मोक्षदा एकादशी व्रत कथा 2024

मोक्षदा एकादशी व्रत कथा Mokshada Ekadashi fasting story

मोक्षदा एकादशी व्रत कथा

मोक्षदा एकादशी का व्रत हिंदू धर्म में अत्यंत महत्व रखता है, विशेष रूप से इस दिन को गीता जयंती के रूप में मनाया जाता है। यह दिन भगवान श्री कृष्ण के उपदेशों और उनकी महिमाओं का सम्मान करने का अवसर होता है। मोक्षदा एकादशी के दिन व्रत रखने से न केवल व्यक्ति के पाप नष्ट होते हैं, बल्कि उसे मोक्ष की प्राप्ति भी होती है। इस व्रत की कथा हमें यह सिखाती है कि यदि हम श्रद्धा और भक्ति से किसी कार्य को करते हैं, तो हमारे जीवन में खुशहाली और शांति आ सकती है।


मोक्षदा एकादशी का महत्व

मोक्षदा एकादशी का व्रत विशेष रूप से भगवान विष्णु के पूजन से जुड़ा हुआ है। इस दिन व्रत रखने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का आगमन होता है, साथ ही पापों का नाश भी होता है। हिन्दू धर्म के अनुसार, एकादशी का व्रत करने से सभी प्रकार के पापों का नाश होता है और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। विशेष रूप से मोक्षदा एकादशी का व्रत मोक्ष की प्राप्ति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह व्रत पित्रों की मुक्ति के लिए भी एक पवित्र साधन है, क्योंकि इस दिन पुण्य का संकलन कर पितरों को समर्पित किया जाता है।

मोक्षदा एकादशी का व्रत मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को किया जाता है। यह व्रत धर्म, भक्ति, और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है। इस दिन विशेष रूप से गीता का पाठ और भगवान श्री कृष्ण की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि इस दिन गीता का पाठ करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है। यह दिन हमें अपने जीवन के कर्तव्यों को समझने और धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है।


मोक्षदा एकादशी व्रत कथा

बहुत समय पहले गोकुल नामक एक सुंदर और समृद्ध नगर था, जहां राजा वनस नामक एक न्यायप्रिय और धर्मात्मा शासक थे। उनका राज्य सुख-शांति से परिपूर्ण था और उनकी प्रजा उन्हें पिता समान आदर देती थी। राजा वनस का जीवन अपने कर्तव्यों और धर्म के प्रति निष्ठा से भरा हुआ था। एक रात राजा को एक विचित्र स्वप्न आया। उन्होंने देखा कि उनके पिता नरक में कष्ट भोग रहे हैं। स्वप्न में उनके पिता ने कहा, “हे पुत्र, मैं नरक में भयंकर कष्ट सह रहा हूं। कृपया मुझे इस पीड़ा से मुक्त करो।” राजा वनस इस स्वप्न से विचलित हो गए और उनका मन अशांत हो गया। वह सोचने लगे कि उनके जैसे धर्मात्मा पिता नरक में क्यों कष्ट भोग रहे हैं।

राजा ने तत्काल अपने राज्य के ब्राह्मणों को बुलाया और अपनी समस्या बताई। उन्होंने कहा, “हे ब्राह्मणों, मेरे पिता नरक में कष्ट भोग रहे हैं। कृपया ऐसा कोई व्रत या उपाय बताएं जिससे उन्हें मुक्ति मिल सके।” ब्राह्मणों ने राजा को सांत्वना दी और कहा कि इस प्रश्न का उत्तर केवल पर्वत मुनि दे सकते हैं, क्योंकि वह भूत, भविष्य और वर्तमान के ज्ञाता हैं।

राजा वनस ने पर्वत मुनि के आश्रम का मार्ग लिया। जब उन्होंने मुनि से अपनी समस्या बताई, तो मुनि ने अपनी तपस्या के बल से राजा के पिता के कर्मों का आकलन किया। मुनि ने कहा, “हे राजा, आपके पिता ने अपने पूर्व जन्म में एक बड़ा पाप किया था, जिसके कारण उन्हें नरक में जाना पड़ा। वह अपनी पहली पत्नी के साथ पवित्र संबंध में थे, लेकिन सौत की बातों में आकर उन्होंने दूसरी पत्नी को ऋतु दान देने से इंकार कर दिया। यह पाप उनके नरक में जाने का कारण बना।”

