Padmanabhaswamy Temple Mystery | History

Padmanabhaswamy Temple Mystery | History Of Padmanabhaswamy Temple

Padmanabhaswamy Temple Mystery | History Of Padmanabhaswamy Temple –
साल था जून 2011 जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर एक सात सदय टीम मंदिर के अंदर सदियों से बंद रहस्यमई तह को खोलने के लिए पहुंचती है जब उन्होंने छह में से पांच तह को खोला तो उसमें इतना खजाना निकला कि उससे पूरे देश की गरीबी को मिटाई जा सकती थी आखिर एक ट्रिलियन डॉलर का यह खजाना मंदिर के अंदर आया कैसे और इतने विशाल खजाने को रखने का मकसद क्या था सबसे चौकाने वाली बात यह है कि इस मंदिर का संचालन सिर्फ एक ही परिवार के पास क्यों है जबकि आखिरी तहखाने के ऊपर ना तो ताला है ना कोई कुंडी लगी हुई है फिर भी अब तक सिर्फ इसी तहखाने को क्यों नहीं

Padmanabhaswamy Temple Mystery | History
Padmanabhaswamy Temple Mystery | History

खोला जा सका और जिसने भी इसे खोलने की कोशिश की उसकी रहस्यमई मौत हो जाती है या वह कहीं गुम हो जाता है सबसे बड़ा रहस्य यह है कि इस तहखाने को खोलने का संबंध गरुड़ पुराण और अष्ट नाग बंधन मंत्र से क्यों जुड़ा है जब वर्ष 1908 और 1931 में इस मंदिर के खजाने को हड़पने का प्रयास किया गया तो हजारों बड़े-बड़े सांपों ने उन लोगों पर हमला कर दिया आखिर इतने बड़े सांप क्यों इस खजाने की रखवाली करते हैं आज इन सभी सवालों के जवाब आपको मिलने वाले हैं क्योंकि आज हम बात करेंगे विश्व के सबसे अमीर और रहस्यमय मंद मर पद्मनाभ स्वामी के बारे
में पद्मनाभ स्वामी मंदिर भारत के दक्षिणी राज्य केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम में स्थित विश्व का सबसे धनिक और रहस्यमय मंदिर माना जाता है यह मंदिर अचानक तब चर्चा में आया जब साल 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि मंदिर के नीचे मौजूद तहखाने को खोला जाए इसके छह दरवाजों में से जब पांच दरवाजे खोले गए तो उनमें से लगभग एक ट्रिलियन डॉलर से भी अधिक का खजाना निकला जिससे मंदिर दुनिया भर में बड़ी चर्चा का विषय बना यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है जो शेषनाग पर शयन मुद्रा में विराजमान है इतना ही नहीं तिरुवनंतपुरम शहर का नाम भी इसी मंदिर के
प्रभाव से पड़ा है संस्कृत में अंत का अर्थ शेष नाग और पुरम का मतलब नगर होता है इस तरह इसका अर्थ है भगवान अनंत का स्थान पद्मनाभ स्वामी मंदिर की खूबसूरती और शांति हजारों श्रद्धालुओं को आकर्षित करती है इसकी भव्यता और धार्मिक आस्था के कारण इसे केरल के प्रमुख वैष्णव मंदिरों में शामिल किया गया है और यह भगवान विष्णु के 108 दिव्य देशम में से एक है त्रावणकोर के अंतिम शासक श्री बलराम वर्मा एक ऐसा नाम जिसने 1924 से 1947 तक रावण कोर पर शासन किया भारतीय स्वतंत्रता के बाद भी उन्होंने पद्मनाभ स्वामी मंदिर के ट्रस्ट का नेतृत्व करना जारी
