|| RAMAYANA SECRET Method to ACTIVATE 7 CHAKRAS ||

 

वाल्मीकि ने रामायण में कुछ ऐसे राजस छुपा रखे हैं जिसके श्रवण मात्र से मनुष्य के सातों चक्रों की जागृति होना तय है

रावण के द्वारा सीता का हरण किया जाना हो या फिर बायु पुत्र हनुमान द्वारा पूरी की पूरी लंका का दहन करना रावण पुत्र इंद्रजीत के द्वारा लक्ष्मण को मूर्छित किया जाना हो या फिर रावण के नाभि पर तीर लग जाने से उसके मृत्यु हो जाना आज मैं आपके सामने रामायण के उन रहस्यों को उजागर करने वाला हूं जिसकी हर एक घटना में कुंडलिनी जागरण का रहस्य छुपा हुआ है कहानी के फॉर्म में एक बहुत बड़े मैसेज को प्रिजर्व किया हुआ है उस कहानी को जब आप अनफोल्ड करेंगे तो अंदर से एक मैसेज निकल करके आएगा राम है क्या हनुमान क्या है उसको वायु पुत्र क्यों बोला गया हैjay shiri ram


मेडिटेशन में ब्रेथ का इतना बड़ा रोल क्यों बताया गया है जब ब्रेथ लंका में जाती है यह लंका क्या यही तो नहीं है कि शरीर जो सोने की लंका है सीता जो है वो कहीं हमारी कुंडलिनी शक्ति तो नहीं है और जब हनुमान लंका में पहुंचता है तो लंका में आग क्यों लगती है जब ब्रेथ हमारी पूरी बॉडी को जलाती है तो तप क्यों बोलते हैं उसको बाण यही क्यों लगना चाहिए रावण के कहीं और क्यों नहीं यहां पर ऐसा क्या है इस चक्र में ऐसा क्या है एक बार हमेशा की तरह वाल्मीकि जंगल के बीच खड़ा होकर मुसाफिरों की राह देख रहे हैं इस उम्मीद में ताकि वे उन्हें लूट पाए तभी उनके सामने नारद प्रकट होते हैं


नारद का गेरवा वस्त्र और हाथों में एक मात्र कमंडल देखकर वाल्मीकि उनसे कहते हैं सुन सन्यासी क्योंकि तेरे पास मुझे देने के लिए कुछ नहीं इसलिए अब तुझे मेरे हाथों मरना होगा नारद बोले ठीक है मैं तुम्हारे हाथों मरने के लिए तैयार हूं बस तुम मुझे इतना बता दूं तुम जो यह लूटमार और हत्या करते हो किसके लिए वाल्मिक बोले अपने लिए अपने घर वाले के लिए नारद बोले तुम्हें क्या लगता है जो कर्म तुम अपने परिवार वालों के पेट पालने के लिए करते हो क्या वही लोग तुम्हारे इस बुरे कर्म के भागीदार बनना चाहेंगे जिस प्रकार वे तुम्हारे द्वारा कमाए गए धन का भागीदार बनते हैं यह सुनकर वाल्मीकि घबराए हुए स्वर में कहते हैं क्यों नहीं देंगे अवश्य देंगे वो मेरे सुख दुख के साथी हैं अगले ही पल वाल्मीकि भाग कर अपने घर पहुंचते हैं सबसे पहले उन्होंने अपनी पत्नी से पूछा उनकी पत्नी साफ-साफ मना कर देती है


और कहती है नहीं अपना काम तू खुद करता है उस पाप से हमें क्या लेना देना अपनी करने का फल तू भुगते का हम क्यों भुगते यह सुनकर वाल्मीकि अंदर से टूट गए एक व्यक्ति जो चट्टान जैसा था उसकी आंखों से आंसू निकलने लगे वे भाग के जंगल में नारद के पास पहुंचते और कहा मुझे मुक्ति चाहिए मुझे मुक्ति का मार्ग बताओ वाल्मीकि के मुख से इतना सुनते ही नारद भगवान विष्णु की एक तस्वीर बनाते हैं जिनकी आवा हल्के नीले रंग की होती है उनके हाथों में एक चक्र होता है और बावजूद इसके कि उनके पीछे एक पंचमुखी नाग अपने फन फैलाए खड़ा है उनके चेहरे पर एक सिकन तक नहीं होती अब मैं आपको इस तस्वीर का वह रहस्य बताता हूं जो भगवान राम के अवतार को एक्सप्लेन करता है इस तस्वीर में पूरी की पूरी रामायण छुपी पड़ी है राम सीता लक्ष्मण सभी इस चित्र में मौजूद है सबसे पहले अगर हम भगवान विष्णु के किसी भी अवतार को देखें तो वह हमेशा नीले रंग के दिखाई पड़ते हैं ऐसा इसलिए नहीं कि भगवान राम या कृष्ण नीले रंग के थे बल्कि ऐसा तब होता है जब कोई व्यक्ति अपने सारे चक्रों को जागृत करके अ भौतिकता के उस स्तर पर पहुंच जाता है अपने भीतर परमात्मा को इतना प्रकट कर लेता है कि उसकी आवा हल्के नीले रंग की हो जाती है अध्यात्म में इस उपलब्धि को इनलाइटनमेंट कहा जाता है और ऐसा व्यक्ति इनलाइटेंड यानी प्रकाशम व्यक्ति कहलाता है आज विज्ञान में इस बात के क्लियर एविडेंसेस मौजूद हैं कि कैसे पूरा का पूरा ब्रह्मांड बस श्वेत प्रकाश यानी वाइट लाइट की अभिव्यक्ति मात्र है जब यह श्वेत प्रकाश भौतिकता में प्रवेश करती है