राजा वनस ने गहरी सांस ली और कहा, “हे मुनिवर, क्या मेरे पिता के उद्धार का कोई उपाय है?” मुनि ने कहा, “हाँ, हे राजन, मार्गशीर्ष माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को ‘मोक्षदा एकादशी’ कहा जाता है। इस दिन व्रत करने से आप अपने पिता को नरक से मुक्त कर सकते हैं और उन्हें स्वर्गलोक प्राप्त हो सकता है।”


राजा वनस ने मुनि के वचन सुने और महल लौटे। उन्होंने विधिपूर्वक मोक्षदा एकादशी का व्रत किया और इस व्रत का पुण्य अपने पिता के उद्धार के लिए अर्पित किया। इसके बाद राजा के पिता नरक से मुक्त हो गए और स्वर्ग को प्राप्त हुए। जाते समय उन्होंने अपने पुत्र से कहा, “हे पुत्र, तुम्हारे इस पवित्र कार्य से मुझे मुक्ति मिली है। भगवान तुम्हें चिरंजीवी और धन्य करें।”

गीता जयंती और मोक्षदा एकादशी का संबंध

मोक्षदा एकादशी के दिन गीता जयंती का पर्व भी मनाया जाता है। यह दिन भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन के संवाद का प्रतीक है। महाभारत के युद्ध भूमि में, जब अर्जुन ने अपने स्वजनों और गुरुजनों को युद्ध के मैदान में देखा, तो उनका हृदय करुणा से भर गया और वह युद्ध करने के लिए तैयार नहीं हो पाए। इस पर भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें गीता का उपदेश दिया।

भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा, “हे पार्थ, यह शरीर नश्वर है, परंतु आत्मा अजर, अमर और अविनाशी है। मृत्यु केवल शरीर का परिवर्तन है, आत्मा का नहीं।” इस उपदेश ने अर्जुन के मन को शांत किया और उन्होंने अपने कर्तव्य को समझा। उन्होंने युद्ध में धर्म की रक्षा के लिए भाग लिया और अधर्म का नाश किया।


गीता का महत्व और जीवन में इसका पालन

श्रीमद्भगवद्गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि यह जीवन के प्रत्येक पहलू को समझाने वाला एक अद्वितीय ग्रंथ है। इसमें भगवान श्री कृष्ण ने कर्म, भक्ति, योग, और ज्ञान के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला। गीता का संदेश आज भी हम सभी के लिए प्रासंगिक है। यह हमें जीवन में संघर्षों से जूझने, अपने कर्तव्यों को निभाने, और भक्ति के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती है।


गीता के श्लोक हमें यह सिखाते हैं कि कर्म का फल भगवान के हाथ में होता है, और हमें अपने कर्तव्यों से कभी भी भागना नहीं चाहिए। भगवान श्री कृष्ण के उपदेशों का पालन करने से जीवन में शांति, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है। गीता जयंती के दिन हम गीता का पाठ करते हैं और भगवान श्री कृष्ण की पूजा करते हैं, ताकि हम अपने जीवन को सही दिशा में ले जा सकें और अपने कर्तव्यों का पालन कर सकें।

निष्कर्ष

मोक्षदा एकादशी का व्रत और गीता जयंती दोनों ही हमें जीवन के महत्वपूर्ण उपदेश देते हैं। मोक्षदा एकादशी का व्रत न केवल आत्मा की शुद्धि का मार्ग है, बल्कि पितरों की मुक्ति के लिए भी एक पवित्र साधन है। गीता जयंती के दिन गीता का पाठ करने से हमें जीवन का सर्वोत्तम ज्ञान प्राप्त होता है और हम अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए जीवन में शांति और मोक्ष की प्राप्ति कर सकते हैं।

इस दिन व्रत रखने और गीता का पाठ करने से हमारे जीवन में भगवान श्री कृष्ण की कृपा होती है और हम अपने पापों से मुक्त हो जाते हैं। यह दिन हमें धर्म के मार्ग पर चलने और भगवान श्री कृष्ण के उपदेशों का पालन करने की प्रेरणा देता है, ताकि हम अपने जीवन को सही दिशा में आगे बढ़ा सकें।



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