पूर्णिमा मार्गशीर्ष पूर्णिमा कब है

पूर्णिमा मार्गशीर्ष पूर्णिमा कब है Puranmashi kab ki hai | Poornima | Purnima date 2024

मार्गशीर्ष पूर्णिमा का महत्व और व्रत विधि

मार्गशीर्ष मास का परिचय और धार्मिक महत्व

भारत में हिंदू धर्म के अनुसार, हर मास का अपना विशिष्ट महत्व है। मार्गशीर्ष मास, जिसे अगहन मास भी कहा जाता है, आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। भगवान श्रीकृष्ण ने भगवद गीता में कहा है कि “मासों में मैं मार्गशीर्ष मास हूं।” यह मास भगवान श्रीकृष्ण का स्वरूप माना गया है और इसमें की गई भक्ति व पूजा विशेष फलदायी होती है।

मार्गशीर्ष पूर्णिमा, इस मास में आने वाली पूर्णिमा तिथि, को मनोकामना पूर्ति दायक और सुख-समृद्धि प्रदान करने वाली तिथि माना गया है। सतयुग में देवताओं ने मार्गशीर्ष मास की प्रथम तिथि से ही वर्ष का प्रारंभ किया था, जो इस मास की पवित्रता को दर्शाता है।


मार्गशीर्ष पूर्णिमा का धार्मिक महत्व

मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन श्री सत्यनारायण भगवान की कथा, लक्ष्मी पूजन, शंख पूजन, और भगवान श्रीकृष्ण सहित चंद्रदेव की पूजा का विधान है। इन पूजन कर्मों से मन के विकार दूर होते हैं और भक्त की सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं। इस दिन मां अन्नपूर्णा की जयंती भी मनाई जाती है, जो इस तिथि को और भी विशेष बनाती है।

मां अन्नपूर्णा को संसार की भरण-पोषण करने वाली देवी माना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, जब काशी में एक बार अकाल पड़ा, तब माता पार्वती ने अन्नपूर्णा का रूप धारण किया और भगवान शिव ने उनसे भिक्षा मांगी। मां अन्नपूर्णा ने वचन दिया कि काशी के लोग कभी भूखे नहीं रहेंगे। इस कथा के कारण मां अन्नपूर्णा को अन्न, भोजन, और समृद्धि की देवी के रूप में पूजा जाता है।


पूर्णिमा व्रत और पूजन की विधि

  1. नियम पूर्वक स्नान: मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन प्रातःकाल स्नान कर के शुद्ध वस्त्र धारण करें।
  2. पंचोपचार पूजन: भगवान श्रीकृष्ण, श्रीविष्णु, मां लक्ष्मी, और चंद्रदेव का पंचोपचार पूजन करें। पूजन में धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प, और जल का उपयोग करें।
  3. मंत्र जाप और हवन: “ओम् नमो नारायणाय” मंत्र का जाप करें और सामर्थ्यानुसार हवन करें।
  4. चंद्रमा को अर्घ्य: रात को चंद्रमा को अर्घ्य देते समय प्रार्थना करें: “हे चंद्रदेव, आप मेरी प्रार्थना स्वीकार करें। आप श्वेत किरणों से सुशोभित हैं। श्रीलक्ष्मी जी के भाई के रूप में आपको नमस्कार है।”
  5. दान और सेवा: अपनी सामर्थ्य के अनुसार ब्राह्मणों को भोजन कराएं, वस्त्र दान करें और गरीबों की सेवा करें। परिवार की स्त्रियों को भी उपहार देने का महत्व है।

शुभ मुहूर्त और धार्मिक योग

2024 में मार्गशीर्ष पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त इस प्रकार है:

  • पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 14 दिसंबर, शनिवार, शाम 4:59 बजे
  • पूर्णिमा तिथि समाप्त: 15 दिसंबर, रविवार, दोपहर 2:31 बजे

इस बार मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर अनेक शुभ योग बन रहे हैं:

  • सर्वार्थ सिद्धि योग: 14 दिसंबर को सुबह 8:02 बजे तक
  • साध्य योग: 15 दिसंबर को सुबह 5:07 बजे तक
  • अभिजीत मुहूर्त: 12:00 बजे से 12:43 बजे तक (दोनों दिन)
  • अमृत काल: 15 दिसंबर को शाम 6:06 बजे से 7:36 बजे तक

इन शुभ योगों में भगवान श्रीसत्यनारायण की कथा और अन्य धार्मिक कार्य करना अत्यंत फलदायी होता है।


सामाजिक और सांस्कृतिक पहलू

पूर्णिमा के दिन धार्मिक गतिविधियों के साथ सामाजिक कार्य भी करने चाहिए। गरीबों को भोजन और वस्त्र दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। रसोई घर में मां अन्नपूर्णा की तस्वीर स्थापित कर उनकी पूजा करनी चाहिए और चूल्हे की पूजा भी इस दिन शुभ मानी जाती है। ऐसा करने से घर में अन्न और समृद्धि का वास बना रहता है।


दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलने का दिन

धार्मिक मान्यता है कि मार्गशीर्ष पूर्णिमा दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलने की क्षमता रखती है। जो व्यक्ति लंबे समय से किसी कठिनाई का सामना कर रहा है, वह इस दिन व्रत रखकर और स्नान-ध्यान कर अपने जीवन को बेहतर बना सकता है।


पौष मास का आरंभ

मार्गशीर्ष पूर्णिमा के बाद पौष मास का प्रारंभ होता है, जो सूर्य देवता को समर्पित माना जाता है। इस मास में सूर्य की पूजा का विशेष महत्व है। पौष मास के आरंभ के साथ ही नए अवसर और नई ऊर्जा का स्वागत किया जाता है।


निष्कर्ष

मार्गशीर्ष पूर्णिमा का दिन भक्तों के लिए अत्यंत शुभ और फलदायी होता है। इस दिन की गई पूजा, व्रत, और दान-पुण्य न केवल आत्मिक शांति प्रदान करते हैं, बल्कि जीवन को सुख-समृद्धि से भी भर देते हैं। मां अन्नपूर्णा और भगवान श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त करने के लिए इस पवित्र दिन को श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाना चाहिए।


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