तो यह सात रंगों में विभक्त हो जाती है जो है रेड ऑरेंज येलो ग्रीन ब्लू इंको और वायलेट इसमें से वो प्रकाश जो सबसे ज्यादा भौतिक है सबसे ज्यादा ठोस है वो लाल रंग का प्रकाश है इसलिए आप देखते हैं कि जब भी कहीं देवी की पूजा होती है तो उन्हें हमेशा लाल रंग से दिखाया जाता है उन्हें लाल रंग की चीजें अर्पित की जाती है वहीं दूसरी तरफ वो प्रकाश जो सबसे ज्यादा अभौतिक है वो वही हल्के नीले रंग की प्रकाश है जिसे योग में श्याम वर्ण के नाम से जाना जाता है जैसे भगवान राम और कृष्ण किसी व्यक्ति की आभा इस रंग में तब बदल जाती है जब कोई व्यक्ति अपने चक्रों को जागृत करता हुआ कम से कम विशुद्धि चक्र तक ले आता है जो ठीक गर्दन के पास मौजूद होती है शास्त्र में इसी घटना को नीलकंठ कहा गया है अब सवाल यह उठता है कि कैसे कोई व्यक्ति इस उपलब्धि को हासिल कर पाए इसका साधारण सा जवाब भगवान विष्णु की उंगली पर गति कर रहा वह चक्र है जिसे योग में चक्र भेदन प्रक्रिया कहते हैं यह चक्र आपको आपके सभी अहंकार से मुक्ति दिलाता हुआ सुनीता के उस स्तर पे ले जाता है जहां वह घटना घटती है जिसे इनलाइटनमेंट कहा जाता है लेकिन यह चक्र मनुष्य के अहंकार को तभी भेजती है जब इसमें शक्ति होती है जब यह गति करती है रामायण में इसी शक्ति को सीता माता का रूप दिया गया है


अगर रामायण पर गौर करें तो सबसे पहले मां सीता रावण के वासना रूपी अहंकार को यह कहकर खत्म करती है कि जैसे ही वो उन्हें हाथ लगाएगा वह जलकर भस्म हो जाएगा जिसके वजह से रावण उन्हें कुछ नहीं करता दरअसल ये मूल धार चक्र का प्रतीक है जैसे ही कोई इसे भेदने की कोशिश करता है तो उसके सामने उसकी वासना प्रकट हो जाती है जो मनुष्य इस चक्र में फंसा रहता है वह श्रीजन के ऊपर कभी उठ ही नहीं पाता उसकी सोच का अंत और आरंभ दोनों वासना पे होता है इसलिए आप देखोगे कि के 100 पुत्र थे इसके बाद लंका दहन की जो घटना घटी वो भी मां सीता के कारण ही संभव हुई जब सीता मां हनुमान जी को यह आशीर्वाद देती है कि उन्हें आग नहीं जला सकती और आगे चलकर ऐसा ही हुआ जब हनुमान जी के पूंछ में आग लगाई गई तो उन्हें कोई जलन महसूस नहीं हुई उल्टा उन्हें ठंडक का अनुभव हो रहा था क्योंकि सीता नाम का मतलब ही शीतल से है जिस ब्रह्मचारी को सीता मां का आशीर्वाद प्राप्त हो उसे वासना की आग कैसे जला सकती है उल्टा उन्होंने उस अग्नि से पूरी लंका चला दी कुंडलिनी की भाषा में रामायण में जिसे लंका कहा गया है उसे लम बीज कहते हैं जो मूलधन चक्र का बीज मंत्र है अब अगर गौर करें तो हनुमान जी लंका दहन स्पेसिफिकली अपने पूछ से ही करते हैं अपने हाथ या किसी और चीज से नहीं इसका जवाब यह है