रखा लेकिन असली कहानी यहां से शुरू होती है 1991 में जब त्रावणकोर के अंतिम शासक श्री चिथरा थिरुनल बलराम वर्मा के निधन के बाद उनके भाई उत्तरा दम थिरुनल मर्थ वर्मा ने मंदिर का प्रबंधन संभाला परंतु धीरे-धीरे आरोप उठने लगे कि मंदिर की अमूल्य संपत्तियों का दुरुपयोग किया जा रहा है और तब 2008 में पद्मनाभ स्वामी मंदिर के एक कट्टर भक्त और सेवा निवृत्त आईपीएस अधिकारी टीपी सुंदर राजन ने एक ऐसा कदम उठाया जिसने सबको चौका दिया उन्होंने सबसे पहले अदालत में चिका दाखिल की और अपने आरोपों में दावा किया कि मंदिर के भीतर बड़े पैमाने पर चोरी हो रही है उनका
कहना था कि कई कीमती आभूषण और बेशकीमती जवाहरा तों की तस्करी की गई है और उनकी जगह नकली आभूषण रख दिए गए हैं बाद में यह मामला केरल उच्च न्यायालय तक पहुंचा जिसने मंदिर के प्रबंधन का कार्य राज्य सरकार को सौंपने का निर्णय लिया लेकिन यह मामला यहां थमा नहीं राज परिवार ने केरल हाई कोर्ट के फैसले को देश की सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जिसके परिणाम स्वरूप साल 2011 में केरल उच्च न्यायालय के आदेश पर सर्वोच्च न्यायालय ने रोक लगाई और एक ऐतिहासिक निर्णय लिया मंदिर के भीतर मौजूद खजाने की सूची बनाने का आदेश जारी किया इस आदेश के बाद शाही परिवार को मंदिर के
प्रबंधन से अलग कर दिया गया और अंतिम निर्णय तक मंदिर के संचालन के लिए एक सर्वोच्च निकाय का गठन किया गया इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने एक समिति बनाई और उसे मंदिर के छह तहखाने की जांच का जिम्मा सौंपा इनमें से प्रत्येक तहखाने को ए से एफ तक कोड़ी नाम दिया गया पूर्व नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक विनोद राय और वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रह्मण्यम को अदालत ने इस मामले में न्याय मित्र के रूप में नियुक्त किया इनका कार्य था अदालत की मदद करना और मंदिर के भीतर मौजूद खजनों की गहराई से जांच करना सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि तिजोरी ए से लेकर एफ तक में रखे हुए कीमती
सामानों की एक विस्तृत सूची बनाई जाए यह एक ऐसा ऑडिट था जो इतिहास में अनसुना और अनदेखा था और जिसने इस मंदिर के रहस्यमय खजाने की परतें खोलने की दिशा में एक अहम कदम उठाया इस समय मंदिर का गुप्त खजाना लोगों के सामने आना शुरू हुआ समिति के सदस्य जब तहखाने ए में गए तो अंदर का दृश्य देखकर उनके होश उड़ गए 4 फुट ऊंची भगवान विष्णु की शुद्ध सोने की मूर्ति हीरे और रत्नों से सजी हुई एक ठोस स्वर्ण सिंहासन जिसमें सैकड़ों कीमती पत्थर जड़े हुए थे 18 फुट लंबी शुद्ध सोने की चैन 500 किलोग्राम का सोने का पला और छ 30 किलोग्राम का सुनहरा
घूंघट मिला सिर्फ यही नहीं वहां कई बोरियां सोने की कलाकृतियों हार मुकुट हीरे माणिक नीलम पन्ना और कीमती धातुओं से भरी हुई थी पद्मनाभ स्वामी मंदिर के तहखाने से 18वीं सदी के नेपोलियन युग के कई दुर्लभ सिक्के रोमन साम्राज्य के लाखों स्वर्ण सिक्के और मध्यकालीन काल के 800 किलोग्राम सोने के सिक्के बरामद हुए एक अनुमान के मुताबिक इस खजाने का कुल मूल्य एक लाख करोड़ रुपए से भी अधिक है लेकिन कहानी यहां खत्म नहीं होती तहखाना बी का रहस्य आज भी अनकहा है दरवाजे पर बनी दो सांपों की आकृति का क्या अर्थ है क्या उसके भीतर एक और अनमोल खजाना छुपा है या
