार और शादी का वादा मिलेगा महिला लालच में आकर विष वाला दही लेकर मिला रेपा के पास पहुंची जैसे ही मिला रेपा ने उसे देखा वे तुरंत समझ गए उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा मैं यह दही खाऊंगा लेकिन पहले तुम वह हीरे का हार ले आओ क्योंकि वह शादी का वादा तो कभी पूरा नहीं हो सकता यह सुनकर महिला डर गई और पंडित के पास लौटकर सब कुछ बताया पंडित ने हार देकर उसे फिर से भेजा जब वह हार लेकर वापस आई तब मिलरेपा ने दही स्वीकार किया जैसे ही उन्होंने विष वाला दही खाया महिला रोते हुए माफी मांगने लगी लेकिन मिला रेपा ने उसे सांत्वना दी और कहा
घबराओ मत मेरा समय आ गया है यह सुनकर वह महिला उनकी शिष्या बन गई इसके बाद मिला रेपा ने अपने शिष्यों को बुलाया और कहा कि वह शीघ्र ही शरीर त्यागने वाले हैं उनके संदेश को सुनने के लिए ना केवल शिष्य बल्कि देवी देवता भी इंतजार कर रहे थे आकाश से पुष्पों की वर्षा हो रही थी हवाओं में सुगंध फैल चुकी थी और मधुर संगीत बज रहा था इस शुभ घड़ी में मिला रेपा ने अपने शिष्यों से कहा प्रिय शिष्यों मेरा समय आ गया है मैंने धरती पर जो उद्देश्य लेकर आया था उसे पूरा कर अब दवाइयों की आवश्यकता नहीं है यह विष केवल एक माध्यम है ध्यान से सुनो जीवन में
समय को व्यर्थ ना गवा हो और अपने गुरुओं के आदेशों का पालन करो इस जीवन में ही आत्मज्ञान प्राप्त करने की कोशिश करो इसी तरह मिला रेपा ने अंततः अपना देह त्याग दिया लेकिन उनके जाने से पहले उन्होंने हमें एक महत्त्वपूर्ण संदेश दिया कि मैंने जीवन के हर मोड़ पर कष्टों का सामना किया लेकिन उन कष्टों में ही मुझे मार्गदर्शन मिला यह मत समझो कि दुनिया के भौतिक सुख तुम्हें शांति देंगे शांति भीतर से आती है जब तुम स्वयं को जानने लगते हो जब तुम्हारा मन शांत और स्थिर हो जाता है जिसने आत्म ज्ञान प्राप्त कर लिया उसके लिए ना तो कोई शत्रु रहता है और ना ही कोई
बंधन यह शरीर केवल एक माध्यम है असली यात्रा तो आत्मा की है अगर तुम सत्य की तलाश में हो तो उस मार्ग पर चलो जहां कठिनाई हो क्योंकि वहीं सच्चा ज्ञान छुपा हुआ है
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