कि ये लम बीज यानी मूलाधार चक्र जहां अहंकार वास करता है जो अहंकार का घर है वो एगजैक्टली उसी जगह व्यवस्थित है जहां से कभी हमारी पूंछ निकलती थी लेकिन धीरे-धीरे ह्यूमन इवोल्यूशन के चलते हमारी पूंछ खत्म होते गई लेकिन आज भी अगर आप अपनी स्पाइन की एंड को देखोगे तो वहां आपको एक छोटी सी टेल देखने को मिलेगी अब आते हैं रामायण की दूसरी सबसे महत्त्वपूर्ण घटना पे जब इंद्रजीत लक्ष्मण को बान मारते हैं और लक्ष्मण मूर्छित हो जाते हैं रामायण में इस घटना को राम विलाप कहा गया जो इस बात का प्रतीक है कि लक्ष्मण जिसका अर्थ एकाग्रता है


जब वो मूर्छित हो जाती है तो उससे भगवान भी विचलित हो जाते हैं अब जरा इस तस्वीर को ध्यान से देखिए ध्यान रहे रामायण में लक्ष्मण का दूसरा नाम शेष होता है जो भगवान विष्णु की शेष नाग का प्रतीक है शेष नाग के पंचमुख मनुष्य के पांच इंद्रियों को दर्शाते हैं जो हैं आंख कान जीवा नाक त्वचा अब अगर आप गौर करें तो रामायण में लक्ष्मण को जो मूर्छित करता है उसका नाम इंद्रजीत होता है जिसका स्पष्ट अर्थ इंद्रियों पे विजय प्राप्त करने से है उसे जीतने से है तो लक्ष्मण यानी वन पॉइंटेड कंसंट्रेशन यदि खुद को एकाग्र चित कर अपने इंद्रियों को जीतने में असमर्थ रहता है तो वे बेकाबू इंद्रियां एकाग्रता को मूर्छित कर भगवान को भी डस लेंगी और अभी जो भगवान आपको अविचल दिखाए पड़ रहे हैं वह विचलित हो जाएंगे मनुष्य की आत्मा विचलित हो जाएगी यदि वह अपने इंद्रियों को नहीं जीत पाता है तो मनुष्य के अंदर बैठा वह राम विलाप में चला जाएगा इसलिए जब ऐसा हो तो इसका एक ही उपाय है और व है हनुमान मनुष्य को चाहिए कि वह अपनी एकाग्रता को प्रबल रखने के लिए अपनी सांसों पर ध्यान कायम करें और वो भोजन ग्रहण करें जो औषधि समान हो


बजाय ऐसा भोजन करने के जो इंद्रियों को उत्तेजित करती है और एकाग्रता को भंग करती है आगे हम देखते हैं कि लक्ष्मण इस पर दोबारा होश में आते हैं और इस बार पूरे बल से इंद्रजीत पर विजय प्राप्त करते हैं अब आते हैं इस वीडियो के सबसे प्रमुख सवाल पे कि आखिर रावण की मृत्यु उसके नाभि पर बां लगने से ही क्यों हुई दरअसल जहां पर हमारी नाभि होती है वहां दो चक्र मौजूद होते हैं मणिपुर और अनाहत ये दोनों चक्र सर्वाधिक स्टेबल होते हैं जहां विष्णु चेतना निवास करती है इसके नीचे तो आपको जाना ही नहीं है क्योंकि ब्रह्म चक्र चेतना का वह रूप है जो आपको सृजन में फंसा है


और यदि आप विष्णु चेतना के ऊपर जाते हो तो ऊपर के सभी चक्र रुद्र क्षेत्र में आते हैं यह सिर्फ उन लोगों के लिए है जो सिर्फ अध्यात्म में ही जाना चाहते हैं अलौकिक शक्तियों को महसूस करना चाहते हैं या तांत्रिक बनना चाहते हैं लेकिन एक कॉमन इंसान जो सांसारिक गतिविधियों में है और अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए भगवान को पाना चाहता है तो वह सबसे अधिक विष्णु चेतना को महत्व दे और जब मृत्यु की घरी आएगी तो महाकाल स्वयं उसकी चेतना को सहस्त्रार चक्र पर ले जाकर उस व्यक्ति को मुक्ति प्रदान कर देंगे इसीलिए आप देखोगे कि जब राम ने अपने सारे कर्तव्यों का पालन कर लिया तो वे सीता मां से अलग हो गए और सीता मां वहीं लौट गई जहां से वो आई थी जहां राजा जनक को वह पहली बार मिली थी यानी भू ग्रह में कुंडलिनी का पहला चक्र यानी मूलधन चक्र अर्थ एलिमेंट यानी धरती से ही जुड़ा है इसीलिए मां सीता को भू पुत्री के नाम से जाना जाता है वहीं भगवान राम अपनी शक्ति को धरती मां को लौटा के खुद उन्होंने जल समाधि ले ली और खुद को सदा सदा के लिए जीवन मरण के चक्र से मुक्त कर लिया  आदेश जय श्री महाकाल भगवती आप सभी का कल्याण करें


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