इसका संबंध भगवान विष्णु के दसवें अवतार कल्की से है क्या यह तिजोरी कभी खुलेगी या सदा के लिए इसी तरह बंद रहेगी इन सभी रहस्य और तहखाना भी के बारे में हम विस्तार से चर्चा करेंगे हमारे मन में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि इस मंदिर का निर्माण किसने करवाया था और इतना विशाल और अमूल्य खजाना इस मंदिर में आखिर आया कहां से किसने इसे मंदिर के भीतर रखा और यह खजाना कितने वर्षों पुराना हो सकता है इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए हमें पद्मनाभ स्वामी मंदिर के इतिहास की गहराइयों में जाना होगा तो चलिए इस मंदिर के अनदेखे अतीत की
गहराइयों में उतरते हैं और इन रहस्यों के बारे में जानते हैं पद्मनाभ स्वामी मंदिर का उल्लेख कई प्राचीन ग्रंथों में मिलता है महाभारत पद्म पुराण और विष्णु पुराण जैसे धर्म ग्रंथों में इसे पवित्र स्थान और भगवान विष्णु का निवास बताया गया है यह मंदिर 108 दिव्य देशों में से एक है जो भगवान विष्णु के सबसे पवित्र तीर्थ स्थलों में गिना जाता है महाभारत में इस स्थान को एक दिव्य स्थल के रूप में वर्णित किया गया है जहां धर्म और कर्म के बल से मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है वहीं विष्णु पुराण में लिखा है कि जो भक्त भगवान विष्णु के शयन रूप की सच्चे मन
से पूजा करता है उसे जीवन में सुख शांति और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है पद्मनाभ स्वामी मंदिर का अद्भुत इतिहास और रहस्यमई कथा दिवाकर मुनि और भगवान विष्णु से जुड़ी हुई है यह कथा ना केवल भक्ति और तपस्या की शक्ति को दर्शाती है बल्कि इस मंदिर की पवित्रता और ऐतिहासिक महत्व को भी उजागर करती है प्राचीन काल में तिरुअनंतपुरम जिसे उस समय अनंतन कद यानी अनंत का वन कहा जाता था वहां दिवाकर मुनि नाम के एक महान ऋषि निवास करते थे उनकी भक्ति और तपस्या इतनी गहरी थी कि उनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य भगवान विष्णु के साक्षात दर्शन करना
था दिवाकर मुनि की वर्षों की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने एक छोटे बालक का रूप धारण कर उनकी परीक्षा लेने का निश्चय किया बालक ने मुनि के पास आकर शरारतें शुरू कर दी पूजा सामग्री को छेड़ना जल फैलाना और मुनि को परेशान करना मुनि ने बालक से पूछा तुम कौन हो बालक ने मुस्कुराते हुए कहा अगर तुम मुझे पकड़ सकते हो तो मैं तुम्हारे साथ रहूंगा लेकिन जैसे ही मुनि ने उसे पकड़ने का प्रयास किया बालक अदृश्य हो गया उसी क्षण आकाशवाणी हुई यदि तुम मुझे पाना चाहते हो तो अनंत वन में आओ वहां तुम्हें मेरा साक्षात्कार मिलेगा लेकिन दिवाकर मुनि ने अनंत वन का
नाम पहले कभी सुना ही नहीं था भगवान को को खोजने का संकल्प लिए वे लगातार चलते गए हर दिशा में हर संकेत को ध्यान से समझने की कोशिश करते हुए उनकी यात्रा उन्हें लक्षद्वीप के घने जंगलों में ले गई वहीं एक दिन उन्होंने एक महिला को अपने बच्चे से बात करते हुए सुना वह कह रही थी अगर तुम मेरी बात नहीं मानोगे तो मैं तुम्हें अनंत वन में ले जाकर फेंक दूंगी इस अनसुने नाम को सुनकर मुनि का हृदय उम्मीद से भर गया उन्होंने महिला से अनंत वन का पता पूछा महिला ने दिशा बताई और मुनि भगवान विष्णु की खोज में उसी ओर बढ़ चले मुनि जैसे ही अनंत वन पहुंचते हैं उन्हें वही
चंचल बालक फिर से दिखाई देता है बालक उन्हें छेड़ता हुआ एक महुआ के पेड़ की ओर भागता है और अचानक उस पेड़ में जाकर गायब हो जाता है दिवाकर मुनि यह देखकर हतप्रभ हो जाते हैं और तभी वह मह का पेड़ गर्जना के साथ गिर जाता है उसी क्षण भगवान विष्णु अपने विराट रूप में प्रकट होते हैं उनके दर्शन इतना दिव्य था कि मुनि की आंखों में श्रद्धा के आंसू भर गए भगवान शेषनाग के ऊपर 8 मील लंबे अपने विराट रूप में विराजमान थे उनका यह रूप ब्रह्मांड की महिमा को प्रकट कर रहा था लेकिन भगवान का यह विशाल रूप इतना अद्वितीय था कि मुनि उनकी पूरी महिमा का दर्शन नहीं कर पा रहे
थे उन्होंने हाथ जोड़कर प्रार्थना की हे भगवान कृपा करके अपने रूप को छोटा कर लीजिए ताकि मैं आपके पूर्ण दर्शन कर सकूं भगवान ने मुनि की विनती स्वीकार की और अपने विराट रूप को छोटा कर लिया लेकिन महुआ के पेड़ों के कारण भगवान अब भी तीन भागों में दिखाई दे रहे थे सिर धड़ और चरण यही वह क्षण था जब भगवान विष्णु ने मुनि को आशीर्वाद दिया और कहा यह स्थान अब से पद्मनाभ के नाम से जाना जाएगा और मैं यहां अनंत काल तक निवास करूंगा दिवाकर मुनि की इस अनुभव की खबर त्रावणकोर के राजा तक पहुंची राजा ने इस स्थान पर एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया भगवान विष्णु
की मूर्ति को इस प्रकार स्थापित किया गया कि इसे तीन द्वारों से देखा जा सके पहले द्वार से भगवान के सिर और छाती के दर्शन होते हैं दूसरे द्वार से नाभि पर विराज ब्रह्मा के और तीसरे द्वार से उनके पवित्र चरणों के दिवाकर मुनि ने भगवान के चरणों में समाधि ले ली उनकी समाधि आज भी मंदिर के पश्चिम दिशा में स्थित है लेकिन आगे बढ़ने से पहले इस वीडियो को एक लाइक करके चैनल को सब्सक्राइब जरूर कर लीजिए क्योंकि यह आपके लिए एक सेकंड का काम है लेकिन इससे हमारी काफी बड़ी मदद होती है ऐसा माना जाता है कि लगभग 5000 वर्षों से भी पुराना यह मंदिर भगवान विष्णु की महिमा को
स्थापित करता है मंदिर का निर्माण त्रावणकोर के राजाओं द्वारा किया गया था और यह उनके साम्राज्य का धार्मिक केंद्र बना कई बार इस मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ और आज जो भव्य स्वरूप हम देखते हैं वह त्रावणकोर के राजा मार्तंड वर्मा की देन है त्रावणकोर के प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर एल ए रवि वर्मा का मानना था कि यह मंदिर कलयुग शुरू होने के पहले दिन स्थापित हुआ था मंदिर के ताम्र पत्रों से पता चलता है कि कलयुग के 950 व वर्ष में एक तुल्लू ब्राह्मण दिवाकर मुनि ने भगवान की मूर्ति की पुनर स्थापना की इसके बाद 960 व वर्ष में राजा कोथा मार्तंड ने
मंदिर के कुछ हिस्सों का निर्माण कराया 18वीं शताब्दी में त्रावणकोर के राजा मार्तंड वर्मा ने मंदिर का सबसे बड़ा पुनर्निर्माण कराया उन्होंने ने द्रविडियन वास्तुकला की शैली में मंदिर का जीर्णोद्धार किया मंदिर के गर्भगृह और खंभों पर की गई नक्काशी आज भी वास्तुकला की अद्भुत कृति मानी जाती है पद्मनाभ स्वामी मंदिर केवल भक्ति और खजनों का केंद्र ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक चमत्कार का एक जीता जागता प्रमाण भी है यह मंदिर अपनी अद्भुत वास्तुकला और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के कारण सदियों से लोगों को हैरान करता आ रहा है यह मंदिर सात मंजिलों का है और हर मंजिल
पर बनी खिड़कियां इस तरह से बनाई गई हैं कि साल में सिर्फ दो बार 22 मार्च और 23 सितंबर यह दिन होते हैं जब इक्विनोक्स आता है इक्विनोक्स यानी वह समय जब दिन और रात दोनों बराबर होते हैं 12 घंटे का दिन और 12 घंटे की रात इन दिनों अगर आप दोपहर में इस मंदिर को देखें तो हर 5 मिनट के अंतराल पर सूर्य की किरण इन खिड़कियों से होकर एक अद्भुत दृश्य बनाती हैं श्री पद्मनाभ स्वामी मंदिर की 18 फीट लंबी प्रतिमा अद्वितीय है जिसे 12008 शालिग्राम से बनाया गया है यह शालिग्राम नेपाल की गंध की नदी से लाए गए थे मंदिर के गर्भगृह में स्थित यह प्रतिमा
इतनी विशाल है कि इसे तीन अलग-अलग द्वारों से देखा जाता है पहले से सिर दूसरे से नाभी और तीसरे से पैर यह भक्ति और वास्तुकला का एक अद्भुत उदाहरण है वर्ष 1750 का उनका एक ऐतिहासिक निर्णय जिसे त्रिपाद दानम कहा जाता है भारतीय इतिहास में अद्वितीय है उन्होंने अपने पूरे राज्य को भगवान पद्मनाभ स्वामी के चरणों में समर्पित कर दिया त्रावणकोर अब भगवान के नाम से चलने वाला पहला राज्य बन गया राजा ने स्वयं को भगवान का दास घोषित किया और य यह प्रण लिया कि उनके वंशज भी इसी आस्था और समर्पण के साथ भगवान की सेवा करेंगे इतना ही नहीं राजा ने अपनी राजधानी
को पद्मनाभ पुरम से तिरुवनंतपुरम स्थानांतरित कर दिया ताकि मंदिर का महत्व और भी बढ़ सके लेकिन यह केवल भक्ति और पूजा का स्थल नहीं था यह मंदिर अपने गुप्त खजाने और तहखाने के लिए भी प्रसिद्ध है मुगल काल के दौरान 1680 में मुस्लिम शासक मुकलम ने इस मंदिर को लूटने की कोशिश की लेकिन त्रावणकोर की सेना और स्थानीय लोगों ने उसे नाकाम कर दिया इसी तरह 1741 जब डच ईस्ट इंडिया कंपनी ने त्रावणकोर पर हमला किया जिसे इतिहास में कोला चेल की लड़ाई के नाम से जाना जाता है राजा मार्तंड वर्मा की सेना छोटी थी लेकिन उन्होंने डचों को हराकर इतिहास रच दिया और
विजय का श्रेय राजा ने भगवान पद्मनाभ स्वामी को दिया युद्ध के बाद राजा ने अपनी सारी संपत्ति इस मंदिर को दान कर दी खजाना बढ़ने लगा और इसी समय मंदिर के प्रसिद्ध तिजोरिया का निर्माण किया गया 1947 में भारत की आजादी के बाद त्रावणकोर का विलय भारतीय गणराज्य में हुआ लेकिन त्रावणकोर के अंतिम शासक चित्रा तिरुनल बलराम वर्मा ने यह सुनि निश्चित किया कि मंदिर का संरक्षण राज परिवार के अधीन ही रहे आज यह मंदिर त्रावणकोर राज परिवार के ट्रस्ट के अधीन है वर्ष 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने इस परंपरा को बरकरार रखते हुए फैसला सुनाया कि मंदिर की देखभाल और संरक्षण राज परिवार
के पास ही रहेगा यह निर्णय यह सुनिश्चित करता है कि इस मंदिर की धार्मिक मान्यताएं और परंपराएं पीढ़ियों तक संरक्षित रहे तो यह था पद्मनाभ स्वामी मंदिर का गौरवशाली इतिहास और खजाने की रोमांचक कहानी लेकिन अब बात करते हैं उस तहखाना बी की जिसने सदियों से लोगों के मन में रहस्य और उत्सुकता पैदा कर रखी है पद्मनाभ स्वामी मंदिर की सबसे बड़ी खासियत है इसकी छह तिजोरिया जिन्हें ए बी सी डी ई और एफ नामों से जाना जाता है सदियों से इन तिजोरिया में बहुमूल्य खजाने छुपे हुए थे जिन्हें किसी ने छुआ तक नहीं था साल 2011 सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर इन
तिजोरिया का सर्वेक्षण शुरू हुआ इनमें से पांच तिजोरिया ए सी डी ई और एफ खोली गई और उनमें छुपे खजाने ने दुनिया को चौका दिया लेकिन तिजोरी भी अब भी रहस्यों में घिरी है पद्मनाभ स्वामी मंदिर के छठे तहखाने यानी तिजोरी बी के रहस्य की बात ही अलग है इस तहखाने तक पहुंचने के लिए आपको तीन दरवाजों को पार करना होता है पहला दरवाजा लोहे की छड़ों से बना है दूसरा भारी लकड़ी का दरवाजा है और तीसरा एक मजबूत लोहे का दरवाजा जो अब भी बंद है और जिसे आज तक कोई खोल नहीं सका इस दरवाजे पर ना कोई कुंडी है ना कोई बोल्ट केवल दो विशाल सांपों के प्रतीक गेट
पर उके गए हैं जो मानो इस द्वार की रक्षा कर रहे हो ऐसी मान्यता है कि यह दरवाजा केवल एक तपस्वी ही गरुड़ मंत्र का सही उच्चारण करके खोल सकता है लेकिन सावधान अगर यह मंत्र गलत बोला गया तो परिणाम मृत्यु होगा इतिहास गवाह है कई लोगों ने इस रहस्यमई दरवाजे को खोलने की कोशिश की लेकिन उन्हें सिर्फ मृत्यु का सामना करना पड़ा ऐसा कहा जाता है कि राजा मार्तंड वर्मा के शासनकाल में सर्वोच्च धार्मिक प्रमुखों ने विशेष नागपाश मंत्र का जाप किया था जिससे पद्मनाभ स्वामी मंदिर के खजाने की रक्षा के लिए तहखाना बी को हमेशा के लिए सील कर दिया
गया यह मंत्र केवल सुरक्षा का माध्यम नहीं था बल्कि इसके साथ एक भयंकर अभिशाप भी जुड़ा हुआ है मान्यता है कि इस अभिशाप को केवल एक सर्वोच्च पुजारी के द्वारा ही हटाया जा सकता है तहखाना के रहस्यों की परतें खोलने के पीछे जिनका सबसे बड़ा योगदान था वह थे याचिका करता टीपी सुंदराजन लेकिन यह घटना और भी रहस्यमई तब बन गई जब तह के खुलने के सिर्फ एक महीने बाद सुंदराजन की असमय मृत्यु हो गई क्या यह महज एक संयोग था या फिर तह के साथ जुड़े अभिशाप का असर यह प्रश्न आज भी अनुत्तरित है और तहखाना के रहस्य को और गहरा बना देता है एमिली गिलक्रिस्ट हैच की प्रसिद्ध पुस्तक
त्रावणकोर अ गाइड बुक फॉर विजिटर में एक चौकाने वाला जिक्र मिलता है यह कहानी 1931 की है जब एक समूह ने तहखाना भी खोलने का प्रयास किया जैसे ही उन्होंने तहखाने का द्वार खोला अंदर का नजारा देखकर उनके होश उड़ गए तहखाना कोराओं के आतंक से भरा हुआ था सांप इतने खतरनाक और आक्रामक थे कि उन लोगों को अपनी जान बचाने के लिए वहां से भागना पड़ा इस किताब में 1908 के एक और असफल प्रयास का उल्लेख है जिसमें भी ऐसी ही स्थिति का सामना करना पड़ा था सवाल यह है क्या यह कोबरा तहखाने की प्राकृतिक रक्षा है या फिर यह किसी अलौकिक शक्ति का संकेत
है जो इन खजानो को छूने नहीं देती कहते हैं कि लगभग 136 साल पहले तिरुअनंतपुरम में अकाल के हालात पैदा हो गए थे ऐसी विकट स्थिति में मंदिर के कर्मचारियों ने छठे तहखाने को खोलने की कोशिश की लेकिन उनकी यह कोशिश बेहद भारी पड़ी अचानक मंदिर के भीतर से तेज रफ्तार और शोर के साथ पानी भरने की आवाजें आने लगी घबराकर उन्होंने तुरंत दरवाजे को बंद कर दिया स्थानीय लोगों का मानना है कि यह छठा तहखाना सीधे अरब सागर से जुड़ा है यदि कोई खजाने को हासिल करने के लिए छठ दरवाजा तोड़ने की कोशिश करता है तो भीतर का पानी पूरे खजाने को बहा ले जाएगा और तब सब कुछ बर्बाद हो
जाएगा क्या यह एक सच्चाई है या महज एक किवदंती यह रहस्य आज भी अनसुलझा है क्या आप जानते हैं तहखाना बी जिसे आज तक सबसे रहस्यमय और पवित्र माना जाता है सात बार खोला जा चुका है पूर्व सीएजी विनोद राय जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर का ऑडिट करने का अधिकार दिया था उनके द्वारा साझा किए गए रिकॉर्ड बताते हैं कि यह तहखाना हाल के दशकों में सात बार खोला गया 1990 में दो बार और 2002 में पांच बार हां यह वही तहखाना है जिसे शाही परिवार मंदिर की पवित्रता बनाए रखने के लिए बंद रखना चाहता था और अब यह भी साफ हुआ है कि इसकी निगरानी कोबरा नहीं करते और ना ही इसे
खोलने से कोई प्रलय आएगा ऐसा प्रतीत होता है कि इस तहखाने के आसपास फैली कई कहानियां सिर्फ मिथक हैं अभी ऐसी चर्चाएं हो रही हैं कि तहखाना बी को भगवान विष्णु के दसवें अवतार कल्क के लिए बंद रखा गया है कहा जाता है कि जब समय आएगा तो भगवान कल्कि स्वयं इस दरवाजे को खोलेंगे इसमें प्राचीन काल के अत्याधुनिक हथियार और यंत्र होने की संभावना जताई जा रही है यह रहस्य और भी गहरा हो जाता है जब लोग कहते हैं कि इस तहखाने का संबंध भविष्य की किसी दिव्य घटना से हो सकता है तो दोस्तों आपको क्या लगता है क्या तहखाना बी का भगवान कल्की के साथ कोई
संबंध हो सकता है अपनी राय तर्क के साथ हमें कमेंट में जरूर लिखें तो दोस्तों यह था पद्मनाभ स्वामी मंदिर का इतिहास और उसके खजाने का अद्भुत रहस्य


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